आयुर्वेद में एक्‍जिमा को विचर्चिका कहा जाता है। ये त्वचा का एक गैर-संक्रामक और इंफ्लामेट्री (प्रभावित हिस्‍से पर सूजन होना) बीमारी है जिसके कारण खुजली और लालपन रहता है। इसमें सूजन वाले हिस्‍से के आसपास की जगह भी लाल हो जाती है। एक्‍जिमा का रोग पुराना या तीव्र हो सकता है। हालांकि, एलोपैथी में अब तक एक्जिमा के कारण का पता नहीं चल पाया है।

आयुर्वेद में एक्‍जिमा के कारणों की पहचान की गई है और इसमें विभिन्‍न उपचारों जैसे कि अभ्‍यंग (तेल मालिश की विधि), वमन (उल्‍टी करवाने की विधि), विरेचन (मल निष्‍कासन की विधि), रक्‍त मोक्षण (रक्‍तपात) और लेप (प्रभावित हिस्‍से पर औषधियों का लेप लगाना) का प्रयोग किया जाता है।

(और पढ़ें - मालिश के लाभ)

आयुर्वेद में एक्जिमा के लिए नीम, हरिद्रा (हल्‍दी), घृतकुमारी (एलोवेरा) और बकुची जैसी जड़ी-बूटियों का इस्‍तेमाल किया जाता है।एक्‍जिमा के लिए आयुर्वेदिक चिकित्‍सक द्वारा आरोग्‍यवर्धिनी वटी, महा तिक्‍त घृत, गंधक रसायन, अवलगुजादि लेप और रस कपूरम लेप आदि औषधियों के प्रयोग की सलाह दी जाती है।

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से एक्जिमा - Ayurveda ke anusar Eczema
  2. एक्जिमा का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार - Eczema ka ayurvedic ilaj
  3. एक्जिमा की आयुर्वेदिक जड़ी बूटी और औषधि - Eczema ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार एक्जिमा होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Eczema me kya kare kya na kare
  5. एक्जिमा में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Eczema ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. एक्जिमा की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Eczema ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. एक्जिमा की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Eczema ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
एक्जिमा की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

आयर्वेद के अनुसार कई कारणों की वजह से एक्जिमा की बीमारी होती है। किसी भी उम्र के व्‍यक्‍ति को एक्जिमा की समस्‍या हो सकती है। निन्‍मलिखित कारणों से दोष और धातु के असंतुलन की वजह से एक्‍जिमा की समस्‍या हो सकती है:

  • अनुचित खाद्य पदार्थों का मिश्रण जैसे कि मछली के साथ दूध लेना।
  • अत्‍यधिक मात्रा में भारी भोजन करना।
  • प्राकृतिक इच्‍छाओं विशेषत: उल्‍टी को रोकना।
  • खाने के तुरंत बाद व्‍यायाम करना। (और पढ़ें - व्यायाम करने का सही समय)
  • मौसम में तुरंत बदलाव जैसे कि ठंडे से गर्म या गर्म से ठंडा होना।
  • मछली, खट्टी चीज़ें और ताजा कटे हुए अनाज का अत्‍यधिक सेवन करना।
  • खाने के तुरंत बाद संभोग
  • शरीर में खाने का सही से न पचना।
  • लसीका तंत्र का रोग।
  • जरूरत पड़ने पर पंचकर्म न लेना।

उचित आहार और जीवनशैली के द्वारा शरीर से अमा (विषाक्‍त पदार्थों) को साफ कर सकती है और इससे एक्जिमा के इलाज में मदद मिलती है। एक्जिमा को नियंत्रित करने के लिए निर्धारित की गई विभिन्‍न चिकित्‍साओं द्वारा शरीर से अमा को भी बाहर निकाला जाता है।

(और पढ़ें - एक्जिमा में क्या खाएं)

