जब घर में नन्हें मेहमान का आगमान होता है तो उसकी आवाज और किलकारियों के बीच खुशियां तो मिलती ही हैं, लेकिन इसके साथ ही साथ न्यू पैरंट्स को एक साथ कई चीजों का सामना भी करना पड़ता है। नवजात को बार-बार दूध पिलाने से लेकर पैरंट्स की रातों की नींद भी उड़ जाती है। इस नई जिंदगी को दुनिया में लाने के बाद आपको भी नई लाइफस्टाइल के साथ पूरी तरह से समन्वय बनाकर चलना पड़ता है। एक तरफ जहां बच्चे की सेहत बनी रहे इसके लिए बच्चे का टीकाकरण करवाना जरूरी है, ठीक उसी तरह बच्चे के मल यानी पॉटी पर भी नजर रखनी जरूरी है।
बच्चे की पॉटी का रंग बताता है सेहत का हाल
जब बात बच्चे की सेहत की आती है तो नवजात शिशु के पेशाब और मल के जरिए भी बच्चे की सेहत के बारे में काफी कुछ पता लगाया जा सकता है। जन्म के बाद शुरुआती कुछ दिनों, कुछ हफ्तों और कुछ सालों तक बच्चा कैसी पॉटी कर रहा है, इससे यह पता लगाया जा सकता है कि बच्चे के शरीर में अंदर आखिर क्या चल रहा है। अनुभवी मां, नर्स, नैनी और डॉक्टर तो नवजात शिशु की पॉटी का रंग देखकर बता सकते हैं कि आखिर बच्चे की सेहत ठीक है या नहीं। आप नवजात को क्या और किस तरह से फीड कर रहे हैं, इसका भी बच्चे की पॉटी पर काफी असर पड़ता है।
ब्रेस्टफीडिंग करने और फॉर्मूला मिल्क पीने वाले बच्चों की पॉटी अलग-अलग तरह की
विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO की सलाह के मुताबिक अगर कोई मां अपने बच्चे को 6 महीने तक सिर्फ अपना दूध पिलाती है तो उस शिशु की पॉटी, बोतल से डिब्बा बंद दूध पीने वाले बच्चे या फिर कभी कभार मां का दूध पीने वाले बच्चों की तुलना में काफी अलग होगी। बच्चे की पॉटी से आने वाली बदबू और उसका टेक्स्चर भी ये बताने के लिए काफी है कि बच्चे का पाचन तंत्र सही ढंग से काम कर रहा है या नहीं। लिहाजा बच्चे के जन्म के बाद उसकी पॉटी पर नजर रखना भी जरूरी है, क्योंकि यह बच्चे की देखभाल से जुड़ा एक अहम हिस्सा है। ऐसे में नवजात शिशु की पॉटी से जुड़ी कौन-कौन सी बात आपको पता होनी चाहिए, यहां जानें।