ओरल या मौखिक टीके की मांग सबसे ज्यादा होती है क्योंकि इसे बच्चों को देना बेहद आसान होता है। एक्सपर्ट्स की सलाह है कि करीब 90 प्रतिशत रोगाणु बेहद पतले और प्रवेश योग्य श्लेष्म झिल्ली के जरिए इंसान के शरीर में घुसते हैं। उदाहरण के लिए- पेट की परत में मौजूद झिल्ली, आंत और श्वसन पथ। इसमें भी नाक और मुंह बेहद आसान पॉइंट्स हैं जिसके जरिए रोगाणु शरीर में प्रवेश करते हैं। लिहाजा अगर टीके के जरिए श्लेष्म झिल्ली को निशाना बनाया जाए तो इम्यूनिटी प्रदान करने का एक असरदार सिस्टम बन सकता है।
ज्यादातर वैक्सीन्स जो त्वचा या मांसपेशियों में जाती हैं वे सिर्फ एंटीबॉडीज बनाती हैं और कुछ मात्रा में टी-सेल्स भी। टी-सेल्स, प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) की वे कोशिकाएं हैं जो सेलुलर या कोशिकीए इम्यूनिटी प्रदान करती हैं। कोशिका के अंदर मौजूद परजीवी जैसे- वायरस आदि से लड़ने के लिए सेलुलर इम्यूनिटी की जरूरत होती है। कई अध्ययनों में यह बात सामने आयी है कि वे टीके जो श्लेष्म झिल्ली को निशाना बनाते हैं वे पर्याप्त मात्रा में IgA एंटीबॉडीज (एक तरह का एंटीबॉडी जो मुख्य रूप से श्लेष्मली सतहों को सुरक्षित रखने के लिए जिम्मेदार होते हैं) का निर्माण करते हैं। पैतृक मार्ग से दिए जाने वाले टीकों में यह एंटीबॉडीज देखने को नही मिलते।
इंजेक्शन के जरिए दी जाने वाली वैक्सीन पूरे शरीर में IgA एंटीबॉडीज विकसित करती है और साथ ही में पूरे शरीर में कोशिकीए प्रतिक्रिया भी। सिस्टेमिक या दैहिक प्रतिक्रिया आमतौर पर तब होती है जब श्लेष्म झिल्ली शरीर के अंदर जुड़ी होती है। इसलिए जब कोई सतह सुरक्षित होती है तो वह अपने आप ही सभी सतहों को सुरक्षित बनाती है। IgG हमारे शरीर में सबसे ज्यादा मात्रा में पाए जाने वाले एंटीबॉडीज हैं जिनकी मदद से शरीर को लंबे समय तक इम्यूनिटी मिलती है।
कैसे काम करते हैं मौखिक टीके (ओरल वैक्सीन)?
जब मौखिक टीके में मौजूद एंटीजेन छोटी आंत में पहुंचता है, विशेषज्ञता प्राप्त एम सेल्स उस एंटीजेन को आंत के इम्यून सेंसर पेयर्स पैच तक पहुंचाने का काम करता है। पेयर्स पैच लसीका से बने टीशू हैं जो आंत में इम्यूनिटी उत्पन्न करने में अहम भूमिका निभाते हैं। लिहाजा मौखिक टीके की योग्यता और सामर्थ्य बढ़ाने के मकसद से एक्सपर्ट्स इस बात पर फोकस कर रहे हैं कि ऐसी खास वैक्सीन बनायी जाए जो इन एम सेल्स को निशाना बनाती हो।
मौखिक टीके से जुड़ी चिंताएं
- मौखिक टीके या मुंह से दी जाने वाली वैक्सीन जठरांत्र श्लेष्म झिल्ली को निशाना बनाती है। मौखिक रास्ते से दी जाने वाली वैक्सीन की सबसे बड़ी समस्या ये है कि आंत में मौजूद एन्जाइम्स वैक्सीन के तत्वों को पचा लेते हैं, इससे पहले कि वे शरीर से किसी तरह की इम्यून प्रतिक्रिया ले पाएं
- दूसरी चिंता है टीके के डोज को नियंत्रित करना। इम्यून प्रतिक्रिया उत्पन्न करने के लिए इंजेक्शन के जरिए जो डोज दिया जाता है कि उसकी तुलना में मौखिक टीके के लिए अधिक हेवी डोज की जरूरत होती है। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि टीके के हाई डोज की वजह से मौखिक सहनशीलता की समस्या हो सकती है- हो सकता कि इम्यून सिस्टम आंत में मौजूद रोगाणु के खिलाफ कोई प्रतिक्रिया न दे। लिहाजा अलग-अलग उम्र के बच्चों और वयस्कों के लिए भी टीके की सही डोज का निर्धारण करना बहुत जरूरी है।
- साथ ही साथ टीके की हाफ-लाइफ को लेकर भी चिंता है- यह वह समय है जिसमें आधे से ज्यादा टीका शरीर के सिस्टम से बाहर हो जाता है।
