आयुर्वेद में सिरदर्द को शिर:शूल भी कहा जाता है जोकि शिरोरोग (सिर से संबंधित रोग) का एक प्रकार है। ये किसी बीमारी के लक्षण या स्वयं एक रोग के रूप में सामने आ सकता है। कारण और दोष के आधार पर शिर:शूल को आठ प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है।
व्यक्ति की चिकित्सकीय स्थिति और किस दोष के कारण सिर दर्द हो रहा है, इसके आधार पर उपचार निर्धारित किया जाता है। आयुर्वेद में सिर दर्द के इलाज के लिए बस्ती कर्म (एनिमा चिकित्सा) नास्य कर्म (सूंघने की विधि), लेप (प्रभावित हिस्से पर औषधियों का लेप), सेक (सिकाई), स्नेहन (घी से शुद्धिकरण की विधि) और शिरोधारा (सिर के ऊपर औषधीय तरल या तेल डालना) जैसी कुछ चिकित्साओं का प्रयोग किया जाता है।
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सिर दर्द के इलाज के लिए चिकित्सक आपको पिप्पली, पुदीना, तुलसी, शुंथि (सूखी अदरक), ब्राह्मी और जटामांसी जैसी जड़ी-बूटियों के प्रयोग की सलाह दे सकते हैं।
सिर दर्द के उपचार में महालक्ष्मी विलास रस, सितोपलादि चूर्ण, रसोन वटी और ब्रह्मा यादी चूर्ण का इस्तेमाल किया जाता है।