बिस्तर पर जाकर करवटें बदलना, बार-बार कोशिश करने के बाद भी नींद न आना, नींद न आने की वजह से चिड़चिड़ापन महसूस होना- ये सारी दिक्कतें सिर्फ वयस्कों को नहीं होतीं बल्कि बच्चों को भी नींद से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। नींद न आने या अनिद्रा की समस्या बड़ों के साथ-साथ बच्चों को भी हो सकती है। अनिद्रा से पीड़ित व्यक्ति को नींद नहीं आती, सोते रहने में मुश्किल होती है या फिर जल्दी नींद खुल जाती है। इस दौरान दिन के समय नींद आना, सुस्ती महसूस होना, चिड़चिड़ापन, मूड स्विंग, चिंता और डिप्रेशन भी अनिद्रा के कई लक्षण हैं।  

बच्चे को पूरा पोषण मिले, वह पूरी तरह से सुरक्षित रहे, उसे कहीं चोट न लग जाए इन सबके साथ-साथ बच्चों को अच्छे से नींद आए, इसका भी पैरंट्स को ध्यान रखना पड़ता है। बच्चा कितना सोएगा यह उसकी उम्र पर निर्भर करता है। नवजात शिशु जहां 16-17 घंटे की नींद लेते हैं वहीं, 2 महीने से 1 साल तक के बच्चों के लिए 12-16 घंटे सोना बेहद जरूरी है। वहीं, 1 से 2 साल के टॉडलर बच्चों को 11 से 14 घंटे की नींद लेनी चाहिए जबकी 3 से 5 साल के बच्चों को 10 से 13 घंटे की नींद, 6 से 12 साल के बच्चों को 9 से 11 घंटे की नींद और 13 से 18 साल तक के किशोर बच्चों के लिए कम से कम 9-10 घंटे की नींद बेहद जरूरी है।

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बच्चों में अनिद्रा की समस्या ज्यादातर मामलों में सोने के समय की आदतों और दिन के समय बच्चे के व्यवहार पर निर्भर करता है। ऐसे में अगर आप इन चीजों में बदलाव कर लें तो बच्चे की नींद की समस्या को भी आसानी से दूर किया जा सकता है। हालांकि इसके लिए माता-पिता को थोड़ा धैर्य से काम लेने की जरूरत है। इस आर्टिकल में हम आपको बता रहे हैं कि आखिर बच्चों को नींद न आने का क्या कारण है, बच्चों में अनिद्रा के लक्षण क्या हैं और बच्चों को अच्छी नींद आए इसके लिए आप क्या उपाय कर सकते हैं।

  1. शिशु और बच्चों में नींद न आने की समस्या - Bacchon ko Neend na aane ki samasya
  2. बच्चों में नींद न आने के लक्षण और संकेत - Bacchon ko neend na aane ke lakshan
  3. बच्चों को नींद न आने के कारण - Bacchon ko neend na aane ke karan
  4. बच्चों का पर्याप्त नींद लेना क्यों जरूरी है? - Babies aur kids ka neend lena kyu jaruri hai?
  5. बच्चों में अनिद्रा को डायग्नोज कैसे करते हैं? - Bacchon me neend ki samasya diagnose kaise hoti hai?
  6. बच्चों को सुलाने और अच्छी नींद दिलाने के उपाय - Bacchon ko acchi neend dilane ke upay
बच्चों को नींद न आने का कारण और उपाय के डॉक्टर

अगर आपके बच्चे को भी नींद न आने की समस्या है तो इसका मतलब है कि उसे सोने में दिक्कत होती है, एक बार अगर किसी तरह से सो भी जाए तो देर तक सो नहीं पाता या फिर सिर्फ कुछ ही घंटों की नींद लेकर बहुत जल्दी उठ जाता है। कभी-कभार नींद में अवरोध आना सामान्य सी बात है, लेकिन अगर ऐसा नियमित रूप से आपके बच्चे के साथ होने लगे तो इसका मतलब है कि उसे अनिद्रा या इन्सॉमनिया की समस्या है। इन्सॉमनिया 2 तरह का होता है:

