जिन बच्चों में हाई ब्लड कोलेस्ट्रॉल और हाई ट्राइग्लिसराइड्स की समस्या होती है उन्हें जीवनभर चिकित्सीय देखभाल और जीवनशैली प्रबंधन की आवश्यकता होती है, क्योंकि इन बच्चों को जीवन के बाद के सालों में कई तरह के हृदय रोग जैसे- कोरोनरी धमनी रोग होने का खतरा काफी अधिक होता है। यहां पर सबसे बड़ी समस्या डिस्लिपिडेमिया- यानी वसा का असामान्य स्तर और वसा जैसे पदार्थ जैसे खून में कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स- की है जो अक्सर बच्चों में डायग्नोज नहीं हो पाता या फिर उस पर समुचित रूप से ध्यान नहीं दिया जाता है।

इसका मुख्य कारण लोगों के बीच जागरूकता की कमी है कि कोलेस्ट्रॉल की समस्या किसी भी उम्र में शुरू हो सकती है। समस्या का एक और हिस्सा यह है कि उच्च कोलेस्ट्रॉल की समस्या में कोई खास तरह का लक्षण नजर नहीं आता तब तक जब तक कि कोलेस्ट्रॉल काफी अडवांस स्टेज में न पहुंच जाए और इसकी पहचान करने का एकमात्र तरीका है कि ब्लड टेस्ट के जरिए इसका पता लगाया जाए। वास्तव में, कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि जन्म के समय सभी बच्चों का कोलेस्ट्रॉल टेस्ट करना एक अच्छा विचार है। अन्य लोगों का मानना है कि जब बच्चा 1 साल का हो जाए उसके बाद ब्लड कोलेस्ट्रॉल की जांच करना भविष्य में हृदय रोग और पारिवारिक हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया के लिए एक बेहतर भविष्य सूचक हो सकता है।

मौजूदा समय की बात करें तो फिलहाल कुछ देशों के दिशा निर्देश कहते हैं कि जिन बच्चों के माता-पिता को हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या नहीं है उनकी 9 से 11 साल की उम्र के बीच में 1 बार और फिर 17 से 21 साल के बीच में 1 बार जांच की जानी चाहिए। जिन लोगों के माता-पिता में डिस्लिपिडेमिया या हृदय रोग के अन्य जोखिम कारक मौजूद हैं, उनका पहला लिपिड प्रोफाइल टेस्ट 2 से 8 वर्ष की आयु के बीच होना चाहिए।

बच्चों में उच्च कोलेस्ट्रॉल खून के प्रति डेसिलीटर 200 मिलीग्राम और खराब कोलेस्ट्रॉल या कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (एलडीएल) के 130 मिलीग्राम प्रति डेसिलीटर से अधिक है। गुड कोलेस्ट्रॉल या उच्च घनत्व वाला लिपोप्रोटीन (एचडीएल) 45 मिलीग्राम प्रति डेसिलीटर से कम हो तो इसे चेतावनी के संकेत के रूप में देखा जाना चाहिए। लिपोप्रोटीन, कोलेस्ट्रॉल या लिवर द्वारा प्रोटीन में लिपटे ट्राइग्लिसराइड्स हैं जिन्हें पूरे शरीर में पहुंचाया जाता है। पहले की तुलना में आज के समय में हाई कोलेस्ट्रॉल के लिए बच्चों की जांच करवाना इन 3 कारणों से बेहद महत्वपूर्ण हो गया है:

  • बच्चों में उच्च कोलेस्ट्रॉल का जल्दी पता लगाने से डॉक्टरों को बेहतर तरीके से ऐहतियाती या निवारक देखभाल (जो धमनी रोग, हृदय रोग और अन्य समस्याओं की प्रगति को रोकने या सीमित करने में मदद कर सकते हैं) को तैयार करने में मदद मिलती है उन बच्चों के लिए जिन्हें इसकी आवश्यकता हो।
  • एक प्रकार की विरासत में मिली कोलेस्ट्रॉल की समस्या- पारिवारिक हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया- बहुत छोटे बच्चों को प्रभावित कर सकती है।
  • इसके अतिरिक्त, जैसे-जैसे आहार और जीवनशैली बदलती है, दुनिया भर में बच्चों में मोटापे और डायबिटीज की घटनाएं बढ़ रही हैं। चूंकि मोटापा और डायबिटीज हाई ब्लड कोलेस्ट्रॉल और उच्च ट्राइग्लिसराइड्स का जोखिम कारक है, इसलिए पीडियाट्रिक कोलेस्ट्रॉल की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। (और पढ़ें- कोलेस्ट्रॉल बढ़ने पर क्या खाएं और क्या न खाएं)

