आपने यह बात जरूर नोटिस की होगी कि जब भी आपको चोट लगती है, प्रभावित हिस्से पर एक उभार बन जाता है, थोड़ी सूजन हो जाती है और लालिमा भी आ जाती है और कई बार प्रभावित हिस्सा छूने पर गर्म भी महसूस होता है। यह शरीर में प्रत्यक्ष रूप से होने और दिखने वाला इन्फ्लेमेशन है। इन्फ्लेमेशन एक मौलिक हथियार है जिसका इस्तेमाल हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा तंत्र) करता है ताकि किसी भी तरह की चोट लगने पर, घाव होने पर या इंफेक्शन होने पर शरीर को फिर से स्वस्थ किया जा सके। आमतौर पर प्रोटीन का एक कठिन तंत्र इस इन्फ्लेमेशन को चालू करने और बंद करने का काम करता है।
कुछ मामलों में हालांकि इम्यून सिस्टम बढ़ जाता है जिसे वैज्ञानिक समृद्ध प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के तौर पर जानते हैं। इसका मतलब है कि अचानक और स्थानीय प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया शुरुआत में तो बेहद जरूरी होती है, लेकिन कुछ मौकों पर वह बहुत ज्यादा या नियंत्रण से बाहर हो जाती है। जब साइटोकीन्स (एक तरह का प्रोटीन जिसका इस्तेमाल इम्यून सेल्स एक दूसरे से बात करने के लिए करते हैं) के अत्यधिक उत्पादन के कारण ऐसा होता है तो इसे ही साइटोकीन स्टॉर्म या साइटोकीन स्टॉर्म सिंड्रोम (सीएसएस) कहते हैं। साइटोकीन स्टॉर्म खतरनाक होता है क्योंकि यह ऑर्गन्स को नुकसान पहुंचा सकता है, उन्हें खराब कर सकता है जिससे आखिरकार मौत भी हो सकती है।
हालांकि साइटोकीन स्टॉर्म यह शब्द वायरल इंफेक्शन के संदर्भ में हाल ही में प्रचलन में आया है, लेकिन चिकित्सक, कई तरह के सिस्टेमिक इम्यून सिस्टम अनियंत्रण के बारे में हजारों सालों से जानते हैं- कम से कम तब से जब से पहली बार सेप्सिस को डायग्नोज किया गया था। (साइटोकीन स्टॉर्म की वजह से अक्सर सेप्सिस की समस्या होती है लेकिन ये दोनों एक ही चीज नहीं है)
हम आपको बता दें कि साइटोकीन स्टॉर्म इस शब्द को 1993 में गढ़ा गया था जिसका संबंध अंग प्रत्यारोपण के दौरान होने वाली जटिलता ग्राफ्ट वर्सेस होस्ट डिजीज से है। साल 2003 में साइटोकीन स्टॉर्म को वायरल इंफेक्शन से लिंक पाया गया। कई ऐसे वायरल इंफेक्शन जिनकी वजह से मरीजों में साइटोकीन स्टॉर्म की समस्या देखने को मिलती है, वे हैं:
- कोविड-19
- एच5एन1 एवियन फ्लू
- सिवियर अक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम या सार्स
- डेंगू
- इन्फ्लूएंजा
- साइटोमेगालो वायरस इंफेक्शन
- एप्स्टीन-बार सिंड्रोम
कुछ गैर-संक्रामक बीमारियां भी हैं जिनकी वजह से साइटोकीन स्टॉर्म की समस्या हो सकती है जैसे- अग्नाशयशोथ या पैनक्रियाटाइटिस (अग्नाशय में इनफ्लेमेशन होना, अग्नाशय एक ऐसा अंग है जो पाचन एन्जाइम्स और इंसुलिन जैसे हार्मोन के उत्पादन के लिए जिम्मेदार होता है) और मल्टीपल स्क्लेरोसिस (एक ऑटोइम्यून बीमारी है जिसमें इम्यून सिस्टम नसों के आसपास मौजूद शरीर के सुरक्षात्मक आवरण या लेयर पर ही हमला करने लगता है)। पिछले 15 सालों में अत्यधिक साइटोकीन के उत्पादन (साइटोकीन रिलीज सिंड्रोम) पर भी गहन रूप से कई अध्ययन किए गए हैं जिसमें कैंसर के संदर्भ में की जाने वाली इम्यूनोथेरेपी जैसे- सीएआर-टी के संभावित दुष्प्रभाव शामिल हैं।
जैसा कि यह शब्द स्टॉर्म मतलब आंधी यह संकेत देता है कि जैसे-जैसे समय गुजरता है यह और ज्यादा गंभीर होता जाता है। साइटोकीन स्टॉर्म को शुरुआती स्टेज में ही बेहतर तरीके से कंट्रोल किया जा सकता है क्योंकि आखिरी स्टेज में आते-आते यह शरीर के महत्वपूर्ण अंगों जैसे- फेफड़े, हृदय और किडनी को क्षतिग्रस्त करने लगता है।
हालांकि यह कहना आसान है लेकिन करना मुश्किल। प्रतिरक्षा कोशिकाएं (इम्यून सेल्स) एक दूसरे से बात करने के लिए साइटोकीन्स के एक बेहद मुश्किल और परस्पर व्याप्त तंत्र का इस्तेमाल करती हैं और इस प्रक्रिया को सेल सिग्नलिंग के नाम से जाना जाता है। साइटोकीन्स कई अलग-अलग तरह के होते हैं- कुछ प्रोइन्फ्लेमेट्री होते हैं (इनसे इन्फ्लेमेशन होता है), बाकी कुछ ऐसे भी होते हैं जो एंटी-इन्फ्लेमेट्री होते हैं। इसके अलावा कुछ जैसे- इंटरल्युकिन-6 या आईएल-6 प्लीयोट्रोपिक या बहुपोषित होते हैं जो प्रो और एंटी दोनों हो सकते हैं।
ऐसे में साइटोकीन्स क्या हैं, साइटोकीन स्टॉर्म क्या है, साइटोकीन कितने तरह का होता है, कोविड-19 जैसे श्वास संबंधी इंफेक्शन में साइटोकीन का रोल क्या है, मरीजों में साइटोकीन स्टॉर्म के क्या संकेत या लक्षण नजर आते हैं, इन सभी बातों के बारे में हम आपको इस आर्टिकल में बता रहे हैं।