अपने नवजात शिशु को बांहों में लेकर एकटक बस उसे निहारते रहना, शिशु के शरीर पर मौजूद एक-एक हिस्से को गौर से देखना, शिशु के चेहरे से अपनी नजरें न हटा पाना- ये सारी चीजें न्यू पैरंट्स को खुशियों से भर देती हैं। शिशु से जुड़ी कई यूनीक विशेषताओं में से एक है बर्थमार्क या जन्म चिन्ह जो शिशु के शरीर के किसी भी हिस्से पर मौजूद हो सकता है। यह शिशु की त्वचा पर मौजूद अलग सा दिखने वाला स्पॉट होता है जो या तो जन्म के समय से ही शिशु के शरीर पर होता है या फिर जन्म के तुरंत बाद शुरुआती कुछ हफ्तों में बन जाता है।

करीब 80 प्रतिशत नवजात शिशु बर्थमार्क या जन्म चिन्ह के साथ पैदा होते हैं। बर्थमार्क, शिशु की त्वचा पर मौजूद किसी छोटे से धब्बे की तरह होता है जो बेहद कॉमन है। इसे लेकर माता-पिता को परेशान होने की जरूरत नहीं क्योंकि यह आमतौर पर कैंसरमुक्त होता है और इसके लिए किसी तरह के इलाज की जरूरत नहीं होती। यह बर्थमार्क शिशु के चेहरे या शरीर के किसी भी हिस्से पर हो सकता है। हर शिशु में बर्थमार्क का रंग-रूप, नाप, आकृति, आकार अलग-अलग तरह का होता है। 

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कुछ बर्थमार्क स्थायी होते हैं जो समय के साथ आकार या साइज में बड़े हो सकते हैं जबकि कुछ जन्म चिन्ह अस्थायी होते हैं जो समय के साथ पूरी तरह से खुद-ब-खुद गायब हो जाते हैं। इनमें से ज्यादातर जन्म चिन्ह पूरी तरह से सुरक्षित होते हैं और इनसे शिशु को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। लेकिन कुछ बर्थ मार्क किसी बीमारी का संकेत हो सकते हैं और इस वजह से उन्हें कॉस्मेटिक सर्जरी के जरिए हटाने की जरूरत होती है।

तो आखिर क्या है बर्थमार्क, यह कितने तरह का होता है, किन वजहों से शरीर पर जन्म चिन्ह बन जाता है, क्या इन जन्म चिन्हों के लिए किसी तरह का इलाज करवाने की जरूरत होती है, शिशु के बर्थमार्क को लेकर किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, इस बारे में हम आपको इस आर्टिकल में बता रहे हैं।

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  1. किन वजहों से होता है बर्थमार्क? - birthmark hone ki wajah kya hai?
  2. बर्थमार्क कितने तरह का होता है? - kitne tarah ka hota hai birthmark?
  3. बर्थमार्क का इलाज - birthmark ka ilaj
  4. बर्थमार्क की निगरानी करने के टिप्स - birthmark ki nigrani ke tips
  5. बर्थमार्क का सामना करने में बच्चों की ऐसे करें मदद - birthmark de deal karne me bachhe ki aise kare madad
बच्चों में बर्थमार्क: जानें जन्म चिन्ह के बारे में सबकुछ के डॉक्टर

बर्थमार्क या जन्म चिन्हों को होने से रोका नहीं जा सकता क्योंकि इनका संबंध प्रेगनेंसी के दौरान किसी खास चीज को करने या न करने से नहीं होता। हालांकि आपने कई लोगों को यह कहते सुना होगा कि गर्भवती महिला जब गर्भावस्था के दौरान कुछ गलत चीजें खा लेती है या गलत गतिविधियां करती है तो उस वजह से बच्चे के शरीर पर ये जन्म चिन्ह या जन्मजात निशान बन जाते हैं। लेकिन इन बातों में कोई सच्चाई नहीं है।

शिशु के शरीर पर बर्थमार्क या जन्म चिन्ह क्यों बनता है इसका कोई स्पष्ट कारण अब तक पता नहीं चल पाया है। बहुत से शिशुओं में बर्थमार्क अपने माता-पिता से वंशानुगत तौर पर आते हैं। लेकिन ऐसा बहुत ही कम मामलों में होता है। साथ ही इन जन्म चिन्हों का प्रसव के दौरान शिशु की स्किन को होने वाले किसी तरह के आघात से भी कोई संबंध नहीं है।

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क्या बर्थमार्क आनुवांशिक होते हैं?