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बच्चों में कोलेस्ट्रॉल के प्रबंधन में आहार और व्यायाम के संदर्भ में जीवनशैली में बदलाव शामिल है। आमतौर पर, 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को दवाइयां देने से परहेज किया जाता है, लेकिन डॉक्टर इस मामले में अलग-अलग केस के आधार पर अपना फैसला लेते हैं। बच्चों में कोलेस्ट्रॉल की समस्या क्या है, इसके लक्षण क्या हैं, कारण क्या हो सकते हैं, बच्चों में हाई कोलेस्ट्रॉल के जोखिम कारक क्या हैं, इसे डायग्नोज कैसे किया जाता है, बच्चों में हाई कोलेस्ट्रॉल का इलाज कैसे होता है और क्या-क्या जटिलताएं हो सकती हैं, इसके बारे में हम आपको इस आर्टिकल में बता रहे हैं।

  1. बच्चों में हाई कोलेस्ट्रॉल क्या है?
  2. बच्चों में हाई कोलेस्ट्रॉल के लक्षण
  3. बच्चों में हाई कोलेस्ट्रॉल का कारण
  4. बच्चों में हाई कोलेस्ट्रॉल को डायग्नोज कैसे करते हैं?
  5. बच्चों में हाई कोलेस्ट्रॉल का इलाज
बच्चों में हाई कोलेस्ट्रॉल के डॉक्टर

वयस्कों में, हाई ब्लड कोलेस्ट्रॉल को तब डायग्नोज किया जाता है जब खून में कोलेस्ट्रॉल प्रति 0.1 लीटर (डेसिलीटर या डीएल) में 200 मिलीग्राम से अधिक हो जाता है, लो-डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एलडीएल या बैड कोलेस्ट्रॉल) 100 मिलीग्राम/डीएल से अधिक, टाइग्लिसराइड्स का लेवल 150 मिलीग्राम/डीएल से अधिक और हाई-डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एचडीएल या गुड कोलेस्ट्रॉल) का लेवल 60 मिलीग्राम/डीएल से कम हो जाता है। 

वहीं बच्चों में, ये वैल्यूज थोड़े अलग होते हैं। 2 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों में कोलेस्ट्रॉल के स्तर के बारे में अमेरिकी राष्ट्रीय कोलेस्ट्रॉल शिक्षा कार्यक्रम (NCEP) के दिशा निर्देश क्या कहते हैं जानें:

लेवल कुल कोलेस्ट्रॉल (मिलीग्राम/डीएल) एलडीएल कोलेस्ट्रॉल (मिलीग्राम/डीएल)
नॉर्मल ब्लड कोलेस्ट्रॉल 170 से नीचे 110 से नीचे
बॉर्डरलाइन हाई कोलेस्ट्रॉल 170-199 के बीच   110 से 129 के बीच
हाई कोलेस्ट्रॉल 200 से अधिक 130 से अधिक

बच्चों के लिए एचडीएल आदर्श रूप से 45 मिलीग्राम/डीएल से अधिक होना चाहिए। बॉर्डरलाइन लो एचडीएल 40-45 मिलीग्राम/डीएल है। 9 साल तक के बच्चों में सीरम ट्राइग्लिसराइड्स 100 मिलीग्राम/डीएल से कम और 10-18 साल के किशोरों में 130 मिलीग्राम/डीएल से कम होना चाहिए।

अनुसंधान से पता चलता है कि "भारत में रहने वाले भारतीयों" में आमतौर पर यूके और अमेरिका में रहने वाले लोगों की तुलना में कुल कोलेस्ट्रॉल और गुड कोलेस्ट्रॉल (एचडीएल) कम होता है, लेकिन उनमें ट्राइग्लिसराइड्स अधिक होता है। गुड कोलेस्ट्रॉल का कम होना और ट्राइग्लिसराइड्स का अधिक होना एथेरोस्क्लेरोसिस और धमनियों में रुकावट जैसे हृदय रोग का जोखिम कारक है। इससे पहले कि हम आगे बढ़ें, आइए शरीर में कोलेस्ट्रॉल के उपयोग और लाभों पर एक नजर डालते हैं और यह भी जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर कोलेस्ट्रॉल कब खराब हो जाता है।

