त्वचा के गैर-संक्रामक इंफ्लमैशन को एक्जिमा कहते हैं। इसे एटॉपिक डर्मेटाइटिस, एटॉपिक एक्जिमा और एलर्जिक एक्जिमा भी कहा जाता है। यह त्वचा पर सूखे, लाल, पपड़ीदार और खुजलीदार दाने के रूप में होते हैं जो कभी-कभी पानी या मवाद से भरे छाले में बदल जाते हैं। इन छालों के फूटने पर तरल पदार्थ निकलता है।
एक्जिमा से पीड़ित व्यक्तियों की त्वचा पर बैक्टीरिया, फंगस और वायरस से होने वाले संक्रमण भी हो सकते हैं। यद्यपि, शिशुओं और बच्चों में एक्जिमा होना अधिक सामान्य है पर यह वयस्कों को भी प्रभावित कर सकता है। एक अनुमान के अनुसार, दुनिया में लगभग 15% बच्चे और 2 से 4% वयस्क इससे पीड़ित हैं।
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एक्जिमा का सही कारण अभी तक ज्ञात नहीं है, लेकिन इस बीमारी में जेनेटिक और पर्यावरणीय कारकों की भूमिका मानी जाती है। यह देखा गया है कि एक्जिमा के रोगियों की प्रतिरक्षा प्रणाली बहुत अधिक प्रतिक्रिया करती है, जो विभिन्न कारकों द्वारा प्रभावित होने पर एक्जिमा के लक्षणों का कारण बनती है।
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एक्जिमा का एक अन्य संभावित कारण फिलाग्रीन नाम के प्रोटीन का उत्पादन करने वाले जीन में परिवर्तन होना है। यह प्रोटीन त्वचा की बाहरी परत को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। इस परिवर्तन से त्वचा की नमी खो जाती है, जिससे रोग पैदा करने वाले रोगाणु त्वचा को प्रभावित करते हैं। एलर्जी, ठंड, शुष्क हवा, ऊन से बने कपड़े, तनाव, पराबैंगनी किरणें, परफ्यूम या साबुन आदि एक्जिमा के अन्य कारकों में शामिल हैं। एक्जिमा माता पिता से प्राप्त जीन से भी हो सकता है।
एक्जिमा के पारंपरिक उपचार में रूखी त्वचा को ठीक करने के लिए एमोलिएंट्स तथा सूजन और लालिमा को कम करने के लिए टोपिकल कॉर्टिकॉस्टेरॉइड्स का उपयोग किया जाता है। दूसरी ओर होम्योपैथिक उपचार में हर रोगी का इलाज एक विशेष तरीके से होता है और लक्षणों को दबाने के बजाय यह बीमारी के मूल कारण को ठीक करता है।
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आर्सेनिकम एल्बम, कैल्केरिया कार्बोनिका, ग्रैफाइटिस, मेजेरियम, नेट्रम म्यूरिएटिकम, पेट्रोलियम, रस टाक्सिकोडेन्ड्रन और सल्फर इत्यादि कुछ ऐसी होम्योपैथिक दवाएं हैं, जो अक्सर एक्जिमा के उपचार में उपयोग होती हैं।
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