जब घर में नन्हें मेहमान का आगमान होता है तो उसकी आवाज और किलकारियों के बीच खुशियां तो मिलती ही हैं, लेकिन इसके साथ ही साथ न्यू पैरंट्स को एक साथ कई चीजों का सामना भी करना पड़ता है। नवजात को बार-बार दूध पिलाने से लेकर पैरंट्स की रातों की नींद भी उड़ जाती है। इस नई जिंदगी को दुनिया में लाने के बाद आपको भी नई लाइफस्टाइल के साथ पूरी तरह से समन्वय बनाकर चलना पड़ता है। एक तरफ जहां बच्चे की सेहत बनी रहे इसके लिए बच्चे का टीकाकरण करवाना जरूरी है, ठीक उसी तरह बच्चे के मल यानी पॉटी पर भी नजर रखनी जरूरी है।

बच्चे की पॉटी का रंग बताता है सेहत का हाल

जब बात बच्चे की सेहत की आती है तो नवजात शिशु के पेशाब और मल के जरिए भी बच्चे की सेहत के बारे में काफी कुछ पता लगाया जा सकता है। जन्म के बाद शुरुआती कुछ दिनों, कुछ हफ्तों और कुछ सालों तक बच्चा कैसी पॉटी कर रहा है, इससे यह पता लगाया जा सकता है कि बच्चे के शरीर में अंदर आखिर क्या चल रहा है। अनुभवी मां, नर्स, नैनी और डॉक्टर तो नवजात शिशु की पॉटी का रंग देखकर बता सकते हैं कि आखिर बच्चे की सेहत ठीक है या नहीं। आप नवजात को क्या और किस तरह से फीड कर रहे हैं, इसका भी बच्चे की पॉटी पर काफी असर पड़ता है।

ब्रेस्टफीडिंग करने और फॉर्मूला मिल्क पीने वाले बच्चों की पॉटी अलग-अलग तरह की

विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO की सलाह के मुताबिक अगर कोई मां अपने बच्चे को 6 महीने तक सिर्फ अपना दूध पिलाती है तो उस शिशु की पॉटी, बोतल से डिब्बा बंद दूध पीने वाले बच्चे या फिर कभी कभार मां का दूध पीने वाले बच्चों की तुलना में काफी अलग होगी। बच्चे की पॉटी से आने वाली बदबू और उसका टेक्स्चर भी ये बताने के लिए काफी है कि बच्चे का पाचन तंत्र सही ढंग से काम कर रहा है या नहीं। लिहाजा बच्चे के जन्म के बाद उसकी पॉटी पर नजर रखना भी जरूरी है, क्योंकि यह बच्चे की देखभाल से जुड़ा एक अहम हिस्सा है। ऐसे में नवजात शिशु की पॉटी से जुड़ी कौन-कौन सी बात आपको पता होनी चाहिए, यहां जानें।

  1. कितने तरह की होती है नवजात शिशु की पॉटी? - types of baby poop in Hindi
  2. नवजात शिशु की पॉटी का रंग - baby poop color in Hindi
  3. बच्चे की पॉटी का टेक्सचर - texture of baby poop in Hindi
  4. कितनी बार पॉटी करता है नवजात शिशु? - frequency of baby poop in Hindi
  5. बच्चे की पॉटी से आने वाली बदबू - baby poop smell in Hindi
  6. पॉटी में दिखे ये संकेत तो हो जाएं सावधान - warning signs of baby poop in Hindi
  7. नवजात शिशु को कब नहीं होती पॉटी? - when does your infant does not poop in Hindi?
  8. अगर नवजात शिशु को न हो रही हो पॉटी - if your baby is not pooping in Hindi
  9. बच्चे की पॉटी और डाइपर चेंज को कैसे हैंडल करें? - tips to handle baby poop and diaper change in Hindi
सेहत का हाल बताती है नवजात शिशु की पॉटी, जानें इसके बारे में कुछ जरूरी बातें के डॉक्टर

आपके नवजात शिशु की पॉटी सामान्य है या उसमें किसी तरह की परेशानी की बात है? यह जानने के लिए पहले आपको यह जानना होगा कि आखिर बच्चे का मल कितने तरह का होता है। साथ ही यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि बच्चा सिर्फ मां का दूध पीता है या फॉर्मूला मिल्क। तो मुख्य रूप से 5 तरह की होती है बच्चे की पॉटी -