हम सभी ने बीमारी के संदर्भ में ब्लड कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स के बारे में सुना है। सच्चाई यह है कि शरीर को कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स दोनों की ही सीमित मात्रा में आवश्यकता होती है। शरीर को कई चीजों के निर्माण के लिए कोलेस्ट्रॉल की जरूरत होती है:

  • एस्ट्रोजेन, प्रोजेस्टेरॉन, टेस्टोस्टेरॉन और कोर्टिसोल जैसे हार्मोन्स के निर्माण के लिए
  • पूरे शरीर में कोशिका की दीवारें और श्लेष्म झिल्ली (मेम्ब्रेन्स) का निर्माण करने के लिए
  • बाइल सॉल्ट बनाने के लिए जो फैट को पचाने में शरीर की मदद करता है
  • सूरज की रोशनी से शरीर में विटामिन डी बनाने के लिए भी स्किन को कोलेस्ट्रॉल की जरूरत होती है

शरीर को ऊर्जा बनाने के लिए ट्राइग्लिसराइड्स की जरूरत होती है। लेकिन ऊर्जा के तौर पर जो भी इस्तेमाल नहीं हो पाता है वह फैट के रूप में शरीर में जमा होने लगता है। तो आखिर हमें ये कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स मिलते कहां से हैं? हमारा लिवर रोजाना करीब 1 हजार मिलीग्राम कोलेस्ट्रॉल बनाता है। कुछ खाद्य पदार्थों से भी हमें कोलेस्ट्रॉल मिलता है। ट्राइग्लिसराइड्स रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट और वसायुक्त खाद्य पदार्थों से आते हैं, लेकिन भोजन से मिलने वाली अतिरिक्त कैलोरी, विशेष रूप से कार्ब्स का उपयोग करके लिवर ट्राइग्लिसराइड्स का भी निर्माण करता है। ट्राइग्लिसराइड का निम्न लेवल होना चाहिए:

  • बॉर्डरलाइन हाई 150 मिलीग्राम/डीएल से 199 मिलीग्राम/डीएल के बीच
  • उच्च: 200-499 मिलीग्राम/डीएल
  • बहुत अधिक: 500 मिलीग्राम/डीएल या अधिक

शरीर में कोलेस्ट्रॉल का आखिर क्या होता है:
लिवर प्रोटीन में लिपटे हुए लिपोप्रोटीन- कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स (फैटी या वसा जैसे पदार्थ दोनों) को बनाता है- ताकि कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स को रक्तप्रवाह के माध्यम से उन कोशिकाओं तक पहुंचाया जा सके, जिन्हें इनकी आवश्यकता है। बहुत कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (वेरी लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन वीएलडीएल) और उच्च घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (एचडीएल)- ये 2 तरह के लिपोप्रोटीन हैं जिनका निर्माण लिवर में होता है।

वीएलडीए में ट्राइग्लिसराइड्स और कोलेस्ट्रॉल (मोम जैसा पदार्थ) दोनों होता है। ये लिपोप्रोटीन रक्त के माध्यम से कोशिकाओं तक जाते हैं जिन्हें ऊर्जा के लिए ट्राइग्लिसराइड्स की आवश्यकता होती है। एक बार जब ट्राइग्लिसराइड्स का उपयोग हो जाता है या फिर जब वे फैट के रूप में जमा हो जाते हैं उसके बाद जो बच जाता है वह एलडीएल होता है जिसके केंद्र में कोलेस्ट्रॉल होता है।

हार्मोन और विटामिन डी बनाने जैसे महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शरीर को कोलेस्ट्रॉल की आवश्यकता होती है। एलडीएल कोलेस्ट्रॉल इन जरूरतों को पूरा कर सकता है। हालांकि, अगर शरीर में जरूरत से ज्यादा कोलेस्ट्रॉल होता है, तो यह रक्त वाहिकाओं की दीवारों पर जमा होने लगता है। ऐसा होने पर रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचता है और रक्त वाहिकाओं के अंदर प्लाक या पट्टिका का निर्माण होने लगता है। यह कोलेस्ट्रॉल प्लाक रक्त वाहिकाओं को संकरा बना देते हैं जिससे रक्त प्रवाह कम हो जाता है। इस स्थिति को एथेरोस्क्लेरोसिस के तौर पर जाना जाता है।