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  • अभ्‍यंग
    • इस प्रक्रिया में जड़ी-बूटियों के गुणों से युक्‍त औषधीय तेल से प्रभावित हिस्‍से की मालिश की जाती है। इससे एक्‍जिमा का इलाज संभव है।
    • ये रक्‍त प्रवाह को बेहतर, शरीर को पोषण, पानी की कमी से बचाव और उस हिस्‍से में एंटीबॉडी (शरीर को सुरक्षा देने वाले प्रोटीन यौगिक) के प्रवाह और उत्‍पादन को बढ़ाने का काम करता है।
    • एक्जिमा में अभ्‍यंग के लिए मरिच्‍यादि तेल और सरसों के तेल का प्रयोग किया जाता है।
       
  • वमन
    • इस प्रक्रिया में विभिन्‍न जड़ी-बूटियों या जड़ी-बूटियों के मिश्रण के द्वारा उल्‍टी करवाई जाती है। ये एक डिटॉक्सिफाइंग प्रकिया है जो शरीर से अमा को बाहर निकालती है एवं अमा ही एक्‍जिमा होने की सबसे बड़ी वजह है। (और पढ़ें - डिटॉक्सिफिकेशन क्या है)
    • वमन कर्म में दो तरह की जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है। इसमें – उल्‍टी के लिए प्रेरित करने वाली जड़ी-बूटियां और उल्‍टी के लिए प्रेरित करने वाली जड़ी-बूटियों के प्रभाव को बढ़ाने वाली जड़ी-बूटियां शामिल हैं।
    • एक्जिमा, सोरायसिस और सफेद दाग जैसे त्‍वचा रोगों के इलाज में वमन कर्म प्रभावी है। इसके अलावा ये रुमेटिक रोग (शरीर की सहायक और संयोजी संरचना को प्रभावित करने वाली सूजन), सामान्‍य जुकाम, गठिया, गले में खराश, एडिमा और मिर्गी को भी नियंत्रित करने में उपयोगी है। 
       
  • विरेचन
    • इस प्रक्रिया में मल निष्‍कासन के द्वारा शरीर से अमा को बाहर निकाला जाता है और शरीर में असंतुलित हुए दोष को संतुलित किया जाता है। (और पढ़ें - वात पित्त कफ का इलाज)
    • विरेचन के लिए एलोवेरा, सेन्‍ना और रूबर्ब जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है। इन्‍हें अकेले या किसी अन्‍य जड़ी-बूटी के साथ‍ मिलाकर भी इस्‍तेमाल कर सकते हैं।
    • इस चिकित्‍सा में शरीर से अत्‍यधिक पित्त और कफ को बाहर निकाला जाता है।
    • चूंकि, इस चिकित्‍सा के कारण पाचन अग्नि कमजोर हो जाती है इसलिए वात दोष वाले व्‍यक्‍ति को इसकी सलाह नहीं दी जाती है।
       
  • रक्‍त मोक्षण
    • इस प्रक्रिया में शरीर से विषाक्‍त रक्‍त को निकाला जाता है। पित्त विकार जैसे कि त्‍वचा विकार, लिवर और प्‍लीहा रोग में तुरंत आराम पाने के लिए इस चिकित्‍सा को जाना जाता है। इसके अलावा ये सिरदर्द और हाइपरटेंशन का भी इलाज करती है।
       
  • लेप
    • घी और जड़ी-बूटियों या जड़ी-बूटियों के मिश्रण द्वारा गाढ़ा लेप तैयार किया जाता है।
    • अनेक रोगों के उपचार के लिए जड़ी-बूटियों से लेप तैयार किया जाता है लेकिन रोग के कारण और असंतुलित हुए दोष के आधार पर ही इन जड़ी-बूटियों का चयन किया जाता है।
    • चक्रमर्द (चकवड़), तिल, राई (सरसों) और विडंग को खमीरयुक्त करके, कुश्ता और पिप्‍पली की जड़ को दही से बने पानी में डालकर लेप बनाया जाता है। एक्जिमा के इलाज में इस लेप को प्रभावित हिस्‍से पर लगाया जाता है। 