  • शॉर्ट टर्म इन्सॉम्निया : यह महज कुछ दिनों या हफ्तों के लिए रहता है और फिर ठीक हो जाता है। इसे अक्यूट इन्सॉमनिया भी कहते हैं।
  • लॉन्ग टर्म इन्सॉमनिया : हर सप्ताह में 3 तीन बच्चे को सोने में दिक्कत हो रही हो और यह समस्या 1 महीने या इससे ज्यादा समय तक जारी रहे। इसे क्रॉनिक इन्सॉमनिया भी कहते हैं।

(और पढ़ें : बच्चों में अनिद्रा दूर करने के आयुर्वेदिक उपाय)

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बच्चों में अनिद्रा या इन्सॉमनिया की समस्या किसी भी उम्र में शुरू हो सकती है, फिर चाहे वह नवजात शिशु हो या फिर किशोर बच्चा। कुछ मामलों में यह समस्या लाइफस्टाल में कुछ बदलाव करने के बाद ठीक हो जाती है तो वहीं कई मामलों में लंबे समय तक यह समस्या बनी रहती है। बच्चों में अनिद्रा के लक्षण हैं:

  • सोने से मना करना और खुद को बिस्तर में जाने से रोकने के लिए संघर्ष करना
  • बेडरूम की लाइट बंद होने के बाद भी बार-बार कभी पानी, कभी टॉइलेट, कभी कहानी सुनाने का बहाना बनाना
  • एक बार बिस्तर में जाने के बाद भी बहुत देर तक जगे रहना और नींद न आना
  • बीच रात में बार-बार नींद से जगना और फिर दोबारा सोने में परेशानी महसूस होना
  • आप जितनी देर चाहते हैं कि आपका बच्चा सोए उससे कहीं जल्दी उठ जाना
  • पैरंट्स द्वारा बनाए गए नींद के उपयुक्त शेड्यूल का विरोध करना
  • रोज एक ही समय पर सोने की बजाए अलग-अलग टाइम पर जब मन करे तब सोना
  • नींद में भी कुछ देर के लिए सोना या झपकी लेने में दिक्कत महसूस होना
  • सुबह स्कूल जाने के लिए उठने में दिक्कत करना

वैसे बच्चे जो अनिद्रा से पीड़ित हों उन्हें दिन के समय भी कई मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है और उनमें कई लक्षण भी नजर आते हैं, जैसे:

  • हर वक्त थकान महसूस होना और नींद में रहना
  • किसी भी काम के दौरान चौकस न रहना और याददाश्त और एकाग्रता का कमजोर होना
  • सामाजिक, पारिवारिक और शैक्षणिक प्रदर्शन पर बुरा असर पड़ना
  • हर वक्त मूड स्विंग्स और चिड़चिड़ापन महसूस होना
  • व्यवहार संबंधी दिक्कतें जैसे- हाइपरऐक्टिविटी, गुस्से में रहना, आक्रामक और विपरित व्यवहार करना
  • प्रोत्साहन में कमी आना
  • सही फैसला लेने और उत्तेजना को कंट्रोल करने में मुश्किल होना
  • बात-बात में निराशा और कुंठा महसूस होना

बड़ों की ही तरह बच्चों को भी नींद न आने की यह समस्या ज्यादातर मामलों में समय के साथ खुद ही ठीक हो जाती है। लेकिन अगर यह समस्या हफ्ते में 3 दिन और 3 महीने से ज्यादा समय तक जारी रहे, जिसके कारण बच्चे की दिन की गतिविधियां प्रभावित हो रही हों तो इसे नींद से जुड़ी बीमारी के तौर पर देखा जा सकता है। ऐसे में हम आपको कुछ सामान्य कारणों के बारे में बता रहे हैं जिनकी वजह से बच्चों को नींद आने में मुश्किल होती है:

