एसिडिटी या सीने में जलन एक आम समस्या है जो पेट में अधिक एसिड बनने और आमाशय की परत या इस एसिड की वजह से भोजन नली में जलन के कारण होती है। इसमें लेटने पर, खाने के बाद, अधिक खाने के बाद, शराब पीने या तनाव लेने पर सीने और पेट में जलन महसूस होती है।
ये जलन कुछ मिनट से लेकर कुछ घंटों तक रहती है। स्वास्थ्य समस्याएं जैसे कि हाइटल हर्निया (पेट में मौजूद सामग्री का रिसाव भोजन नलिका में होने के कारण जलन), गेस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स रोग (जीईआरडी) और पेट में अल्सर के कारण भी एसिडिटी हो सकती है।
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आयुर्वेद में एसिडिटी को अम्लपित्त कहा जाता है। आयुर्वेद के अनुसार अम्लपित्त अन्नवाह स्तोत्र (खाने को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने, पचाने और सोखने वाले चैनल्स) का रोग है। आयुर्वेदिक चिकित्सक एसिडिटी के इलाज में शोधन (शुद्धिकरण) प्रक्रिया जैसे कि विरेचन (सफाई की विधि), वमन (उल्टी) और शमन (नष्ट करना) का प्रयोग किया जाता है। शमन में लंघन (व्रत) और पाचन (जड़ी-बूटियों से पाचन में सुधार) शामिल है।
आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां जैसे कि शुंथि (सूखी अदरक), यष्टिमधु (मुलेठी) और आमलकी (आंवला) एसिडिटी कम करने में मदद करती हैं। एसिडिटी को नियंत्रित करने के लिए प्रवाल पंचामृत रस, सूतशेखर रस और अविपत्तिकर चूर्ण के आयुर्वेदिक सूत्रण (निश्चित विधि से तैयार हुई औषधि) को खाने से पहले और खाने के बाद ले सकते हैं। इसके अलावा गोधूम (गेहूं), मुद्ग युश (मूंग दाल का सूप) का सेवन और मसालेदार खाने एवंं शराब से दूर रहकर एसिडिटी को नियंत्रित किया जा सकता है।
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