यदि यह स्थिति हृदय में खून ले जाने वाली कोरोनरी धमनी को प्रभावित करती है, तो इससे कोरोनरी धमनी रोग हो सकता है और हार्ट अटैक का खतरा भी बढ़ जाता है। यह स्ट्रोक के जोखिम को भी बढ़ा सकता है यदि यह मस्तिष्क में रक्त ले जाने वाली धमनी को अवरुद्ध करता है। पट्टिका का एक टुकड़ा रक्त वाहिका की दीवारों से निकलकर बाहर आ सकता है और खून का थक्का बना सकता है जो शरीर के अन्य हिस्सों तक पहुंच सकता है- खून का यह थक्का हृदय संबंधी बीमारी या स्ट्रोक का कारण बन सकता है।

भारतीयों को हाई कोलेस्ट्रॉल का खतरा होता है, जिसे हाइपरलिपिडिमिया के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि उनमें प्राकृतिक रूप से एचडीएल यानी गुड कोलेस्ट्रॉल कम होता है और ट्राइग्लिसराइड्स अधिक। एचडीएल शरीर को अतिरिक्त कोलेस्ट्रॉल और कोलेस्ट्रॉल पट्टिका से छुटकारा दिलाने में मदद करता है क्योंकि यह एलडीएल या बैड कोलेस्ट्रॉल को लिवर में वापस ले जाता है जो अतिरिक्त कोलेस्ट्रॉल को हटा देता है।

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बच्चों में हाई कोलेस्ट्रॉल के स्पष्ट लक्षण तब तक नजर नहीं आते जब तक कि समस्या काफी अडवांस न हो जाए। अगर आपको अपने बच्चे में निम्नलिखित लक्षण दिखे तो माता-पिता को डॉक्टर से बच्चे का कोलेस्ट्रॉल टेस्ट करवाने के बारे में पूछना चाहिए:

  • अगर आपका बच्चा मोटापे का शिकार हो
  • यदि माता-पिता या करीबी रिश्तेदार में हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या हो
  • प्रोसेस्ड फूड में पाए जाने वाले सैचुरेटेड फैट और ट्रांस फैट का ज्यादा सेवन करता हो
  • अगर उसे इनमें से कोई एक स्वास्थ्य समस्या है : कावासाकी रोग, जुवेनाइल इडियोपैथिक आर्थराइटिस, लिवर रोग, किडनी की बीमारी
  • अगर बच्चे को हाई बीपी, डायबिटीज या हाइपोथायरायडिज्म हो

आपने कोरोनरी आर्टरी बाईपास सर्जरी के बारे में सुना होगा- यह भारत में की जाने वाली सबसे कॉमन ओपन-हार्ट सर्जरी में से एक है। जिस स्थिति के कारण यह सर्जरी करने की जरूरत पड़ती है वह है- अडवांस कोरोनरी धमनी रोग- जिसकी शुरुआत हाई कोलेस्ट्रॉल और हाई ट्राइग्लिसराइड्स के साथ होती है जो बीतते वर्षों के साथ और बदतर हो जाती है।

बच्चों में हाई कोलेस्ट्रॉल के 3 मुख्य कारण हैं :

  • पारिवारिक इतिहास और जीन्स : पारिवारिक हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया जैसी वंशानुगत प्राप्त की हुई स्थिति जन्म से ही बच्चों को प्रभावित करना शुरू कर सकती है। फेमिलियल हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया एक आनुवांशिक स्थिति है जिसमें जरूरत के बावजूद शरीर की कोशिकाएं एलडीएल या बैड कोलेस्ट्रॉल को ठीक से लेने में असमर्थ होती हैं। इस कारण खून में एलडीएल की भरमार हो जाती है जो रक्त वाहिकाओं में प्लाक के रूप में जमा होने लगता है। इस स्थिति वाले बच्चों को 8 या 10 साल की उम्र से ही स्टैटिन्स देना पड़ता है ताकि रक्त वाहिकाओं और हृदय को होने वाले नुकसान को कम किया जा सके। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर माता-पिता में से किसी एक को डिस्लिपिडेमिया (लिपिड प्रॉब्लम) है तो कम उम्र से ही बच्चों की कोलेस्ट्रॉल के लिए जांच होनी चाहिए
  • मोटापा और इससे जुड़ी स्थितियां : शोध से पता चला है कि मोटापा और इससे जुड़ी स्थितियां फैट के मेटाबॉलिज्म को प्रभावित कर सकती हैं, जिस कारण शरीर में अतिरिक्त कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स का निर्माण होने लगता है।
  • जीवनशैली से जुड़े कारक : फैट और रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट्स से भरपूर आहार लेना, बहुत अधिक कैलोरी का सेवन करना, व्यायाम कम करना और धूम्रपान करना- इन सभी का खून में हाई कोलेस्ट्रॉल और हाई ट्राइग्लिसराइड लेवल के साथ संबंध है।

