ऐसा माना जाता है कि ब्लड प्रेशर या हाइपरटेंशन की समस्या सिर्फ वयस्कों और वृद्धों को ही प्रभावित करती है। यह बात पहले की पीढ़ी के लिए सही साबित होती थी। दुर्भाग्यवश, वर्तमान समय में हाई ब्लड प्रेशर सभी उम्र के लोगों को प्रभावित कर रहा है जिनमें बच्चे भी शामिल हैं। 

पिछले 13 सालों में वैश्विक स्तर पर बच्चों और किशोरों में हाइपरटेंशन के मामलो में 27 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। इससे पता चलता है कि यह बीमारी तेजी से बच्चों में बढ़ रही है। उच्च रक्तचाप को सफलतापूर्वक नियंत्रित करने के लिए इसके कारणों, प्रभावों और इलाज को ठीक तरह से समझने की आवश्यकता है।

हालांकि, ज्‍यादातर लोग बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर के बढ़ते मामलों को देखकर हैरान होंगे लेकिन यह एक कड़वा सच है। हाइपरटेंशन से ग्रस्त बच्चों में,रक्‍तप्रवाह का दबाव बहुत बढ़ जाता है। इसकी वजह से रक्त वाहिकाओं, हृदय व शरीर के अन्य अंगों को नुकसान पहुंचता है। 

वयस्क लोगों को नियमित रूप से अपने स्वास्थ्य की जांच करवाते रहने की सलाह दी जाती है, ताकि शरीर में किसी प्रकार के बदलाव का बिना देरी किए पता लगाया जा सके। वहीं दूसरी ओर बच्चों में बीमारी का पता लगाना थोड़ा मुश्किल होता है। बाल चिकित्‍सक (बच्चों के डॉक्टर) विभिन्न कारकों के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार करते हैं, जो लिंग, लम्बाई और ब्लडप्रेशर की रीडिंग पर आधारित होती है। इससे ये पता चलता है कि बच्चों को हाई ब्लडप्रेशर है या नहीं।

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यह बच्चों को कैसे प्रभावित करता है?

छोटे बच्चों में उच्च रक्तचाप अक्सर स्वास्थ्य संबंधी अन्य स्थितियों से भी जुड़ा हो सकता है जैसे कि हृदय संबंधी कोई विकृति, जन्मजात समस्याएं, गुर्दे के रोग या हार्मोन संबंधी विकार आदि। बड़े बच्चों में हाई ब्‍लडप्रेशर का कारण शरीर का वजन बढ़ना या मोटापा हो सकता है। इन स्थितियों के आधार पर हाइपरटेंशन को दो भागों  में बांटा जा सकता है: 

प्राइमरी हाइपरटेंशन

प्राइमरी हाइपरटेंशन का मतलब हाई ब्‍लडप्रेशर से है जिसका संबंध किसी अन्‍य स्वास्थ्य समस्‍या से नहीं होता है। इस प्रकार का हाइपरटेंशन ज़्यादातर 6 साल और उससे अधिक उम्र के बच्चों में होता है। इसके प्रमुख जोखिम कारक निम्‍न हैं: 

  • अधिक वजन या मोटापा 
  • परिवार के किसी सदस्य को हाई ब्‍लड प्रेशर की शिकायत होना
  • हाई कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड
  • टाइप 2 डायबिटीज या एफबीएस (फास्टिंग ब्लड शुगर) का उच्च स्तर

सेकेंड्री हाइपरटेंशन 

यह आमतौर पर छोटे बच्चों में होता है और इसकी वजह से निम्‍न स्वास्थ्य समस्‍याएं हो सकती हैं:

  • गुर्दे संबंधी कोई दीर्घकालिक रोग 
  • पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज
  • हृदय सम्बन्धी समस्याएं (एओर्टा में संकुचन) 
  • एड्रिनल ग्रंथि सम्बन्धी विकार
  • हाइपरथायराइडिज्म
  • फियोक्रोमोसाइटोमा (एड्रेनल ग्रंथि में ट्यूमर)
  • रीनल आर्टरी स्टेनोसिस (किडनी तक खून पहुंचाने वाली धमनियों में संकुचन)
  • नींद सम्बन्धी विकार (ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया)
  • दवाएं (जैसे सर्दी-खांसी की दवाएं, गर्भनिरोधक गोलियां, स्टेरॉइड्स आदि)

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हाइपरटेंशन और मोटापे के बीच क्या संबंध है?