कुछ बर्थमार्क पैतृक या वंशानुगत होते हैं और अगर परिवार में किसी को हो तो शिशु को भी होने की आशंका रहती है लेकिन ज्यादातर बर्थमार्क आनुवांशिक नहीं होते। बहुत कम मामलों में ऐसा होता है कि बर्थमार्क जीन के रूप परिवर्तन (जीन म्यूटेशन) की वजह से बनते हैं। 

क्या बर्थमार्क जन्म के कुछ दिनों बाद उभर सकते हैं?

बर्थमार्क या जन्म चिन्ह स्किन में मौजूद ऐसा धब्बा या निशान होता है जो या तो जन्म के समय से ही शिशु के शरीर पर होता है या फिर जन्म के कुछ दिनों के अंदर उभर जाता है। तिल-मस्सा, ऐसे निशान हैं जो आपकी स्किन पर जन्म से नहीं होते बल्कि बाद में बन जाते हैं और इसलिए इन्हें बर्थमार्क नहीं कहा जाता।

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बर्थमार्क या जन्म चिन्ह मुख्य रूप से दो तरह का होता है और दोनों के होने का कारण अलग-अलग है। 

  • पहला है वस्कुलर (नाड़ी संबंधी) बर्थमार्क: ये तब बनते हैं जब रक्त धमनियां सही तरीके से नहीं बनती हैं। ये आमतौर पर सामान्य से ज्यादा चौड़ी होती हैं या ज्यादा संख्या में हो सकती हैं। 
  • दूसरा है पिग्मेन्टेड बर्थमार्क: ये जन्म चिन्ह तब बनते हैं जब कोशिकाएं ज्यादा विकसित हो जाती हैं (ओवरग्रोथ) और इस वजह से स्किन में रंजकता (पिगमेंटेशन) हो जाता है।

वस्कुलर बर्थमार्क 3 तरह का होता है- मैकुलर स्टेन्स, हेमेनजियोमा, पोर्ट-वाइन स्टेन्स। ये बर्थमार्क आमतौर पर गुलाबी, लाल या नीले रंग का होता है। इन रक्त धमनियों में मौजूद अतिरिक्त खून की वजह से कुछ वस्कुलर बर्थमार्क छूने पर गर्म भी महसूस हो सकते हैं। वस्कुलर बर्थमार्क, किस तरह के रक्त धमनियों में बना है उसके आधार पर वह देखने में और व्यवहार में अलग-अलग तरह का हो सकता है।
  
मैकुलर स्टेन्स: इन्हें सालमन पैचेज, एंजेल किसेस या स्टोर्क बाइट्स भी कहते हैं। ये देखने में बेहद हल्के लाल रंग के निशान होते हैं और ये वस्कुलर बर्थमार्क का सबसे कॉमन प्रकार है। ये आमतौर पर माथे या ललाट पर होते हैं, पलकों पर होते हैं, गर्दन के पीछे के हिस्से में होते हैं, नाक पर हो सकते हैं, होंठ और नाक के बीच के हिस्से (अपर लिप) में हो सकते हैं या सिर के पीछे हो सकते हैं। जब शिशु रोता है तो मैकुलर स्टेन्स बर्थमार्क ज्यादा स्पष्ट रूप से नजर आने लगते हैं। इनमें से ज्यादातर निशान शिशु के 1 या 2 साल के होते-होते अपने आप खत्म हो जाते हैं लेकिन कुछ शिशुओं में यह वयस्क होने तक मौजूद रहते हैं।

हेमेनजियोमा: ये जन्म चिन्ह जब स्किन की सतह पर होते हैं तो इन्हें छिछले निशान के तौर पर वर्गीकृत किया जाता है लेकिन स्किन की सतह के अंदर ये बेहद गहरे होते हैं। ये चिन्ह देखने में थोड़े उभरे हुए होते हैं और इनका रंग चटकदार लाल होता है और कई बार ये शिशु के जन्म लेने के कई दिन बाद तक भी शिशु के शरीर पर कहीं भी नजर नहीं आते हैं। गहरे हेमेनजियोमा नाम के बर्थमार्क का रंग नीला होता है क्योंकि इनमें वैसी रक्त धमनियां शामिल होती हैं जो स्किन के बेहद गहरी सतह में मौजूद होती हैं।

