नवजात शिशु को दस्त में पतला और बलगम युक्त मल आता है। यह आमतौर पर बैक्टीरियल संक्रमण, वायरल संक्रमण और कुछ खाद्य पदार्थों से होने वाली संवेदनशीलता के कारण होता है। अगर शिशु के शरीर में पानी की कमी (निर्जलीकरण) हो जाएं, तो उसके दस्त गंभीर स्थिति में पहुंच सकते हैं। निर्जलीकरण की वजह से दस्त होने पर आपको अपने शिशु को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ती है। लेकिन कुछ सावधानियों को अपनाकर आप अपने शिशु को दस्त और निर्जलीकरण से बचा सकती हैं।

इस लेख में आपको एक साल से कम आयु के शिशुओं को होने वाले दस्त के बारे में विस्तार से बताया गया है। साथ ही आप इस लेख में नवजात शिशु में दस्त के लक्षण, नवजात शिशु को दस्त होने के कारण, नवजात शिशु को दस्त में डॉक्टर के पास कब ले जाएं, नवजात शिशु के दस्त का इलाज और नवजात शिशु को दस्त से बचाव कैसे करें, आदि के बारे में भी बताया गया है।

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  1. नवजात शिशु में दस्त के लक्षण - Navjat shishu me dast ke lakshan
  2. नवजात शिशु को दस्त होने के कारण - Navjaat shishu ko dast hone ke karan
  3. नवजात शिशु को दस्त में डॉक्टर के पास कब ले जाएं - Navjat shishu ko dast me doctor ke pass kab le jaye
  4. नवजात शिशु के दस्त का इलाज - Navjat shishu ke dast ka ilaj
  5. नवजात शिशु को दस्त से बचाव - Navjaat shishu ko dast se bachav
नवजात शिशु को दस्त के डॉक्टर

नवजात शिशु में दस्त होने के कई कारण होते हैं। शिशु में होने वाले दस्त के कुछ लक्षणों को नीचे विस्तार से बताया जा रहा हैं।

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कई चीजें आपके नवजात शिशु के दस्त का कारण बन सकती हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं:-

  • दवाओं से संवेदनशीलता और खाने की चीजों से एलर्जी के कारण भी शिशुओं को दस्त की समस्या होती है। (और पढ़ें - एलर्जी के घरेलू उपाय)
  • अगर शिशु किसी भी प्रकार की विषाक्तता का शिकार हो जाता है। (और पढ़ें - फूड पाइजनिंग के घरेलू उपाय)
  • वायरस, बैक्टीरिया या परजीवी के संक्रमण की वजह से शिशु को दस्त होना बेहद आम बात है। जब आपका शिशु दूषित भोजन, पानी और रोगाणु युक्त जमीन या जगह को छूकर अपना हाथ मुंह में डालता है, तो ऐसा करने से दस्त फैलाने वाले रोगाणुओं से संक्रमित हो जाता है।
  • शिशु को अधिक जूस देना।

दस्त का शिशु पर क्या प्रभाव पड़ता है?

दस्त होने पर शिशु के शरीर से अधिक मात्रा पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स नामक खनिज निकल जाते हैं। इसकी वजह से बच्चे को निर्जलीकरण की समस्या होती है। दस्त के एक या दो दिन के अंदर ही शिशु में पानी की कमी (निर्जलीकरण) होने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। नवजात शिशु के शरीर में पानी की कमी होना घातक हो सकता है।

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अगर आपका शिशु चार से कम आयु का हो तो दस्त होने पर उसको तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं। आपका शिशु चार माह से अधिक आयु का हो, तो  दस्त होने पर आपको करीब एक दिन इंतजार करना चाहिए। इसके बाद भी दस्त ठीक न हो, तब आप उसे डॉक्टर के पास दिखाने के लिए जाएं। शिशु को दस्त होने की स्थिति निम्न लक्षण दिखाई देने पर आपको तुरंत डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए।