एक्जिमा के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां

  • नीम
    • ये परिसंचरण, पाचन तंत्र, श्‍वसन और मूत्र प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें संकुचक (ऊतकों को संकुचित करना), वायरस रोधी, त्‍वचा को ठंडक देने, रोगाणुरोधक, कृमिनाशक और उत्तेजित करने के गुण पाए जाते हैं। ये शरीर में खून को साफ और असंतुलित हुए दोष को ठीक कर रोग का इलाज करती है।
    • नीम के पौधे के विभिन्‍न हिस्‍सों जैसे कि फूलों, जड़ की छाल, पत्तियों, छाल, फल, रस और बीज के तेल का चिकित्‍सकीय प्रयोग किया जाता है।
    • ये कई त्‍वचा रोगों के इलाज में मदद करती है जिनमें से एक एक्जिमा भी है। इसके अलावा नीम गठिया, खांसी, डायबिटीज, जोड़ों और मांसपेशियों में सूजन, मलेरिया, जी मिचलाना, श्‍लेष्‍मा झिल्‍ली और रुमेटिक अल्‍सर का भी इलाज करती है। (और पढ़ें - खून को साफ करने वाले आहार
       
  • हरिद्रा
    • हरिद्रा पाचन, श्‍वसन, मूत्र और परिसंचरण प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें जीवाणुरोधी, कृमिनाशक, उत्तेतक, सुगं‍धक और वायुनाशक गुण पाए जाते हैं।
    • हरिद्रा रक्‍त शोधक (खून साफ करने) के रूप में कार्य करती है और रक्‍त के स्‍वस्‍थ ऊतकों को बनाने एवं रक्‍त प्रवाह को बेहतर करती है। पीलिया, डायबिटीज, खांसी, बुखार, अपच, एडिमा और त्‍वचा रोगों के इलाज के लिए भी हरिद्रा उपयोगी है। 

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  • घृतकुमारी (एलोवेरा)
    • एलोवेरा परिसंचरण, पाचन, तंत्रिका, उत्‍सर्जन और मादा प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें कृमिनाशक, ऊर्जादायक, कफ निस्‍सारक (बलगम निकालने वाली), वैकल्पिक, वायुनाशी, रेचक (मल निष्‍कासित करने की क्रिया को नियंत्रित करना) और कड़वे टॉनिक के गुण पाए जाते हैं। एलोवेरा पौधे के कई हिस्‍सों का प्रयोग विभिन्‍न कार्यों के लिए किया जाता है।
    • त्‍वचा पर एक्जिमा, सूजन और गंभीर अल्‍सर के इलाज में कुमारी के पत्ते का जूस लगा सकते हैं। त्‍वचा पर अल्‍सर के कारण हुई जलन को कम करने के लिए मक्‍खन के साथ एलोवेरा को लगा सकते हैं।
       
  • बकुची
    • बकुची परिसंचरण, श्‍वसन, मांसपेशीय और लसीका प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें सुगंधक, कृमिनाशक, जीवाणुरोधी, फंगसरोधी, रेचक और उत्तेजक गुण पाए जाते हैं। सोरायसिस, एक्जिमा और सफेद दाग के जैसे त्‍वचा रोगों को नियंत्रित करने में बकुची प्रमुख जड़ी-बूटियों में से एक है।
    • ये बुखार, अंदरूनी अल्‍सर, नपुंसकता, जुकाम और हाथ-पैरों एवं जोड़ों में दर्द, सांस लेने में दिक्‍कत, दस्‍त और पेट में दर्द के इलाज में भी असरकारी है।
    • आंतरिक और बाहरी दोनों तरह से पेस्ट या मलहम के रूप में बकुची का प्रयोग किया जा सकता है।

