बचपन में छोटे मोटे रोगों के साथ ही बच्चों को गंभीर बीमारियां होने का खतरा भी अधिक होता है। हमारे शरीर की प्रत्येक कोशिका का एक स्वतंत्र कार्य तंत्र होता है, जो उनकी बनने की प्रक्रिया, नष्ट होने की अवधि और अन्य कोशिकाओं के साथ संबंध को निर्धारित करता है।

जब स्वस्थ कोशिकाओं में बदलाव होने के साथ ही वे तेजी से बढ़ने लगे और शरीर के द्वारा उनकी वृद्धि को नियंत्रित कर पाना मुश्किल हो, तो इस स्थिति को कैंसर कहा जाता है। बच्चों में भी कैंसर हो सकता है। बच्चे में कैंसर की पहचान होने के बाद हर माता पिता के मन में इलाज व रोग की गंभीरता के विषय पर कई सवाल उठते हैं।

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आप सभी की इसी परेशानी को ध्यान में रखते हुए इस लेख में आपको “बच्चों में कैंसर” के बारे में विस्तार से बताया गया है। साथ ही आपको बच्चों में कैंसर के प्रकार, बच्चों में कैंसर के लक्षण, बच्चों में कैंसर के कारण, बच्चों में कैंसर की जांच और बच्चों में कैंसर का इलाज आदि विषयों को भी विस्तार से बताने का प्रयास किया गया है।   

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  1. बच्चों में कैंसर के प्रकार - Baccho me cancer ke prakar
  2. बच्चों में कैंसर के लक्षण - Baccho me cancer ke lakshan
  3. बच्चों में कैंसर के कारण और जोखिम कारक - Baccho me cancer ke karan aur jokhim karak
  4. बच्चों में कैंसर की जांच - Baccho me cancer ki janch
  5. बच्चों और व्यस्कों के कैंसर के बीच अंतर - Baccho aur bado ke cancer ke bich antar
  6. बच्चों में कैंसर का इलाज - Baccho me cancer ka ilaj

बच्चों में कैंसर कई प्रकार के होते हैं। वयस्कों में होने वाले आम कैंसर (जैसे – फेफड़ों, ब्रेस्ट, कोलन और अन्य) बच्चों और किशोरों में दुर्लभ होते हैं। जबकि वयस्कों के कैंसर की अपेक्षा बच्चों के कैंसर ज्यादा खतरनाक होते हैं। बच्चों को कैंसर होने के कम ही मामले पाए जाते हैं, यदि बच्चे को कैंसर हो जाएं तो विशेष डॉक्टर की देखरेख में बच्चों का इलाज किया जाता है।

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बच्चों में होने वाले कैंसर के निम्नलिखित प्रकार होते हैं।

  • ल्यूकेमिया (leukaemia):
    कैंसर का यह प्रकार बच्चों के रक्त और अस्थि मज्जा (बोन मैरो) को संक्रमित करता है और यह बच्चों में एक आम प्रकार का कैंसर माना जाता है। ल्यूकेमिया के भी दो प्रकार होते हैं, जिन्हें एक्यूट लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (acute lymphoblastic leukaemia) और एक्यूट माइलोजीनस ल्यूकेमिया (acute myeloid leukaemia) कहा जाता है। (और पढ़ें - ब्लड कैंसर का इलाज​)
     
  • न्यूरोब्लास्टोमा (neuroblastoma):
    इस प्रकार का कैंसर नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों में देखा जाता है। यह तंत्रिका कोशिकाओं के न्यूरल क्रिस्ट सेल (neural crest cells) से संबंधित होता है। न्यूरोब्लास्टोमा बच्चे के पेट से शुरू होता है और यह सूजनबुखार का कारण बनता है। (और पढ़ें - तेज बुखार होने पर क्या करें)
     
  • मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी का ट्यूमर:
    बच्चों में यह दूसरा सबसे आम प्रकार का कैंसर माना जाता है। बच्चों में होने वाले कैंसर के चार मामलों में से एक इसी प्रकार से संबंधित होता है। हालांकि, रीढ़ की हड्डी का कैंसर, बच्चों में मस्तिष्क के कैंसर की तुलना में कम होता है। (और पढ़ें - रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर का इलाज)
     
  • लिम्फोमा (lymphoma):
    इसमें कैंसर लिम्फ ग्रंथि व अन्य लिम्फ ऊतकों जैसे टॉन्सिल से शुरू होता है। रीढ़ की हड्डी और अन्य अंग भी लिम्फोमा से प्रभावित होते हैं। बच्चों में कैंसर के दस में से एक मामला लिम्फोमा का पाया जाता है। (और पढ़ें - टॉन्सिल के घरेलू उपाय)

