नियमित टीकाकरण होने से आपका बच्चा कम बीमार पड़ता है। दरअसल, जन्म के समय बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कमजोर होती है, ऐसे में उसको कई तरह के घातक रोग होने की संभावनाएं बनी रहती है। इतना ही नहीं जन्म के बाद टीकाकरण में लापरवाही से भी बच्चों को भविष्य में गंभीर बीमारियों के होने का खतरा बना रहता है। इस कारण बच्चे को नियमित टीकाकरण करवाना बेहद जरूरी होता है।

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इस लेख में आपको बच्चों के लिए आवश्यक टीकाकरण, टीकाकरण का महत्व, शिशु टीकाकरण चार्ट, बच्चों में टीकाकरण के दौरान बरते जाने वाली सावधानियां और उनके दुष्प्रभावों के बारे में भी बताया जा रहा है।  

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  1. बच्चों का टीकाकरण क्यों जरूरी है - Bachon ka tikakaran kyu jaroori hai
  2. बच्चों के टीकाकरण का महत्व - Bachon ke tikakaran ka mahatva
  3. शिशु टीकाकरण चार्ट - Shishu tikakaran chart
  4. शिशुओं को लगने वाले टीकों के प्रकार - Shishuon ko lagne wale tiko ke prakar
  5. बच्चों में टीकाकरण के दौरान सावधानियां - Bachon me tikakaran ke dauran savdhaniya
  6. बच्चो में टीकाकरण के साइड इफेक्ट - Bachon me tikakaran ke side effect
बच्चों का टीकाकरण चार्ट के डॉक्टर

अभिभावक होने के नाते आपका यह फर्ज बनाता है कि आप अपने बच्चे को रोगों से सुरक्षित व स्वस्थ रखें और टीकाकरण ही वह माध्यम है जिसके द्वारा आप अपने बच्चे को आसानी से सेहतमंद रख सकते हैं। टीकाकरण पूरी तरह से सुरक्षित और प्रभावी प्रक्रिया होती है। इसको विशेषतज्ञों के द्वारा कई टेस्ट करने के बाद बच्चों के लिए तैयार किया गया है। कई सरकारी संस्थाएं भी टीकाकरण के सुरक्षित होने का दावा करती हैं। 

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टीकाकरण आपके बच्चों को कई घातक समस्याओं से बचाता है। टीकाकरण न करवाने की स्थिति में आपके बच्चे को लकवा पड़ना, सुनने में मुश्किल होना, मस्तिष्क संबंधी समस्या या रोगों के कारण हाथ-पैर काटवाने की स्थिति का भी सामना करना पड़ सकता है। इतना ही नहीं टीकाकरण न करवाने की वजह से बच्चों को कुछ ऐसे रोग हो सकते हैं जिनकी वजह से उनकी मृत्यु भी हो जाती है।

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टीकाकरण के द्वारा बच्चे को खसरा, गलसुआ, काली खांसी आदि समस्याओं से बचाव होता है। अगर आपके बच्चे का टीकाकरण नहीं हुआ है तो उसके जरिये अन्य बच्चों और कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों जैसे कैंसर रोगियों में आसानी से बीमारियां फैल सकती हैं।

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बचपन में लगाए जाने वाले टीकों से आपका बच्चा जीवन के शुरूआती दौर से ही गंभीर बीमारियों से सुरक्षित रहता है। टीके करवाने से आपके बच्चे के शरीर में रोग को कम करने वाले एंटीबॉडीज बनते हैं, जिससे उसके बीमार होने की संभावनाएं कम हो जाती हैं।

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बड़े समुदाय में टीकाकरण कार्यक्रम चलाने से महामारी होने की संभावनाएं कम होती हैं। इस तरह के कार्यक्रमों ने कई जगहों से छोटी माता और पोलियो जैसी बीमारियों को खत्म किया है।

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सार्वभौमिक टीकाकरण अभियान के तहत बच्चे को लगाए जाने वाले टीके - 

