रोगाणुओं की सतह पर मौजूद प्रोटीन को एंटीजन कहा जाता है, हमारा शरीर इसी एंटीजन के खिलाफ एंटीबॉडी का निर्माण करता है। इसके बाद शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली रोग के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए उस एंटीजन को नष्ट कर देती है।
वैक्सीन बनाते वक्त एंटीजन का चयन पहला कदम है। कोविड-19 के लिए वैक्सीन बनाने के लिए कई प्रकार के एंटीजनों को ध्यान में रखा जा रहा है। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं।
होल-सेल एंटीजन
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इस वैक्सीन में पूरे वायरस यानी न्यूक्लिक एसिड (डीएनए / आरएनए), प्रोटीन, लिपिड और अन्य घटकों को ध्यान में रखा जाता है। होल-सेल दो प्रकार के हो सकते हैं।
- लाइव अटेन्यूटेड वैक्सीन - इसमें मूल वायरस के कमजोर संस्करण का उपयोग किया जाता है।
- किल्ड वायरस वैक्सीन - इसमें मृत वायरसों का उपयोग किया जाता है।
आमतौर पर लाइव अटेन्यूटेड वैक्सीन अधिक प्रभावी होते हैं। इतना ही नहीं वैक्सीन की एक या दो खुराक शरीर को आजीवन प्रतिरक्षा दे सकती हैं। दूसरी ओर, किल्ड वायरस वैक्सीन के मामले में किसी व्यक्ति में रोगजनकों के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए बूस्टर की जरूरत होती है।
संरचनात्मक प्रोटीन
संरचनात्मक प्रोटीन वैक्सीन के सबसे आम लक्ष्यों में से एक हैं। वायरस को पूर्ण बनाने के लिए इन प्रोटीनों की आवश्यकता होती है। सार्स-सीओवी-2 वायरस में निम्नलिखित प्रकार के प्रोटीन मौजूद होते हैं।
- स्पाइक (एस) प्रोटीन
- न्यूक्लियोकैप्सिड (एन) प्रोटीन
- मेम्ब्रेन (एम) प्रोटीन
- इन्वेलप्स (ई) प्रोटीन
एस प्रोटीन : कोविड-19 के विभिन्न वैक्सीनों को एस प्रोटीन को लक्षित करते हुए तैयार किया जा रहा है। यह वही प्रोटीन है जो मानव शरीर की सतह पर एसीई-2 रिसेप्टर्स के साथ सार्स-सीओवी-2 वायरस को जोड़ने में मदद करता है। एस प्रोटीन में दो उप भाग होते हैं, एस1 और एस2।
एस1 उपभाग के दो डोमेन होते हैं। एन-टर्मिनल डोमेन (एनटीडी) और सी-टर्मिनल डोमेन (सीटीडी)। रिसेप्टर-बाइंडिंग डोमेन नामक एक भाग सीटीडी में मौजूद है, यह वह हिस्सा है जो एसीई-2 रिसेप्टर्स से जुड़ा होता है।
एस2 उपभाग में वह सब मौजूद होता है जो स्वस्थ कोशिकाओं की बाहरी झिल्ली के साथ वायरस को मिलाने में आवश्यक होता है।वायरस इंट्रासेल्युलर परजीवी होते हैं। सबसे पहले वह स्वस्थ कोशिकाओं में प्रवेश करते हैं और बाद में शरीर की अन्य कोशिकाओं का उपयोग करते हुए संक्रमण को फैलाते हैं। एस प्रोटीन से ही विभिन्न एंटीजनों का पता लगाया जाता है। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं।
फुल लेंथ एस प्रोटीन
इस एंटीजन में अपने सभी उपभागों के साथ एस प्रोटीन मौजूद होता है। चूंकि एक पूर्ण रूप के प्रोटीन में कई तरह की साइटें होती हैं जिन्हें हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली पहचान सकती है।
फुल लेंथ एस प्रोटीन को समझने के लिए एक डीएनए वैक्सीन ने जानवरों पर किए गए परीक्षण में आशाजनक परिणाम प्रस्तुत किए। इससे न केवल सभी लक्षणों को कम करने में सफलता मिली साथ ही प्रतिरक्षा प्रणाली ने उच्च स्तरीय एंटीबॉडी का निर्माण भी किया।
कोविड-19 संक्रमण के खिलाफ वैक्सीन बनाने के लिए ब्रिटेन की फार्मास्यूटिकल कंपनी जीएसके (ग्लैक्सो स्मिथ क्लाइन) और चीन की फर्म क्लोवर बायोफार्मास्युटिकल्स मिलकर काम कर रही हैं।
आरबीडी
सार्स-सीओवी-2 वायरस को एसीई-2 रिसेप्टर्स से जोड़ने में रिसेप्टर-बाइंडिंग डोमेन आरबीडी मदद करता है। ऐसे में वैक्सीन बनाने वाली सभी कंपनियां इसी को लक्षित कर रही हैं।