सोने के समय से जुड़े डर : बच्चों के लिए सोने के समय से जुड़ा डर या चिंता, नींद न आने का सबसे बड़ा कारण हो सकता है। हो सकता है कि बच्चे को अंधेरे से डर लगता हो या फिर उसे अकेले सोने में डर लगता हो। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं इस तरह के डर खत्म हो जाते हैं। लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे का कमरा शांत और रिलैक्स्ड हों जहां वह बिना डर के आराम से सो सके। कमरे में ऐसी कुछ चीजें लगाएं जो बेड पर लेटने के बाद भी दिखें और बच्चे को उसे देखकर अच्छा महसूस हो। परिवार के सदस्यों की तस्वीरें या फिर कोई और तस्वीर या कार्टून जो बच्चे को पसंद हो।

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बुरे सपने का डर: हो सकता है कि आपके बच्चे को रात में सोते वक्त डरावने सपने आ रहे हों और इस कारण ही वह रात में नींद से जग रहा हो? कई बार बच्चे जब कोई डरावनी या हिंसक फिल्म, टीवी शो देख लें या कोई डरावनी किताब पढ़ लें तो इस कारण भी उन्हें रात में सोते वक्त बुरे या डरावने सपने आ सकते हैं। लिहाजा सोने से पहले या दिन और शाम के समय आपके बच्चे क्या देख या पढ़ रहे हैं उस पर भी आपकी नजर होनी चाहिए। आप चाहें तो सोने से पहले बच्चे को कोई अच्छी पॉजिटिव कहानी सुना सकती हैं या फिर कोई शांत म्यूजिक सुना सकती हैं ताकि उसे अच्छी नींद आए।

चिंता या तनाव : जब आपके बच्चे किसी बात को लेकर परेशान होते हैं तब भी उन्हें नींद नहीं आती और अनिद्रा की समस्या हो सकती है। स्कूल में होने वाले टेस्ट या एग्जाम की चिंता, स्कूल के बाद की ऐक्टिविटीज की चिंता, स्पोर्ट्स ऐक्टिविटी में फर्स्ट आने की चिंता हो या फिर दोस्तों से जुड़ी कोई और बात। ऐसे में अगर आपको महसूस हो कि आपका बच्चा किसी तरह के चिंता या तनाव में है तो खुद बच्चे से बात करें। उनसे पूछें कि स्कूल और दोस्तों के साथ सब ठीक है या नहीं, कोई उन्हें स्कूल में डरा-धमका तो नहीं रहा (bullying)। जहां तक संभव हो बच्चे की चिंता दूर करने में उसकी मदद करें।

परिवार से जुड़ी कोई समस्या : माता-पिता का झगड़ा, उनकी शादी से जुड़ी समस्याएं, घर में नए बच्चे का आगमन और पैरंट्स द्वारा नए बच्चे पर ज्यादा ध्यान देना- इस तरह की पारिवारिक समस्याओं की वजह से भी कई बार बच्चों को नींद नहीं आती और वे अनिद्रा का शिकार हो जाते हैं। 

सोने के समय से जुड़े व्यवहार : बेहद जरूरी है कि बच्चा सोने से कम से कम 1-2 घंटे पहले ही टीवी, मोबाइल आदि देखना बंद कर दे ताकि उसकी आंखों को आराम मिल सके। अगर बच्चे के स्क्रीन टाइम बहुत ज्यादा है खासकर बेडरूम में तो इस वजह से भी बच्चे को नींद आने में दिक्कत महसूस हो सकती है।    

वातावरण से जुड़े कारण : उदाहरण के लिए- सोने का कमरा अगर बहुत ज्यादा गर्म या ठंडा हो या फिर वहां बहुत शोरगुल हो रहा हो।

चिकिसीय समस्याएं : अगर बच्चे को कोई बीमारी हो जैसे- अस्थमा, स्लीप एपनिया या रेस्टलेस लेग सिंड्रोम तो इसकी वजह से भी बच्चे को नींद आने में दिक्कत होती है। इसके अलावा अगर बच्चे को कान या दांत में इंफेक्शन या दर्द हो, स्किन एक्जिमा हो या सर्दी-जुकाम हो तो इस कारण भी नींद नहीं आती या बार-बार नींद खुल जाती है।

