7 से 9 महीने का बच्चा जब घुटने के बल इधर-उधर भागना शुरू कर देता है तो वह अपने आसपास की दुनिया को लेकर ज्यादा जागरुक हो जाता है और हर चीज को अडवेंचर समझने लगता है। पर्दे खींचने से लेकर घर के एक-एक कोने में पहुंचकर निरीक्षण करना बच्चे को बहुत अच्छा लगता है। लिहाजा पैरंट्स के लिए शिशु को सुरक्षित रखना मुश्किल टास्क हो जाता है।
क्या आपका शिशु ठोस आहार के लिए तैयार है?
अपने शिशु को पहली बार ठोस आहार खिलाना, शिशु के विकास में किसी मील के पत्थर की तरह होता है। भारत में तो इस स्टेज को बेहद अहम माना जाता है और इसी वजह से शिशु को पहली बार ठोस आहार खिलाने की प्रक्रिया को किसी उत्सव की तरह मनाया जाता है और इसे अन्नप्राशन कहते हैं। तो आखिर कब शिशु के लिए ठोस आहार शुरू करना चाहिए यह भी एक बड़ा सवाल है। अमेरिकन अकैडमी ऑफ पीडियैट्रिक्स (एएपी) के साथ-साथ दुनिया के ज्यादातर डॉक्टर्स और एक्सपर्ट्स भी यही सलाह देते हैं कि जन्म से लेकर शुरुआती 6 महीने तक बच्चे को सिर्फ मां का दूध ब्रेस्टमिल्क ही दिया जाना चाहिए।
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लेकिन 4 से 6 महीने के बीच के शिशु को ब्रेस्टफीडिंग या डिब्बे वाले फॉर्मूला फीडिंग के साथ-साथ पूरक के तौर पर ठोस आहार देना शुरू किया जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस उम्र के शिशु अपनी जीभ की मदद से ठोस भोजन को मुंह से बाहर धकेलना बंद कर देते हैं और उनके मुंह के अंदर कोऑर्डिनेशन विकसित होना शुरू हो जाता है जिस वजह से वे ठोस आहार को मुंह के आगे पीछे ले जाना सीखते हैं ताकि वह भोजन को गले के नीचे उतार सकें।
2013 की एक स्टडी की मानें तो 6 महीने का होते-होते जिन शिशुओं को पैरंट्स कुछ खास तरह के ठोस आहार खिलाना शुरू कर देते हैं उन बच्चों में ऐलर्जी और अस्थमा होने का खतरा काफी कम हो जाता है। लेकिन बच्चे को ठोस आहार खिलाने से पहले जरूरी है कि आपका बच्चा बिलकुल सीधा बैठना सीख जाए और अपने सिर को बिना किसी सहारे के ऊपर रख पाए। साथ ही बच्चे को ठोस आहार शुरू करने से पहले बच्चे के पीडियाट्रिशन से भी सलाह जरूर लें।
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