हेमेनजियोमा शिशु के जन्म के बाद शुरुआती 6 महीनों में बेहद तेजी से बढ़ते हैं लेकिन उसके बाद जब बच्चा 5 या 10 साल का होता है तब ये बर्थमार्क छोटा होकर अपने आप गायब हो जाता है। इनमें से कुछ बर्थमार्क अपने पीछे निशान भी छोड़ जाते हैं जिन्हें प्लास्टिक सर्जरी करवाकर हटाया जा सकता है। वैसे तो हेमेनजियोमा शरीर के किसी भी हिस्से पर हो सकता है लेकिन आमतौर पर यह सिर या गर्दन पर होता है। कई बार इस बर्थमार्क के आंख, मुंह या नाक के पास होने की वजह से देखने, खाने या सांस लेने में तकलीफ भी हो सकती है।

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पोर्ट वाइन स्टेन्स: यह बर्थमार्क स्किन के जिस हिस्से पर होते हैं उसका रंग इस तरह से बिगाड़ देते हैं जिसे देखकर ऐसा महसूस होता है मानो शरीर के उस हिस्से पर वाइन गिर गई हो। यह बर्थमार्क आमतौर पर चेहरा, गर्दन, बाजू या पैरों पर होता है। पोर्ट वाइन स्टेन्स किसी भी साइज का हो सकता है और जैसे-जैसे शिशु बढ़ता जाता है यह बर्थमार्क भी बड़ा होता जाता है। समय के साथ इनका रंग भी गहरा होता जाता है और वयस्कता आते-आते अगर इनका इलाज न किया जाए तो यह छूने में स्किन पर किसी कंकड़ की तरह महसूस हो सकते हैं। यह एक ऐसा बर्थमार्क है जो अपने आप से कभी भी नहीं हटता। अगर इस तरह का कोई बर्थमार्क आंखों के आसपास हो तो यह व्यक्ति के देखने की क्षमता को भी प्रभावित कर सकता है।

पिगमेन्टेड बर्थमार्क भी 3 तरह का होता है- कैफे-ऑ-ले स्पॉट्स, मंगोलियन स्पॉट्स और मोल्स। ये बर्थमार्क तब बनते हैं जब आपकी स्किन के किसी एक हिस्से पर दूसरे हिस्से की तुलना में पिगमेंट ज्यादा हो जाता है।

कैफे-ऑ-ले स्पॉट्स: ये बेहद कॉमन स्पॉट्स होते हैं और इनका रंग दूध वाली कॉफी जैसा होता है और इसी वजह से इन्हें यह नाम भी दिया गया है। ये शरीर के किसी भी हिस्से पर हो सकते हैं और कई बार तो जैसे-जैसे शिशु बड़ा होता जाता है इनकी संख्या भी बढ़ती जाती है। अगर शरीर पर इस तरह का सिर्फ एक निशान हो तो उससे किसी तरह की कोई समस्या नहीं होती। हालांकि अगर आपके शिशु के शरीर पर पेंसिल के इरेजर के साइज से बड़ा 6 से ज्यादा कैफे-ऑ-ले स्पॉट्स है तो डॉक्टर से अपने शिशु की जांच जरूर करवाएं। ऐसे बहुत से स्पॉट्स न्यूरोफाइब्रोमेटोसिस का संकेत हो सकते हैं। यह एक ऐसी आनुवांशिक बीमारी है जिसमें नर्व टीशूज के अंदर कोशिकाओं का सामान्य से अधिक ग्रोथ होने लगता है।

मंगोलियन स्पॉट्स: इन स्पॉट्स या पैचेज का रंग ब्लूइश-ग्रे होता है, ये पूरी तरह से फ्लैट होते हैं और आमतौर पर कमरे के निचले हिस्से में या कूल्हे पर पाए जाते हैं। यह बर्थमार्क उन लोगों में ज्यादा कॉमन होता है जिनकी स्किन डार्क कलर की है जैसे- अफ्रीका के लोग, एशिया के लोग, हिस्पैनिक और दक्षिण यूरोपीय देशों के लोग। इस बर्थमार्क के लिए किसी तरह के कोई इलाज की जरूरत नहीं होती और 4-5 साल की उम्र का होते-होते जैसे ही बच्चा स्कूल जाने लगता है, यह बर्थमार्क अपने आप फीका होकर गायब हो जाता है।