बहुत ज्यादा कैफीन का सेवन करना: बहुत से एनर्जी ड्रिंक और सोडा में कैफीन की अधिक मात्रा होती है जिसकी वजह से बच्चे को नींद आने में मुश्किल महसूस होती है। लिहाजा इस बात का ध्यान रखें कि आपका बच्चा इस तरह की चीजों का कम से कम सेवन करे। 

(और पढ़ें : नींद में चलना)

दवाइयों का दुष्प्रभाव : कई तरह की दवाइयां जैसे- हाइपरऐक्टिविटी डिसऑर्डर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाइयां या फिर डिप्रेशन के लिए इस्तेमाल होने वाली एंटीडिप्रेसेंट दवाइयों की वजह से भी बच्चों में अनिद्रा की समस्या हो सकती है। 

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नींद, हम सभी के दैनिक रूटीन का सबसे अहम हिस्सा है और हमारी स्वस्थ जीवनशैली के लिए अनिवार्य भी। अब तक नींद के बारे में हो चुकी स्टडीज में यह बात साबित हो चुकी है कि जो बच्चे नियमित रूप से पर्याप्त मात्रा में नींद लेते हैं उनकी ध्यान और फोकस करने की क्षमता बेहतर होती है, उनका व्यवहार, सीखने की क्षमता, याददाश्त और ओवरऑल शारीरिक और मानसिक सेहत भी अच्छी बनी रहती है। अगर बच्चे पर्याप्त नींद न लें तो उन्हें हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा और डिप्रेशन का भी खतरा बना रहता है। बच्चों की नींद पूरी होती है तभी वे दिनभर ऊर्जावान बने रहते हैं और अच्छे से खेलकूद कर पाते हैं।

अगर बच्चे की नींद न आने की समस्या लंबे समय तक जारी रहे और इसकी वजह से आपके बच्चे की सेहत, शैक्षणिक प्रदर्शन और सामाजिक जीवन प्रभावित हो रहा हो तो आपको बिना देर किए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। इस दौरान हो सकता कि आपके पीडियाट्रिशन आपको किसी साइकॉलजिस्ट से बात करने की सलाह दें।

आपके बच्चे को अनिद्रा या इन्सॉमनिया की दिक्कत है या नहीं इसका पता लगाने के लिए डॉक्टर आमतौर पर बच्चे की मेडिकल हिस्ट्री के बारे में जानना चाहते हैं और बच्चे की शारीरिक जांच भी करते हैं। साथ ही ब्लड टेस्ट की भी सलाह दे सकते हैं। साथ ही डॉक्टर आपके बच्चे के सोने का तरीका यानी स्लीपिंग पैटर्न के बारे में जरूरी सवाल पूछते हैं।

रोजाना सोने और जागने का टाइम फिक्स करें : स्कूल जाने वाले बच्चों को हर रात कम से कम 9 से 11 घंटे की नींद की जरूरत होती है, लेकिन नींद की जरूरत और पैटर्न हर बच्चे का अलग-अलग होता है। लिहाजा आपके बच्चे के लिए दिन भर तरोताजा रहकर अपना काम करने के लिए कितने घंटे की नींद जरूरी है इस बात का ध्यान रखते हुए बच्चे के लिए रोजाना सोने और सुबह जागने का टाइम फिक्स करें और जहां तक संभव हो वीकेंड पर भी इस समय में ज्यादा बदलाव न करें।

बेडटाइम रूटीन बनाएं : नवजात शिशु, छोटे बच्चे और वैसे बच्चे जो अभी स्कूल नहीं जाते हैं उनके लिए बेडटाइम रूटीन बनाना जरूरी है और फायदेमंद भी साबित हो सकता है। सोने से पहले कहानी सुनना, लोरी सुनना या गुनने पानी से नहाना इस तरह की चीजें करने से बच्चे को यह संकेत मिलता है कि अब नींद लेने का समय आ गया है। ऐसा होने पर बच्चे पहले ही रिलैक्स होने लगता है और फिर उसे अच्छी नींद भी आती है।

