बच्चे की आवाज और बोली हर किसी को अच्छी लगती है। मां-बाप के साथ ही घर के सभी लोग बच्चे के मुंह से निकलने वाले पहले शब्द के लिए बेसब्री से इंतजार करते हैं। शिशु जन्म लेने से पहले ही आपकी भाषा को सीखना शुरु कर देते हैं। तीन साल तक बच्चे माता-पिता के द्वारा बोले जाने वाली भाषा को सीखते हैं, इसी समय बच्चे के दिमाग का विकास होना शुरू होता है। बच्चा कितनी तेजी से बोलना सीखता है यह उसकी सीखने की क्षमता पर भी निर्भर करता है। हर बच्चे के सीखने के क्षमता अलग-अलग हो सकती है।

बच्चा बोलना कब शुरू करता है और इस दौरान आप उसकी कैसे मदद कर सकती हैं, इन सभी विषयों को इस लेख में विस्तार से बताया गया है। साथ ही आपको यह भी बताया गया है कि बच्चा पहला शब्द कब बोलता है और बच्चे का न बोलना कब आपके लिए चिंता का कारण हो सकता है।

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  1. शिशु या बच्चों के बोलने की सही उम्र - Shishu ya bache ke bolne ki sahi umar
  2. बच्चे बोलना कब व कैसे सीखते हैं - Bache bolna kab kaise sikhte hai
  3. बच्चे को बोलना कैसे सिखाएं - Bache ko bolna sikhana, kaise sikhaye
  4. बच्चे का न बोलना कब चिंता का कारण हो सकता है? - Bache ka na bolna kab chinta ka karan ho sakta hai
बच्चे कब कैसे बोलना सीखते और शुरू करते हैं के डॉक्टर

आपका बच्चा अपने पहले तीन वर्षों के दौरान बात करना सीखता है। बच्चा अपने पहले शब्द को बोलने से बहुत पहले भाषा के नियमों को सीखना शुरू कर देता है। माता-पिता अपनी बात को एक दूसरे तक पहुंचाने के लिए किसी भाषा शैली का उपयोग करते हैं और वह कैसे बोलते हैं, इस प्रक्रिया को बच्चा गर्भ से ही समझना शुरू कर देता है।

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बच्चा लगभग छह महीनों तक रोकर ही अपनी हर बात को माता-पिता को बताने की कोशिश करता है। लेकिन करीब साढ़े चार महीने में, वह कुछ ध्वनियों और चीजों के बीच एक तालमेल करना शुरू कर देता है। आपके होंठो की हरकत से बच्चा इस बात को सीखने का प्रयास करता है कि आप किसी चीज के बारे में बात कर रहें हैं। 

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बच्चा अपनी जीभ, होठों, तालु और निकल रहे दांतों का इस्तेमाल करना शुरू करता है। सबसे पहले बच्चा सिर्फ रोता है, जबकि पहले महीने वह "ओह" या "आह" कहना सीखता है और इसके बाद ही वह अन्य शब्द बोलने का प्रयास करता है। सामान्य 6 माह तक बच्चा अपनी लड़खड़ाती जबान से पहला शब्द मां या दादा कहना सीख जाता है।

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इसके बाद बच्चा अपने आसपास के माहौल से अन्य शब्द सीखना शुरू कर देता है और करीब 8 माह से 2 साल तक बच्चा दो या चार शब्दों को जोड़कर वाक्य बोलने लगात है।

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बच्चे के द्वारा किसी भाषा या बोली को बोलने या समझने की एक निश्चित प्रक्रिया होती है। यह प्रक्रिया हर बच्चे में सामान्यतः एक ही तरह की होती है। अगर बच्चे को शुरुआती दौर से दो भाषाओं या बोली का माहौल मिलता है तो वह जन्म से दोनों भाषाओं और बोलियों को सीखना और बोलना शुरू कर देता है।  

गर्भाशय से ही भाषा को समझना

कई रिसर्चर इस बात को मानते हैं कि बच्चा मां के गर्भ से ही भाषा को समझना शुरू कर देता है। गर्भ में बच्चे को आपके दिल की धड़कनों को सुनने की आदत हो जाती है और वह भीड़ में भी आपकी आवाज को अन्य लोगों की आवाजों के बीच में पहचान जाता है। 