वैसे तो बच्चों में सेकेंड्री हाइपरटेंशन आम है लेकिन अब प्राइमरी हाइपटेंशन का खतरा तेजी से बढ़ रहा है और यहां पर इसका संबंध मोटापे से भी है जो कि बहुत खतरनाक है। बच्चों में प्राइमरी हाइपरटेंशन के प्रमुख जोखिम कारकों में मोटापा या हाई ब्‍लड प्रेशर की फैमिली हिस्‍ट्री (परिवार में किसी सदस्‍य का हाई बीपी से ग्रस्त होना) होना है। इन दो कारकों में से मोटापे को ही हाई ब्लड प्रेशर का सबसे प्रमुख जोखिम कारक माना जाता है। लेकिन इससे बच्चों में ना सिर्फ हाई बीपी का खतरा बढ़ता है बल्कि इसकी वजह से बच्‍चों में हृदय रोग और डायबिटीज जैसे अन्‍य स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं की संभावना भी बढ़ जाती है।

बच्‍चों में मोटापे के एक नहीं बल्कि कई कारण हैं जैसे कि अधिक खाना (खासतौर पर जंक फूड), मीठे पेय पदार्थ पीना और शारीरिक रूप से कम सक्रिय रहना। माता-पिता इस बात का ध्यान रखें कि उनका बच्चा क्या खा रहा है एवं बच्‍चों को ऐसे स्‍नैक्‍स मीठे ड्रिंक्‍स ना दें जो सेहत के लिए हानिकारक होते हैं।

कई बच्चे शारीरिक गतिविधियों में हिस्सा नहीं लेते हैं और इसकी बजाय वो दिन का ज्यादातर समय टीवी देखने या वीडियो गेम खेलने में ही निकाल देते हैं। ये जीवनशैली संबंधी मुख्य दो बाधाएं हैं, जिनसे बच्चों और माता-पिता को दूर रहना चाहिए ताकि हाइपरटेंशन के जोखिम को कम किया जा सके। 

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बच्‍चों में हाई ब्‍लडप्रेशर का इलाज कैसे करें?

प्राइमरी उच्च रक्तचाप या हाई ब्लड प्रेशर का इलाज बच्चों और वयस्कों में ज्यादा अलग नहीं होता है। माता-पिता को डॉक्‍टर के साथ मिलकर बारीकी से ये पता लगाना चाहिए उनके बच्‍चे के लिए कौन-सा इलाज सबसे बेहतर रहेगा। 

सेकेंड्री हाइपरटेंशन के मामलों में हाई ब्लड प्रेशर को कम करने के लिए इसके अंदरुनी कारण का पता लगाना और उनका इलाज करना बहुत जरूरी होता है। 

प्राइमरी हाइपरटेंशन के इलाज के दौरान निम्न दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए:

  • आहार में डैश डाइट शामिल करें:
    इसमें ट्रांस फैट वाले खाद्य पदार्थों को कम खाना और ताजी सब्जियों, फलों और साबुत अनाज का अधिक सेवन करना शामिल है। डैश डाइट (DASH; Dietary Approaches to Stop Hyperension) में कम मात्रा में नमक का सेवन करने की सलाी दी जाती है, इससे बच्चों में ब्लड प्रेशर को कम करन में मदद मिलती है। डैश डाइट परिवार के सभी सदस्यों को दें ताकि सभी को स्वस्थ भोजन का लाभ मिले और बच्चे भी बड़ों को देखकर यह भोजन खाने के लिए प्रेरित हो।
     
  • बच्चे के वजन का ध्यान रखें:
    चूंकि, मोटापा भी हाई ब्लड प्रेशर के जोखिम को बढ़ा देता है, इसलिए यह जरूरी है कि बच्‍चे का वजन घटाने के लिए आप डॉक्टर की मदद लें। डैश डाइट और नियमित एक्सरसाइज से वजन कम करने में मदद मिलती है।
     
  • शारीरिक रूप से सक्रिय रहें:
    यदि बच्चे अधिकतर समय टीवी या वीडियो गेम खेलते हैं तो माता पिता को उनकी इस आदत छुड़ा देनी चाहिए। उन्हें बच्चे को किसी खेल में भाग लेने के प्रेरित करना चाहिए या फिर रोजाना पैदल सैर करने की आदत डालनी चाहिए, ताकि बच्चे शारीरिक रूप से सक्रिय रहें। आप खुद भी ज्‍यादा से ज्‍यादा शारीरिक रूप से सक्रिय रहें ताकि बच्चे आपको देखकर ही सीख जाएं।
     
  • बाल चिकित्‍सक से सलाह:
    बच्चों के डॉक्टर की मदद से माता-पिता अपने बच्चे की समस्या को पूरी तरह से समझ सकते हैं। साथ ही पूर्ण स्वास्थ्य योजना तैयार करते हैं, जो हाई ब्लड प्रेशर को कम करने में मदद करती है। हाई बीपी को नियंत्रित करने में डॉक्‍टर द्वारा नियमित जांच करवाते रहने की भी सलाह दी जाती है।

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