अायु  टीके का नाम मात्रा   कीमत (₹​)
जन्म के समय बीसीजी 0.1 मिलीलीटर (0.05 मिलीमीटर 1 महीने तक)  91 – 1025
  हेपेटाइटिस बी  0.5 मिलीलीटर 52.25 – 6000
  ओपीवी-0      2 बूंद 230
6 सप्ताह का होने पर ओपीवी (पहली खुराक) 2 बूंद 230
  पेंटावेलेंट (पहली खुराक) 0.5 मिलीलीटर -
  रोटावायरस (पहली खुराक) 5 बूंद  689 – 1499
  आईपीवी (दूसरी खुराक) 0.1 मिलीलीटर 440
10 सप्ताह का होने पर ओपीवी (दूसरी खुराक) 2 बूंद 230
  पेंटावेलेंट (दूसरी खुराक) 0.5 मिलीलीटर
  रोटावायरस (दूसरी खुराक) 5 बूंद  689 – 1499
14 सप्ताह का होने पर ओपीवी (तीसरी खुराक) 2 बूंद 230
  पेंटावेलेंट (तीसरी खुराक) 0.5 मिलीलीटर -
  रोटावायरस (तीसरी खुराक) 5 बूंद  689 – 1499
  आईपीवी (तीसरी खुराक) 0.1 मिलीलीटर 440
9 से 12 महीनों का होने पर खसरा/ एमआर (पहली खुराक) 0.5 मिलीलीटर  155 – 600
  जेई  (पहली खुराक) 0.5 मिलीलीटर 
  विटामिन ए (पहली खुराक)   1 मिलीलीटर -
16 से 18 महीनों का होने पर विटामिन ए (दूसरी खुराक)   2 मिलीलीटर
16 से 24 महीनों का होने पर डीपीटी की पहली खुराक 0.5 मिलीलीटर 225
  खसरा/ एमआर (दूसरी खुराक)  0.5 मिलीलीटर  155 – 600
  ओपीवी (दूसरी खुराक)     2 बूंद 230
  जेई (दूसरी खुराक)   0.5 मिलीलीटर
5 से 6 साल का होने पर डीपीटी की दूसरी खुराक 0.5 मिलीलीटर 225
10 साल  टीटी 0.5 मिलीलीटर
16 साल टीटी 0.5 मिलीलीटर

 

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शिशुओं को लगाए जाने वाले टीकों के प्रकार निम्न तरह से व्यक्त हैं - 

  1. बीसीजी -
    ज्यादातर बच्चों को एक साल की उम्र तक टीबी के संक्रमण होने की संभावनाएं होती हैं। बीसीजी टीके से बच्चे को टीबी के संक्रमण से सुरक्षा मिलती है। साथ ही इस टीके से बचपन में होने टीबी जैसे मेनिनजाइटिस (दिमागी बुखार) और मिलिट्री रोग से आपके बच्चे को सुरक्षित करता है। (और पढ़ें - हिब वैक्सीन कब लगाएं)
     
  2. हेपेटाइटिस बी –
    इस टीके से बच्चा का हेपेटाइटिस रोग से बचाव होता है। हेपेटाइटिस बी वायरस के कारण बच्चे के लिवर में सूजन आ सकती है और आगे भी उसको कई अन्य समस्याएं हो सकती हैं। व्यस्कों के मुकाबले बच्चों में हेपेटाइटिस से संक्रमित होने की संभावनाएं अधिक होती है। (और पढ़ें - हेपेटाइटिस बी टीका)
     
  3. ओपीवी –
    ओपीवी (ओरल पोलियोवायरस वैक्सीन) पोलियो से बच्चे को सुरक्षित रखने के लिए सर्वाधिक उपयोग में लाई जाने वाली दवा है। पोलियो की दवा कई प्रकार की होती है। इससे आपके बच्चे को पोलियो के रोग से बचाया जाता है। ओपीवी दवा बच्चे को पिलाई जाती है, जबकि अन्य को इंजेक्शन के रूप में दिया जाता है। (और पढ़ें - पोलियो का टीका कब लगना चाहिए)
     