एक्‍जिमा के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • आरोग्‍यवर्धिनी वटी
    • आरोग्‍यवर्धिनी वटी में लौह भस्‍म (लौह को ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई), त्रिफला (आमलकी, विभीतकी और हरीतकी का मिश्रण), ताम्र भस्‍म (तांबे को ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई), शुद्ध पारद (शुद्ध पारा), शिलाजतु, चित्रकमूल, नीम का रस और अन्‍य जड़ी-बूटियां गोली के रूप में मौजूद हैं।
    • ये शरीर के संपूर्ण स्‍वास्‍थ्‍य में सुधार करती है और खराब हुए दोष को संतुलित एवं ठीक करने के लिए इसे जाना जाता है।
    • आयुर्वेद में विभिन्‍न लिवर रोगों के साथ-साथ सभी प्रकार के त्‍वचा रोगों के इलाज में इसका इस्‍तेमाल किया जाता है। इस वजह से आरोग्‍यवर्धिनी वटी एक्जिमा के इलाज में उपयोगी चिकित्‍सा है। ये भूख और पाचन को बढ़ाती है एवं अनियमित मल निष्‍कासन की क्रिया से राहत प्रदान करती है। (और पढ़ें - भूख बढ़ाने के उपाय
       
  • महा तिक्‍त घृत
    • कुटकी, आरग्‍वध (अमलतास), हल्‍दी, पिप्‍पली, यष्टिमधु (मुलेठी), इंद्रायन का फल, गुडुची, किराततिक्‍त (चिरायता), चंदन, नीम, वसाका, शतावरी और अन्‍य विभिन्‍न जड़ी-बूटियों से महा तिक्‍त घृत तैयार किया गया है।
    • इसमें रक्‍तशोधक, संक्रमणरोधी और बलवर्द्धक गुण पाए जाते हैं जो शरीर से अमा को बाहर निकालने और खराब हुए दोष को संतुलित करने में मदद करते हैं।
    • ये एक्जिमा, डर्मेटाइटिस, कुष्‍ठ और शीतपित्त जैसे त्‍वचा रोगों को नियंत्रित करने में उपयोगी है।
    • आमतौर पर इसे गर्म दूध के साथ लिया जाता है।
       
  • गंधक रसायन
    • गुड़, घी, त्रिकटु (तीन कषाय –पिप्‍पली, शुंथि [सूखा अदरक] और मारीच [काली मिर्च] का मिश्रण), आमलकी, इलायची, दालचीनी की पत्तियां और छाल, बकुची, शुद्ध गंधक, लौह, शहद और अन्‍य कई सामग्रियों से गंधक रसायन को तैयार किया गया है।
    • इसमें मौजूद रक्‍त शोधक गुण अनेक त्‍वचा रोगों जैसे कि कुष्‍ठ रोग, गंभीर अल्‍सर और फोड़ों के उपचार में प्रभावी हैं। ये गंभीर त्‍वचा रोगों पर भी प्रभावी है।
       
  • अवालगुजादि लेप
    • इस लेप में बकुची के बीज, चालमोगरा के बीज, तरवड़ की पत्तियां, हल्‍दी पाउडर और हरताल मौजूद है।
    • ये घाव को ठीक करती है और घाव वाली जगह पर माइक्रोबियल संक्रमण से बचाती है। इसका उपयोग उपचार की स्थिति के आधार पर विभिन्न अन्य चीज़ों के साथ किया जाता है।
    • एक्जिमा के इलाज के लिए अवलगुजादि लेप को पलाश के फूलों के साथ इस्‍तेमाल किया जाता है।
       
  • रस कपूरम लेप
    • इसमें लाल सीसा, कपूर, मधु मोम (छत्ता बनाने के लिए मधुमक्खियों द्वारा बनाया गया पीले रंग का मोम), नारियल तेल और सफेदा (लिथार्ज) मौजूद है।
    • इस गाढ़े लेप को लगाने पर घाव और अल्‍सर को ठीक होने में मदद मिलती है। इसके अलावा खुजली और एक्जिमा के कारण लाल हुई त्‍वचा को ठीक करने में भी इसका इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • प्रभावित हिस्‍से को धोने और साफ करने के बाद इसे लगाया जाता है। इसे तिल के तेल के साथ मिलाकर भी लगा सकते हैं।

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है। उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें। 

