9 महीने की प्रेगनेंसी के दौरान की जाने वाली प्लानिंग, इंतजार और घबराहट के बाद आखिरकार आपके जिगर का टुकड़ा आपका शिशु आपके पास है और परिवार का हिस्सा बन चुका है। लेकिन जब तक शिशु मां के गर्भ में होता है मुश्किलें और चुनौतियां उतनी नहीं होती जितनी उसके जन्म के बाद शुरू होती हैं। नवजात शिशु बोल नहीं सकता इसलिए उसकी जरूरतों को समझना, उसे दूध पिलाना और सबसे जरूरी है नवजात शिशु की नींद। अपने नवजात शिशु की नींद की जरूरत को समझना बेहद जरूरी है क्योंकि असरदार स्लीप रूटीन शिशु और पैरंट्स दोनों के लिए जरूरी है ताकि वे अपने शरीर की खोई हुई ऊर्जा को फिर से हासिल कर पाएं।

(और पढ़ें: जन्म के बाद पहले दिन (24 घंटे) नवजात शिशु को कितना सोना चाहिए)

नवजात शिशुओं के लिए कितनी नींद जरूरी है? इस सवाल का जवाब इस बात में छिपा है कि सभी बच्चे एक जैसे नहीं होते और वे एक दूसरे से अलग होते हैं। बावजूद इसके अगर आपका शिशु आमतौर पर खुश है, ऐक्टिव है तो इसका मतलब है कि उसकी नींद पूरी हो रही है। लेकिन अगर आपका शिशु, पेट भरा होने और डायपर सूखा होने के बाद भी रो रहा है, चिड़चिड़ापन दिखा रहा है, खुश नहीं है, तो यह भी इस बात का संकेत हो सकता है कि आपके शिशु की नींद पूरी नहीं हो रही है। लिहाजा अगर आप शिशु की नींद को लेकर चिंतित हैं तो कम से कम एक सप्ताह तक शिशु की नींद पर नजर रखें और शिशु कितना सो रहा है इसे ट्रैक करें।

नवजात शिशु की अच्छी सेहत के लिए मां के दूध के साथ-साथ उसकी नींद का पूरा होना भी बेहद जरूरी है। ऐसे में जन्म से लेकर 3 महीने तक के शिशुओं को हर दिन कितना सोना चाहिए इस बारे में हम आपको इस आर्टिकल में बता रहे हैं।

(और पढ़ें: 3 महीने के शिशु का विकास और देखभाल से जुड़ी अहम बातें)

  1. 0-3 महीने के नवजात शिशु को नींद की कितनी जरूरत होती है? - 0-3 mahine ke shishu ki neend ki zarurat
  2. नवजात शिशु को कैसे सुलाएं? - navjat shishu ko kaise sulaye?
  3. बच्चे की नींद से जुड़े इन संकेतों को नजरअंदाज न करें - neend se jure in signs par dhyan de
  4. जन्म से 3 महीने तक के बच्चे को सुलाने के टिप्स - 3 mahine tak ke shishu ko sulane ke tips
  5. सारांश
नवजात की नींद: जन्म से 3 महीने का शिशु कितना सोता है के डॉक्टर

शिशु की नींद की जरूरत उसकी उम्र पर निर्भर करती है। नवजात शिशु वैसे तो ज्यादातर समय सोता रहता है, बावजूद इसके वह एक बार में बहुत ज्यादा देर के लिए नहीं सोता बल्कि थोड़े-थोड़े देर के लिए सोता है। जैसे-जैसे शिशु बड़ा होता जाता है उसकी नींद की कुल मात्रा कम होती जाती है। लेकिन रात के समय की नींद बढ़ती जाती है। आमतौर पर नवजात शिशु दिन के समय 8 से 9 घंटे सोता है और रात में करीब 8 घंटे। लेकिन शिशु एक बार में 1 से 2 घंटे से ज्यादा नहीं सोता है। 

आमतौर पर जब तक शिशु 3 महीने का या फिर वजन के हिसाब से 5 से 6 किलो का नहीं हो जाता तब तक वह बीच रात में एक बार भी उठे बिना अपनी पूरी नींद यानी करीब 6 से 8 घंटे की नींद नहीं ले पाता है। करीब दो तिहाई बच्चे ऐसे हैं जो 6 महीने का होते-होते नियमित रूप से रात में पूरी नींद लेना शुरू कर देते हैं। बच्चों की स्लीप साइकल वयस्कों से अलग होती है और शिशुओं की स्लीप साइकल बेहद छोटी भी होती है।

