दुनियाभर में लाखों बच्चे ट्रामा का शिकार हो रहे हैं, जिसका मूल कारण शारीरिक और यौन शोषण, तकनीकी और प्राकृतिक आपदा, सड़क दुर्घटनाएं, कोई बड़ी सर्जरी या मेडिकल ट्रीटमेंट, सामाजिक शोषण, घरेलू या किसी करीबी रिश्तेदार द्वारा हिंसा या बाल शोषण का शिकार होना है। दुर्भाग्यवश, ट्रामा के ज्यादातर मामलों में माता-पिता बच्चों पर ट्रामा के पड़ने वाले भावनात्मक असर को नजरअंदाज कर देते हैं जिसकी वजह से इसका इलाज नहीं हो पाता है।
हर साल 17 अक्टूबर को 'वर्ल्ड ट्रामा डे' मनाया जाता है। विश्व स्तर पर लोगों को ट्रामा से होने वाले नुकसान के बारे में बताने और इस विषय पर जागरूकता फैलाने के लिए ये दिवस मनाया जाता है।
किसी भयंकर या मुश्किल स्थिति का सामना करने पर बच्चे के दिमाग पर जो असर पड़ता है उसे ट्रॉमेटिक स्ट्रेस कहते हैं। यह हादसे वयस्कों की तरह ही बच्चे के दिमाग, भावनाओं और व्यवहार को प्रभावित करते हैं।
ट्रामा से ग्रस्त कई बच्चों में कुछ समय या हमेशा के लिए विकलांगता हो सकती है। इसका असर बच्चे की मानसिक सेहत और आर्थिक स्थिति पर भी पड़ता है। इन्हें निरंतर देखभाल और परिवार के साथ एवं प्यार की जरूरत होती है।
भारत में ट्रामा से ग्रस्त बच्चों की संख्या
एक भारतीय अस्पताल में की गई रिसर्च के अनुसार भारत में ट्रामा से ग्रस्त बच्चों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है। यह रिसर्च कुल 1148 बच्चों पर की गई, जिसमें सभी बच्चों की उम्र 15 वर्ष से कम थी। यह अध्ययन 3 साल तक चला था। बच्चों को 4 ग्रुप में बांटा गया, जिनमें 1 वर्ष से कम, 1 से 5 वर्ष, 6 से 10 वर्ष और 11 से 15 वर्ष के बच्चे शामिल थे। अलग-अलग उम्र और लिंग के बच्चों में इस रिसर्च के डाटा की तुलना ट्रामा होने के कारण, चोट लगने की जगह और प्रकार के आधार पर की गई।
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परिणाम में पाया गया कि लड़कियों के मुकाबले लड़के इस बीमारी का शिकार अधिक होते हैं। कुल 1148 बच्चों में 69.86% (802) लड़के ट्रामा के शिकार थे जबकि लड़कियों की संख्या 30.13% (336) थी। लड़कों में ट्रामा का सबसे आम कारण सड़क दुर्घटना था जो कि 59.47% (477) था। वहीं गिरने पर चोट लगने से हुए ट्रामा के मामलों की संख्या 29.42% (236) थी। लड़कियां सबसे ज्यादा गिरने पर लगी चोट के कारण ट्रामा शिकार हुई थीं, जो कि 52.31% (181) था जबकि सड़क दुर्घटना में इनकी संख्या लड़कों के मुकाबले बेहद कम (36.70% यानी 127) पाई गई। गिरने से चोट लगने वाली ज्यादातर दुर्घटनाएं घर में होती हैं।
1148 मरीज़ों में से 304 (26.48%) पॉलीट्रामा (जिसमें दो से ज्यादा अंग या तंत्र प्रभावित थे) के मामले थे। पेट/पेल्विक ट्रामा के मामले 241 (20.99%), सिर/चेहरे के ट्रामा के मामले 228 (19.86%) थे। 36 महीनों के अंदर अस्पताल में भर्ती किए गए 1148 बच्चों में से 64 (5.57%) की मृत्यु हो गई जबकि 75 (6.5%) बच्चों को किसी तरह की विकलांगता या विकृति हो गई।
बच्चों में ट्रामा के कारण
- दुर्घटना
- सोशल मीडिया या किसी अन्य तरीके से डराना
- घरेलू हिंसा
- मानसिक रोग से पीड़ित माता-पिता
- किसी करीबी की मृत्यु होना
- भावनात्मक शोषण या बच्चों की भावनाओं को नजरअंदाज करना
- शारीरिक शोषण
- माता-पिता से अलग होना
- यौन शोषण
- गरीबी के कारण तनाव
- अचानक या कोई गंभीर बीमारी होना
- हिंसा (घर या स्कूल में)
- युद्ध या आतंकवाद
- माता-पिता का तलाक
बच्चों में ट्रामा के लक्षण
- ध्यान लगाने में परेशानी होना
- कुछ सीखने में कठिनाई होना
- आसानी से ध्यान भटकना
- बात न मानना
- गलत व्यव्हार करना
- बेचैनी
- नींद आने में समस्या
- किसी चीज से डर लगना
- माता-पिता या किसी करीबी से दूर होने का डर (विशेष रूप से छोटे बच्चों में)
- बार-बार नींद टूटना, बुरे सपने आना
- उदास रहना
- रोजमर्रा के काम करने में भी रुचि न रहना
- एकाग्रता में कमी
- गुस्सा
- शारीरिक चोट
- चिड़चिड़ापन
बच्चे को ट्रामा होने पर क्या करें
बच्चों से खुल कर बात करने से सभी परेशानियां सुलझ सकती हैं। आप निम्न तरीकों से अपने बच्चे को ट्रामा से बाहर निकलने में मदद कर सकते हैं।
- अपने बच्चे को ये अहसास दिलाएं कि अब वो हादसा गुजर चुका है और अब वह पूरी तरह से सुरक्षित है। ये जानने की कोशिश करें कि कहीं अब तक तो किसी बुरी घटना की याद या सपने उसे नहीं आते हैं।
- अपने बच्चे की बात ध्यान से सुनें और उसकी भावनाओं को नजरअंदाज न करें।
- बच्चे की जिंदगी में जो कुछ भी हुआ है, ध्यान रखें कि वो उस से कोई गलत धारणा न बना ले।
- मानसिक ट्रामा की स्थिति में काउंसलर की मदद लेनी चाहिए। बच्चे को योग या स्पोर्ट्स एक्टिविटी करवाएं।
- शारीरिक ट्रामा होने पर मेडिकल ट्रीटमेंट के साथ काउंसलिंग भी जरूरी होती है।
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