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क्‍या करें

क्‍या न करें

  • ताजा कटे अनाज को न खाएं।
  • अपने आहार में उड़द (काले चने) को शामिल न करें।
  • मूली, लिसोड़ा और मकोय जैसी फल-सब्जियों को अपने नियमित आहार में न लें।
  • दही और तिल खाने से बचें। दूध के साथ मछली जैसे खाद्य पदार्थों को एक साथ न लें क्‍योंकि इनकी वजह से चैनल्‍स (पूरे शरीर में बहने वाली ऊर्जा के प्रवाह के 12 मुख्य माध्यम या चैनल हैं , इस जीवन ऊर्जा को चीन के पांरपरिक ज्ञान में “की” (Qi) और “ची” (Chi or Chee) कहा जाता है) में अवरोध उत्‍पन्‍न हो सकता है। भारी, ठंडा और अम्‍ल पैदा करने वाला आहार न लें।
  • दिन के समय सोने से बचें।
  • अपनी प्राकृतिक इच्‍छाओं जैसे कि मल निष्‍कासन और पेशाब को न रोकें।
  • अत्‍यधिक व्‍यायाम करने से बचें।

(और पढ़ें – एक्जिमा का उपाय)

आयुर्वेदिक चिकित्‍सा के प्रभाव की जांच करने के लिए खुजली, जलन और बाएं पैर में पस वाले घाव से पीड़ित एक्जिमा के मरीज पर अध्‍ययन किया गया था। इस व्‍यक्‍ति को विरेचन चिकित्‍सा के साथ आरोग्‍यवर्धिनी वटी और पंच तिक्‍त गुग्‍गुल घृत खाने को दिया गया था।

(और पढ़ें – गुग्गुल के फायदे)

इस चिकित्‍सा से एक ही महीने में उस व्‍यक्‍ति को एक्जिमा के सभी लक्षणों से राहत मिल गई। वहीं उस व्‍यक्‍ति पर एक साल तक नजर रखी गई और पाया गया कि उसे एक साल तक एक्जिमा की बीमारी दोबारा नहीं हुई।

एक अन्‍य 18 वर्षीय लड़के पर अध्‍ययन किया गया जोकि एरिथ्रोडर्मा (त्‍वचा के बड़े हिस्‍से पर गंभीर लालपन की स्थिति) से ग्रस्‍त था। अध्‍ययन में पाया गया कि इस स्थिति को ठीक करने में आरोग्‍यवर्धिनी वटी के साथ अन्‍य आयुर्वेदिक चिकित्‍साओं जैसे कि पंच तिक्‍त घृत, कैशोर गुग्‍गुल, खदिरारिष्ट, ज्‍वरहर कषाय और विशिष्‍ट हिस्‍से पर जात्यादि तेल प्रभावकारी है। आरोग्‍यवर्धिनी वटी और ज्‍वरहर कषाय से हल्‍के रेचक (मल त्‍याग) के लिए प्रेरित किया गया जिससे शरीर से अमा निकालने में मदद मिली।  

त्‍वचा के अत्‍यधिक झड़ने के कारण माइक्रोबियल संक्रमण का खतरा था लेकिन जात्यादि तेल से इस संक्रमण से बचने में मदद मिली। हालांकि, व्‍यक्‍ति को रोग से थोड़ी राहत मिली लेकिन खुजली जैसे कुछ लक्षण अभी भी बने हुए थे। कई प्रकार के त्‍वचाशोथ जैसे कि एक्जिमा और सोरायसिस का इलाज न करने पर एरिथ्रोडर्मा हो सकता है। इसलिए एरिथ्रोडर्मा को एक्जिमा का गंभीर रूप कहा जा सकता है।

अनेक चिकित्‍सकीय अध्‍ययनों की रिपोर्ट में हल्‍दी को खाने और लगाने दोनों ही तरह से विभिन्‍न त्‍वचा रोगों जैसे कि एक्जिमा, सोरायसिस, खुजली, एक्‍ने, रेडियो डर्मेटाइटिस, विटिलिगो (सफेद दाग) और ओरल लाइकेन प्लेनस (मुंह में दर्द भरे चकत्ते पड़ना) में प्रभावकारी बताया गया है। 

