बच्चा जब छोटा होता है तो वो पूरी तरह से माता पिता पर आश्रित रहता है लेकिन जब वो बड़ा होने लगता है तो वो धीरे धीरे बोलने बताने लगता है और अपने कुछ काम भी खुद करने लगता है जैसे सू सू, पॉटी आदि लेकिन उसे सू सू, पॉटी कहां करनी है यह बताने और सिखाने की जिम्मेदारी आपकी होती है।

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छोटे बच्चों को जितना प्यार, दुलार करने की जरूरत होती है, जितना उनका ख्याल रखने की जरूरत होती है उतनी ही ज्यादा जरूरत होती है उन्हें अच्छी आदतें सिखाने की भी। बच्चों को जो चीजें बचपन में सीखा दी जाती हैं वो उन्हें हमेशा याद रहती हैं। उन्हीं अच्छी आदतों में से एक है अगर आपका बच्चा सू सू और पॉटी आने पर पहले ही बता दे, इसके लिए जरूरी है बच्चे को पॉटी ट्रेनिंग (टॉयलेट ट्रेनिंग) देना। ज्यादातर अभिभावक बच्चे को विशेष प्रकारकी आवाजें निकाल कर सू सू करवाते हैं।  

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हमारा लेख भी इसी विषय पर है। इस लेख के माध्यम से हम जानेंगे कि पॉटी ट्रेनिंग क्या है? बच्चों को टॉयलेट ट्रेनिंग कब देनी चाहिए और कब तक देनी चाहिए? बच्चों को टॉयलेट ट्रेनिंग देने के लिए खुद को कैसे तैयार करें?

 
  1. पॉटी ट्रेनिंग क्या है - Toilet training kya hai
  2. बच्चों को पॉटी ट्रेनिंग कब देनी चाहिए - Baccho ko toilet training kab deni chahiye
  3. बच्चे को पॉटी ट्रेनिंग कब तक देनी चाहिए - Baccho ko toilet training kab tak deni chahiye
  4. बच्चे को पॉटी ट्रेनिंग देने के लिए खुद को कैसे तैयार करें - Bacche ko toilet training dene ke lie khud ko kaise taiyar kre
  5. बच्चे को पॉटी ट्रेनिंग कैसे दें - Bacche ko toilet training kaise de
  6. बच्चे को पॉटी ट्रेनिंग देने के लिए पॉटी सीट कैसी होनी चाहिए - Bacche ko toilet training dene ke liye potty seat kaisi honi chahiye
  7. पॉटी ट्रेनिंग में बच्चे को क्या क्या सिखाना चाहिए - Toilet training me bacche ko kya kya sikhana chahiye

पॉटी ट्रेनिंग को टॉयलेट ट्रेनिंग भी कहा जा सकता है। इसका मतलब होता है बच्चे को शुरुआत से ही सू सू या पॉटी करने के लिए प्रशिक्षित करना। एक साल का होने तक बच्चा धीरे धीरे बैठना शुरू कर देता है। यही समय होता है जब माता पिता बच्चे को सू सू और पॉटी बिस्तर से दूर करने के लिए सिखाने लगते हैं।

पॉटी ट्रेनिंग देने के लिए माता पिता बच्चे को शुरू से ही बैठने का तरीका सिखाने लगते हैं।

इसका मतलब यह नहीं है कि शिशु खुद शौचालय जाकर सू सू या पॉटी करने लगेगा। इसका मतलब यह है कि जब भी ऐसा लगे कि शिशु सू सू या पॉटी करने वाला है, तो आपको उसे शौचालय ले जाना होगा।

पॉटी ट्रेनिंग का सीधा सा मतलब है कि आप शिशु को यह समझा रहे हैं की सू सू, पॉटी आने पर शौचालय का प्रयोग किया जाता है।  

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पॉटी ट्रेनिंग देने की कोई सही उम्र नहीं है क्योंकि हर बच्चा अपने आप में अलग होता है। कुछ बच्चे जल्दी चीजों को सीखना शुरू कर देते हैं कुछ को काफी समय लग जाता है। आमतौर पर माता पिता बच्चे को 18 महीने से 3 साल के बीच पॉटी ट्रेनिंग देना शुरू करते हैं।

