पहली बार मां बनने पर अक्‍सर महिलाओं को शिशु की नैपी बदलने को लेकर ज्‍यादा चिंता रहती है। नवजात शिशु की दिन में कई बार नैपी बदलनी पड़ती है और शायद इसी बात को लेकर अक्‍सर महिलाएं परेशान रहती हैं। नवजात शिशु को जन्‍म देने के बाद के पहले 24 घंटों में आपको इस बात का अंदाजा हो सकता है कि आगे चलकर आपको अपने शिशु की नैपी कब और कैसे बदलनी है। कहने का मतलब है कि शिशु के जन्‍म लेने के बाद पहले 24 घंटों में ही आपको नैपी ट्रेनिंग का पहला टेस्‍ट देना होगा। लेकिन इस काम में आपको एक बात का जरूर ध्‍यान रखना है और वो ये है कि शिशु को पॉटी और पेशाब कैसा आ रहा है और उसका रंग क्‍या है। इससे आप अपने नवजात शिशु की सेहत के बारे में काफी कुछ पता लगा सकती हैं।

  1. पहली बार मूत्र आना - Bache ko pehli baar peshab aana
  2. मेकोनियम, शिशु की पहली पॉटी - Kaisa hona chahiye Meconium
  3. नवजात शिशु को कितनी बार पॉटी करनी चाहिए - Bache ko din me kitni baar Poop aana sahi hai
  4. स्‍तनपान और बोतल से दूध पीने पर कैसी आती है पॉटी - Breastfeed aur Bottle se doodh pine par kese aati hai Potty
  5. शिशु में दस्‍त का पता कैसे लगाएं - Bache me Diarrhea ka pata lagane ka tarika
  6. शिशु की पॉटी से मिल सकते हैं ये अन्‍य संकेत - Bache ke Poop se kya sanket milte hain
नवजात शिशु की पहली पॉटी के डॉक्टर

नवजात शिशु दिन में चार से 6 बार या इससे ज्‍यादा बार पेशाब करते हैं। वहीं गर्म मौसम या शिशु के बीमार या बुखार होने पर पेशाब दिन में सिर्फ तीन बार भी आ सकता है। पेशाब करने के दौरान दर्द नहीं होना चाहिए। अगर आपको ऐसा लग रहा है कि आपके नवजात शिशु को पेशाब करने के दौरान दर्द हो रहा है तो तुरंत पीडियाट्रिशियन यानी बाल रोग चिकित्‍सक को दिखाएं। ये किसी संक्रमण का संकेत हो सकता है।

आमतौर पर नवजात शिशु के मूत्र का रंग हल्‍के से गहरा पीला होता है। कभी-कभी डायपर पर गुलाबी रंग के धब्‍बे भी दिख सकते हैं। हालांकि, इसमें चिंता करने वाली कोई बात नहीं है। शिशु की दिन में चार बार नैपी बदलना सामान्‍य बात है लेकिन अगर बार-बार डायपर में गुलाबी रंग के धब्‍बे दिख रहे हैं तो पीडियाट्रिशियन से बात कर लें।

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जन्‍म के एक या दो दिन बाद शिशु पहली बार पॉटी करता है। इसका रंग गहरा हरा होता है। मेडिकल भाषा में शिशु की पहली पॉटी को मेकोनियम कहा जाता है और ये इस बात का संकेत होता है कि शिशु का पाचन तंत्र ठीक तरह से काम कर रहा है। पहली पॉटी में मुख्‍यत: एमनीओटिक फ्लूइड और वो सब होता है जो उसने गर्भस्‍थ अवधि के दौरान खाया हो। जन्‍म के बाद शुरुआती दिनों में शिशु की पॉटी में यही सब निकलता है।

अगर आप स्‍तनपान करवा रही हैं तो दिन में कम से कम 6 बार नैपी बदलने के लिए तैयार हो जाइए। वहीं फॉर्म्‍यूला मिल्‍क पिलाने पर दिन में 10 बार नैपी बदलने की जरूरत पड़ सकती है क्‍योंकि स्‍तनपान करने वाले बच्‍चों की तुलना में फॉर्म्‍यूला मिल्‍क लेने वाले बच्‍चे ज्‍यादा फ्लूइड लेते हैं।

(और पढ़ें - स्तनपान या बोतल से दूध पिलाना: क्या है ज्यादा बेहतर?)

