अमेरिका में रहने वाली भारतीय और पाकिस्तानी मूल की महिलाओं में कम उम्र में ही ब्रेस्ट कैंसर के अधिक आक्रामक रूप डायग्नोज हो रहे हैं। अमेरिका के न्यू जर्सी स्थित रटगर्स स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ और रटगर्स कैंसर इंस्टिट्यूट की तरफ से की गई एक नई स्टडी से इस बात का पता चला है। इंटरनैशनल जर्नल ऑफ कैंसर में इस स्टडी के नतीजों को प्रकाशित किया गया है जो यूएस नैशनल कैंसर इंस्टिट्यूट के "सर्विलांस, एपेडेमियोलॉजी (महामारी विज्ञान) और एंड रिजल्ट प्रोग्राम (अंतिम परिणाम कार्यक्रम)" के आंकड़ों पर आधारित है। यह आंकड़े इस बारे में थे कि आखिर साल 1990 से 2014 के बीच कितनी महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर डायग्नोज हुआ।
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स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच के बारे में अहम सवाल उठाता है यह शोध
इसके अतिरिक्त, शोधकर्ताओं ने साल 2000 से 2016 के बीच 4 हजार 900 दक्षिण एशियाई महिलाओं और 4 लाख 82 हजार 250 गैर-लातिन अमेरिकी सफेद महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के विशिष्ट लक्षण और जीवित रहने की दर को भी देखा। हालांकि इस शोध में भारतीय-अमेरिकी और पाकिस्तानी-अमेरिकी महिलाओं पर विशिष्ट बीमारी और जीवित रहने से जुड़े 5 हजार से भी कम आंकड़े थे, लेकिन यह शोध स्वास्थ्य तक पहुंच के बारे में कुछ महत्वपूर्ण सवाल उठाता है, और ब्रेस्ट कैंसर की स्क्रीनिंग से जुड़े फैसले परिवार में कौन लेता है और कैसे।
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इस अध्ययन की एक लेखिका एलिसा वी बांडेरा ने न्यूज रिलीज में कहा, "हमारे अध्ययन ने संकेत दिया कि इस आबादी में महत्वपूर्ण अंतर है जो आगे और अधिक शोध को सही ठहराते हैं ताकि जैविक, सामाजिक-सांस्कृतिक और प्रणाली स्तर के कारकों जैसे कि स्वास्थ्य प्रणाली के साथ बातचीत को बेहतर ढंग से समझा जा सके, जो ब्रेस्ट कैंसर की स्क्रीनिंग पैटर्न, डायग्नोसिस, जोखिम और दक्षिण एशियाई महिलाओं के बीच जीवित रहने की दर को प्रभावित करते हैं।"
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भारतीय अमेरिकी महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के संभावित कारणों का पता लगाने की कोशिश
शोधकर्ताओं ने भारतीय-अमेरिकी और पाकिस्तानी-अमेरिकी महिलाओं में डायग्नोसिस के वक्त कैंसर के बदतर रूपों का पता लगाने के कुछ संभावित कारणों के बारे में बताया, जो यहां भारत में भी काफी परिचित है: जैसे- मैमोग्राम और नियमित रूप से जांच न करवाना, जब कोई समस्या उत्पन्न होती है उस वक्त स्वास्थ्य से जुड़ी देखभाल लेने में देरी करना और नियमित परीक्षण और प्रारंभिक उपचार के लिए परिवार के समर्थन की कमी आदि। इसके अतिरिक्त, विदेश में रहने वाली दक्षिण एशियाई महिलाओं के एक समूह को वहां की भाषा न जानने या स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को नेविगेट करने में सक्षम नहीं होने जैसी बाधाओं का भी सामना करना पड़ सकता है, जो चिकित्सा सहायता प्राप्त करने की राह में बाधा बन सकते हैं।
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अक्टूबर को ब्रेस्ट कैंसर माह के रूप में मनाया जाता है
हर साल अक्टूबर को ब्रेस्ट कैंसर माह के रूप में मनाया जाता है। ऐसे में यह अध्ययन एक ताकीद की तरह है कि जब तक हम अपने पुराने सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंडों को संशोधित नहीं करते जो महिलाओं को चिकित्सा सहायता लेने से रोक रहे हैं, तब तक ब्रेस्ट कैंसर की घटनाओं और मृत्यु दर को कम करने के लिए चिकित्सा प्रगति का कोई भी तरीका पर्याप्त नहीं होगा, भारत के साथ ही विदेशों में रहने वाली भारतीय महिलाओं को इस बीमारी से बचाने के लिए।
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2016 में भारत में 5 लाख महिलाओं को था ब्रेस्ट कैंसर
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी 1990-2016 के अनुसार, साल 2016 तक भारत में करीब 5 लाख से अधिक महिलाएं ऐसी थीं जिन्हें ब्रेस्ट कैंसर की समस्या थी। द लैंसेट के लिए लिखते हुए, ऑथर्न ने बताया: "1990 से 2016 तक, 26 साल की इस अवधि में, महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर की उम्र-मानकीकृत घटना दर में 39.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई जिसमें हर राज्य में ब्रेस्ट कैंसर के मामलों में वृद्धि देखी गई। ब्रेस्ट कैंसर साल 2016 में 28 भारतीय राज्यों में महिलाओं में कैंसर से होने वाली मौतों का पहला या दूसरा प्रमुख कारण था।”
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