बच्चों और वयस्कों दोनों में ही हाई कोलेस्ट्रॉल को डायग्नोज करने का एकमात्र तरीका है- इसका टेस्ट करवाना। लिपिड प्रोफाइल टेस्ट कुल कोलेस्ट्रॉल, एलडीएल कोलेस्ट्रॉल, एचडीएल कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स इन सभी के मूल्यों को दर्शाता है।

बच्चों में सामान्य बनाम उच्च कोलेस्ट्रॉल
एक से अधिक रिसर्च पेपर से पता चलता है कि नवजात शिशुओं में टोटल ब्लड कोलेस्ट्रॉल का लेवल कम होता है (पूर्ण अवधि के शिशुओं के लिए 51.4-96.8 मिलीग्राम/डीएल) वयस्कों की तुलना में एचडीएल का अनुपता एलडीएल से कम होता है (एचडीएल या गुड कोलेस्ट्रॉल का लेवल 22.1-44.9 मिलीग्राम/डीएल और एलडीएल या बैड कोलेस्ट्रॉल का लेवल 22.0-44.9 मिलीग्राम/डीएल)।

19 वर्ष तक के बच्चों में होना चाहिए :

  • कुल कोलेस्ट्रॉल : 170 मिलीग्राम/डीएल से कम
  • एलडीएल : 110 मिलीग्राम/डीएल से कम
  • एचडीएल : 45 मिलीग्राम/डीएल से अधिक
  • ट्राइग्लिसराइड्स : 0-9 वर्ष के बच्चे में: 100 मिलीग्राम/डीएल से कम, 10 साल से अधिक में : 130 मिलीग्राम/डीएल से कम

20 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए, 5 साल में एक बार फास्टिंग लिपोप्रोटीन प्रोफ़ाइल टेस्ट (9-12 घंटे के लिए खाली पेट रहने पर) करवाने की सिफारिश की जाती है। जिन बच्चों में उच्च कोलेस्ट्रॉल का खतरा नहीं है, उनमें भी जटिलताओं से बचने के लिए टेस्ट करवाते रहना एक अच्छा विचार हो सकता है।

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हाइपोथायरायडिज्म या डायबिटीज जैसे अंतर्निहित कारणों का लाइफस्टाइल मैनेजमेंट, बीमारी के सबसे पहले इलाज के तौर पर जाना जाता है। हालांकि, अगर डाइट कंट्रोल, एक्सरसाइज और वेट मैनेजमेंट से भी मदद नहीं मिलती है, तो ऐसी दवाएं मौजूद हैं जो कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करने में मदद कर सकती हैं। इसके अलावा प्लाक का जमा होना और समय से पहले ही रक्त वाहिकायओं का सख्त होना जैसी समस्याओं को भी दूर किया जा सकता है। अगर आपके बच्चे को हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या है तो डॉक्टर उसके इलाज के लिए निम्नलिखित सुझाव दे सकते हैं :

बच्चों में हाई कोलेस्ट्रॉल के लिए लाइफस्टाइल मैनेजमेंट

स्वस्थ और संतुलित आहार जिसमें फैट और रिफाइंड कार्ब्स की मात्रा कम हो और फाइबर और प्रोटीन की मात्रा अधिक हो, उसे खाने से कुछ मामलों में हाई कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। पीडियाट्रिक हाई कोलेस्ट्रॉल में क्या खाएं और क्या न खाएं :