  • कुछ घंटों में 3 से 4 बार दस्त होना।
  • निर्जलीकरण के लक्षण, जैसे मुंह सूख जाना, शिशु के रोने पर आंसू न आना, आंखें धंसी हुई लगना, 6 घंटे तक पेशाब न करना और सिर पर मुलायम स्पॉट होना आदि होने पर डॉक्टर को दिखाएं। (और पढ़ें - बच्चे में निर्जलीकरण)
  • यदि शिशु को बार-बार उल्टी हो रही हो।
  • मल में खून आ रहा हो। (और पढ़ें - दस्त रोकने के उपाय)
  • शिशु का पेट फूल रहा हो।
  • 24 घंटे से अधिक समय तक बुखार हो तो डॉक्टर को अवश्य दिखाएँ।
  • शिशु दूध, पानी या किसी अन्य तरल पदार्थ पीने से इंकार करने लगे।
  • हाथों और पैरों का रंग फिका पड़ जाना।

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डॉक्टर आमतौर पर शिशुओं को दस्त को ठीक करने वाली दवाएं लेने की सलाह नहीं देते हैं। लेकिन जीवाणु संक्रमण होने पर डॉक्टर एंटीबायोटिक और परजीवी संक्रमण में परजीवी से लड़ने वाली दवाएं लेने की सलाह दे सकते हैं। 

इसके अलावा डॉक्टर आपके शिशु को ओआरएस घोल देने की भी सलाह देते हैं। दस्त को ठीक करने वाला ओआरएस आपको किसी भी मेडिकल स्टोर से आसानी से मिल जाता है। अगर आपने अपने शिशु को खाना देना शुरु कर दिया है, तो डॉक्टर केले का घोल आदि को दस्त रोकने के लिए देने की सलाह देते हैं।

साथ ही शिशु को स्तनपान कराने वाली महिलाओं को भी अपने आहार पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है, उनको ऐसा कोई भी आहार नहीं लेना चाहिए जिससे शिशु के दस्त में बढ़ोतरी होने लगे। शिशु के दस्त के दौरान मां को निम्न तरह के खाद्य पदार्थों का नहीं खाना चाहिए:

  • ज्यादा फाइबर युक्त आहार से नुकसान हो सकता है
  • कुछ भी मीठा नहीं लेना चाहिए
  • तला हुआ खाना न दें
  • डेयरी उत्पाद जैसे दूध और चीज न दें

गंभीर रूप से दस्त से ग्रस्त शिशु, जिनमें पानी की कमी हो जाती है उनको अस्पताल ले जाने की आवश्यकता पड़ती है, जहां पर उनको इंट्रावेनस (नसों में) से तरल पदार्थ चढ़ाया जाता है।

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शिशु में संक्रमण के सभी प्रकारों को रोकने के लिए स्वच्छता पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए। शिशु की देखभाल में स्वच्छता को अपनाकर, शिशु को दस्त के जोखिम से काफी हद तक बचाया जा सकता है।

शिशुओं में दस्त रोकने के लिए सबसे जरूरी होता है कि खान-पान सम्बन्धी सांधनियां बरती जाएं। अगर आप निम्न बातों का ध्यान रखेंगे, तो शिशु को दस्त से बचाने में मदद मिलेगी:  

  • रसोई के सभी सामानों को साफ रखें और भोजन को स्वच्छता से बनाएं।
  • उबला या फिल्टर्ड पानी ही दें। 
  • सब्जियों व फलों को खाने से पहले अच्छी तरह से धोएं।
  • खाने को अच्छी तरह से पकाएं। 

स्वछता या हाइजीन सम्बन्धी सावधानियां बरतना भी जरूरी होता है:

  • शिशु को बार-बार दस्त होने पर उसे बाहर खेलने व आदि जगहों पर न लेकर जाएं।
  • दस्त बंद होने के 1-2 दिन बाद तक शिशु को बाहर न लेकर जाएं। (और पढ़ें - नवजात शिशु की तेल मालिश कैसे करें)
  • शिशु के हाथों को ऐसे वाइप्स से साफ करें जो अल्कोहल युक्त न हो। ऐसा खासकर तब करें जब आपका शिशु घुटनों के बल इधर-उधर घूमता हो।  
  • रोगाणु हाथों से मुंह तक पहुंचकर, शिशु को संक्रमित करते हैं। इनसे बचाव के लिए आपको शिशु को संभालने से पहले एंटीबैक्टीरियल साबुन से अपने हाथों को धोना चाहिए। (और पढ़ें - नवजात शिशु की खांसी के घरेलू उपाय)
  • बाथरूम में रोगाणु उत्पन्न न हो इसलिए उसको अच्छी तरह से साफ रखें।  

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