इन सभी चिंताओं से निपटने के लिए मौखिक टीके के वितरण के अलग-अलग तरीकों का सुझाव दिया गया है जिसमें प्लांट बेस्ड ओरल वैक्सीन, बैक्टीरियल वेक्टर, लिपिड बेस्ड वेक्टर और नैनोपार्टिकल बेस्ड वैक्सीन शामिल है।
लाइसेंस प्राप्त और व्यावसायिक रूप से दिए जाने वाले मौखिक टीके
मौजूदा समय में जो मौखिक टीके व्यावसायिक रूप से मार्केट में मिल रहे हैं, वे हैं:
पोलियो का मौखिक टीका : सबसे कॉमन तरह का मौखिक टीका है ओपीवी या ओरल पोलिया वैक्सीन। इस वैक्सीन या टीके में जीवित लेकिन कमजोर किया हुआ पोलियो वायरस मौजूद होता है जो मोनोवैलेंट यानी एकसंयोजक (एक तरह के पोलियो वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी देने वाला) हो सकता है या फिर मल्टीवैलेंट या बहुसंयोजक (एक से ज्यादा तरह से पोलियो वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी देने वाला) हो सकता है। बड़ी संख्या में और सामुदायिक स्तर पर टीकाकरण कार्यक्रम में ओरल पोलियो वैक्सीन का अहम रोल है जिसकी मदद से दुनियाभर में पोलियो वायरस के 2 स्ट्रेन को जड़ से खत्म करने में मदद मिली है।
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हालांकि इस वैक्सीन के जहरीला या विषैला बनने और इंफेक्शन फैलाने की आशंका बेहद दुर्लभ है (2.5 मिलियन में से एक)। चूंकि दुनियाभर से इस वायरस को बड़ी मात्रा में जड़ से खत्म किया जा चुका है इसलिए मौजूदा समय में वैक्सीन की आवृत्ति से पोलियो होने का खतरा असल में बीमारी होने की तुलना में काफी अधिक है। लेकिन इसका मतलब ये बिलकुल नहीं है कि इम्यूनाइजेशन या प्रतिरक्षण की प्रक्रिया बंद कर देनी चाहिए। कम से कम तब तक नहीं जब तक कि इस वायरस का पूरी तरह से दुनियाभर से उन्मूलन नहीं हो जाता।
कॉलेरा या हैजा का टीका : मौजूदा समय में विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से हैजा के 3 मौखिक टीकों को स्वीकृति प्रदान की गई है। इनमें से एक है- रीकॉम्बिनेंट कॉलेरा टॉक्सीन बी (सीटीबी) सबयूनिट वैक्सीन है जिसमें कॉलेरा टॉक्सिन के सबयूनिट के साथ ही मारे गए रोगाणु भी शामिल होते हैं और यह स्थायी और मजबूत होने के साथ ही नॉन-टॉक्सिक यानी विषरहित भी होता है। अध्ययनों में यह बात साबित हुई है कि यह टीका कॉलेरा या हैजा के खिलाफ 65 प्रतिशत इम्यूनिटी प्रदान करता है और करीब 2 साल तक असरदार रहता है। बाकी के 2 हैजा के टीकों में सिर्फ मारे गए रोगाणु ही होते हैं। सभी टीकों को 2 डोज के नियम अनुसार दिया जाता है।
एक जीवित कमजोर करके तैयार किया हुआ हैजा के टीको को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लाइसेंस प्राप्त है जो कॉलेरा बैक्टीरिया के कमजोर वर्जन का इस्तेमाल करता है। यह टीका सिर्फ सिंगल डोज से ही अच्छी इम्यूनिटी प्रदान करने का काम करता है। हालांकि मौजूदा समय में यह सिर्फ वयस्कों को ही दिया जाता है यानी 18 से 64 साल के बीच के लोगों को जो हैजा प्रभावित इलाकों की यात्रा कर रहे हों।
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टाइफाइड का टीका : टाइफाइड बुखार के लिए मौजूदा समय में जिस टीके को स्वीकृति दी गई है वह टाइफाइड बैक्टीरिया सैल्मोनेला टाइफी के जीवित कमजोर वर्जन का इस्तेमाल करता है। इस टीके का नाम है- Ty21a जो तरल और कैप्सूल दोनों रूपों में मिलती है जो बीमारी से करीब 7 सालों तक 62 प्रतिशत सुरक्षा प्रदान करती है। हालांकि टीके का असर टीका दिए जाने के एक सप्ताह बाद ही दिखना शुरू होता है।
रोटावायरस : रोटावायरस एक तरह की डायरिया की बीमारी है जो 5 साल तक के बच्चों में मौत का सबसे बड़ा कारण है। रोटावायरस के कम से कम 5 स्ट्रेन मौजूद हैं जिनकी वजह से ये बीमारी होती है और मार्केट में फिलहाल 2 तरह के मौखिक रोटावायरस के टीके मौजूद हैं। वे टीके हैं:
