गर्भावस्था से जुड़ी समस्याएं (मिसकैरिज, प्री-एक्लेम्प्सिया, जेस्टेशनल डायबिटीज, जल्दी पीरियड होना, समय से पहले जन्म आदि) इस अवस्था के बाद गायब हो सकती हैं, लेकिन आगे चलकर महिला के लिए हृदय रोग व अन्य मेडिकल कंडीशन्स का खतरा बढ़ा देती हैं। हालांकि, अगर ब्रेस्टफीडिंग को लंबे समय तक जारी रखा जाए तो इन जटिलताओं से जूझने वाली महिलाओं के लिए हृदय रोग का खतरा कम हो सकता है। जानी-मानी मेडिकल पत्रिका ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) ने हाल में इस तथ्य से जुड़े अध्ययन को प्रकाशित किया है।

खबर के मुताबिक, अध्ययन में शामिल यूके के शोधकर्ताओं ने सात से 10 सालों में दर्ज किए गए अलग-अलग आंकड़ों का विश्लेषण किया था, जिसमें 32 मेडिकल समीक्षाएं, अलग-अलग रिस्क फैक्टर आदि शामिल थे। स्टडी में पता चला है कि फर्टिलिटी और प्रेग्नेंसी से जुड़े अन्य फैक्टर्स का भी गर्भावस्था के बाद हृदय रोग का खतरा बढ़ने से संबंध है। इनमें ओरल कॉन्ट्रसेप्टिव का संयुक्त इस्तेमाल, पॉलीसिस्टिक ओवेरी सिंड्रोम, मासिक धर्म का जल्दी बंद हो जाना और मृत जन्म शामिल हैं।

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अध्ययन के मुताबिक, डॉक्टरों का कहना है कि जिन महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान इन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उनमें आगे चल कर हृदय रोग, यहां तक कि डायबिटीज के मामले आमतौर पर देखे जाते हैं। लेकिन लंबे समय तक ब्रेस्टफीडिंग कराने से निश्चित रूप से कई लाइफस्टाइल डिसीजेज से दीर्घकालिक सुरक्षा मिलती है। इन बीमारियों में कार्डियक डिसऑर्डर, डायबिटीज और कैंसर भी शामिल है।

अध्ययन से जुड़ी इन जानकारियों पर इकनॉमिक टाइम्स से बातचीत में फोर्टिस अस्पताल की सीनियर गाइनिकोलॉजिस्ट डॉ. नीति कौतिश कहती हैं, 'गर्भावस्था वाली उम्र में जो महिलाएं मेटाबॉलिक डिसऑर्डर से गुजरती हैं, उनमें डायबिटीज और हृदय रोग का खतरा तीन-चार गुना बढ़ जाता है। हालांकि दो साल तक ब्रेस्टफीडिंग करने से काफी मदद मिलती है, क्योंकि इससे दूध पिलाने वाली मांओं का एस्ट्रोजन एक्सपोजर कम होता है। इसलिए हो सकता है कि ऐसी महिलाओं को पीरियड्स न आएं या उनमें देरी हो जाए। ब्रेस्टफीडिंग से बॉडी का मेटाबॉलिक लोड कम करने में मदद और मां को कई बीमारियों से सुरक्षा मिलती है।'

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