कोविड-19 महामारी से बचने के लिए जिन लोगों को विशेष रूप से सावधानियां बरतने को कहा जाता है, उनमें गर्भवती महिलाएं शामिल हैं। इसके दो महत्वपूर्ण कारण बताए जाते हैं। एक यह कि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं का इम्यून सिस्टम पहले से कॉम्प्रोमाइज्ड होता है। दूसरा, गर्भवती महिलाओं के जरिये उनके अजन्मे बच्चे या भ्रूण को कोरोना वायरस प्रभावित कर सकता है। ऐसे केसों की संख्या काफी कम है, लेकिन किसी गर्भवती महिला के सार्स-सीओवी-2 से संक्रमित होने पर इसकी संभावना से बिल्कुल इनकार नहीं किया जा सकता। इसी सिलसिले में वैज्ञानिकों ने नई जानकारी सामने रखी है।
कनाडा और ब्राजील के शोधकर्ताओं ने अपने एक अध्ययन में पाया है कि मातृत्व से जुड़ी प्रतिरक्षित कोशिकाएं या मेटर्नल इम्यून सेल्स नए कोरोना वायरस को गर्भनाल तक ला सकती हैं। गौरतलब है कि गर्भवती महिलाओं से उनके बच्चों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने के पीछे प्लेसेंटा की भूमिका बताई जाती रही है। यह उल्लेखनीय है कि पिछले अध्ययनों में वैज्ञानिकों ने आशंका जताते हुए कहा है कि गर्भनाल के जरिये वायरस पेट में पल रहे बच्चे तक पहुंच सकता है। नया अध्ययन इस तथ्य पर और प्रकाश डालने का काम कर सकता है। हालांकि यहां साफ कर दें कि इस अध्ययन से जुड़े परिणाम अभी तक किसी मेडिकल जर्नल में प्रकाशित नहीं हुए हैं। इनकी समीक्षा होना बाकी है। फिलहाल इन्हें मेडिकल शोधपत्र ऑनलाइन मुहैया कराने वाले प्लेटफॉर्म मेडआरकाइव पर पढ़ा जा सकता है।
अध्ययन से जुड़ी टीम ने लिखा है कि गर्भावस्था के दौरान महिला का इम्यून सिस्टम उसके और भ्रूण के बीच एक प्रकार से बंट जाता है। अगर इस दौरान किसी बैक्टीरियल संक्रमण से महिला का इम्यून सिस्टम डिसरप्ट हो जाए तो फिर वह और बच्चा दोनों किसी अन्य या नए संक्रमण के खतरे में जाते हैं, जैसे वायरसों से होने वाले संक्रमण। इन वैज्ञानिकों ने बताया है कि एक सफल प्रेग्नेंसी में मां और बच्चे के बीच रहने वाले इम्यून सेल्स की भूमिका अहम होती है। गर्भावस्था की शुरुआत में ये कोशिकाएं यूटेरोप्लेसेंटल सर्कुलेशन को फिर से रीमॉडल करने का काम करती हैं। गर्भावास्था के तीसरे और अंतिम तिमाही में मेटर्नल पेरिफेरल मोनोसाइट्स और गर्भाशय के इम्यून सेल्स अंतर्वाह (इनफ्लो) को लीड करने का काम करती है। इससे डिलिवरी और प्रसव प्रक्रिया की शुरुआत होती है।
यह तथ्य पहले से ज्ञात है कि नया कोरोना वायरस कोशिकाओं में घुसने के लिए एसीई2 रिसेप्टर की मदद लेता है। वायरस का स्पाइक प्रोटीन अपनी सबयूनिट एस1 के जरिये इस रिसेप्टर से इंटरेक्ट करता है और सबयूनिट एस2 से वायरल व होस्ल मेम्ब्रेन को गलाना शुरू कर देता है। इस तरह वह कोशिका में घुसने में कामयाब हो जाता है। चिंता की बात यह है कि हमारे शरीर के कई महत्वपूर्ण अंगों की सतह पर एसीई2 रिसेप्टर होता है। इनमें हृदय, फेफड़े, लिवर, किडनी के अलावा महिलाओं की गर्भनाल शामिल है। वैज्ञानिकों का कहना है कि प्लेसेंटा के दो महत्वपूर्ण भागों, सिनसिशियोट्रोफोब्लास्ट लेयर और विलस स्ट्रोमा में एसीई2 की मात्रा काफी ज्यादा होती है।
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इस जानकारी के बाद शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि अगर महिला को संक्रमण हो तो उसकी मेटर्नल सेल्स मैक्रोफेज और न्यूट्रोफिल्स एक्टिवेट हो जाएंगे और (गर्भनाल के जरिये) गर्भाशय को टार्गेट करेंगे। अगर इन कोशिकाओं में भी एसीई2 रिसेप्टर मौजूद हुआ तो वे कोरोना वायरस को गर्भनाल तक पहुंचा सकती हैं और इस तरह बच्चे को भी कोविड-19 का प्लेसेंटल इन्फेक्शन हो सकता है। इस अनुमान के आधार पर शोधकर्ताओं ने गर्भावस्था में प्लेसेंटा में होने वाली समस्याओं से जुड़े आंकड़े इकट्ठा किए। इन कॉम्प्लिकेशन्स में कोरियोएम्नियोनाइटिस नामक समस्या भी शामिल थी, जिससे गर्भनाल पर बुरा असर पड़ता है। वैज्ञानिकों ने जाना कि इन कॉम्प्लिकेशन्स के चलते प्रभावित गर्भनालों पर एसीई2 का जेनेटिक मटीरियल काफी ज्यादा मात्रा में मौजूद था।
आंकड़ों की मदद से शोधकर्ताओं ने गर्भावस्था की दूसरी तिमाही वाली गर्भनालों को इकट्ठा किया और उन पर एलपीएस का इस्तेमाल किया। इस दौरान उन्होंने पाया कि सारे एसीई2 प्रोटीन गर्भनाल के सिनसिशियोट्रोफोब्लास्ट और बच्चे की भ्रूण की रक्त कोशिकाओं में मौजूद थे। वैज्ञानिकों ने बताया है कि विलस स्ट्रोमा में एम1 और एम2 प्रकार के मैक्रोफेज और न्यूट्रोफिल्स कोशिकाओं का लेवल बढ़ गया था। कोरियोएम्नियोनाइटिस कंडीशन वाली गर्भवती महिलाओं की गर्भनाल में एम1 मैक्रोफेज और न्यूट्रोफिल्स सेल्स की संख्या काफी ज्यादा बढ़ी हुई पाई गई है। इसके अलावा ग्रैनुलोसाइट और मोनोसाइट जैसी मेटर्नल पेरिफेरल इम्यून सेल्स में एसीई2 एमआरएनए और प्रोटीन पाया गया है। ये तमाम जानकारियां कोरोना वायरस से प्लेसेंटा के संक्रमित होने के दावे का समर्थन करती हैं।