क्या आप अपना जीवन बिना आंखों के सोच सकते हैं? क्या आप यह कल्पना कर सकते हैं कि अपने आसपास के लोगों या वस्तुओं को न देख पाने पर जीवन कैसा होगा? नहीं, न! अब जरा सोचिए कि एक नवजात शिशु जो अपनी माता या पिता को नहीं देख पाता उसका जीवन कैसा होगा। नवजात शिशुओं में अंधापन होने से उसकी वृद्धि और विकास बहुत अधिक प्रभावित होता है।
शिशुओं में यह प्रीनेटल (जन्म से पहले), पेरीनेटल (गर्भावस्था के 28वें हफ्ते से जन्म के बाद पहले माह में) या पोस्ट नेटल (जन्म के बाद) हो सकता है।
प्रीनेटल कारणों में एनफथेलमस, माइक्रोथैलमोस, कोलोबोमा और कंजेनिटल कैटरेक्ट। कुछ रेटिनल डिस्ट्रॉफी जैसे इन्फेंटाइल ग्लूकोमा और कंजेनिटल क्लॉउडी कॉर्निया से भी शिशु की दृष्टि प्रभावित हो सकती है।
पेरीनेटल अवस्था में आंखों की स्थितियां जैसे कोर्टिकल इम्पेयरमेंट, ओफ्थल्मिया नियोनेटोरम (नवजात शिशु को मोतियाबिंद) और रेटिनोपैथी ऑफ़ प्रीमेच्योरिटी से शिशुओं में अंधापन हो जाता है। जन्म के बाद की स्थितियों से भी शिशु के देखने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।
जल्दी परीक्षण से, मेडिकल ट्रीटमेंट से और लगातार नेत्र विशेषज्ञ से मिलकर शिशु को स्थायी रूप से होने वाले अंधेपन से बचाया जा सकता है।
शिशुओं में गंभीर रूप से हुए दृष्टि क्षीणता के लक्षण
शिशुओं में कुछ ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं जो माता-पिता पहचान सकते हैं -
- यदि जन्म के छह से आठ हफ्तों बाद भी शिशु माता-पिता की तरफ देखकर कोई प्रतिक्रिया नहीं कर रहा है और न ही उनकी तरफ देख रहा हो।
- शिशु आंखों के साथ संपर्क नहीं बना पा रहा हो या भिन्न रोशनी व चीजों को नहीं देख पा रहा हो, विशेषकर शुरुआत के तीन महीनों में।
- चार महीनों के बाद माता-पिता शिशु में भेंगापन या आंखों का ठीक तरह से न बना होना या बाहर की तरफ निकलना आदि चीजें देख सकते हैं।
- शिशु की आंखें या तो बहुत छोटी या बहुत बड़ी दिखाई दे सकती हैं।
- शिशु की आंखों की पुतली सफेद, धुंधली या पीली दिखाई देना।
- शिशु की आंखों की पुतली का विषम होना (कहीं देखने पर पुतलियों का अलग-अलग दिशा में होना)।
- शिशु की किसी भी एक आंख की पलकों का सूखा होना (प्टोसिस)।
- शिशु के आंखों की पुतलियां अनायास घूमती दिखाई दे सकती हैं, इस स्थिति को निस्टाग्मस कहते हैं।
- शिशु आंखों को लगातार हिलाता हुआ या पलक झपकाता हुआ दिखाई दे सकता है।
- रात में बहुत अधिक रोना। (और पढ़ें - बच्चों को चुप कराने का तरीका)
- शिशु को इधर-उधर हिलने में डर लगना और शिशु की गतिविधियां कम दिखाई देना।
डॉक्टर शिशुओं में इनके अलावा अंधेपन के निम्न लक्षण देख सकते हैं -
- पहली बार डॉक्टर के पास जाने में, डॉक्टर आंखों में लाल रंग की छाया (रेड रिफ्लेक्स) देख सकते हैं। रेड रिफ्लेक्स का मतलब है आंखों के पीछे से आने वाली लाल-संतरी रंग की (फंडस)। फंडस को ऑप्थल्मोस्कोप या रेटिनोस्कोप द्वारा परीक्षण करने पर नजर आता है।
- पहली बार में डॉक्टर को शिशु का कॉर्निया (आंख की बाहरी परत) धुंधला दिखाई दे सकता है या आंखों में मौजूद जेल भी धुंधला दिखाई दे सकता है।
- शिशु का आंखें न मिला पाना।
- आंखों का आकार असामान्य होना जो कि ग्लूकोमा की तरफ संकेत करता है।
- पलकों का सूखा होना (प्टोसिस)।
- डॉक्टर को शिशु के जन्म के छह महीने बाद भी स्ट्रबिस्मुस के संकेत दिखाई दे सकते हैं। स्ट्रबिस्मुस एक स्थिति है, जिसमें आंखें ठीक दिशा में नहीं होती हैं, इसीलिए शिशु में भेंगापन हो सकता है।
- शिशु अपने परिवारजनों को चेहरे से नहीं बल्कि आवाज से पहचानता है।