बच्चों को होने वाले कुछ अन्य प्रकार के कैंसर

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बच्चों में कैंसर के लक्षण निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करते हैं।  

  • कैंसर का प्रकार,
  • बच्चे के प्रभावित अंग,
  • यदि कैंसर बच्चे की शरीर के अन्य भाग में फैलने लगे।

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नीचे बताए गए लक्षण कैंसर के अलावा किसी अन्य बाहरी स्थिति से भी संबंधित हो सकते हैं, लेकिन कभी-कभी ये लक्षण बच्चों में कैंसर होने का संकेत हो सकते हैं।

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बच्चों में कैंसर के अधिकतर मामलों का पता नहीं चल सका है। बच्चों को होने वाले कैंसर के सभी मामलों में करीब 5 प्रतिशत कैंसर के मामले जीन्स में हुए अनुवांशिक बदलावों के कारण होते हैं। बच्चों में होने वाले कैंसर के कारण और जोखिम कारकों को आगे विस्तार से बताया गया है।

  • रेडिएशन के संपर्क में आना:
    जो बच्चे किसी भी कारण से अपनी छोटी आयु में रेडिएशन के संपर्क में आते हैं उनको कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। किसी बीमारी का इलाज करने के लिए रेडिएशन का इस्तेमाल करने वाले बच्चों को अन्य तरह के कैंसर होने का जोखिम अधिक होता है। हालांकि, रेडियोथेरेपी को इलाज में शामिल न करने से बच्चे को कैंसर होने की यह संभावना कम हो जाती है। (और पढ़ें - बच्चों की सेहत के इन लक्षणों को न करें नजरअंदाज)
     
  • आनुवांशिक कारण:
    यदि जन्म के समय बच्चे में आनुवांशिक स्थितियों (समस्याओं) का पता लगाया जाता है, तो ऐसे बच्चों में कैंसर के कुछ विशेष प्रकार होने का खतरा रहता है। उदाहरण के लिए डाउन सिंड्रोम होने पर बच्चे को अन्य बच्चों की तुलना में ल्युकेमिया होने का जोखिम 20 प्रतिशत अधिक होता है।
     
  • संक्रमण:
    ईबीवी वायरस (Epstein barr virus) बच्चों को संक्रमित करने वाला एक आम वायरस है। यह वायरस किशोरों में ग्रंथियों के बुखार का कारण होता है। इसके अलावा इसके संक्रमण में अन्य कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। (और पढ़ें - बच्चे के बुखार का इलाज)
     
  • गर्भ में जटिलताएं:
    कुछ बच्चों में कैंसर की शुरुआत मां के गर्भ से ही हो जाती है। किडनी कैंसर का प्रकार विल्म्स ट्यूमर इसका उदाहरण माना जाता है।

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बच्चों में कैंसर की जांच के लिए डॉक्टर कई तरह के टेस्ट की सलाह देते हैं। डॉक्टर कैंसर के अन्य अंगों में फैलने की संभावनाओं का पता लगाने के लिए भी जांच करते हैं। अगर ऐसा होता है तो इसे मेटासटासिस (metastasis) कहा जाता है। उदाहरण के लिए, इमेजिंग टेस्ट से पता चल सकता है कि कैंसर फैला है या नहीं। परीक्षण से डॉक्टर को कैंसर के लिए सही इलाज को चुनने में भी मदद मिलती है।

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शरीर में किस हिस्से में कैंसर हैं, इसका पता लगाने के लिए अधिकांश मामलों में बायोप्सी टेस्ट किया जाता है। बायोप्सी में डॉक्टर प्रभावित ऊतक के हिस्से को लेकर लेबोरेट्री में जांच करते हैं। अगर किसी कारण से बायोप्सी करना संभव नहीं होता तो डॉक्टर अन्य टेस्ट की मदद से कैंसर की पहचान करते हैं।

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बच्चों के कैंसर की जांच निम्नलिखित कारकों के आधार पर की जाती है।

  • संभावित कैंसर का प्रकार,
  • बच्चे के लक्षण,
  • बच्चे की आयु और मौजूदा स्वास्थ्य स्थितियां,
  • पहले के टेस्ट के नतीजे, आदि।

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बच्चों में कैंसर की जांच में निम्नलिखित टेस्ट को शामिल किया जाता है।