मोल्स (कन्जेनिटल नेवी): ज्यादातर लोगों को जीवन में कभी न कभी तिल-मस्से जरूर होते हैं। जो तिल या मस्सा, जन्म के समय से ही शरीर पर होता है उसे कन्जेनिटल नेवस कहते हैं और यह उम्रभर शरीर पर मौजूद रहता है। अगर इन तिल मस्सों या कन्जेनिटल नेवी का आकार बहुत बड़ा हो तो यह जीवन में आगे चलकर स्किन कैंसर या मेलानोमा का कारण बन सकते हैं। हालांकि तिल-मस्सों की वजह से कैंसर होने की आशंका कम ही होती है। मोल्स या तिल-मस्से आमतौर पर गोल शेप के होते हैं, इनका रंग टैन कलर का, भूरा या काला हो सकता है। ये बिलकुल फ्लैट दबे हुए हो सकते हैं या फिर उभरे हुए और कई बार तो इनमें से बालों की ग्रोथ भी हो जाती है। 

जहां तक बर्थमार्क्स को हटाने या फिर इनके इलाज की बात है तो पिगमेंटेड बर्थमार्क्स को तो वैसे ही छोड़ दिया जाता है। हालांकि इनमें कई बार कन्जेनिटल मोल्स या तिल-मस्से और कैफे-ऑ-ले स्पॉट्स अपवाद होते हैं। अगर शरीर के किसी हिस्से पर कन्जेनिटल नेवल का आकार बहुत बड़ा हो तो उन्हें सर्जरी करके हटाया जा सकता है। हालांकि अगर तिल-मस्से कम आकार के हों तो उन्हें हटाना आसान होता है, बड़े वालों को हटाना थोड़ा मुश्किल। कैफे-ऑ-ले स्पॉट्स को लेजर की मदद से हटाया जा सकता है लेकिन ज्यादातर मामलों में ये शरीर पर वापस आ जाते हैं।

वहीं, दूसरी तरफ वस्कुलर बर्थमार्क की बात करें तो इनका इलाज किया जा सकता है। इसमें भी मैकुलर स्टेन्स अपवाद है क्योंकि ये अपने आप ही बिना किसी इलाज के हट जाता है। गर्दन के पीछे के हिस्से में मौजूद मैकुलर स्टेन्स दीर्घस्थायी होते हैं लेकिन चूंकि यह शरीर के पिछले हिस्से में होते हैं इसलिए इन पर ज्यादा लोगों की नजर भी नहीं जाती है।

कुछ बर्थमार्क जैसे पोर्ट-वाइन स्टेन्स और हेमेनजियोमा देखने में विकृत लगते हैं और बच्चों के लिए शर्मिंदगी का कारण बन सकते हैं। हेमेनजियोमा को भी बिना इलाज के छोड़ा जा सकता है क्योंकि ये शिशु के 10 साल का होते-होते खुद ब खुद खत्म हो जाते हैं। हालांकि अगर हेमेनजियोमा का आकार बहुत बड़ा हो या ये गंभीर हों तो दवाइयों से इनका इलाज किया जाता है।

पोर्ट-वाइन स्टेन्स को हटाने के लिए लेजर ट्रीटमेंट एक ऑप्शन है। वैसे तो लेजर ट्रीटमेंट के बाद इनमें से ज्यादातर बेहद हल्के रंग के हो जाते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो कुछ दिन के बाद वापस उभर जाते हैं और दोबारा इनका इलाज करवाने की जरूरत पड़ती है। इस तरह का लेजर ट्रीटमेंट आमतौर पर तभी शुरू हो जाता है जब शिशु नवजात होता है क्योंकि इस दौरान यह धब्बा और रक्त वाहिकाएं दोनों ही छोटी होती हैं। सिर और गर्दन पर मौजूद इस तरह के बर्थमार्क लेजर ट्रीटमेंट के प्रति सही प्रतिक्रिया देते हैं। खास तरह के ओपैक मेकअप के जरिए भी पोर्ट वाइन स्टेन्स को छिपाया जा सकता है।