उपरोक्‍त चिकित्‍साओं के प्रयोग से पहले विभिन्‍न सावधानियां बरतनी चाहिए। उदाहरणार्थ:

  • गर्भवती महिलाओं, वृद्धों और कमजोर व्‍यक्‍ति पर वमन चिकित्‍सा का प्रयोग सावधानीपूर्वक करें। इसके अलावा हाइपरटेंशन और ह्रदय संबंधित समस्‍याओं से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति पर भी वमन का प्रयोग करने से बचना चाहिए।
  • कमजोर पाचन, मलद्वार में अल्‍सर और दस्‍त की समस्‍या से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को भी विरेचन चिकित्‍सा लेने की सलाह नहीं दी जाती है। (और पढ़ें – पाचन शक्ति बढ़ाने के उपाय)
  • शिशु, गर्भवती महिलाओं, वृद्ध व्‍यक्‍ति, माहवारी के दौरान और एडिमा, ब्‍लीडिंग, ल्‍यूकेमिया या सिरोसिस के मरीज़ों को रक्‍त मोक्षण चिकित्‍सा नहीं लेनी चाहिए।
  • अत्‍यधिक पित्त वाले व्‍यक्‍ति को हरिद्रा नहीं देनी चाहिए।
  • गर्भावस्‍था के दौरान कुमारी नहीं देनी चाहिए।
  • बकुची के साथ यश्टिमधु नहीं दी जानी चाहिए। पानी की कमी से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को भी इस चिकित्‍सा से बचना चाहिए। अकेले बकुची लेने पर शरीर में पित्त का स्‍तर बढ़ सकता है।
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एक्जिमा त्‍वचा की एक सामान्‍य समस्‍या है और इसका कोई गंभीर दुष्‍प्रभाव नहीं होता है लेकिन इसकी वजह से किसी व्‍यक्‍ति के मन और रोजमर्रा के जीवन पर नकारात्‍मक असर पड़ सकता है।

प्रभावित हिस्‍सों पर खुजली होने के कारण नींद भी खराब होती है। वहीं कम या अपर्याप्‍त नींद लेने की वजह से जीवन की गुणवत्ता भी खराब होती है। 

(और पढ़ें – कितने घंटे सोना चाहिए)

आयुर्वेद में प्राचीन चिकित्‍साओं का उल्‍लेख किया गया है जो एक्जिमा और खुजली एवं त्‍वचा पर लालपन से राहत दिलाने में मदद कर सकती हैं। ये प्राकृतिक उपचार त्‍वचा को ठंडक देते हैं जिससे बेहतर नींद आ पाती है।

आयुर्वेदिक उपचार के अंतर्गत आने वाली सभी प्राकृतिक जड़ी-बूटियों और औषधियों का प्रयोग चिकित्‍सक की सलाह पर ही करना चाहिए। व्‍यक्‍ति की प्रकृति और चिकित्‍सकीय स्थिति के आधार पर ही आयुर्वेदिक चिकित्‍सक उचित इलाज एवं औषधि लेने की सलाह देते हैं जिससे मरीज को जल्‍दी ठीक होने में मदद मिलती है।  

(और पढ़ें – एक्जिमा के लिए योग)

Dr. Harshaprabha Katole

Dr. Harshaprabha Katole

आयुर्वेद
7 वर्षों का अनुभव

Dr. Dhruviben C.Patel

Dr. Dhruviben C.Patel

आयुर्वेद
4 वर्षों का अनुभव

Dr Prashant Kumar

Dr Prashant Kumar

आयुर्वेद
2 वर्षों का अनुभव

Dr Rudra Gosai

Dr Rudra Gosai

आयुर्वेद
1 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

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  5. Vaughn AR, Branum A, Sivamani RK. Effects of Turmeric (Curcuma longa) on Skin Health: A Systematic Review of the Clinical Evidence. Phytother Res. 2016 Aug;30(8):1243-64. PMID: 27213821
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  7. Mulugu Ramalingayya. Vaidya Yoga Ratnavali. Indian Medical Practitioners' Co-operative Pharmacy & Stores, 1968 - Drugs.
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