लंबे समय तक बनी रहने वाली कई पुरानी (क्रॉनिक) बीमारियों की तरह टाइप 2 डायबिटीज के साथ रहना या उसे मैनेज करना आसान नहीं है। अनहेल्दी डाइट, निष्क्रिय जीवनशैली और आनुवंशिक प्रवृत्ति के अलावा, कुछ अध्ययनों से यह भी संकेत मिलता है कि लंबे समय तक अकेलापन भी डायबिटीज का कारण बन सकता है। डायबिटीज के प्रबंधन में अनिवार्य रूप से इन जोखिम कारकों से निपटना और एक स्वस्थ आहार को बनाए रखना महत्वपूर्ण है।

  1. कम जीआई वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करने की सलाह
  2. डायबिटीज वालों को आलू से पूरी तरह से परहेज करने की जरूरत नहीं
  3. उच्च जीआई वाले कार्ब्स की जगह कम जीआई वाले कार्ब्स का सेवन करने की सलाह
  4. सिर्फ जीआई नहीं जीआर (ग्लाइसिमिक रिस्पॉन्स) का भी ध्यान रखना जरूरी
  5. तो क्या करें- आलू खाएं या न खाएं?
  6. प्रतिभागियों का ब्लड टेस्ट भी हुआ और ग्लूकोज भी मॉनिटर किया गया
  7. उबला हुआ, रोस्टेड या ताजा बना आलू खा सकते हैं

टाइप 2 डायबिटीज वाले लोगों को डॉक्टर स्वस्थ आहार का सेवन करने के साथ ही भोजन की टाइमिंग का भी सख्ती से पालन करने की सिफारिश करते हैं। आमतौर पर, इसका मतलब यह है कि कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स (जीआई) वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करना विशेष रूप से शाम के समय ताकि मरीज का भोजन के बाद का ब्लड शुगर लेवल बहुत ज्यादा तेजी से न बढ़े। यही कारण है कि भारी भोजन या वैसे भोजन जिसमें सफेद चावलआलू या मिठाई शामिल है, उनसे डायबिटीज के रोगियों को बचने के लिए कहा जाता है।

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इतना ही आम लोगों के मन में भी यही धारणा है कि शुगर के मरीज को आलू और चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। लेकिन क्या सचमुच पोटैशियमविटामिन बीफाइबर और कार्बोहाइड्रेट्स से भरपूर आलू डायबिटीज के मरीजों के लिए हानिकारक है। तो इसका जवाब है नहीं। डायबिटीज के मरीज भी अलग-अलग तरीकों से आलू खा सकते हैं। एक नई स्टडी भी यही कहती है। क्लिनिकल न्यूट्रिशन नाम के जर्नल में प्रकाशित इस स्टडी में सुझाव दिया गया है कि जब बात डायबिटीज के मरीजों की आती है तो सिर्फ जीआई (ग्लाइसिमिक इंडेक्स) ही एक मात्र कारक नहीं है जिसका ध्यान रखने की जरूरत है। लिहाजा डायबिटीज के मरीजों को आलू से पूरी तरह से परहेज करने की जरूरत नहीं।

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स्टडी की शुरुआत में ही इस तथ्य का उल्लेख किया गया है कि कार्बोहाइड्रेट वाले खाद्य पदार्थों का जीआई, टाइप 2 डायबिटीज के आहार प्रबंधन का आधार बनता है। इसलिए आहार से जुड़े जो दिशा-निर्देश दिए जाते हैं उसमें उच्च जीआई वाले कार्ब्स की जगह कम जीआई वाले कार्ब्स जैसे- साबुत अनाज से बनी ब्रेड, दाल और फलियां, और लो जीआई वाला बासमती चावल खाने की सलाह दी जाती है। सभी खाद्य पदार्थों की जीआई की गणना करने के लिए, वैसे व्यक्ति जिन्हें ब्लड शुगर की समस्या नहीं है उन्हें व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक प्रकार के कार्ब का उपभोग करने की आवश्यकता होती है, आमतौर पर रातभर के उपवास के बाद और इसके बाद ब्लड ग्लूकोज में हुई बढ़ोतरी को मापा जाता है। 