- जीवित कमजोर किया हुआ इंसानी रोटावायरस वैक्सीन : यह एकसंयोजक टीका है जो रोटावायरस के सिर्फ एक स्ट्रेन के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।
- पशुवत-इंसानी रोटावायरस वैक्सीन : यह टीका रोटावायरस के सभी पांचों स्ट्रेन के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।
ये दोनों ही टीके गंभीर रोटावायरस बीमारी के खिालफ करीब 90 प्रतिशत असरदार है और हल्की बीमारी के खिलाफ करीब 70 प्रतिशत असरदार।
सबलिंगुअल ओरल वैक्सीन
चूंकि मौखिक टीकों की एक कमी ये है कि वे आंत में जाकर निम्नीकृत हो जाते हैं ऐसे में सबलिंगुअल यानी मांसल और बकल यानी कपोल टीकों को टीके के वितरण के बेहतर विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है क्योंकि इन टीकों को श्लेष्म झिल्ली सतहों के जरिए दिया जा सकता है। हालांकि वैज्ञानिकों के समुदाय की तरफ से टीके के इस मार्ग पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है। इस वक्त मौजूद सबलिंगुअल वैक्सीन सिर्फ एलर्जी के लिए दी जाने वाली वैक्सीन है जिसका इस्तेमाल एलर्जी पैदा करने वाले अलग-अलग तत्वों के खिलाफ हाइपरसेंसेटिविटी के इलाज में किया जाता है।
सबलिंगुअल वैक्सीन जीभ की सतह के नीचे खुलकर अवशोषित हो जाता है जबकी बकल या मुख टीका मसूड़े, गाल और होंठ में मौजूद कपोल श्लेष्म झिल्ली में अवशोषित हो जाता है। इन क्षेत्रों में मोटी परत नहीं होती इसलिए टीका इनमें से आसानी से पास हो जाता है और फिर खून तक पहुंच जाता है। एक्सपर्ट्स की मानें तो मुख छेद में मौजूद श्लेष्म झिल्ली, हमारी त्वचा की तुलना में 4 हजार गुना ज्यादा प्रवेश योग्य होती है। हालांकि यह आंत में मौजूद श्लेष्म झिल्ली की तुलना में कम प्रवेश योग्य है।
सबलिंगुअल वैक्सीन को श्वास संबंधी वायरस जैसे- इन्फ्लूएंजा, सार्स (सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम) और रेस्पिरेटरी सिंकसाइटिकल वायरस के खिलाफ असरदार माना जाता है। ये सभी टीके फिलहाल विकसित होने के प्री-क्लीनिकल स्टेज में हैं। कई और रोगाणु जिनकी सबलिंगुअल या बकल वैक्सीन बनाने पर अध्ययन जारी है वे हैं- एचआईवी, इबोला, टेटनस, मीजल्स या खसरा, एचपीवी (ह्यूमन पैपिलोमावायरस) और न्यूमोकॉकल बीमारी।
मुंह में घुलने वाला टीका
मुंह में घुलने वाला टुकड़ा या टीका एक और तरह का बकल डिलिवरी सिस्टम है जिसमें बेहद पतली घुलनशील परत का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें एंटीजेन शामिल होते हैं। कई अलग-अलग तरह की मौखिक परतें मार्केट में अब भी ब्रेथ मिंट (सांसों को ताजा करने वाली कैप्सूल) के रूप में मौजूद हैं और यह टेक्नोलॉजी खून में दवा पहुंचाने के मामले में बेहद असरदार साबित हुई है।
अब तक सिर्फ एक मुंह में घुलने वाली स्ट्रिप वैक्सीन का निर्माण किया गया है जो रोटावायरस के लिए है। इस तरह की और वैक्सीन पर काम चल रहा है। चूंकि इन टीकों को देना आसान होता है लिहाजा बच्चों को प्रतिरक्षित करने के लिहाज से इन्हें बेहतरीन माना जाता है। एक अच्छे मुंह में घुलने वाले स्ट्रिप के लिए पानी की जरूरत नहीं होती, उनका स्वाद अच्छा होता है और साथ ही उनमें वैक्सीन के स्टैंडर्ड डोज को भी असरदार तरीके से डाला जा सकता है। हालांकि इन टीकों की कुछ कमियां भी हैं जैसे- इन्हें वैक्सीन की हाई डोज देने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता और दूसरा- स्ट्रिप या परत की मोटाई बनाने के लिए शुद्धता और खास तरह की पैकेजिंग की जरूरत होती है।