सोने से 2 घंटे पहले टीवी बंद कर दें : रिसर्च में यह बात साबित हो चुकी है कि टीवी, मोबाइल फोन या कम्प्यूटर और लैपटॉप की स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट नींद का उत्पादन करने वाले हार्मोन मेलाटोनिन को प्रभावित करती है। जब शरीर में मेलाटोनिन का लेवल बढ़ता है तभी हमें नींद आती है और हम सोने के लिए तैयार हो जाते हैं। सोने से 30 मिनट पहले अगर बच्चा टीवी या मोबाइल देखे तो उसकी 2 घंटे की नींद बर्बाद हो सकती है। लिहाजा बच्चे के बेडरूम को स्क्रीन फ्री जोन बनाएं और सोने से कम से कम 2 घंटे पहले टीवी, मोबाइल आदि की स्क्रीन बंद कर दें।

नींद से जुड़ी आदतों में करें बदलाव : कई बार अनिद्रा या नींद न आने की समस्या का समाधान इसी बात में छिपा होता है कि आप अपने बच्चे की सोने की आदत में कुछ बदलाव करें। जैसे- दिन के समय बच्चे को न सुलाएं, बेडरूम से घड़ी हटा दें, बच्चे का बेडटाइम रूटीन और सोने का वातावरण दोनों शांत और रिलैक्सिंग होना चाहिए। रात में बच्चे को कैसी नींद आएगी यह इस पर भी निर्भर करता है कि बच्चे की दिन के समय की आदतें कैसी थीं। दिन के समय बच्चे को शारीरिक गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित करें, दिन के समय प्रचूर मात्रा में नैचरल और ब्राइट लाइट मिलने दें।

स्ट्रेस कम करें और सोने के लिए बेहतर वातावरण बनाएं : अच्छी और पर्याप्त नींद के लिए एक और हार्मोन का अहम रोल है और वह है- कोर्टिसोल जिसे स्ट्रेस हार्मोन भी कहते हैं। जब बच्चे के शरीर में कोर्टिसोल का लेवल अधिक होता है तो बच्चे का शरीर सोने को तैयार नहीं होता और बच्चे को नींद नहीं आती। इसलिए ध्यान रहे कि सोने से ठीक पहले बच्चा बहुत ज्यादा हाइपरऐक्टिव न रहे, रोशनी मद्धम कर दें और सोने के वातावरण को शांत रखें। साथ ही साथ इस बात का भी ध्यान रखें कि बच्चे के बिस्तर पर बहुत ज्यादा खिलौने न हों क्योंकि इससे भी बच्चे को सोने में दिक्कत हो सकती है। साथ ही साथ नींद का संबंध सिर्फ रोशनी से नहीं बल्कि तापमान से भी है। लिहाजा बच्चे को बहुत ज्यादा ओढ़ाकर या कमरे का तापमान गर्म करके न सुलाएं। नॉर्मल रूम टेंपरेचर रहने दें या फिर कमरे को हल्का ठंडा कर दें ताकि बच्चे को गहरी नींद आ सके।

नींद से जुड़े बच्चे के डर को दूर करें : बच्चे को अगर सोने से पहले किसी बात से डर लग रहा है या फिर उसे बुरे सपने आने से डर लग रहा है तो बच्चे के इस डर को खारिज करने की बजाए उसे दूर करने का प्रयास करें। अगर बच्चे को बार-बार आश्वासन देने के बाद भी उसे डर लग रहा हो तो आप बच्चे के लिए कोई स्पेशल खिलौना खरीद कर ला सकते हैं जो रातभर कमरे में तैनात रहकर बच्चे की रखवाली करेगा। बच्चों के साथ बच्चे बनकर इस तरह के आइडिया भी बच्चों को सुलाने के काम आ सकते हैं।

Dr. Pritesh Mogal

Dr. Pritesh Mogal

पीडियाट्रिक
8 वर्षों का अनुभव

Dr Shivraj Singh

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Dr. Abhishek Kothari

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9 वर्षों का अनुभव

Dr. Varshil Shah

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7 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

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