भारत में हुए एक अध्ययन में पता चला है कि यहां कोरोना वायरस से संक्रमित हुए ज्यादातर लोगों ने संभवतः इस विषाणु को अन्य लोगों में फैलाने का काम नहीं किया है। इस अध्ययन के मुताबिक, कोविड-19 के कुछ ही मरीज ऐसे हैं, जिनके जरिये यह बीमारी बाकी लोगों में फैली है। इन्हें 'सुपरस्प्रेडर' भी कह सकते हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु वैज्ञानिकों द्वारा की गई यह स्टडी जानी-मानी मेडिकल व विज्ञान पत्रिका साइंस में प्रकाशित हुई है। पत्रिका ने बताया कि इन दोनों राज्यों के शोधकर्ताओं ने अध्ययन के तहत छह लाख से ज्यादा लोगों का विश्लेषण किया है, जो कोविड-19 से जुड़े अब तक के सभी अध्ययनों में शामिल किए गए लोगों का सबसे बड़ा आंकड़ा है। रिपोर्ट के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने बीती एक अगस्त तक 85 हजार से ज्यादा कन्फर्म कोविड-19 केसों (मरीजों) और उनसे जुड़े करीब छह लाख कॉन्टैक्ट (मरीजों के संपर्क में आए लोग) को शामिल किया था, जिन्हें आइडेंटिफाई या ट्रेस किया गया था।
अध्ययन के मुताबिक, इन 85 हजार कोरोना संक्रमितों के संपर्क में आए 71 प्रतिशत लोगों में कोविड-19 संक्रमण नहीं पाया गया था। दूसरे शब्दों में कहें तो 60 हजार से ज्यादा कोविड-19 मरीजों ने किसी भी अन्य व्यक्ति को यह बीमारी ट्रांसमिट नहीं की थी। वैज्ञानिकों की मानें तो यह काम करने वाले मरीजों की संख्या बहुत कम है। अध्ययन के परिणामों के आधार पर उनका कहना है कि दस प्रतिशत से भी कम कोविड मरीजों ने उनसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आए 60 प्रतिशत लोगों में वायरस फैलाया है। अध्ययन की मानें तो इन सुपरस्प्रेडर कोरोना संक्रमितों ने 20, 30 या शायद 40 लोगों तक वायरस को ट्रांसमिट किया है। स्टडी यह भी बताती है कि सुपरस्प्रेडर्स ने ज्यादातर समान आयु के लोगों में वायरस को फैलाया है। बुजुर्गों और बच्चों के मामले में यह बात विशेष रूप से सामने आई है। इसके अलावा, भारत में कोविड-19 के बुजुर्ग मरीजों में मृत्यु दर तुलनात्मक रूप से उतनी नहीं पाई गई है, जैसी की अमेरिका और अन्य देशों में देखने को मिली है। बुजुर्ग आबादी में महिलाओं की मृत्यु दर पुरुष वृद्ध मरीजों की तुलना में काफी कम है।
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इन परिणामों पर विशेषज्ञों ने प्रतिक्रियाएं दी हैं। अशोका यूनिवर्सिटी में फिजिक्स व बायोलॉजी के प्रोफेसर गौतम मेनन ने कहा, 'कुछ परिणाम ज्यादा हैरान करने वाले नहीं हैं। जैसे कि यह बात कि बीमारी के फैलने के पीछे कुछ विशेष लोग (मरीज) मुख्य रूप से जिम्मेदार है। अन्य संक्रामक रोगों के मामले में भी यह बात मजबूती से कही जाती है। इसे 80:20 का नियम कहा जाता है। यानी बीमारी से प्रभावित 20 प्रतिशत लोग उसे 80 प्रतिशत अन्य लोगों में फैलाने के लिए मुख्य तौर पर जिम्मेदार होते हैं। यह अध्ययन भारत में मौजूदा महामारी के संबंध में भी इस तथ्य की पुष्टि करता दिखता है।'