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तीन माह में बच्चे का बोलना

तीन महीने का होने तक, बच्चा आपकी आवाज को सुनने, बात करते समय आपके चेहरे को देखने और किसी ध्वनि व आवाज पर अपनी प्रतिक्रिया देना शुरू कर देता है। अधिकतर शिशु पुरुष की आवाज की तुलना में महिलाओं की आवाज को ज्यादा पंसद करते हैं। इसके अलावा कई शिशु गर्भ के दौरान सुने गीत और आवाजों को ही सुनना पसंद करते हैं। तीन महीने के अंतिम दौर में बच्चे किसी के द्वारा गीत गाने पर या खुश होने पर अपनी प्रतिक्रिया देने लगते हैं।

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6 माह में बच्चे का बोलना

इस समय तक बच्चा कुछ शब्द बोलना शुरू कर देता है। 6 माह का होने पर बच्चा साधारण शब्द जैसे दादा व मां बोलने लगता है, इसके साथ ही वह अपने नाम को भी समझने लगता है। इस समय बच्चे अपनी मातृभाषा और अन्य भाषा के बीच अंतर को भी समझ जाते हैं। इसके साथ ही वह अपनी खुशी और दुख को जाहिर करने का तरीका भी सीख जाते हैं, लेकिन इसके अलावा वह अन्य शब्दों के मतलब को नहीं समझ पाते हैं।

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9 माह में बच्चे का बोलना

9 महीनों के दौरान बच्चा बेहद ही साधारण और आम बोलचाल के शब्द जैसे ‘हां’, ‘ना’, ‘टा-टा या बाय-बाय’ के बारे में सीख जाता है। आसान शब्दों को सीखने के बाद बच्चा व्यंजन ध्वनियों को सीखना शुरू कर देता है।

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12 माह में बच्चों का बोलना  

एक साल का होते-होते बच्चे हर समय सुनने वाले शब्दों के मतलब को समझना शुरू कर देते हैं। इस उम्र में अधिकतर बच्चे अपने शब्दों को साफ-साफ कहना शुरू कर देते हैं।

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18 माह में बच्चों का बोलना

डेढ़ साल का होने पर बच्चे सरल शब्दों के साथ ही अपने आसापास के लोगों को बुलाने लग जाते हैं। चीजों और शरीर के अंगों के नाम लेने लग जाते हैं। इसके साथ ही वह आपके द्वारा बोले जाने वाले शब्दों को दोहराना भी शुरू कर देते हैं। बेशक, वह पूरा वाक्य बोल नहीं पाते हों, लेकिन आपके द्वारा बोले गए वाक्य का अंतिम शब्द जरूर बोलना शुरू कर देते हैं।

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दो साल का होने पर बच्चों का बोलना

दो साल का होने तक बच्चे दो या चार शब्दों को मिलाकर बोलना या अपनी बात माता-पिता को कहना शुरू कर देते हैं। इस उम्र में बच्चे किसी वस्तु को खुद से जोड़ना भी सीख जाते हैं जैसे – मेरा कप, मेरी मां व आदि।

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तीन साल होने पर बच्चों का बोलना

जब तक बच्चा तीन साल का होता है, तब तक वह कई तरह के शब्दों को सीख जाता है। इसके साथ ही वह संकेतिक शब्दों को भी पहचानने लगता है और पूरे-पूरे वाक्य भी बोलने लगता है।

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बच्चे बोलना शुरू करने से पहले ही आपकी बातों को समझना शुरू कर देते हैं। कई बच्चे जब एक या दो शब्द बोलना शुरू करते हैं, उस समय भी वह करीब 25 या उससे भी अधिक शब्दों को समझने लगते हैं। नीचे बताए गए तरीको को अपनाकर आप बच्चे को बोलने में मदद कर सकते हैं।

  1. बच्चे के साथ बात करने का प्रयास करें –
    अपने शिशु को बोलने से रोकना, उसको सिखाने की प्रक्रिया में बाधा डालता है। बच्चा आप से बोलना सिखता है। बच्चे से बात करते समय आप सरल शब्दों का प्रयोग करें और वाक्यों को साफ बोलने का प्रयास करें। अपने आसपास की चीजों के बारे में बताएं और बच्चे की पसंद की चीजों पर ही बात करें, चाहें वह खाने-पीने की ही बात क्यों न हो। वह निरंतर अपनी प्रतिक्रिया न दे पा रहा हो तब भी आप उससे बात करने का प्रयास करती रहें। (और पढ़ें - नवजात शिशु की उल्टी को ठीक करने के उपाय)
     