  • मेकोनियम पॉटी -
    जन्म के 48 घंटे बाद आमतौर पर नवजात शिशु अपनी पहली पॉटी निकालता है। यह देखने में अलकतरे जैसी और चिपचिपी होती है। इस पॉटी को मेकोनियम कहते हैं जो अमीनियॉटिक फ्लूइड, त्वचा की कोशिकाएं, म्यूकस और जैसी कई चीजों से बनी होती है। यह वो चीजें होती हैं जिन्हें गर्भ में रहते हुए बच्चा निगल लेता है।
  • परिवर्तनकालिक (ट्रांजिशनल) पॉटी -
    एक बार मेकोनियम शरीर से बाहर आ गया, उसके बाद जब तक बच्चा पूरी तरह से और सही ढंग से दूध पीना शुरू नहीं कर देता, तब तक जिस तरह की पॉटी वो करता है उसे ट्रांजिशनल कहते हैं। यह पॉटी धीरे-धीरे सॉफ्ट होती जाती है। बच्चे के जन्म के तीसरे, चौथे या पांचवे दिन आमतौर पर इस तरह की पॉटी निकलती है।
  • ब्रेस्टफीड पॉटी -
    वैसे बच्चे जो सिर्फ मां का दूध पीते हैं उनकी पॉटी सॉफ्ट होती है और इसमें से किसी तरह की खराब बदबू भी नहीं आती है। आमतौर पर मां का दूध पीने वाले बच्चे एक दिन में 3 बार पॉटी करते हैं। बच्चे के जन्म के करीब 5 दिन बाद इस तरह की पॉटी होती है और इसे देखकर समझा जा सकता है कि बच्चे सही तरीके से दूध पी रहा है या नहीं।
  • फॉर्मूला दूध वाली पॉटी -
    अगर किसी बच्चे को थोड़ा बहुत या पूरी तरह से डिब्बाबंद दूध पिलाया जाता है तो बच्चे की पॉटी टूथपेस्ट के टेक्सचर जैसी होती है और इस तरह के बच्चे मां का दूध पीने वालों की तुलना में कम पॉटी निकालते हैं। साथ ही इसमें से काफी ज्यादा बदबू भी आती है। बच्चे के जन्म के करीब 1 सप्ताह बाद इस तरह की पॉटी होती है।
  • अनाज खाने वाले बच्चे की पॉटी -
    जब आप बच्चे को अनाज (सॉलिड फूड) खिलाना शुरू करते हैं तो उसकी पॉटी अलग तरह की हो जाती है और ऐसा आमतौर पर बच्चे के 6 महीने का हो जाने के बाद होता है। इस तरह की पॉटी कई बार मोटी और काफी कड़ी होती है और उसमें खाने के वैसे टुकड़े भी होते हैं जिन्हें बच्चा पचा नहीं पाता। चूंकि बच्चा अनाज खाना शुरू कर देता है इसलिए इस तरह की पॉटी काफी बदबूदार भी होती है।
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कई बार न्यू पैरंट्स, जिन्हें सारी बातें पता नहीं होती वे बच्चे की पॉटी का बदलता रंग देखकर घबरा जाते हैं, क्योंकि ज्यादातर पैरंट्स को यही लगता है कि सिर्फ पीली या भूरी रंग की पॉटी ही नॉर्मल है और बाकी किसी रंग की नहीं। ऐसे में आपको यह बात जरूर याद रखनी चाहिए कि जन्म के बाद शुरुआती कुछ महीनों में आपके बच्चे का पेट काफी छोटा होता है और वह सिर्फ मां का दूध ही पीता है। ऐसे में आपको अपने बच्चे की पॉटी में कई तरह के रंग भी नजर आ सकते हैं।

