फेक न्यूज या भ्रामक जानकारियां संक्रामक रोगों से जुड़े स्वास्थ्य संकट को और ज्यादा बढ़ा सकती हैं। नए कोरोना वायरस 'सीओवीआईडी-19' के चलते पूरी दुनिया में फैली दहशत के बीच शोधकर्ताओं ने यह बात कही है। उन्होंने ऐसे रोगों में कोरोना वायरस को भी शामिल किया है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, विषाणु संबंधी स्वास्थ्य संकट के समय गलत खबरें चलाने से लोगों की मौतों का आंकड़ा बढ़ सकता है।
शोधकर्ताओं ने अध्ययन के आधार पर बताया कि ब्रिटेन में 40 प्रतिशत लोग कम से कम एक फेक न्यूज या भ्रामक जानकारी पर विश्वास करते हैं। रिपोर्टों की मानें तो ब्रिटेन की सरकारी एजेंसी 'पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड' ने इस अध्ययन का समर्थन किया है। उसने अध्ययन में बताए गए नोरोवायरस, फ्लू और मंकीपॉक्स को लेकर फैलाई गई भ्रामक खबरों के प्रभाव पर गौर करने के बाद ऐसा किया। ये भ्रामक और गलत जानकारियां चर्चित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शेयर की गई थीं। जानकारों के मुताबिक, शेयर करने वालों में जानकारी से घबराए लोगों की संख्या काफी ज्यादा दी थी। अध्ययन में बताया गया कि जिन लोगों ने भी इन जानकारियों पर विश्वास किया, उन्होंने वायरस या बीमारी से जुड़ी सावधानियां बरतने में लापरवाही दिखाई। इनमें अच्छे से हाथ धोना और संक्रमित लोगों से दूर रहने जैसे बचाव शामिल थे।
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कोरोना वायरस और फेक न्यूज
एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट में फेक न्यूज और नए कोरोना वायरस के बीच संबंध को लेकर एक मेडिकल विशेषज्ञ पॉल हंटर से बातचीत प्रकाशित की गई है। नॉर्विच मेडिकल स्कूल में प्रोफेसर पॉल हंटर नए कोरोना वायरस के विशेषज्ञ हैं। वे बताते हैं कि अगर सोशल मीडिया पर इस वायरस के बारे में गलत जानकारी फैलने से रोकने के लिए प्रयास किए जाएं तो कई लोगों की जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। वे कहते हैं, 'फेक न्यूज सत्यता को ताक पर रख तैयार की जाती है। ऐसा अक्सर साजिश के तहत किया जाता है। सीओवीआईडी-19 को लेकर काफी कुछ कहा जा रहा है। वायरस कहां से आया, यह कैसे फैलता है और इसके क्या प्रभाव होते हैं, इसे लेकर इंटरनेट पर गलत जानकारी और फेक न्यूज फैलाई जा रही है।'
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रिपोर्ट में पॉल हंटर आगे कहते हैं, 'गलत जानकारी के वायरल होने का मतलब है गलत सलाह का तेजी से फैल जाना। इससे लोग गलत कदम उठा सकते हैं। पश्चिमी अफ्रीका में इबोला संकट के समय लोग असुरक्षित तरीके से अंतिम संस्कार करने लगते, अगर वे भ्रामक जानकारियों पर विश्वास करते। यहां ब्रिटेन में 14 प्रतिशत माता-पिता ऐसे हैं जो भ्रामक जानकारियों के प्रभाव में चिकनपॉक्स के लक्षण दिखने के बावजूद अपने बच्चों को स्कूल भेजते हैं। गलत जानकारी के चलते इस तरह का लापरवाही बरतने के और भी कई उदाहरण हैं। जैसे, हाथ न धोना, बीमार लोगों के साथ खाना शेयर करना, कीटाणु वाले फर्श को साफ न करना और खुद को दूसरों से दूर न रखना।'
भारत में फैली थी फेक न्यूज
नए कोरोना वायरस और फेक न्यूज के आपसी संबंध को समझाते हुए प्रोफेसर पॉल हंटर और उनके जैसे विशेषज्ञों ने जो बात कही हैं, वे कई मायनों में सही लगती हैं। इसका एक उदाहरण हाल में भारत में भी देखने को मिला था। कोरोना वायरस से जुड़ी तमाम जानकारियों के बीच कुछ दिन पहले जाने-माने हैंड वॉश ब्रैंड डेटॉल को लेकर दावा किया गया था कि इससे हाथ धोने के बाद त्वचा पर से कोरोना वायरस खत्म हो जाता है।
सोशल मीडिया पर यह दावा सामने आते ही लाखों की संख्या में लोगों ने इस गलत जानकारी को शेयर करना शुरू कर दिया था। साथ में डेटॉल साबुन का पैकेट और लिक्विट बोतल की तस्वीरें बतौर सबूत शेयर की जा रही थीं। हालांकि यह दावा गलत था। डेटॉल बनाने वाली कंपनी रेकिट बेंकिजर ने खुद इसे खारिज किया था। कंपनी का कहना था कि सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही तस्वीरें गलत हैं और कंपनी कभी ऐसा दावा नहीं किया। हालांकि उसने कोरोना वायरस को रोकने के लिए हो रहे प्रयासों में योगदान देने की बात कही थी।
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