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बच्चे पर किसी भी तरह का दबाव नहीं डालना चाहिए। जब तक बच्चा खुद तैयार न हो तब तक उसे पॉटी ट्रेनिंग नहीं देनी चाहिए। ऐसा करने से बच्चे को असहजता हो सकती है इसलिए जरूरी है की बच्चे द्वारा दिए जा रहे संकेतों पर ध्यान दें।

कुछ बच्चे जल्दी सीखते हैं और कुछ को सीखने में देर लगती है ऐसे में जब तक आपका बच्चा पूरी तरह पॉटी और सू सू के लिए बैठना न सीख जाए तब तक उसे प्रशिक्षण देना चाहिए। कुछ बच्चों को पॉटी ट्रेनिंग देने की भी जरूरत नहीं होती वे खुद ही बिना किसी के सिखाए दूसरों को देखकर सीख जाते हैं। अगर बच्चा पॉटी के लिए नहीं बैठना चाहता तो उसे जबरदस्ती नहीं सिखाना चाहिए।

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बच्चे को पॉटी ट्रेनिंग देने के लिए अभिभावकों को खुद को तैयार करना बहुत जरूरी है। पॉटी ट्रेनिंग के लिए बहुत जरूरी है कि आप अपने बच्चे के संकेतों को ठीक से पहचान सकें। आपको हमेशा एक बात दिमाग में रखनी है, अगर आपके द्वारा सिखाई गई प्रक्रिया बच्चा ठीक से नहीं कर पाता है तो आपको उस पर गुस्सा नहीं करना है।  अभिभावकों को समय का विशेष ध्यान देना है, अगर बच्चा पॉटी, सू सू के बारे में खुद बता नहीं पाता तो माता पिता को स्वयं ही उससे पूछना चाहिए।

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बच्चे को सिखाने की शुरुआत धीरे-धीरे करनी चाहिए। नाश्ते के पहले या बाद में जब भी बच्चे को पॉटी आने की संभावना हो उसे पॉटी सीट पर ही बैठाएं। अभिभावकों को दिन में एक बार बच्चे को सीट पर बैठने के लिए प्रोत्साहित जरूर करना चाहिए। बच्चे को सिखाएं कि जब भी उसे पॉटी आए तो सीट में ही बैठना चाहिए। अगर बच्चा पॉटी सीट पर बैठना नहीं चाहता है तो उसपर दबाव नहीं डालना चाहिए। कुछ समय के लिए उसे पॉटी सीट पर नहीं बैठाना चाहिए।

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बच्चों को पॉटी ट्रेनिंग देने के लिए बच्चों के साइज की पॉटी सीट या सामान्य टॉयलेट सीट पर ही सेट हो जाने वाली छोटी टॉयलेट सीट की जरूरत होती है। इस तरह की सीट बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं।

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ज्यादातर पॉटी सीट की बनावट ऐसी होती है जिसमें बच्चा आराम से बैठ सके अभिभावक को यह ध्यान रखना है की सीट बच्चे की लम्बाई के अनुसार ही ली जाए। बच्चों के लिए पॉटी सीट ऐसी होनी चाहिए जिसमें बैठने के बाद बच्चों के पैर जमीन पर छुए रहें।

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छोटे बच्चों को हर आदत बचपन से ही डालना सही रहता है क्योंकि अगर बच्चे की आदतों को समय रहते न सिखाया जाए तो उनकी आदतें बड़े होने के बाद भी नहीं सुधरती। मलत्याग एक जरूरी दैनिक क्रिया है। छोटे बच्चों के लिए यह थोड़ी नयी भी होती है इसलिए उन्हें बचपन से ही इसे सिखाया जाना सही होता है अन्यथा बच्चे समय पर अपने आप सू सू पॉटी आदि करना नहीं सीख पाते और वे हमेशा अभिभावकों पर ही निर्भर रहते हैं।

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पॉटी ट्रेनिंग देते समय बच्चे को निम्नलिखित बातें बतानी जरूरी होती हैं:

  • बच्चे को यह बताना, समझाना जरूरी है कि उसे पॉटी आती है तो वो माता पिता को संकेतों द्वारा जरूर बताए।
  • सीट तक पहुंचने से पहले तक उस प्रेशर को नियंत्रित रखें। 
  • छोटे बच्चे को पॉटी सीट पर बैठने का तरीका सिखाएं।
  • फ्लश करने का तरीका।
  • पैंट कैसे उतारनी है और कैसे पहननी है छोटे बच्चों को यह भी बताना जरूरी हो जाता है।

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