पीलिया के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटिया
कुटकी को पित्तघ्न (पित्त को नष्ट करने वाली) और कफघ्न (कफ नष्ट करने वाली) के गुणों के लिए जाना जाता है। शमन चिकित्सा की दीपन प्रक्रिया में कुटकी का इस्तेमाल किया जाता है। ये लिवर के कार्य को उत्तेजित करती है और पित्त को साफ करने और विरेचन (शुद्धि) में मदद करती है। ये पित्त और पित्तरस के स्तर को कम करने में इस्तेमाल की जाती है। इस तरह इससे पीलिया का इलाज किया जाता है। कुटकी को चूर्ण के रूप में पानी, गन्ने के जूस या शहद के साथ या डॉक्टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
शमन चिकित्सा की दीपन प्रक्रिया में कालमेघ का प्रयोग किया जाता है। कालमेघ में कुछ ऐसे गुण होते हैं जो तेज बुखार के इलाज में, पित्त को हटाने, विरेचक और कीड़ों को नष्ट करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। ये प्लीहा (तिल्ली - यह एक आतंरिक अंग है जो बाईं ओर पसलियों के नीचे होता है) और पाचन तंत्र के कार्य को भी बेहतर करने में मदद करता है। चूर्ण के रूप में उपलब्ध कालमेघ को पानी, गन्ने के रस या शहद के साथ या डॉक्टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं। (और पढ़ें - पीलिया डाइट चार्ट)
पीलिया जैसे कई लिवर रोगों में भूम्यामलकी का इस्तेमाल किया जाता है। ये लिवर के संपूर्ण स्वास्थ्य में सुधार करती है और हेपेटाइटिस बी वायरस संक्रमण से बचाती है। भूम्यामलकी को जूस या चूर्ण के रूप में पानी, गन्ने के जूस या शहद के साथ या डॉक्टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
आयुर्वेद में जंगली गाजर को रक्त साफ करने और नर्विक टॉनिक (सीखने की क्षमता को बढ़ाने और मानसिक संतुलन को बेहतर करने वाला) के रूप में जाना जाता है। पिछले कई वर्षों से पीलिया के इलाज में इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है। शमन चिकित्सा में स्नेहन और दीपन प्रक्रिया के लिए जंगली गाजर का इस्तेमाल किया जाता है। ये रक्त धातु में पित्त को कम करने और वात दोष को शांत करने में मदद करती है।
(और पढ़ें - गाजर खाने के फायदे)
पीलिया की आयुर्वेदिक दवाएं
हरीतकी (हरड़), नींब (नीम), भुनिम्ब (निर्मली), विभीतकी, कटुकी, आमलकी (आंवला), गुडुची (गिलोय) और वसाका (अडूसा) जैसी आठ जड़ी-बूटियों से बना काढ़ा फलत्रिकादि क्वाथ कहलाता है। इस क्वाथ (काढ़ा) का स्वाद खट्टा होता है और इसमें पित्त रेचक (पित्त को खत्म करने वाला), कोलेरेटिक (लिवर से पित्त के स्राव को उत्तेजित करता है), कोलागोग (तंत्र में पित्त के रिसाव को बढ़ाने वाला) और कफ-पित्त शामक (पित्त और कफ को शांत करने वाले) गुण पाए जाते हैं।
ये पीलिया के साथ-साथ एनीमिया के इलाज में भी उपयोग किया जाता है। इसमें मौजूद गुण लिवर के ऊत्तकों को मजबूत और उत्तेजित करते हैंं इसलिए फलत्रिकादि क्वाथ बेहतरीन हेप्टो प्रोटेक्टिव (लिवर को सुरक्षा देने वाली) दवा भी है।
इसमें वायरलरोधी और एंटी-ऑक्सीडेंट गुण भी पाए जाते हैं जोकि सुरक्षात्मक और निवारक के रूप में कार्य करते हैं। फलत्रिकादि क्वाथ को दो से तीन हफ्ते तक या डॉक्टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
(और पढ़ें - एंटी-ऑक्सीडेंट की कमी के लक्षण)
वसागुडुच्यादि क्वाथ आयुर्वेद की प्रसिद्ध दवा है जिसका इस्तेमाल कामला (पीलिया) जैसे कई रोगों के इलाज में किया जाता है। इसका इस्तेमाल एल्कोहोलिक लिवर रोग और पांडुरोग (एनीमिया) के इलाज में भी किया जाता है। वसागुडुच्यादि क्वाथ हरीतकी, वसाका (अडूसा), नींब (नीम), कटुकि, गुडुची, चिरायता, आमलकी और विभीतकी का मिश्रण है।
इन सभी जड़ी-बूटियों में हेप्टो प्रोटेक्टिव गुणों से युक्त फ्लेवोनॉयड्स, टैनिन-गैलिक एसिड, ट्रिटेरपेनोइड्स, कोमरिन ग्लाइकोसिड और फेनोलिक अवयव जैसे फाइटोकॉन्सटिट्यूंट्स (पौधों में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रसायनिक यौगिक) प्रचुर मात्रा में होते हैं। वसागुडुच्यादि क्वाथ दो से तीन हफ्ते तक या डॉक्टर के आयुर्वेदिक चिकित्स के निर्देशानुसार ले सकते हैं। (और पढ़ें - नीम के तेल के फायदे)
छाछ या चिकित्सक के निर्देशानुसार पुनर्नवा मंडूर को दो से तीन सप्ताह तक ले सकते हैं। इस आयुर्वेदिक दवा को खांसी और बुखार कम करने, ऊर्जा देने वाले, सूजन रोधी और मूत्रवर्द्धक गुणों के लिए जाना जाता है। इसका इस्तेमाल स्वेदोपग (पसीने की चिकित्सा में एक सहायक के रूप में) दवा के तौर पर भी किया जाता है। पुनर्नवा का प्रयोग सब्जी के रूप में भी किया जा सकता है। (और पढ़ें - बुखार भगाने के घरेलू उपाय)
लिवर विकारों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली कई दवाओं के मिश्रण से आरोग्यवर्धिनी वटी को तैयार किया गया है। ये दवा शरीर में सभी दोषों को संतुलित कर स्वास्थ्य को बेहतर करती है। इस दवा में एंटीऑक्सीडेंट और हेप्टो प्रोटेक्टिव गुण मौजूद होते हैं जो लिवर के कार्य को बेहतर करने में मदद करते हैं।
आरोग्यवर्धिनी वटी बॉडी चैनल्स (पूरे शरीर में बहने वाली ऊर्जा के प्रवाह के 12 मुख्य माध्यम या चैनल हैं , इस जीवन ऊर्जा को चीन के पांरपरिक ज्ञान में “की” (Qi) और “ची” (Chi or Chee) कहा जाता है) को साफ, पाचन अग्नि को उत्तेजित, शरीर में वसा के वितरण को संतुलित और पाचन तंत्र से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने का काम करती है। आरोग्यवर्धिनी वटी चूर्ण के रूप में भी उपलब्ध है। वटी या चूर्ण को दो से तीन हफ्ते तक पानी, गन्ने के रस या शहद के साथ डॉक्टर के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
(और पढ़ें - पीलिया होने पर क्या करें)