किसी भी व्यक्ति में प्रोटीन या न्यूक्लिक एसिड कोडिंग वाले इंजेक्शन से इसके खिलाफ एंटीबॉडी का उत्पादन होना शुरू हो सकता है। यदि वह व्यक्ति संक्रमित है तो एंटीबॉडी सबयूनिट को पहचान कर इसे एसीई-2 रिसेप्टर्स से जुड़ने से रोकते हैं। इससे व्यक्ति में संक्रमण और बीमारी का खतरा कम हो जाता है।
एस1 उपभाग
चूंकि एस1 उपभाग में आरबीडी सम्मिलित होता है, ऐसे में इस पूरे उपभाग को कोविड-19 के लिए लक्षित किया जाता है। मर्स वायरस के लिए पशुओं पर किए गए अध्ययन से पता चला है कि एस1 उपभाग मर्स-सीओवी संक्रमण से पूरी तरह सुरक्षा प्रदान करता है। एस1 उपभाग में एनटीडी डोमेन भी होता है। मर्स वायरस को लेकर प्रयोगशालाओं में किए गए परीक्षण में इसके कुछ इम्युनोजेनसिटी (प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया प्राप्त करने की क्षमता) दिखाई दिए। हालांकि, यह कोविड-19 वायरस के वैक्सीन में कितना असरकारक होगा, इसके कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं क्योंकि सार्स-सीओवी-2 में एनटीडी किस प्रकार से कार्य करता है इसे लेकर अब तक कोई खास जानकारी मौजूद नहीं है।
अमेरिका का बेयोर कॉलेज ऑफ मेडिसिन एस1 या आरबीडी प्रोटीन के साथ एक वैक्सीन तैयार करने को लेकर काम कर रहा है। वहीं सार्स-सीओवी-2 वायरस के आरबीडी प्रोटीन का पता करने वाला एक आरएनए वैक्सीन चीन में विकसित किया जा रहा है।
एस2 सबयूनिट का एफपी डोमेन
एफपी डोमेन एस2 सबयूनिट का हिस्सा है। यह स्वस्थ कोशिकाओं की झिल्ली के साथ सार्स-सीआवी-2 वायरस को मिलाने में मदद करता है। चीन का तियानजिन विश्वविद्यालय एक आरबीडी-एफपी फ्यूजन प्रोटीन वैक्सीन पर काम कर रहा है। पशुओं पर किए गए अध्ययनों से पता चला है कि वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने में यह वैक्सीन अत्यधिक प्रभावी हो सकता है।
न्यूक्लियोकैप्सिड (एन) प्रोटीन
एन प्रोटीन, सभी कोरोना वायरसों में पाया जाने वाला एक प्रकार का प्रोटीन है। इसमें बहुत अधिक बदलाव नहीं आता है और लगभग सभी कोरोना वायरसों में इसका रूप एक समान ही रहता है। अध्ययनों से पता चलता है कि सार्स वाले लगभग 89 प्रतिशत रोगियों में इस प्रोटीन से लड़ने वाले एंटीबॉडी मौजूद होते हैं। एन-प्रोटीन कोविड-19 में विभिन्न प्रकार से कार्य करता है। इसमें वायरस के बाहरी कोट को तैयार करना, वायरल आरएनए की प्रतिकृति बनाने और संक्रमित सेल से नए वायरस को बढ़ाने जैसा कार्य शामिल है। इसके बाद नया वायरस आसपास की कोशिकाओं को संक्रमित करते हुए रोगी के शरीर में बीमारी फैलाता है।
हालांकि, वैक्सीन के लिए इस प्रोटीन के उपयोग को लेकर कई विवाद हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार कोविड-19 वैक्सीन को लेकर बनाए गए मापदंडों में अब तक किसी भी संस्थान ने विशेष रूप से एन प्रोटीन के उपयोग का उल्लेख नहीं किया है।
मेम्ब्रेन (एम) प्रोटीन और इन्वेलप्स (ई) प्रोटीन
एन प्रोटीन की तरह ही एम प्रोटीन भी कोरोना वायरस में मौजूद होता है और यह कोविड-19 के वैक्सीन के लिए एक संभावित माध्यम हो सकता है। एम प्रोटीन संक्रमित कोशिकाओं में वायरस के संयोजन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
दूसरी ओर चूंकि, ई-प्रोटीन कोई मजबूत इम्युनोजेन नहीं है, फिर भी संक्रमित कोशिकाओं में सार्स-सीओवी-2 वायरस के संयोजन के लिए जिम्मेदार होता है। अध्ययनों से पता चलता है कि ई प्रोटीन को वायरस से हटा दिया जाए तो कोरोना वायरस की संक्रामक क्षमता को कम किया जा सकता है।