ज्यादातर जन्म चिन्ह या बर्थमार्क हानिरहित होते हैं और कुछ समय बाद अपने आप ही खत्म हो जाते हैं। बावजूद इसके आपको अपने बच्चे के पीडियाट्रिशन को शिशु के शरीर पर मौजूद किसी भी तरह के बर्थमार्क के बारे में जरूर बताना चाहिए। ऐसा करने से डॉक्टर बर्थमार्क के ग्रोथ को लेकर आपको किस तरह से निगरानी रखनी है इस बारे में बता सकते हैं। साथ ही डॉक्टर आपको यह सलाह भी दे सकते हैं कि यह बर्थमार्क कोई जेनेटिक परिस्थिति तो नहीं जिसके लिए इलाज की जरूरत हो।

शिशु के शरीर पर मौजूद जन्म चिन्ह पर नजर रखना बेहद जरूरी है और आपके साथ-साथ डॉक्टर को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए। जन्म चिन्ह में अगर किसी तरह का बदलाव हो रहा हो जैसे- अगर वह साइज में बड़ा हो रहा हो, उसका उठान हो रहा हो या फिर अगर उसका रंग गहरा हो रहा तो इन बातों पर आपकी नजर होनी चाहिए। साथ ही अगर आपको अपने शिशु के शरीर पर मौजूद किसी बर्थमार्क में बहुत तेज ग्रोथ होती दिखे तो इस बारे में भी डॉक्टर को जरूर बताएं।

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मोल्स या तिल मस्से भी कई बार स्किन कैंसर का कारण बनते हैं। ऐसा होना शिशुओं में तो दुर्लभ है लेकिन यह वयस्कों में परेशानी का कारण बन सकता है। साथ ही जब आपका शिशु बड़ा होने लगे तो उसे भी इस बात की अहमियत समझाएं कि वह अपने शरीर पर मौजूद इस तिल-मस्से या बर्थमार्क के बदलावों पर नजर रखे। जिन जरूरी बातों पर ध्यान रखना है, वे हैं- रंग में किसी तरह का बदलाव, साइज में बदलाव और आकार में बदलाव। अगर किसी तिल-मस्से में अनियमित बॉर्डर बन रहा हो तो इस बारे में भी स्किन के डॉक्टर या डर्मेटॉलजिस्ट से संपर्क करना चाहिए।

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अपने नवजात शिशु के शरीर पर किसी भी तरह का बर्थमार्क दिखना पैरंट होने के नाते आपके लिए किसी सदमे की तरह हो सकता है। कोई भी इंसान परफेक्ट नहीं होता, बावजूद इसके ज्यादातर लोगों के दिमाग में हमेशा ही एक परफेक्ट बच्चे की तस्वीर होती है। ऐसे में अगर शिशु के शरीर पर कोई ऐसा बर्थमार्क है जो स्पष्ट रूप से नजर आता हो तो हो सकता है कि लोगों की नजरें उस पर रहें, लोग उस जगह को घूर-घूर कर देखें या फिर इससे जुड़े सवाल पूछें। ऐसे में आपको पता होना चाहिए कि आपको उन्हें क्या और कैसे जवाब देना है।

अगर आपका बच्चा कम उम्र का है तो उस वक्त भी उसकी नजरें आप पर होंगी कि आप इस तरह की परिस्थिति का सामना कैसे कर रहे हैं और बर्थमार्क से जुड़े सवाल पूछने पर कैसी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। यही वह समय है जब बच्चा आपकी प्रतिक्रिया के हिसाब से अपने बर्थमार्क का सामना करना सीखेगा। लिहाजा बच्चों से बर्थमार्क के बारे में खुलकर और आसान शब्दों में बात करें ताकि वह उसे ठीक उसी तरह से स्वीकार कर पाएं जैसे वह अपने बालों के रंग या शरीर के किसी और हिस्से को स्वीकार करते हैं।

साथ ही बच्चों को आसान जवाब सिखाएं ताकि अगर कोई उनसे शरीर पर मौजूद बर्थमार्क के बारे में पूछे तो वे जवाब दे पाएं। जैसे- यह सिर्फ एक जन्म चिन्ह है और मैं इसके साथ ही पैदा हुआ था। साथ ही यह बेहद जरूरी है कि आप बर्थमार्क के मामले में भावनात्मक रूप से अपने बच्चे का पूरा समर्थन करें।

Dr Shivraj Singh

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