जिन बच्चों में हाई ब्लड कोलेस्ट्रॉल और हाई ट्राइग्लिसराइड्स की समस्या होती है उन्हें जीवनभर चिकित्सीय देखभाल और जीवनशैली प्रबंधन की आवश्यकता होती है, क्योंकि इन बच्चों को जीवन के बाद के सालों में कई तरह के हृदय रोग जैसे- कोरोनरी धमनी रोग होने का खतरा काफी अधिक होता है। यहां पर सबसे बड़ी समस्या डिस्लिपिडेमिया- यानी वसा का असामान्य स्तर और वसा जैसे पदार्थ जैसे खून में कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स- की है जो अक्सर बच्चों में डायग्नोज नहीं हो पाता या फिर उस पर समुचित रूप से ध्यान नहीं दिया जाता है।
इसका मुख्य कारण लोगों के बीच जागरूकता की कमी है कि कोलेस्ट्रॉल की समस्या किसी भी उम्र में शुरू हो सकती है। समस्या का एक और हिस्सा यह है कि उच्च कोलेस्ट्रॉल की समस्या में कोई खास तरह का लक्षण नजर नहीं आता तब तक जब तक कि कोलेस्ट्रॉल काफी अडवांस स्टेज में न पहुंच जाए और इसकी पहचान करने का एकमात्र तरीका है कि ब्लड टेस्ट के जरिए इसका पता लगाया जाए। वास्तव में, कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि जन्म के समय सभी बच्चों का कोलेस्ट्रॉल टेस्ट करना एक अच्छा विचार है। अन्य लोगों का मानना है कि जब बच्चा 1 साल का हो जाए उसके बाद ब्लड कोलेस्ट्रॉल की जांच करना भविष्य में हृदय रोग और पारिवारिक हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया के लिए एक बेहतर भविष्य सूचक हो सकता है।
मौजूदा समय की बात करें तो फिलहाल कुछ देशों के दिशा निर्देश कहते हैं कि जिन बच्चों के माता-पिता को हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या नहीं है उनकी 9 से 11 साल की उम्र के बीच में 1 बार और फिर 17 से 21 साल के बीच में 1 बार जांच की जानी चाहिए। जिन लोगों के माता-पिता में डिस्लिपिडेमिया या हृदय रोग के अन्य जोखिम कारक मौजूद हैं, उनका पहला लिपिड प्रोफाइल टेस्ट 2 से 8 वर्ष की आयु के बीच होना चाहिए।
बच्चों में उच्च कोलेस्ट्रॉल खून के प्रति डेसिलीटर 200 मिलीग्राम और खराब कोलेस्ट्रॉल या कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (एलडीएल) के 130 मिलीग्राम प्रति डेसिलीटर से अधिक है। गुड कोलेस्ट्रॉल या उच्च घनत्व वाला लिपोप्रोटीन (एचडीएल) 45 मिलीग्राम प्रति डेसिलीटर से कम हो तो इसे चेतावनी के संकेत के रूप में देखा जाना चाहिए। लिपोप्रोटीन, कोलेस्ट्रॉल या लिवर द्वारा प्रोटीन में लिपटे ट्राइग्लिसराइड्स हैं जिन्हें पूरे शरीर में पहुंचाया जाता है। पहले की तुलना में आज के समय में हाई कोलेस्ट्रॉल के लिए बच्चों की जांच करवाना इन 3 कारणों से बेहद महत्वपूर्ण हो गया है:
- बच्चों में उच्च कोलेस्ट्रॉल का जल्दी पता लगाने से डॉक्टरों को बेहतर तरीके से ऐहतियाती या निवारक देखभाल (जो धमनी रोग, हृदय रोग और अन्य समस्याओं की प्रगति को रोकने या सीमित करने में मदद कर सकते हैं) को तैयार करने में मदद मिलती है उन बच्चों के लिए जिन्हें इसकी आवश्यकता हो।
- एक प्रकार की विरासत में मिली कोलेस्ट्रॉल की समस्या- पारिवारिक हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया- बहुत छोटे बच्चों को प्रभावित कर सकती है।
- इसके अतिरिक्त, जैसे-जैसे आहार और जीवनशैली बदलती है, दुनिया भर में बच्चों में मोटापे और डायबिटीज की घटनाएं बढ़ रही हैं। चूंकि मोटापा और डायबिटीज हाई ब्लड कोलेस्ट्रॉल और उच्च ट्राइग्लिसराइड्स का जोखिम कारक है, इसलिए पीडियाट्रिक कोलेस्ट्रॉल की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। (और पढ़ें- कोलेस्ट्रॉल बढ़ने पर क्या खाएं और क्या न खाएं)
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बच्चों में कोलेस्ट्रॉल के प्रबंधन में आहार और व्यायाम के संदर्भ में जीवनशैली में बदलाव शामिल है। आमतौर पर, 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को दवाइयां देने से परहेज किया जाता है, लेकिन डॉक्टर इस मामले में अलग-अलग केस के आधार पर अपना फैसला लेते हैं। बच्चों में कोलेस्ट्रॉल की समस्या क्या है, इसके लक्षण क्या हैं, कारण क्या हो सकते हैं, बच्चों में हाई कोलेस्ट्रॉल के जोखिम कारक क्या हैं, इसे डायग्नोज कैसे किया जाता है, बच्चों में हाई कोलेस्ट्रॉल का इलाज कैसे होता है और क्या-क्या जटिलताएं हो सकती हैं, इसके बारे में हम आपको इस आर्टिकल में बता रहे हैं।