  • काली पॉटी -
    बच्चे की मेकोनियम पॉटी काली रंग की होती है और आमतौर पर यह एक हफ्ते के अंदर ठीक हो जाती है। लेकिन अगर सप्ताह भर के बाद भी बच्चे की पॉटी का रंग काला ही रहता है, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। अगर मेकोनियम स्टेज निकल जाने के बाद भी बच्चे की पॉटी में काले रंग के कुछ धब्बे नजर आएं तो इसका मतलब ये है कि बच्चे ने दूध पीने के दौरान मां का खून भी निगल लिया है। इसके लिए मां के ब्रेस्ट और निपल्स का इलाज करवाएं तो बच्चे की काली पॉटी की समस्या दूर हो जाएगी।
  • सरसों जैसी पीली पॉटी -
    अगर आपका बच्चा 6 महीने तक सिर्फ मां का दूध ही पीता है तो उसकी पॉटी का रंग सरसों जैसा पीले रंग का होना चाहिए। मेकोनियम पॉटी बंद होने के बाद आपको बच्चे की पॉटी का रंग ऐसा दिखेगा और यह तब तक ऐसा रहेगा जब तक आप बच्चे को अनाज खिलाना न शुरू कर दें।
  • भड़कीले पीले रंग की पॉटी -
    अगर बच्चा डिब्बे वाला दूध पीता है तो उसकी पॉटी का रंग ऐसा होगा। लेकिन अगर मां का दूध पीने वाले बच्चे की पॉटी का रंग ऐसा है और बेहद पतला व बार-बार पॉटी हो रही है तो यह बच्चे को डायरिया होने का संकेत हो सकता है।
  • नारंगी रंग की पॉटी -
    मां का दूध पीने वाले या डिब्बे का दूध पीने वाले में से किसी भी तरह के बच्चे की पॉटी का रंग नारंगी रंग का हो सकता है, अगर बच्चे के पाचन प्रणाली में पिगमेंट्स हों। इस रंग को लेकर परेशान होने की तब तक जरूरत नहीं, जब तक बच्चा बार-बार पॉटी न कर रहा हो या पॉटी बहुत ज्यादा पतली ना हो।
  • लाल रंग की पॉटी -
    अगर आपके बच्चे ने गाजर, अनार या टमाटर का जूस पिया है और तब उसकी पॉटी का रंग लाल है तो घबराने की कोई बात नहीं। लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो यह घबराने की बात हो सकती है। लाल रंग की पॉटी, मल में खून आने का संकेत है तो आंत में किसी तरह के इंफेक्शन, दूध से जुड़ी कोई एलर्जी का संकेत हो सकता है। लिहाजा तुरंत पीडियाट्रिशन से संपर्क करें।
  • हरी या भूरे रंग की पॉटी -
    डिब्बे वाला फॉर्मूला मिल्क पीने वाले बच्चों की पॉटी भी आमतौर पर इस रंग की होती है। लेकिन अगर आपका बच्चा सिर्फ मां का दूध पीता है और उसका मेकोनियम पॉटी का स्टेज पार हो चुका है तो आपको तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
  • गहरे हरे रंग की पॉटी -
    अगर आपका बच्चा सॉलिड चीजें खाने लगा है, जैसे- पालक या मटर आदि तो उसका असर उसकी पॉटी पर दिख सकता है और उसकी पॉटी हरे रंग की हो सकती है। अगर डॉक्टर की तरफ से बच्चे को किसी तरह का आयरन सप्लिमेंट दिया गया है तब भी बच्चे की पॉटी हरी हो सकती है।
  • सफेद या ग्रे रंग की पॉटी -
    अगर बच्चे को पिलाए जा रहे दूध या फिर खिलाए जा रहे खाने को पचाने के लिए बच्चे का लिवर जितना जरूरी है उतने बाइल का उत्पादन नहीं कर रहा है तो बच्चे की पॉटी का रंग सफेद या ग्रे हो सकता है। यह एक गंभीर बीमारी हो सकती है। ऐसे में अगर बच्चे की पॉटी का रंग सफेद या ग्रे हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

नवजात शिशु की पहली पॉटी यानी मेकोनियम का स्टेज एक बार पार हो जाए उसके बाद बच्चे की पॉटी के टेक्सचर में स्थिरता आ जानी चाहिए। बच्चे की पॉटी की बनावट में आपको इन बातों का ध्यान रखना चाहिए -