  • ब्लड टेस्ट (खून की जांच):
    प्रभावित बच्चे के खून का नमूना लेकर लेब में उसका ब्लड टेस्ट किया जाता है। (और पढ़ें - कोलोनोस्कोपी क्या है)
     
  • ल्यूम्बर पंचर (lumbar puncture):
    इसको स्पाईनल टैप के नाम से भी जाना जाता है। इसमें डॉक्टर सेब्रेल स्पाईनल द्रव (रीढ़ की हड्डी से निकालने जाने वाला एक प्रकार का द्रव) के सैंपल को निकालकर जांच करते हैं। (और पढ़ें - आयरन टेस्ट क्या है)
     
  • बोन मैरो (अस्थि मज्जा) एस्पिरेशन और बायोप्सी:
    इस टेस्ट में बड़ी हड्डी की अस्थि मज्जा बाहर निकालकर जांच की जाती है। (और पढ़ें - ईसीजी क्या है)
     
  • कम्प्युटेड टोमोग्राफी (computed tomography):
    इसको सीटी और कैट स्कैन भी कहा जाता है। इसमें शरीर के अलग-अलग हिस्से की 3डी इमेज निकाली जाती है। (और पढ़ें - कैल्शियम ब्लड टेस्ट कैसे किया जाता है)
     
  • एमआरआई:
    एमआरआई से पूरे शरीर की जांच की जाती है। 

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बच्चों में होने वाले कैंसर बनने के कारण व्यस्कों से अलग होते हैं। व्यस्कों के कई कैंसर जीवनशैली और वातारवरण के जोखिम कारकों से संबंधित होते हैं, जबकि बच्चों में ऐसा नहीं होता है। केवल कुछ ही बच्चों में माता-पिता से प्राप्त डीएनए में बदलाव के कारण कैंसर की समस्या होती है।

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कुछ मामलों को छोड़कर बच्चों की सेहत पर कैंसर के इलाज से अच्छा प्रभाव होता है। बच्चे व्यस्कों की तुलना में कैंसर के इलाज में बेहतर प्रतिक्रिया देते हैं, क्योंकि उनको इलाज में मुश्किल लाने वाली स्वास्थ्य संबंधी अन्य समस्याएं नहीं होती हैं।

वहीं दूसरी ओर इलाज के लिए आवश्यक होने पर रेडिएशन थेरेपी देने से दुष्प्रभाव हो सकते हैं। कीमो व रेडिएशन दोनों ही तरह की थेरेपी और कैंसर के अन्य इलाज से बच्चों को लंबे समय तक साइड इफेक्टर हो सकते हैं। ऐसे में कैंसर वाले बच्चों को अपने भविष्य में स्वास्थ्य संबंधी विशेष तरह की सावधानियां बरतने की जरूरत होती है। 

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बच्चों में कैंसर का इलाज उनके कैंसर के प्रकार व स्टेज के आधार पर तय किया जाता है। इसके साथ ही बच्चे की मौजूदा स्वास्थ्य स्थिति और संभावित साइड इफेक्ट पर भी डॉक्टरों द्वारा इलाज को चुनने से पहले ध्यान दिया जाता है। बच्चों में कैंसर के निम्नलिखित इलाज हो सकते हैं।

  • कीमोथेरेपी:
    इस इलाज में कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ने से रोकने और नष्ट करने के लिए बच्चे को दवा दी जाती हैं। इसमें बच्चों को खाने वाली गोली, कैप्सूल या नसों के माध्यम से दवा दी जाती है। (और पढ़ें - कीमोथेरपी के फायदे)
     
  • ऑपरेशन:
    डॉक्टर सर्जरी के द्वारा कैंसर से संक्रमित अंग (ट्यूमर) और उसके आस पास के हिस्से को निकाल देते हैं। इसके बाद कैंसर को पूरी तरह से खत्म करने के लिए डॉक्टर कीमो और रेडिएशन की सलाह देते हैं। (और पढ़ें - बच्चों में टीबी का इलाज)
     
  • रेडिएशन थेरेपी:
    इसमें डॉक्टर शक्तिशाली एक्स रे और फोटोन से कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करते हैं। इस प्रक्रिया में रेडिएशन से अन्य अंग और ऊतकों के प्रभावित होने की संभावना अधिक होती है, इस कारण से डॉक्टर इस विकल्प को चुनने की सलाह कम देते हैं।

इनके अलावा कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए डॉक्टर इम्यूनोथेरेपी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट की भी सलाह देते हैं।  

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