जब मूत्र में अघुलनशील पदार्थ, जैसे ऑक्सलेट (Oxalates), फॉस्फेट (Phosphates) और यूरिक एसिड (Uric acid) जैसे पदार्थ शामिल होने लगते हैं, तो पथरी बनने लगती है। पानी और अन्य तरल पदार्थों को कम लेने के कारण स्टोन बनने की क्रिया शुरू होती है। अगर स्टोन 5 मिलीमीटर से कम साइज का हो, तो ये अपने आप पेशाब में शरीर के बाहर निकल जाता है। हालांकि, 5 से 7 मिलीमीटर के साइज की पथरी को निकालने के लिए इलाज की आवश्यकता होती है।
भारत में, महाराष्ट्र और राजस्थान के लोगों को किडनी स्टोन होने की संभावना देश के बाकी इलाकों से ज्यादा मानी जाती है। भारत की कुल जनसंख्या में से करीब 12.7 प्रतिशत लोग स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के लिए होम्योपैथी का सहारा लेते हैं जो कि एक बहुत अच्छा विकल्प साबित हुआ है, खासकर बूढ़े लोगों और हाई ब्लड प्रेशर व डायबिटीज से ग्रस्त ऐसे लोगों के लिए जो बिना सर्जरी के अपना इलाज कराना चाहते हैं।
होम्योपैथी में हर रोगी के शारीरिक व मानसिक लक्षणों को देखकर अलग दवा चुनी जाती है क्योंकि होम्योपैथी में ऐसा माना जाता है कि हर व्यक्ति के लक्षण एक-दूसरे से अलग होते हैं। सब लक्षणों को देखने व उनका अवलोकन करने के बाद होम्योपैथिक डॉक्टर रोगी के लिए उचित दवा चुनते हैं ताकि रोगी को लक्षणों से राहत दी जा सके। गुर्दे की पथरी के लिए होम्योपैथी में उपयोग होने वाली आम दवाएं हैं बर्बेरिस वल्गैरिस (Berberis vulgaris), अर्जेंटम नाइट्रिकम (Argentum nitricum) और बेंज़ोइकम (Benzoicum)।
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