(और पढ़ें: जन्म के बाद पहले 24 घंटे में कैसे सांस लेता है नवजात शिशु)

जन्म के बाद शुरुआती कुछ हफ्तों में नवजात शिशु दिन और रात के समय ज्यादातर वक्त सोते रहते हैं और रात के समय भी दूध पीने के लिए शिशु 3 से 4 बार जगता है। चूंकि शिशुओं की स्लीप साइकल वयस्कों से छोटी होती है इसलिए वे करीब 40 मिनट की नींद लेने के बाद जग जाते हैं। करीब 3 महीने का होते-होते शिशु दिन के समय देर तक जगना और रात के समय देर तक सोना (करीब 4-5 घंटे की नींद) सीखने लगता है। 3 महीने का शिशु भी रात में 1 से 2 बार दूध पीने के लिए जगता है। 

अमेरिका के नैशनल स्लीप फाउंडेशन की मानें तो जन्म से लेकर 3 महीने तक के नवजात शिशु को 24 घंटे में से कम से कम 14 से 17 घंटे की नींद जरूर लेनी चाहिए। इनमें से बहुत से शिशु दिन के समय 2 से 3 बार नींद की छोटी-छोटी झपकी लेते हैं जबकी रात के समय बीच-बीच में दूध पीने के लिए उठने के बावजूद रात में देर तक सोते हैं।

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अमेरिकन अकैडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (एएपी) का सुझाव है कि पैरंट्स को अपने नवजात शिशु के साथ रूम तो शेयर करना चाहिए लेकिन जब तक शिशु 6 महीने या 1 साल का नहीं हो जाता तब तक उसके साथ बेड शेयर नहीं करना चाहिए। रूम शेयरिंग का मतलब है कि आप अपने शिशु के पालने या बिस्तर को किसी अलग रूम या नर्सरी में रखने की बजाए अपने ही रूम में रख रहे हैं ताकि बीच रात में उठकर बच्चे को दूध पिलाना, नींद से जगने पर चुप कराना और रात में सोते वक्त शिशु पर नजर रखना आसान हो।

रूम-शेयरिंग तो सेफ है लेकिन नवजात शिशु को अपने साथ अपने ही बिस्तर में सुलाना सेफ नहीं माना जाता क्योंकि बेड शेयरिंग से आकस्मिक नवजात मृत्यु सिंड्रोम (sids) और नींद से जुड़ी कई दूसरी समस्याओं का खतरा भी काफी बढ़ जाता है।

आपका शिशु हर रात बिना किसी तकलीफ के आराम से सो सके और उसकी नींद पूरी हो इसके लिए शिशु के नींद से जुड़े वातावरण को सुरक्षित बनाना जरूरी है। इन सुझावों को अपनाएं:

  • नवजात शिशु को हमेशा उसके पीठ के बल सीधा सुलाएं। कभी भी शिशु को उसके पेट के बल या करवट लेकर न सुलाएं। अमेरिकन अडैकमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (एएपी) ने साल 1992 में जब से यह सुझाव दिया है उसके बाद से आकस्मिक नवजात मृत्यु सिंड्रोम की दर में काफी कमी आयी है।
  • शिशु को आप जिस बिस्तर पर सुला रही हों वह ठोस और मजबूत होना चाहिए। गद्दे के ऊपर चादर बिछाएं जो अच्छे से फिट हो जाए। ध्यान रखें कि आप जिस झूले या पालने का इस्तेमाल कर रही हों वह सेफ्टी के लिहाज से सुरक्षित हो।
  • शिशु जहां सो रहा हो वहां पर किसी भी तरह का खिलौना, तकिया, कंबल, शादर, कंफर्टर, ये सारी चीजें न रखें।
  • शिशु को रूम के तापमान के हिसाब से कपड़े पहनाएं और बहुत ज्यादा लपेटकर न सुलाएं। साथ ही कमरे को हल्का गर्म रखें बहुत ज्यादा ओवरहीटिंग न करें कि पसीना निकलने लगे।
  • शिशु को धूम्रपान करने वाले लोगों से भी पूरी तरह से दूर रखें।
  • आप चाहें तो शिशु को सुलाने के लिए उसे पैसिफायर यानी चुसनी भी दे सकती हैं। लेकिन अगर शिशु चुसनी को मुंह से बाहर निकाल दे रहा हो तो जबरन उसे चुसनी न दें। अगर नींद में चुसनी बच्चे के मुंह से बाहर आ जाती है तो उसे फिर से मुंह में लगाने की जरूरत नहीं।
  • किसी भी तरह की तार, रिबन या रस्सी या फिर तेज धार वाली चीजें शिशु के पहुंच के हिस्से में बिलुकल न रखें।