  • बच्चे की पॉटी बेहद नरम, मुलायम और लुगदी जैसी होनी चाहिए, ताकि मलत्याग करने में बच्चे को ज्यादा जोर न लगाना पड़े।
  • अगर बच्चा सिर्फ मां का दूध पी रहा है तो बच्चे की पॉटी नरम होगी, जबकी डिब्बे का दूध पीने वाले बच्चे की पॉटी थोड़ी मोटी लेकिन नरम होगी।
  • स्तनपान करने वाले बच्चों की पॉटी दानेदार हो सकती है, क्योंकि वैसा मिल्क फैट जो पच नहीं पाता वह सीधे दाने या बीज के तौर पर पॉटी में नजर आता है।
  • अगर बच्चा बेहद ज्यादा पतली पॉटी कर रहा है तो इसका मतलब है कि बच्चा जो भी खा पी रहा है, वह उसे पचा नहीं पा रहा है। पतली पॉटी, डायरिया के अलावा आंत से जुड़े इंफेक्शन या डिहाइड्रेशन का भी संकेत हो सकती है।
  • अगर बच्चे की पॉटी बेहद कड़ी है तो यह कब्ज का संकेत है और इसकी कई वजहें हो सकती हैं जैसे- अपच, किसी तरह की कोई बीमारी या फिर डिब्बे का दूध जो आप बच्चे को पिला रही हैं।

आपका नवजात शिशु एक दिन में कितनी बार पॉटी करता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि बच्चा दिनभर में कितनी बार दूध पी रहा है। अगर बच्चा पूरी तरह से सिर्फ मां का दूध पीता है तो वह 1 दिन में 3 बार या फिर ज्यादा से ज्यादा 8 बार भी पॉटी कर सकता है। इसे सामान्य की कैटिगरी में रखा जा सकता है। औसतन बात करें तो सिर्फ ब्रेस्टफीडिंग करने वाला एक बच्चा एक दिन में करीब 4 बार मलत्याग करता है। इनकी तुलना में डिब्बे का फॉर्मूला मिल्क पीने वाले बच्चे कम पॉटी करते हैं। इतना ही नहीं, अगर आप स्तनपान से डिब्बे वाला दूध या फिर इसके उलट क्रम अपनाती हैं तब भी बच्चे एक दिन में कितनी बार पॉटी करता है, इस फ्रिक्वेंसी में अंतर आ सकता है। साथ ही साथ जब बच्चा 6 महीने का हो जाता है और आप बच्चे को अनाज खिलाना शुरू करती हैं, तब भी आपको बच्चे की पॉटी की फ्रिक्वेंसी में अंतर दिखेगा। जब भी आप बच्चे को अपना दूध पिलाना बंद करने का फैसला करें तो एक बार में एक टाइम का दूध बंद करें। अचानक से पूरी तरह से बंद न करें। ऐसा इसलिए ताकि बच्चे का पाचन तंत्र इस बदलाव के विकल्प के लिए तैयार हो जाए- फिर चाहे वह डिब्बे का दूध हो या फिर अनाज।

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टीवी-फिल्मों में देखकर आपको भी ऐसा ही लगता होगा ना कि बच्चे की पॉटी बेहद बदबूदार होती है और इसलिए डाइपर चेंज करना आपके लिए मुश्किलों भरा काम हो सकता है? लेकिन हकीकत ये है कि नवजात शिशु का मल गंधहीन होता है और इसकी वजह ये है कि नवजात शिशु की आंत में उस तरह का गट बैक्टीरिया नहीं होता जो वयस्कों की आंत में होता है। जैसे-जैसे समय के साथ बच्चे के पेट में हेल्दी गट बैक्टीरिया विकसित होता जाता है, वैसे-वैसे बच्चे की पॉटी बदबूदार होती जाती है। आमतौर पर देखें तो मां का दूध पीने वाले बच्चे का मल, डिब्बे वाला दूध पीने वाले बच्चे की तुलना में कम बदबूदार होता है और ऐसा होना सामान्य सी बात है। हालांकि, अगर आपके बच्चे के मल से हद से ज्यादा गंदी बदबू आ रही हो तो यह किसी तरह के इंफेक्शन का भी संकेत हो सकता है और इसलिए आपको अपने डॉक्टर से जरूर संपर्क करना चाहिए। लेकिन एक बात जो आपको हमेशा याद रखनी है वो ये है कि हर तरह की पॉटी से बदबू आती ही है और इसके लिए आप कुछ नहीं कर सकते।

अगर आपको अपने बच्चे की पॉटी में इनमें से कोई भी संकेत दिखे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें -

