बर्थमार्क या जन्म चिन्ह मुख्य रूप से दो तरह का होता है और दोनों के होने का कारण अलग-अलग है।
- पहला है वस्कुलर (नाड़ी संबंधी) बर्थमार्क: ये तब बनते हैं जब रक्त धमनियां सही तरीके से नहीं बनती हैं। ये आमतौर पर सामान्य से ज्यादा चौड़ी होती हैं या ज्यादा संख्या में हो सकती हैं।
- दूसरा है पिग्मेन्टेड बर्थमार्क: ये जन्म चिन्ह तब बनते हैं जब कोशिकाएं ज्यादा विकसित हो जाती हैं (ओवरग्रोथ) और इस वजह से स्किन में रंजकता (पिगमेंटेशन) हो जाता है।
वस्कुलर बर्थमार्क 3 तरह का होता है- मैकुलर स्टेन्स, हेमेनजियोमा, पोर्ट-वाइन स्टेन्स। ये बर्थमार्क आमतौर पर गुलाबी, लाल या नीले रंग का होता है। इन रक्त धमनियों में मौजूद अतिरिक्त खून की वजह से कुछ वस्कुलर बर्थमार्क छूने पर गर्म भी महसूस हो सकते हैं। वस्कुलर बर्थमार्क, किस तरह के रक्त धमनियों में बना है उसके आधार पर वह देखने में और व्यवहार में अलग-अलग तरह का हो सकता है।
मैकुलर स्टेन्स: इन्हें सालमन पैचेज, एंजेल किसेस या स्टोर्क बाइट्स भी कहते हैं। ये देखने में बेहद हल्के लाल रंग के निशान होते हैं और ये वस्कुलर बर्थमार्क का सबसे कॉमन प्रकार है। ये आमतौर पर माथे या ललाट पर होते हैं, पलकों पर होते हैं, गर्दन के पीछे के हिस्से में होते हैं, नाक पर हो सकते हैं, होंठ और नाक के बीच के हिस्से (अपर लिप) में हो सकते हैं या सिर के पीछे हो सकते हैं। जब शिशु रोता है तो मैकुलर स्टेन्स बर्थमार्क ज्यादा स्पष्ट रूप से नजर आने लगते हैं। इनमें से ज्यादातर निशान शिशु के 1 या 2 साल के होते-होते अपने आप खत्म हो जाते हैं लेकिन कुछ शिशुओं में यह वयस्क होने तक मौजूद रहते हैं।
हेमेनजियोमा: ये जन्म चिन्ह जब स्किन की सतह पर होते हैं तो इन्हें छिछले निशान के तौर पर वर्गीकृत किया जाता है लेकिन स्किन की सतह के अंदर ये बेहद गहरे होते हैं। ये चिन्ह देखने में थोड़े उभरे हुए होते हैं और इनका रंग चटकदार लाल होता है और कई बार ये शिशु के जन्म लेने के कई दिन बाद तक भी शिशु के शरीर पर कहीं भी नजर नहीं आते हैं। गहरे हेमेनजियोमा नाम के बर्थमार्क का रंग नीला होता है क्योंकि इनमें वैसी रक्त धमनियां शामिल होती हैं जो स्किन के बेहद गहरी सतह में मौजूद होती हैं।
हेमेनजियोमा शिशु के जन्म के बाद शुरुआती 6 महीनों में बेहद तेजी से बढ़ते हैं लेकिन उसके बाद जब बच्चा 5 या 10 साल का होता है तब ये बर्थमार्क छोटा होकर अपने आप गायब हो जाता है। इनमें से कुछ बर्थमार्क अपने पीछे निशान भी छोड़ जाते हैं जिन्हें प्लास्टिक सर्जरी करवाकर हटाया जा सकता है। वैसे तो हेमेनजियोमा शरीर के किसी भी हिस्से पर हो सकता है लेकिन आमतौर पर यह सिर या गर्दन पर होता है। कई बार इस बर्थमार्क के आंख, मुंह या नाक के पास होने की वजह से देखने, खाने या सांस लेने में तकलीफ भी हो सकती है।