  4. पेंटावेलेंट –
    पेंटावेलेंट टीका आपके बच्चे को पांच रोगों से बचाने के लिए लगाया जाता है। इसमें पांच तरह की दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। इसका अधिकतर इस्तेमाल हिमोफिलस इन्फ्लूएंजा टाइप बी वायरस (मेनिनजाइटिस, निमोनिया और ओटिटिस का कारण), काली खांसी, टेटनस, हेपेटाइटिस बी और डायरिया (दस्त) से बच्चे को सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है। (और पढ़ें - पेंटावैलेंट टीके की कीमत
     
  5. रोटावायरस –
    रोटावायरस से बच्चे को दस्त, उल्टी, बुखार और पेट में दर्द की शिकायत हो सकती हैं। टीकाकारण से आप अपने बच्चे को इन सभी बीमारियों से बचा सकते हैं। रोटावायस का टीका बच्चे को 15 सप्ताह हो जाने के बाद लगाया जाता है। (और पढ़ें - रोटावायरस वैक्सीन)
     
  6. आईपीवी – 
    आईपीवी टीका भी पोलियो की रोकथाम के लिए बच्चे को दिया जाता है। आईपीवी पोलियो वायरस को खत्म करने के लिए टीके के रूप में दी जाने वाली दवा है।
     
  7. एमएमआर –
    एमएमआर टीका बच्चे को खसरा, गलसुआ और रूबेला रोग से बचाता है। बच्चे को एमएमआर की दो खुराक दी जाती हैं। इसकी पहली खुराक 9 से 12 महीने पूरे होने पर बच्चे को दी जाती है, जबकि दूसरी खुराक 6 से 24 महीने के बच्चों को दी जाती है। (और पढ़ें - एमएमआर टीके के बारे में जानें)
     
  8. जेई –
    जापानी एनसेफेलिटिस (Japanese encephlalitits: जापानी दिमागी बुखार) संक्रमण मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करता है। यह संक्रमण मुख्य रूप से बच्चों को प्रभावित करता है। बच्चे को इस संक्रमण से सुरक्षित रखने के लिए जेई टीका दिया जाता है। (और पढ़ें - जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन क्या है)
     
  9. विटामिन ए –
    विटामिन ए की कमी होने पर आपके बच्चे को विटामिन ए की दवा दी जाती है। इसकी पहली और दूसरी खुराक में कम से कम छह महीनों का अंतर होना बेहद जरूरी है। विटामिन ए संबंधी रोगों से बचाव के लिए पांच साल तक बच्चे को करीब 9 खुराक दी जाती है। (और पढ़ें - विटामिन ए की कमी)
     
  10. डीपीटी –
    डिप्थीरिया, टेटेनस और काली खांसी के लिए डीपीटी का टीका लगाया जाता है। इस टीके को 16 से 24 महीनों के बच्चों को लगाया जाता है। डिप्थीरिया एक बैक्टीरियल संक्रमण होता है, जो नाक और गले की श्लेष्मा झिल्ली (Mucous membrane) को प्रभावित करता है। डिप्थीरिया आसानी से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है, लेकिन टीकाकरण की सहायता से इससे बचा जा सकता है। टेटनस से तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है, यह विशेष रूप से गर्दन और जबड़े को प्रभावित करता है। इसके अलावा काली खांसी की समस्या बच्चों और कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों में होने की संभावनाएं होती हैं। (और पढ़ें - डीपीटी का टीका कब लगवाया जाता है)
     
  11. टीटी –
    टेटनस वेक्सीन को टेटनस टॉक्सोइड भी कहा जाता है। इस टीके की मदद से बच्चे को टेटनस से सुरक्षा मिलती है। टेटनस एक गंभीर बीमारी है जो तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है।

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सामान्यतः टीकाकरण सुरक्षित प्रक्रिया होती है। टीकाकरण के नुकसान से कहीं ज्यादा इसके फायदे होते हैं। हालांकि, बच्चे के टीकाकरण के दौरान सावधानियां बरतना भी बेहद जरूरी होता है। टीकाकरण के दौरान बरते जानें वाली सावधानियों को नीचे विस्तार से बताया जा रहा है।

  • हमेशा सरकारी या किसी प्रतिष्ठित निजी अस्पताल में ही बच्चे को टीके लगाएं। इन अस्पताल में टीकों को सुरक्षित रूप से स्टोर करने के लिए सभी सुविधाएं मौजूद होती हैं। (और पढ़ें – रेबीज के टीके कब लगाएं)
     