(और पढ़ें: जानिए बच्चों को साथ सुलाने के फायदे)

जैसे-जैसे आप अपने शिशु को समझती जाएंगी आपको पता चल जाएगा कि कब शिशु को नींद आ रही है और आपको उसे सुलाने के लिए बिस्तर में डाल देना चाहिए। इससे पहले कि शिशु बोलना सीखे और खुद से बता पाए, थक जाने और नींद आने पर शिशु कई संकेत देना शुरू कर देते हैं। ज्यादातर शिशुओं में नींद से जुड़े निम्नलिखित संकेत दिखते हैं:

  • उबासी आना या जम्हाई लेना
  • झक्की लेना
  • बिलकुल शांत हो जाना, खेलने में दिलचस्पी न दिखाना
  • कुनमुनाना, झुंझलाहट दिखाना
  • आंखों को मसलना
  • रोने लगना
  • मुट्ठी को कसकर बंद कर लेना
  • हाथ और पैर पटकना शुरू कर देना आदि

(और पढ़ें: बच्चों को रात में कहानी सुनाने के फायदे)

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अपने सोने और जगने के पैटर्न को शिशु खुद नहीं बना सकता। आपको जानकर हैरानी होगी कि ज्यादातर बच्चों को पता नहीं होता कि उन्हें खुद से कैसे सोना है या कैसे नींद लेनी है। साथ ही बहुत से शिशु ऐसे भी होते हैं जिनकी एक बार रात में नींद खुल गई तो वे खुद से दोबारा सो नहीं पाते। लिहाजा शिशु के लिए नींद की एक रूटीन बनाना बेहतर रहता है।

बेहद जरूरी है कि आप जन्म के बाद से ही शिशु को अपनी बांहों में या गोदी में न सुलाएं। ऐसा करने से उन्हें इसी की आदत हो जाएगी और फिर वे बिस्तर में सोना नहीं चाहेंगे। जिन बच्चों और शिशुओं को सुरक्षित महसूस होता वे आराम से सो पाते हैं इसलिए दिन के समय जहां तक संभव हो शिशु को गले लगाएं, प्यार करें, उनके साथ खेलें ताकि उन्हें महसूस हो कि वे पूरी तरह से सुरक्षित हैं। नवजात शिशुओं को सुलाने के टिप्स- 

  • शिशु की उम्र के हिसाब से उसे दिन में भी कुछ देर जरूर सोने दें।
  • रात में सोने के समय से ठीक पहले किसी भी तरह का खेल या ऐक्टिविटी न करें।
  • सोने से पहले की एक रूटीन बनाएं जैसे- गुनगुने पानी से शिशु को नहलाना, उन्हें कहानियां सुनाना, किताबें पढ़ना या हल्के से हिलाना-डुलाना आदि।
  • जब शिशु को हल्दी नींद आने लगे तो सॉफ्ट म्यूजिक बजाना।
  • अगर शिशु बीच रात में उठे तो उसे उसके बिस्तर से न उठाएं, वहीं पर लिटाए रखें और प्यार से शांत करने और दोबारा सुलाने की कोशिश करें।

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जन्म से 3 महीने तक का शिशु दिन में अधिकांश समय सोता है, क्योंकि यह उसकी विकास प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। इस उम्र में शिशु प्रतिदिन 14 से 17 घंटे तक सो सकता है, जो दिन और रात में कई नींद के चक्रों में विभाजित होता है। नवजात शिशु आमतौर पर हर 2-4 घंटे में जागता है, खासकर दूध पीने के लिए। जैसे-जैसे शिशु बढ़ता है, उसके सोने का पैटर्न थोड़ा स्थिर होने लगता है, और वह रात में थोड़े लंबे समय तक सोने लगता है। हालांकि हर शिशु का सोने का पैटर्न अलग होता है, और उनके संकेतों पर ध्यान देना ज़रूरी है।

Dr. Pritesh Mogal

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