  2. बच्चे को लोरी सुनना - 
    माताएं अकसर अपने बच्चे से तेज आवाज में बात करती हैं, माताओं की यह सहज प्रवृत्ति शिशुओं के लिए अच्छी साबित होती है। मां की तेज आवाज और लोरी सुनने से शिशु में भाषा की समझ तेजी से बढ़ती है। इससे शिशु न सिर्फ सहज महसूस करता है, बल्कि उसका मनोरंजन भी होता है। लोरी के शब्द सुनकर शिशु को कई नई चीजें जानने का मौका मिलता है। (और पढ़ें - बच्चे को मिट्टी खाने की आदत)
     
  3. कहानी पढ़ कर सुनाएं –
    बच्चे के साथ अनुभवों और भावनाओं को शेयर करने का यह एक अच्छा विकल्प होता है। इसका फायदा यह होता है कि बच्चा कहानियों में रुचि लेने लगता है और रात को आराम से सो जाता है। (और पढ़ें - नवजात शिशु को खांसी क्यों होती है)
     
  4. बच्चे को प्रोत्साहित करें –
    जब भी बच्चा किसी शब्द को बोलने का प्रयास करें, तो आप उसको प्रोत्साहित करें। बच्चा या शिशु अपने आसपास मौजूद व्यस्कों की प्रतिक्रियाओं से तेजी से बोलना सीखता है। (और पढ़ें - डायपर रैश का इलाज)
     
  5. जो भी कार्य करें उसे बच्चे को बताएं –
    आप घर पर जो भी कार्य करें उसके बारे में बच्चे को बताएं, जैसे – कपड़े धोना, खाना खिलाना और उसके कपड़े बदलना आदि। इस तरह से बच्चा धीरे-धीरे नई चीजों से जुड़ पाता है और नए अनुभवों को सीखता है। (और पढ़ें - नवजात शिशु के सर्दी जुकाम का इलाज)
     
  6. बच्चा आपकी नकल से कई चीजें सीखता है –
    बच्चा अपने माता-पिता की आवाज को सुनकर खुश होता है और जब माता-पिता बच्चे से बात करते हैं तो वह भी उनकी नकल कर धीरे-धीरे बोलना शुरू कर देता है। इसीलिए आपको अपने बच्चे से ज्यादा से ज्यादा बातें करनी चाहिए और इस दौरान आप छोटे और साफ शब्दों का ही प्रयोग करें। (और पढ़ें - बच्चे की उम्र के अनुसार लंबाई और वजन का चार्ट)
     
  7. बच्चे के शब्दों को समझने का प्रयास करें –
    शिशु या बच्चे के शब्दों को न समझ पाने की स्थिति में आपको धैर्य से काम लेते हुए उसको समझने का प्रयास करना चाहिए। साथ ही आप उसके कहें शब्दों को अपनी समझ के अनुसार दोहराएं और उससे पूछें कि क्या आप सही बोल रही हैं। बेशक आपको अपने बच्चे की बात समझ में न आएं पर फिर भी आप उसकी बातों में रुचि दिखाएं. इससे बच्चे को बात करने में सहज महसूस होगा।

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अगर आपके शिशु या बच्चे में निम्न तरह के लक्षण दिखाएं दें तो आप अपने डॉक्टर से बात करें।

  • शिशु के 14 माह का होने के बावजूद कोई शब्द न बोल पाना। (और पढ़ें - बच्चे की मालिश कैसे करें)
     
  • दो साल का होने पर भी बच्चे के द्वारा करीब 50 शब्दों को न समझ पाना और करीब 10 शब्दों को भी न बोल पाना। (और पढ़ें - नवजात शिशु के दस्त का इलाज)
     
  • पैदा होने वाले करीब एक हजार में से तीन शिशुओं में सुनने से संबंधी परेशानी होती है। जिसकी वजह से वह देरी से बोलना सीखते हैं। सामान्यतः बच्चे के जन्म के समय ही उसके सुनने की क्षमता की जांच की जाती है। यदि इस टेस्ट में परिणाम नकारात्मक आते हैं तो बच्चे के सुनने की क्षमता की पूरी जांच उसके तीन माह का होने के बाद की जाती है। (और पढ़ें - बच्चों का टीकाकरण चार्ट)

आपके अपने बच्चे की इस स्थिति से घबराएं नहीं, बल्कि इसका सामना करें। किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले या इसको आटिज्म (Autism: एक तरह का मानसिक रोग) समझने से पहले आपको बच्चे के सुनने और बोलने की क्षमता की जांच करवानी चाहिए। साथ ही आपको उसके शारीरिक विकास पर भी ध्यान देना होगा।

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