चीन के वुहान शहर से दिसंबर 2019 में फैली कोविड-19 महामारी से इस वक्त पूरी दुनिया जूझ रही है। अप्रैल 2020 तक दुनिया के 180 से अधिक देशों को इस बीमारी ने अपनी चपेट में ले लिया है। कोविड-19 बहुत तेजी से फैलने वाला वायरल संक्रमण है जो मूल रूप से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में सार्स-सीओवी-2 वायरस के संचरण के कारण फैलता है। वायरस से संक्रमित सतह को छूने से भी इस वायरस के फैलने का डर रहता है।
पूरी दुनिया के लिए कोविड-19 एक ऐसी घटना के तौर पर सामने आयी है कि जिसने सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों को सकते में डाल दिया है। खासतौर पर विकासशील देशों में स्थिति और भी भयावह है। चूंकि यह बिल्कुल नई बीमारी है, इसलिए अभी तक इसके बारे में बहुत अधिक शोध नहीं हो सका है। इसी वजह से अब तक कोविड-19 से लड़ने के लिए कोई भी इलाज या टीका उपलब्ध नहीं है।
यही कारण है कि बीमारी को लेकर लोगों में भय और चिंता के साथ ही एक विशेष प्रकार की मानसिकता (स्टिग्मा) को जन्म दिया है। इसका एक नस्लीय संदर्भ भी है जिसमें चीन या फिर एशियाई दिखने वालों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। इस बीमारी से निजात पाने के लिए यह बहुत आवश्यक है कि दुनियाभर के लोग इस प्रकार की मानसिकता से बाहर आएं और एकसाथ इस भयानक बीमारी से लड़ने का संकल्प लें।
संक्रमित बीमारियों के दौर में सामाजिक रूप से देखे जाने वाले स्टिग्मा के कई सारे दुष्परिणाम भी देखने को मिलते हैं। खासकर बीमारी से संक्रमित मरीज, पीड़ितों, स्वास्थ्यकर्मियों और उनसे जुड़े उनके परिवारवालों के भविष्य के लिए। संक्रामक बीमारी से जुड़े सोशल स्टिगमा यानी सामाजिक कलंक की वजह से कई तरह की मुश्किलें आती हैं जैसे- लोगों को नौकरी गंवानी पड़ती है, विस्थापन होता है, बीमा की कमी और सीमित स्वास्थ्य देखभाल जैसी समस्याएं। कुष्ठ रोग, टीबी और एचआईवी/ एड्स के मामलों में पहले ही इस तरह की समस्याएं देखी जा चुकी हैं।
इस तरह से स्टिग्मा यानी बीमारी से जुड़ा कलंक, संक्रामक रोगों को बढ़ाने के साथ समस्याओं को काफी हद तक जटिल बना सकता है। इसलिए कोविड-19 के बारे में फैले स्टिग्मा को शीघ्र अतिशीघ्र दूर करने की जरूरत है जिससे की समस्याओं पर वक्त रहते काबू पा लिया जाए।