  • मोनोअनसैचुरेटेड फैटी एसिड (MUFA) और पॉलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड (PUFA) से भरपूर खाद्य पदार्थ खाएं। इनमें कैनोला ऑयल, एवोकाडो, बादाम, अखरोट, ट्यूना और साल्मन जैसी मछलियां, फल और सब्जियां और साबुत अनाज शामिल हैं।
  • कोशिश करें कि सैचुरेटेड फैट और ट्रांस फैट वाली चीजें न खाएं। इसमें अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड जैसे- डिब्बाबंद चिप्स, आइसक्रीम और कुकीज़, मक्खन, उच्च वसा और उच्च नमक वाला मीट (जैसे बेकन) शामिल है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि बच्चों के आहार में वसा की मात्रा उनके कुल कैलोरी इनटेक के 25-35% से अधिक नहीं होनी चाहिए। माइक्रोवेव पॉपकॉर्न जैसे ट्रांस वसा को आदर्श रूप से बच्चों के आहार से पूरी तरह से बाहर कर देना चाहिए।

जहां तक एक्सरसाइज की बात है तो ऐसी कोई भी गतिविधि है जो बच्चों को उत्साहित करती है जिसके कारण वे सप्ताह के अधिकांश दिनों में कम से कम आधे घंटे तक दौड़ पाते हों तो वह बच्चों के लिए पर्याप्त है। इसमें साइकिल चलाना, स्विमिंग करना, वॉक करना, प्ले जिम में सक्रिय होना आदि शामिल है। बच्चे को प्रोत्साहित करने और उनका समर्थन करने के लिए हेल्दी चीजों का सेवन करना और शारीरिक गतिविधियों में शामिल होना परिवार के सभी लोगों के लिए एक अच्छा विचार हो सकता है।

बच्चों में हाई कोलेस्ट्रॉल के लिए दवाइयां

ऐसे मामलों में जहां जीवनशैली या लाइफस्टाइल में बदलाव करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते वहां पर डॉक्टर बच्चे को दवाइयां देते हैं जैसे:

  • स्टैटिन्स- लिवर द्वारा बनाए जा रहे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करता है
  • नियासिन- लिवर में एचडीएल के उत्पादन को बढ़ाता है और एलडीएल और ट्राइग्लिसराइड्स को कम करता है
  • पित्त या बाइल एसिड को बांधने वाली दवाइयां/रेजिन्स- भोजन को पचाने के बाद पित्त के पुन: उपयोग को रोकते हैं। अब, लिवर को अधिक पित्त बनाने की जरूरत होती है और इसके लिए, उसे अधिक कोलेस्ट्रॉल का उपयोग करने की आवश्यकता होती है।
  • फाइब्रेट्स- जो ट्राइग्लिसराइड के स्तर को कम करते हैं और एचडीएल कोलेस्ट्रॉल को बढ़ा सकते हैं
  • कोलेस्ट्रॉल को अवशोषित करने वाले अवरोधक

बच्चों में उच्च कोलेस्ट्रॉल के लिए दवाएं इन स्थितियों में भी इस्तेमाल की जा सकती हैं :

  • बच्चे में एलडीएल (खराब कोलेस्ट्रॉल) की मात्रा 190 मिलीग्राम/डीएल से अधिक है, लेकिन हृदय रोग के लिए कोई जोखिम कारक और डाइट कंट्रोल से कोलेस्ट्ऱॉल का लेवल कम नहीं हो पाया।
  • बच्चे का एलडीएल स्तर 160 मिलीग्राम/डीएल से अधिक है, और बच्चे में कम उम्र में हृदय रोग का पारिवारिक इतिहास है (पुरुषों के लिए 55 वर्ष से कम और महिलाओं में 60 वर्ष से कम)
  • हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया के लिए बच्चे में कुछ जोखिम कारक मौजूद हैं जैसे मोटापा, उच्च रक्तचाप या फिर अगर बच्चा सिगरेट पीता हो, तंबाकू का उपयोग करता हो या शराब पीता हो।
  • बच्चे का एलडीएल 130 मिलीग्राम/डीएल से अधिक है, और बच्चे को डायबिटीज है।

चेतावनी - किसी भी दवा का उपयोग बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं करें। क्योंकि बिना डॉक्टर की सलाह के दवा का उपयोग आपके लिए जानलेवा भी हो सकत है।

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संदर्भ

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