'कोविड-19' कोरोना वायरस से होने वाली एक जानलेवा संक्रामक बीमारी है, जो इस समय पूरी दुनिया में बहुत तेजी से लोगों को अपना शिकार बना रही है। यह किसी संक्रमित व्यक्ति के छींकने और खांसने के दौरान निकलने वाली पानी की छोटी-छोटी बूंदों के जरिए फैलती है। इसके बाद यह सतह पर आ जाती हैं। जब कोई अन्य व्यक्ति इनके संपर्क में आता है, तो उसके बीमार या प्रभावित होने की आशंका बढ़ जाती है। हालांकि इन दिनों एक सवाल यह किया जा रहा है कि इन बूंदों के जरिए फैलने वाला सार्स-सीओवी-2 कोरोना वायरस आखिर कितने समय तक सतह पर जीवित रह सकता है। इस बारे में वैज्ञानिकों की मानें तो कोरोना वायरस कुछ घंटों से लेकर कई दिनों तक सतह पर एक्टिव रह सकता है।
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हर जगह पर अलग प्रतिक्रिया
स्वास्थ्य के क्षेत्र से जुड़ी चर्चित पत्रिका ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि सार्स-सीओवी-2 अलग-अलग स्थितियों, जगहों या सतहों पर भिन्न-भिन्न तरीकों से बना या जीवित रह सकता है। जैसे खांसने और छींकने पर निकलते वाली बूंदों में यह विषाणु तीन घंटे तक जीवित रह सकता है। वहीं, तांबे पर यह वायरस चार घंटे तक रह सकता है। कार्डबोर्ड पर कोरोना वायरस के एक्टिव रहने की क्षमता 24 घंटे तक की है। वहीं, प्लास्टिक और स्टेनलेस स्टील पर दो से तीन दिनों तक कोरोना वायरस के कण जीवित रहते हैं।
इस अध्ययन में शामिल शोधकर्ता जेम्स लॉयड-स्मिथ के मुताबिक, ‘कोरोना वायरस संक्रमित व्यक्ति और उसके द्वारा संपर्क में आई वस्तुओं को छूने के चलते बहुत तेजी से फैलता है। इससे इस बीमारी पर नियंत्रण करना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में ज्यादा सावधान होने की जरूरत है।’
अक्सर पकड़ में 'नहीं' आता सार्स-सीओवी-2
गौरतलब है कि फरवरी में शोधकर्ता लॉयड-स्मिथ और उनके सहयोगियों ने पत्रिका 'ई-लाइफ' को बताया था कि कोविड-19 के लिए की जा रही यात्रियों की स्क्रीनिंग बहुत अधिक प्रभावी नहीं है। इसकी एक वजह यह थी कि हो सकता है कुछ लोगों में लक्षण दिखे बिना ही कोरोना वायरस फैल रहा हो। लॉयड-स्मिथ ने कहा कि वायरस से फैले संक्रमण ने अपने शुरूआती चरणों में बायॉलजी और एपिडेमियोलॉजी साइंस को भी चकमा दिया था। ऐसे में इसका पता लगाना बहुत मुश्किल हो गया। बता दें कि ऐसे कई मामले जानकारी में आए हैं जब संक्रमित होने के पांच दिनों बाद या उससे भी ज्यादा समय तक मरीजों में कोविड-19 के कोई लक्षण दिखाई नहीं दिए।
कृत्रिम वायरस की मदद से की गई जांच
इसीलिए अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफॉर्निया समेत कई अंतरराष्ट्रीय मेडिकल संस्थानों के शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों ने सार्स-सीओवी-2 की सतह पर जीवित रहने की अवधि को जानने के लिए एक ऐसा कृत्रिम वायरस तैयार किया जो व्यवहार में कोरोना वायरस जैसा था। इसके जरिए शोधकर्ताओं ने घर या अस्पताल की सतहों पर रोजमर्रा जमा होने वाले वायरसों की नकल करने का प्रयास किया। यानी ऐसी जगहों को चुना गया जहां पर एक संक्रमित व्यक्ति खांसने और छींकने के बाद वस्तुओं को छू सकता हो। इसके बाद वैज्ञानिकों ने सार्स-सीओवी-2 के सतह पर बने रहने की जांच की।
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अध्ययन में जो परिणाम मिले, उनकी मदद से कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए शोधकर्ताओं की तरफ से कुछ सुझाव दिए गए हैं जो इस प्रकार हैं-
- जो लोग बीमार हैं उनके कम से कम संपर्क में आने से बचें
- अपनी आंखों, नाक और मुंह को छूने से बचें
- बीमार होने पर घर पर ही रहना उचित होगा
- खांसी या छींक आते समय मुंह को साफ कपड़े की मदद से कवर करें और हो सके तो टिशू का इस्तेमाल कर उसे फेंक दें
- घर की सफाई में इस्तेमाल किए जाने वाले स्प्रे की से घर में रखें सामान की सतह को भी साफ रखें
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