  • अगर पॉटी बेहद पतली हो-
    यह डायरिया का संकेत हो सकता है, जो किसी न किसी तरह के इंफेक्शन की वजह से होता है। इसे कंट्रोल करना बेहद जरूरी है, क्योंकि अगर बच्चे को ज्यादा पतली पॉटी और बार-बार पॉटी आए तो बच्चा डिहाइड्रेट हो सकता है और उसके शरीर में पानी की कमी हो सकती है।
  • अगर पॉटी बेहद कड़ी हो-
    यह इस बात का संकेत है कि आपके बच्चे को कब्ज की दिक्कत है। साथ ही अगर बच्चा पॉटी करने के दौरान बहुत जोर लगा रहा है या फिर रो रहा है तो यह कॉलिक यानी उदरशूल या पेट दर्द का भी संकेत हो सकता है।
  • अगर पॉटी का रंग लाल हो-
    अगर किसी तरह की लाल रंग की चीज खाए बिना ही आपके बच्चे की पॉटी लाल रंग की है तो यह रेक्टल ब्लीडिंग या फिर मिल्क एलर्जी का संकेत हो सकता है।
  • अगर मल में म्यूकस आए-
    अगर बच्चे को किसी तरह का इंफेक्शन हो गया हो, तो बच्चे की पॉटी में हरे रंग का निशान नजर आता है जो म्यूकस हो सकता है।
  • अगर पॉटी सफेद रंग की हो-
    यह इस बात का संकेत है कि आपके बच्चे का शरीर खाने को पचाने के लिए जितना जरूरी है, उतने बाइल का उत्पादन नहीं कर रहा है।
  • अगर पॉटी में फेन या झाग हो-
    अगर बच्चे की पॉटी में झाग या बुलबुले नजर आएं तो इसका मतलब ये है कि बच्चे को स्तनपान के दौरान आखिर का या पिछला वाला दूध नहीं मिल पा रहा है। ब्रेस्टफीडिंग के दौरान शुरुआत में जो दूध निकलता है, उसमें कैलोरीज की मात्रा कम होती है और बाद में जो दूध निकलता है वह ज्यादा पौष्टिक होता है और उसी से बच्चे का पेट भरता है।
  • अगर डाइपर से बाहर रिस रही हो पॉटी-
    अगर बच्चे की पॉटी इतनी ज्यादा पतली है कि वह डाइपर से भी बाहर निकल जा रही है तो यह किसी तरह की एलर्जी, आंत में होने वाले इंफेक्शन, डायरिया या फिर रोटा वायरस इंफेक्शन का संकेत हो सकता है।

इससे पहले की न्यू पैरंट्स यह समझें कि आखिर नवजात शिशु को पॉटी कैसी करायी जाए, उन्हें यह समझने की जरूरत है कि आखिर नॉर्मल स्टूल या पॉटी होती क्या है? नवजात शिशु जो जन्म के बाद एक दिन में कई बार पॉटी करता था वह हो सकता है कि अब जैसे-जैसे वह बड़ा हो रहा है वह एक दिन में 1 बार या कई-कई दिन में 1 बार पॉटी करे। इस तरह की सिचुएशन को भी नॉर्मल ही कहा जाता है। जैसे-जैसे नवजात शिशु बड़ा होने लगता है, उसकी आंतों में मौजूद गट बैक्टीरिया में भी बदलाव होने लगता है। पाचन की प्रक्रिया में इन गट बैक्टीरिया का अहम रोल है और बच्चे के शुरुआती कुछ महीनों में पॉटी में होने वाले कई बदलाव के लिए भी यही बैक्टीरिया जिम्मेदार होता है। वैसे बच्चे जो सिर्फ मां का दूध पीते हैं उनमें कब्ज और पॉटी निकालने में दिक्कत की आशंका कम होती है, उन बच्चों की तुलना में जो डिब्बे वाला फॉर्मूला मिल्क पीते हैं। साथ ही साथ कई बार जब बच्चा मां के दूध से सॉलिड फूड या कई बार डिब्बे के दूध पर ट्रांसफर होता है तब भी बच्चे को पॉटी करने में दिक्कत हो सकती है।

