भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 80 के पार पहुंच चुकी है। इनमें से दो लोगों की मौत भी गई है। सरकार और उसकी एजेंसियों की ओर से सीओवीआईडी-19 को फैलने से रोकने की तमाम कोशिशें की जा रही हैं। इन्हीं कोशिशों का असर है कि भारत कोरोना वायरस को आइसोलेट करने वाला 5वां देश बन गया है। मतलब भारतीय वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस का एक सटीक नमूना पाने में सफलता हासिल की है। इससे पहले केवल चीन, जापान, थाइलैंड और अमेरिका को यह कामयाबी मिली थी।
कोरोना वायरस की दवा बनाने में मिलेगी मदद
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, भारतीयों वैज्ञानिकों की इस कामयाबी को स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने एक 'बड़ी सफलता' बताया है। उनका कहना है कि इससे कोरोना वायरस से जुड़ी दवा या वैक्सीन बनाने में काफी मदद मिलेगी। इतना ही नहीं, कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति की पहचान भी जल्दी की जा सकेगी। चिकित्सा और स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े जानकारों ने बताया कि सीओवीआईडी-19 का आइसोलेशन आसान नहीं था, क्योंकि जब इससे संबंधित प्रोजेक्ट शुरू हुआ, उस समय भारत में इसके बहुत कम मामले सामने आए थे।
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वैज्ञानिकों ने इस उद्देश्य के लिए 21 सैंपलों की जांच की जो खांसी या जुकाम से जुड़े थे। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के प्रमुख एपिडेमियॉलजिस्ट डॉक्टर आरआर गंगाखेडकर ने बताया कि जांच में 11 सैंपल पॉजिटिव पाए गए। इनमें आठ में से कोरोना वायरस का सटीक नमूना (या स्ट्रेन) निकालने में कामयाबी मिली। खबर के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने 99.98 प्रतिशत उसी विषाणु की पहचान की है, जिसने चीन में बड़ी संख्या में लोगों को बीमार किया है और हजारों की मौत का कारण बना है। यानी अब भारतीय वैज्ञानिक उसी वायरस पर अलग-अलग दवाओं का परीक्षण कर सकेंगे ताकि यह जाना जा सके कि इस वायरस पर कौन से ड्रग का असर होगा और इसका पता करने के लिए तुरंत टेस्ट करने की जरूरत है या नहीं।
गौरतलब है कि अभी तक सीओवीआईडी-19 का कोई इलाज नहीं है और ना ही इससे बचाव के लिए कोई वैक्सीन तैयार की गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि वायरस को आइसोलेट करने से नए कोरोना वायरस के जैविक रूप से फैलने के क्रम और उसके विकास को समझने में भी मदद मिलेगी। भारत में अभी तक एंटी-एचआईवी ड्रग्स (लोपिनावीर और रिटोनावीर) को कोरोना वायरस के इलाज के लिए कुछ मरीजों पर आजमाया जा चुका है। इनमें जयपुर के सवाई मान सिंह अस्पताल में भर्ती इटैलियन नागरिक भी शामिल हैं। बताया जा रहा है कि दवा के बेहतर परिणाम देखने को मिले हैं। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी दवा के प्रभाव को लेकर कोई भी दावा करना जल्दबाजी होगी।
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इबोला में दी जाने वाली दवा भी एक विकल्प
कुछ समय पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ की ओर से एक ड्राफ्ट रिपोर्ट को सार्वजनिक किया गया था। इस रिपोर्ट में विशेषज्ञों के हवाले से बताया गया कि इबोला के इलाज में मरीज को दी जाने वाली रेमेडिसवीर नामक दवा भी सीओवीआईडी-19 के उपचार में बेहतर विकल्प साबित हो सकती है। इस दवा को साल 2014 में मध्य अफ्रीका के दूरदराज वाले गांवों में इबोला का प्रकोप फैलने के बाद विकसित किया गया था।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, डब्ल्यूएचओ से जुड़े स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने एचआईवी के उपचार में इस्तेमाल होने वाली दवाओं (लोपिनवीर और रोनोवावीर) की भी समीक्षा की है। विशेषज्ञों ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि ये दवाएं या तो अकेले या फिर आईएफएनबिटा के साथ लाभदायक हो सकती हैं। डब्ल्यूएचओ ने बताया कि अभी इन दवाओं के इस्तेमाल को लेकर विचार किया जा रहा है।
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