जानकारों का कहना है कि ज्यादातर संक्रमितों का बीमारी को अन्य लोगों तक नहीं पहुंचाने का एक बड़ा कारण यह है कि वायरस की चपेट में आने की पुष्टि के बाद ऐसे ज्यादातर लोगों को आइसोलेशन में भेज दिया जाता है। वे अन्य लोगों के संपर्क में नहीं आते, लिहाजा बीमारी दूसरों लोगों में ट्रांसमिट नहीं होती। लेकिन कुछ मरीजों के मामले में जैविक कारणों की भूमिका हो सकती है। इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में प्रोफेसर मेनन ने इस बारे में कहा, 'कुछ लोगों में वायरल लोड (वायरस की मात्रा) बहुत ज्यादा होता है और इसलिए उनमें दूसरे को संक्रमित करने की ज्यादा क्षमता होती है। लेकिन इसके लिए भी उनका दूसरे लोगों से इंटरेक्ट करना जरूरी है। आइसोलेशन जैसी रणनीतियों से इसकी संभावना कम हो जाती है। इन दोनों संभावनाओं के एकसाथ होने पर ही ऐसा देखने को मिलता है।'
व्यक्तिगत रूप से सुपरस्प्रेडर शब्द उन लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिन्हें खुद के कोरोना वायरस से संक्रमित होने का पता नहीं चलता और वे एक के बाद एक अपने संपर्क में आए लोगों को वायरस ट्रांसमिट करते रहते हैं। तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई को इसकी मिसाल के रूप में लिया जा सकता है। यहां की कोयंबेडु मार्केट में कुछ लोग कोरोना वायरस की चपेट में आए थे और उन्होंने वहां आने वाले हजारों लोगों को वायरस ट्रांसमिट किया था। फिर उन लोगों ने सार्स-सीओवी-2 को तमिलनाडु के दूरदराज के जिलों तक पहुंचा दिया था।
बहरहाल, अध्ययन में इस बात की पुष्टि हुई है कि वायरस एक ही उम्र के लोगों में बड़ी संख्या में फैल सकता है। यह जानकारी बच्चों और युवाओं के लिहाज से संवेदनशील है, जिनके स्कूल और कॉलेजों को फिर से खोले जाने की बहस जारी है। यूरोप और अमेरिका में देखने में आया है कि वहां स्कूल और कॉलेज फिर से खोलने का परिणाम बच्चों और युवाओं में कोरोना वायरस के ट्रांसमिशन के रूप में सामने आया है। ऐसे में भारत में सरकारों और परिजनों में इस बात को लेकर चिंता है कि अगर यहां भी शिक्षा संस्थानों को फिर से शुरू किया गया तो इससे बड़ी संख्या में कोविड-19 के मामले न बढ़ जाएं।
इस बारे में अशोका यूनिवर्सिटी के त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के निदेशक शाहिद जमील ने कहा, 'यह पहली बार है कि हमारे ऐसा डेटा मौजूद है जो बताता है कि बच्चे न सिर्फ संक्रमण के खतरे में हैं, बल्कि वे उसे फैला भी सकते हैं। इसलिए हम जब भी स्कूलों को फिर से खोलना शुरू करें तो ये बातें ध्यान में रखें। यह भी याद रखा जाए कि खुली जगहों की अपेक्षा बंद जगहों में संक्रमण फैलने की संभावना काफी ज्यादा है। इस लिहाज से स्कूल बसें और तंग क्लासरूम खतरनाक हो सकते हैं।'
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अध्ययन से जुड़ी बड़ी बातें
- 71 प्रतिशत संक्रमितों ने किसी अन्य व्यक्ति को वायरस ट्रांसमिट नहीं किया
- एक ही गाड़ी में लोगों के सफर करने पर ट्रांसमिशन का खतरा सबसे ज्यादा
- संक्रमितों के जरिये समान आयुवर्ग के लोगों में बीमारी फैलने की संभावना अधिक
- अध्ययन में शामिल मरीजों में से आधे की मौत संक्रमण की चपेट में आने के छह दिन के अंदर हुई
- भारत में बुजुर्ग लोग अन्य देशों की अपेक्षा कोरोना वायरस के कम खतरें में
- पुरुषों के मुकाबले कोरोना वायरस महिलाओं के लिए कम खतरनाक
- ज्यादातर संक्रमित डायबिटीज से पीड़ित, 45 प्रतिशत मृतक डायबिटिक
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