अगर आपका बच्चा सही तरीके से मलत्याग नहीं कर रहा तो हो सकता है कि उसे कब्ज यानी कॉन्स्टिपेशन की दिक्कत हो गई हो। लेकिन डॉक्टर को बिना दिखाए या डॉक्टर से पूछे बिना बच्चे को किसी भी तरह की दवा या घरेलू नुस्खा न दें।

  • अगर आपका बच्चा सिर्फ मां का दूध पीता है और तब भी उसे पॉटी करने में दिक्कत हो रही है तो आप बच्चे को और ज्यादा बार दूध पिलाएं और अगर आगे किसी तरह की दिक्कत या सुझाव की जरूरत हो तो अपने पीडियाट्रिशन से संपर्क करें।
  • आप चाहें तो बच्चे को पीठ के बल लिटाकर पैरों से साइकल चला सकती हैं। ऐसा करने से भी पेट पर दबाव बनता है और पॉटी बाहर आ सकती है।
  • अगर आपका बच्चा डिब्बे वाला दूध पीता है तो हो सकता है कि उस दूध में पानी की कमी हो, जिस वजह से बच्चे को कब्ज हो रहा है। इस बात का ध्यान रखें कि डिब्बे पर जो निर्देश लिखा है आप उसके अनुसार ही दूध बना रही हों।
  • अगर बच्चा 6 महीने से अधिक उम्र का है और उसने अनाज खाना शुरू कर दिया है तो बच्चे को खाने के बीच ज्यादा पानी पिलाएं। आप चाहें तो बच्चे को ज्यादा फल और सब्जियों का जूस दे सकती हैं।
  • इसके अलावा आप चाहें तो बच्चे की पेट की हल्के हाथ से मसाज कर सकती हैं, या फिर हल्के गर्म पानी से बच्चे को नहला सकती हैं। इससे भी शरीर की मांसपेशियां रिलैक्स होती हैं और बच्चे को मलत्याग करने में दिक्कत नहीं आती।

जैसे-जैसे आपका बच्चा बड़ा होता जाता है, उसकी पॉटी के रंग, टेक्सचर और टाइप में भी बदलाव होने लगता है। ऐसे में हम आपको कुछ बेहद आसान टिप्स के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें फॉलो कर बच्चे का डाइपर चेंज करना और बच्चे की पॉटी पर नजर बनाए रखना भी आसान होगा।

  • बच्चे के गंदे डाइपर को छूने से पहले और बाद में अच्छी तरह से साबुन पानी से हाथ धो लें।
  • बच्चे को हमेशा किसी ऐसी जगह पर डाइपर बदलें जो पूरी तरह से समतल हो और सेफ हो, जहां से बच्चे के गिरने का कोई खतरा न हो।
  • अगर आपको बदबू कुछ ज्यादा ही फील होती हो तो डाइपर चेंज करते वक्त या तो मास्क पहन लें या फिर नींबू के ताजे कटे टुकड़े को पास में रखें।
  • किसी भी बच्चे को गीला और गंदा डाइपर पसंद नहीं आता, इसलिए जल्दी चेंज कर दें। डाइपर चेंज के दौरान बच्चा रोए नहीं और बिना किसी नखरे के आराम से डाइपर बदलवा ले, इसके लिए आप चाहें तो बच्चे से बात कर सकती हैं या उन्हें गाना सुना सकती हैं।
  • डाइपर चेंज करने के दौरान बच्चे को नरम कपड़े, गीली रुई या फिर वेट वाइप्स से अच्छी तरह से आगे से पीछे पूरी तरह से साफ करें, ताकि किसी भी तरह का कीटाणु बच्चे के जननांग तक न पहुंच जाए।
  • बच्चे के इस्तेमाल हो चुके डाइपर को सही तरीके से डस्टबिन में फेंके, इधर-उधर न डालें। अगर आप कपड़े के डाइपर का इस्तेमाल कर रही हों तो उन्हें अच्छी तरह से धोकर सूरज की रोशनी में सुखाएं, क्योंकि सूरज की रोशनी सबसे बेस्ट कीटाणुनाशक है।
Dr. Pritesh Mogal

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पीडियाट्रिक
8 वर्षों का अनुभव

Dr Shivraj Singh

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13 वर्षों का अनुभव

Dr. Abhishek Kothari

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9 वर्षों का अनुभव

Dr. Varshil Shah

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7 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

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