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पोर्ट वाइन स्टेन्स: यह बर्थमार्क स्किन के जिस हिस्से पर होते हैं उसका रंग इस तरह से बिगाड़ देते हैं जिसे देखकर ऐसा महसूस होता है मानो शरीर के उस हिस्से पर वाइन गिर गई हो। यह बर्थमार्क आमतौर पर चेहरा, गर्दन, बाजू या पैरों पर होता है। पोर्ट वाइन स्टेन्स किसी भी साइज का हो सकता है और जैसे-जैसे शिशु बढ़ता जाता है यह बर्थमार्क भी बड़ा होता जाता है। समय के साथ इनका रंग भी गहरा होता जाता है और वयस्कता आते-आते अगर इनका इलाज न किया जाए तो यह छूने में स्किन पर किसी कंकड़ की तरह महसूस हो सकते हैं। यह एक ऐसा बर्थमार्क है जो अपने आप से कभी भी नहीं हटता। अगर इस तरह का कोई बर्थमार्क आंखों के आसपास हो तो यह व्यक्ति के देखने की क्षमता को भी प्रभावित कर सकता है।
पिगमेन्टेड बर्थमार्क भी 3 तरह का होता है- कैफे-ऑ-ले स्पॉट्स, मंगोलियन स्पॉट्स और मोल्स। ये बर्थमार्क तब बनते हैं जब आपकी स्किन के किसी एक हिस्से पर दूसरे हिस्से की तुलना में पिगमेंट ज्यादा हो जाता है।
कैफे-ऑ-ले स्पॉट्स: ये बेहद कॉमन स्पॉट्स होते हैं और इनका रंग दूध वाली कॉफी जैसा होता है और इसी वजह से इन्हें यह नाम भी दिया गया है। ये शरीर के किसी भी हिस्से पर हो सकते हैं और कई बार तो जैसे-जैसे शिशु बड़ा होता जाता है इनकी संख्या भी बढ़ती जाती है। अगर शरीर पर इस तरह का सिर्फ एक निशान हो तो उससे किसी तरह की कोई समस्या नहीं होती। हालांकि अगर आपके शिशु के शरीर पर पेंसिल के इरेजर के साइज से बड़ा 6 से ज्यादा कैफे-ऑ-ले स्पॉट्स है तो डॉक्टर से अपने शिशु की जांच जरूर करवाएं। ऐसे बहुत से स्पॉट्स न्यूरोफाइब्रोमेटोसिस का संकेत हो सकते हैं। यह एक ऐसी आनुवांशिक बीमारी है जिसमें नर्व टीशूज के अंदर कोशिकाओं का सामान्य से अधिक ग्रोथ होने लगता है।
मंगोलियन स्पॉट्स: इन स्पॉट्स या पैचेज का रंग ब्लूइश-ग्रे होता है, ये पूरी तरह से फ्लैट होते हैं और आमतौर पर कमरे के निचले हिस्से में या कूल्हे पर पाए जाते हैं। यह बर्थमार्क उन लोगों में ज्यादा कॉमन होता है जिनकी स्किन डार्क कलर की है जैसे- अफ्रीका के लोग, एशिया के लोग, हिस्पैनिक और दक्षिण यूरोपीय देशों के लोग। इस बर्थमार्क के लिए किसी तरह के कोई इलाज की जरूरत नहीं होती और 4-5 साल की उम्र का होते-होते जैसे ही बच्चा स्कूल जाने लगता है, यह बर्थमार्क अपने आप फीका होकर गायब हो जाता है।
मोल्स (कन्जेनिटल नेवी): ज्यादातर लोगों को जीवन में कभी न कभी तिल-मस्से जरूर होते हैं। जो तिल या मस्सा, जन्म के समय से ही शरीर पर होता है उसे कन्जेनिटल नेवस कहते हैं और यह उम्रभर शरीर पर मौजूद रहता है। अगर इन तिल मस्सों या कन्जेनिटल नेवी का आकार बहुत बड़ा हो तो यह जीवन में आगे चलकर स्किन कैंसर या मेलानोमा का कारण बन सकते हैं। हालांकि तिल-मस्सों की वजह से कैंसर होने की आशंका कम ही होती है। मोल्स या तिल-मस्से आमतौर पर गोल शेप के होते हैं, इनका रंग टैन कलर का, भूरा या काला हो सकता है। ये बिलकुल फ्लैट दबे हुए हो सकते हैं या फिर उभरे हुए और कई बार तो इनमें से बालों की ग्रोथ भी हो जाती है।