हर शिशु का पाचन तंत्र अलग तरह से कार्य करता है। कुछ बच्‍चों को हर बार दूध पीने के बाद पॉटी आती है तो कुछ बच्‍चों को हर तीन से चार घंटे के बाद।

ब्रेस्‍ट मिल्‍क को पचाना आसान होता है और ये शिशु के पाचन तंत्र में कोई ठोस अपशिष्‍ट पदार्थ भी नहीं छोड़ता है। इसलिए स्‍तनपान करने वाले शिशु तीन से 6 सप्‍ताह के होने तक दिन में सिर्फ एक बार पॉटी करते हैं। आपको ये समझना चाहिए कि अलग-अलग समय या मल कम आना कब्‍ज का संकेत नहीं है। अगर मल मुलायम आ रहा है या सख्‍त नहीं है तो आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है। अगर नवजात शिशु नॉर्मल है, समय के साथ उसका वजन बढ़ रहा है और वो सामान्‍य रूप से स्‍तनपान कर रहा है तो इसका मतलब है कि शिशु स्‍वस्‍थ है।

वहीं दूसरी ओर, फॉर्म्‍यूला मिल्‍क लेने वाले शिशुओं को दिन में कम‍ से कम एक बार पॉटी आनी चाहिए। चूंकि, फॉर्म्‍यूला मिल्‍क को पचाना थोड़ा मुश्किल होता है इसलिए इन बच्‍चों में कब्‍ज की शिकायत हो सकती है।

(और पढ़ें - नवजात शिशु में कब्ज के कारण)

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मां के पहले दूध को कोलोस्ट्रम कहते हैं जो कि शिशु के पाचन तंत्र को सक्रिय कर मेकोनियम को शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है। मां के स्‍तनों में प्रसव के बाद दो से चार दिनों के अंदर ही दूध बनने लगता है। इसकी शुरुआत होने के साथ ही शिशु की पॉटी का रंग-रूप भी बदलने लगता है। शुरुआत में इसका रंग हल्‍का होता है लेकिन धीरे-धीरे इसका रंग गहरा और पीला होने लगता है। पहले पतला मल आता है जिसमें से हल्‍की गंध आती है।

हालांकि, फॉर्म्‍यूला मिल्‍क लेने वाले शिशुओं की पॉटी से बदबू आती है और इसका रंग भूरा या पीला होता है। इन बच्‍चों को पतला मल नहीं आता है।

अगर आपके शिशु को सामान्‍य से ज्‍यादा बार पॉटी आ रही है और पतला मल आ रहा है तो ये दस्‍त का लक्षण हो सकता है। निम्‍न लक्षण दिखने पर तुरंत पीडियाट्रिशियन से संपर्क करना चाहिए:

  • पानी की कमी
  • मल में खून आना
  • बार-बार उल्‍टी होना
  • 2 घंटे से ज्‍यादा समय तक लगातार पेट दर्द रहना
  • 24 घंटे के अंदर 10 या इससे ज्‍यादा बार पानी जैसा पतला मल आना
  • 40 डिग्री सेल्सियस से ज्‍यादा बुखार होना

(और पढ़ें - नवजात शिशु को उल्टी होने के कारण)

  • सख्‍त पॉटी आने का मतलब है कि शिशु को कब्‍ज है। ऐसा गाढ़ा फॉर्म्‍यूला मिल्‍क लेने की वजह से हो सकता है।
  • पॉटी में म्‍यूकस आना संक्रमण का संकेत हो सकता है।
  • शिशु की पॉटी में सफेद रंग आना इस बात का संकेत हो सकता है कि शिशु के लिवर में पित्त रस की कमी है, वहीं अगर इसका रंग चॉक की तरह सफद से ग्रे हो तो इसका अर्थ होता है कि शिशु दूध को ठीक तरह से नहीं पचा पा रहा है।

अगर आपको इनमें से कोई भी संकेत दिख रहा है तो पीडियाट्रिशियन को दिखाएं।

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