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इस अध्ययन में शामिल शोधकर्ताओं का कहना है कि इस पद्धति की अपनी एक निश्चित हद या सीमाएं हैं। वास्तविक भोजन के दौरान, इन कार्ब्स को शायद ही कभी अलग से खाया जाता है और ज्यादातर मामलों में इस बात की संभावना अधिक होती है कि इन्हें अन्य खाद्य पदार्थों के साथ मिलाकर खाया जाए। इस मामले में, आलू जैसे खाद्य पदार्थों के लिए ग्लाइसेमिक प्रतिक्रिया (जीआर) सह-अंतर्ग्रहण या अन्य खाद्य पदार्थों, उनकी सूक्ष्म पोषक तत्व सामग्री, भोजन को बनाने की तैयारी और खाना पकाने की विधि पर निर्भर करेगा- और ये सारी चीजें प्रतिरोधी स्टार्च की सामग्री को काफी हद तक प्रभावित कर सकते हैं। भोजन का बार-बार ठंडा होना और उसे दोबारा गर्म करना भी आलू की प्रतिरोधी स्टार्च सामग्री को प्रभावित करता है और इसलिए जीआर को भी प्रभावित कर सकता है। 

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इस अध्ययन में शामिल शोधकर्ताओं ने आलू को पकाने के अलग-अलग तरीकों का भोजन के बाद के ग्लाइसिमिक रिस्पॉन्स पर क्या असर होता है उसकी जांच की- विशेषकर जब शाम के नाश्ते और रात के खाने के बीच मिड-इवनिंग मील के तौर पर आलू का सेवन किया जाता है। इसके अलावा शोधकर्ताओं ने टाइप 2 मधुमेह के रोगियों में रात के भोजन संबंधी जीआर (ग्लाइसिमिक रिस्पॉन्स) और भोजन के बाद के इंसुलिन रिस्पॉन्स का भी निर्धारण किया। उन्होंने लो-जीआई बासमती चावल के साथ आलू-आधारित कई तरह के भोजन की तुलना की यह देखने के लिए भोजन के बाद का ब्लड शुगर लेवल और रात के भोजन संबंधी जीआर- इन दोनों में से किसका ज्यादा खराब था।

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स्टडी में 24 महिलाओं औऱ पुरुषों को शामिल किया गया था जिनकी उम्र 58 साल या इससे अधिक थी और उन्हें टाइप 2 डायबिटीज था। स्टडी के प्रतिभागियों को मानकीकृत ब्रेकफास्ट और लंच दिया गया था। रात का खाना शाम 6 बजे दिया गया जिसमें उबले हुए आलू, रोस्ट किए हुए आलू और उबले हुए आलू जिन्हें 24 घंटे तक ठंडा किया गया था या लो-जीआई बासमती चावल खाने के लिए दिया गया। हर मील में 50 प्रतिशत कार्ब्स, 30 प्रतिशत फैट और 20 प्रतिशत प्रोटीन था। प्रतिभागियों के ब्लड सैंपल को भोजन से पहले और भोजन के तुरंत बाद इक्ट्ठा किया गया। साथ ही भोजन के 2 घंटे बाद हर 30 मिनट के अंतराल पर भी ब्लड सैंपल लिए गए और रात के भोजन संबंधी जीआर का पता लगाने के लिए उन्हें एक ग्लूकोज मॉनिटर भी पहनाया गया था।

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शोधकर्ताओं ने पाया कि आलू के भोजन में से किसी में भी भोजन के बाद का जीआर नकारात्मक देखने को नहीं मिला, भले ही पहले से पकाए गए और फिर से गर्म किए गए आलू के सेवन की वजह से ब्लड शुगर में मामूली वृद्धि हुई। इसके अतिरिक्त, आलू आधारित भोजन करने के बाद रात का भोजन संबंधी जीआर, उन लोगों की तुलना में काफी कम था जिन्होंने लो जीआई बासमती चावल का सेवन किया था।

इन निष्कर्षों के आधार पर, यह स्पष्ट है कि जिन लोगों को टाइप 2 डायबिटीज की समस्या है उन्हें आलू से पूरी तरह से परहेज करना आवश्यक नहीं है। एक तरफ जहां डायबिटीज के मरीजों के लिए ताजा पका हुआ, उबला हुए या रोस्टेड आलू खाने की अनुशंसा की जाती है, वहीं दूसरी तरफ उन्हें बासी आलू जिन्हें दोबारा गर्म करने की जरूरत हो उनका सेवन करने से बचना चाहिए। 

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