आयुर्वेद में किडनी स्टोन को अशमारी कहते हैं। जब कफ दोष मूत्र प्रणाली तक पहुंच जाता है तो स्टोन बनने लगते हैं और वात के कारण ये सूख जाते हैं। ये पथरी गुर्दे (किडनी) में जमा होने लगती है और इनके विस्थापित होने पर पेल्विक हिस्से में बहुत तेज दर्द उठता है, पेशाब में दर्द और दिक्कत महसूस होती है। यहां तक कि हिलने-डुलने पर भी दर्द महसूस होता है।
आयुर्वेद में दोष के आधार पर अशमारी को चार मूल प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है। इस बीमारी में बहुत दर्द होता है और व्यक्ति को तुरंत इलाज की जरूरत होती है। अशमारी के उपचार में शमन, शोधन (शुद्धि) और कभी-कभी शस्त्र कर्म शामिल है जिसमें किडनी स्टोन को निकालने के लिए सर्जरी की जाती है।
पथरी के शमन में कई दवाओं के माध्यम से पथरी को गलाया जाता है जिससे पथरी पेशाब के जरिए निकल जाती है और दर्द में कमी आती है। शोधन में पंचकर्म यानि वमन, बस्ती (एनिमा) और विरेचन कर्म (शुद्धि चिकित्सा) द्वारा शरीर से पथरी को बाहर निकाला जाता है। ये सब स्नेहन और स्वेदन की प्रारंभिक प्रक्रिया के बाद ही किया जाता है।
अशमारी के उपचार में सामान्य तौर पर गोक्षुर, पुनर्नवा, पाशनभेद से बनी चंद्रप्रभा वटी, गोक्षुर गुग्गल और यव शरा जैसी जड़ी-बूटियों के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है। इस रोग का इलाज संभव है तथा संतुलित आहार और जीवनशैली में बदलाव से किडनी स्टोन बनने से रोका जा सकता है।
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