  • टीके की पहली खुराक से कोई विशेष प्रतिक्रिया या दुष्प्रभाव हुआ हो तो अपने डॉक्टर को इस बारे में जरूर बताएं। (और पढ़ें - एचपीवी टीके की लागत)
     
  • बच्चे को टीके के माध्यम से दी जाने वाली दवा की एक्सपायरी डेट (Expiry date) की जांच जरूर करें। एक्सपायरी डेट की दवा से बच्चे को गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। (और पढ़ें - चिकन पॉक्स वैक्सीन के प्राइस)
     
  • बच्चे को कोई भी टीका लगाने से पहले अपने डॉक्टर से अवश्य सलाह लें। डॉक्टर टीका लगाने की मंजूरी देने से पहले आपके बच्चे की पूरी जांच करते हैं। (और पढ़ें - टाइफाइड वैक्सीन की कॉस्ट)
     
  • बच्चे को बुखार या सर्दी-जुकाम हो तो आप अपने डॉक्टर को जरूर बताएं। (और पढ़े - इन्फ्लूएंजा टीका की कीमत)
     
  • डीपीटी टीकाकरण से पहले अगर आपके बच्चे को दौरे या अचानक मांसपेशियों में ऐंठन आदि की समस्या हुई हो तो डॉक्टर को सूचित करें।

(और पढ़ें – बच्चे के दाँत निकलते समय दर्द का उपाय)
 

आमतौर पर टीकाकरण बच्चों के लिए सुरक्षित होता है। टीकाकरण से अधिकांश बच्चों को किसी भी तरह के कोई साइड इफेक्ट नहीं होते हैं। हालांकि कुछ बच्चों को टीके लगाने से कुछ साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। टीकाकरण से होने वाले साइड इफेक्ट के प्रभाव काफी कम होते हैं, जो दो दिनों में ठीक हो जाते हैं। आगे टीकाकरण से होने वाले अन्य साइड इफेक्ट के बारे में बताया जा रहा है।

  • कुछ टीके लगाने के बाद आपके बच्चे को बुखार हो सकता है। (और पढ़ें - मेनिंगोकोक्सल टीका लगाने की उम्र)
     
  • बीसीजी – बीसीजी टीके के बाद आपके बच्चे के शरीर में गांठ बन सकती है। यह गांठ मुलायम होती है, जो दो सप्ताह में ठीक हो जाती है। इसके लिए आपको किसी भी तरह की दवा लेने की आवश्यक नहीं पड़ती है। टीके की जगह पर निशान पड़ सकता है। अगर टीका लगाने के बाद सूजन लंबे समय तक कम नहीं होती है तो आपको अपने डॉक्टर से इस बारे में बात करनी चाहिए। (और पढ़ें - हेपेटाइटिस ए का टीका कब लगाना चाहिए)
     
  • डीपीटी – इस टीके को लगवाने के बाद इंजेक्शन वाली जगह पर हल्का दर्द, लालिमा और सूजन हो सकती है। कई बार कुछ बच्चों को हल्का बुखार भी हो जाता है। साथ इंजेक्शन की जगह पर दर्द न करने वाली गांठ बन जाती है, जो कुछ ही सप्ताह में ठीक हो जाती है। अगर इस टीके के बाद बच्चे को बुखार ज्यादा तेज हो तो आप उन्हें डॉक्टर को दिखाएं। (और पढ़ें - हैजा का टीका के बारे में जाने)
     
  • खसरा/ एमएमआर (MMR) – इस टीके को लगाने के करीब से 4 से 10 दिनों के बाद कुछ बच्चों को बुखार आ जाता है। इसके साथ ही कफ, सर्दी जुकाम और शरीर पर हल्के रैश भी हो सकते हैं। (और पढ़ें - न्यूमोकोकल टीके की खुराक)
     
  • अगर टीके लगाने के बाद बच्चे को ज्यादा परेशानी हो रही हो तो ऐसे में आप चेकअप के लिए डॉक्टर के पास जाएं। 

(और पढ़ें - बच्चों में भूख ना लगने का आयुर्वेदिक समाधान)

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