समाज से सपोर्ट न मिले तो बीमारियों से लड़ना और मुश्किल हो सकता है। कम से कम डायबिटीज के मामले में ऐसा देखा गया है, जिसकी पुष्टि एक हालिया अध्ययन में की गई है। मेडिकल पत्रिका दि जर्नल ऑफ अमेरिकल ऑस्टियोपैथिक एसोसिएशन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित जिन लोगों को अपने परिवार और दोस्तों से सपोर्ट नहीं मिलता, उन्हें इस बीमारी से लड़ने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इस अध्ययन में कहा गया है कि टाइप 2 डायबिटीज में स्वास्थ्य के रखरखाव के लिए मरीज को अपनी जीवनशैली में बदलाव करने पड़ते हैं, जो परिवार और दोस्तों के सहयोग के बिना बहुत मुश्किल होता है। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कहा है कि अगर ये लोग मरीज को पर्याप्त और उचित सामाजिक समर्थन न दें तो उनका डायबिटीज-संबंधी डिस्ट्रेस बढ़ जाता है। नतीजतन ट्रीटमेंट एक समान रूप से नहीं चल पाता। वहीं, उचित सोशल सपोर्ट मिलने पर यही डिस्ट्रेस कम होता जाता है।

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  1. मानसिक व भावनात्मक ऊर्जा की है जरूरत - प्रोफेसर योंग

डायबिटीज के इलाज में सोशल सपोर्ट के महत्व पर चर्चा करते हुए यूनिवर्सिटी कैलिफोर्निया कॉलेज ऑफ ऑस्टियोपैथिक मेडिसिन के प्रोफेसर क्लिपर योंग कहते हैं, 'यह अधिकतर देखा गया है कि लोग डायबिटीज ट्रीटमेंट को एक आसान प्रक्रिया के रूप में देखते हैं, जिसमें केवल दवाओं का सेवन (मेडिकेशन) और ब्लड शुगर की मॉनिटरिंग करनी पड़ती है। लेकिन असल में ऐसा नहीं है। वास्तव में डायबिटीज एक क्रॉनिक कंडीशन है जिससे निपटने के लिए मानसिक और भावनात्मक ऊर्जा की काफी ज्यादा जरूरत होती है। अगर यह ऊर्जा नकारात्मक रूप से प्रभावित हो या कम अथवा समाप्त हो जाए तो इलाज में गड़बड़ी हो सकती है।'

अध्ययन की मानें तो डायबिटीज से जुड़े मृतकों और रोगियों के मामले में देखा गया है कि उनकी आर्थिक स्थिति के साथ सामाजिक स्थिति भी निम्न स्तर की होती है। पिछले कुछ अध्ययनों में डायबिटीज डिस्ट्रेस की प्रकृति और अलग-अलग प्रकार की आबादी में सोशल सपोर्ट से वंचित रहे टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों से जुड़े मामलों की जांच की गई है। उनमें भी कुछ इसी तरह के परिणाम देखे गए हैं।

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वहीं, मौजूदा अध्ययन में कैलिफोर्निया के 101 टाइप 2 डायबिटीज मरीजों को शामिल किया गया था। इनमें से 75 प्रतिशत प्रतिभागियों की उम्र 40 से 80 वर्ष के बीच थी और उनकी सालाना आय 20 हजार डॉलर या 14 लाख 90 हजार के आसपास थी। प्रोफेसर योंग के मुताबिक, शोधकर्ताओ ने पाया है कि जिन मरीजों को सोशल सपोर्ट मिला था, उनका डायबिटीज के लिए जरूरी सेल्फ-मैनेजमेंट बिहेवियर प्रभावशाली पाया गया था। प्रोफेसर योंग की मानें तो इससे डायबिटीज के चलते अस्पताल में भर्ती होने और मरने के खतरे कम हो जाते है।

डायबिटीड-रिलेटिड डिस्ट्रेस में सोशल सपोर्ट की भूमिका के संबंध में मिले इन परिणामों से आश्वस्त और उत्साहित वैज्ञानिक अब इस समस्या का मेडिकल उपाय यानी उपचार मुहैया करना चाहते हैं। यह न सिर्फ डायबिटीज के मरीजों के इलाज के लिए जरूरी होगा, बल्कि इससे लड़ने के लिए उन्हें किस प्रकार के सपोर्ट सिस्टम की जरूरत है यह सीखने के लिहाज से भी महत्वपूर्ण होगा ताकि पीड़ितों को इस बीमारी से जुड़ी जटिलताओं से राहत दी जा सके।

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