शिशु के कान छिदवाना मां-बाप के साथ ही बच्चों के लिए भी बेहद ही मुश्किल भरा दौर होता है। कई तरह के स्वास्थ्य व रीति रिवाजों से संबंधित कारणों से जन्म के कुछ समय के बाद ही कई बच्चों के कान छिदवा दिये जाते हैं। अपने बच्चे को परेशानी में देखना हर मां-बाप के लिए मुश्किल होता है। भारत सहित दुनिया भर के कई समाज में कान छिदवाने की पंरपरा है। बच्चों के कान छिदवाने की पंरपरा सदियों से चली आ रही है। लड़कियों के साथ ही लड़कों के भी कान छिदवाए जाते हैं। कई मां-बाप बच्चे के कान छिदवाने के सही समय और उसकी देखभाल को लेकर काफी चिंतित रहते हैं। 

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इस लेख में आपको कान छिदवाने के विषय में विस्तार से बताया गया है। साथ ही इस लेख में आपको कान छिदवाने का कारण, कान छिदवाने का सही समय, कान छिदवाने के फायदे, कान छिदवाने का तरीका, कान छिदवाने के बाद की देखभाल और कान छिदवाने के जोखिम कारक आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है।

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  1. कान छिदवाने का कारण - Kaan chidwane ka karan
  2. कान छिदवाने का सही समय - Kaan chidwane ka sahi samay
  3. कान छिदवाने के फायदे - Kaan chidwane ke fayde
  4. कान छिदवाने का तरीका - Kaan chidwane ka tarika
  5. कान छिदवाने के बाद देखभाल और क्या लगाएं - Kaan chidwane ke baad dekhbhal aur kya lagaye
  6. कान छिदवाने के बाद होने वाले जोखिम कारक - Kaan chidwane ke baad hone vale jokhim karak
बच्चे के कान छिदवाने का सही समय और बाद की देखभाल के डॉक्टर

बच्चों के कान छिदवाने के कई कारण होते हैं। अधिकतर माता-पिता अपने बच्चे के कान छोटी उम्र में ही इसलिए छिदवा देते हैं, क्योंकि बड़े होने पर बच्चे को कान छिदवाने में ज्यादा दर्द होता है। इसके अलावा सांस्कृतिक और पारंपरिक कारणों की वजह से भी बच्चों के कान को छेदा जाता है, जबकि कुछ माता-पिता इसको लड़के और लड़कियों के बीच के अंतर को दर्शाने के लिए जरूरी मानते हैं। आज भी बाली या टॉप्स (stud) पहने हुए बच्चे को अधिकतर लोग लड़की ही समझते हैं।

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प्राचीन भारत में बच्चे के जन्म के बाद उसके कानों को छेदना एक सामान्य प्रक्रिया थी। तकनीकी रूप से इसको एक्यूपेंचर उपचार का ही एक हिस्सा माना जाता है। उपचार की यह तकनीक भारत में ही शुरू हुई थी, जिसके बाद चीन ने इस प्रक्रिया को विकसित और संरक्षित किया। कहा जाता है कि कान का निचला बाहरी हिस्सा एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर के लिए महत्वपूर्ण होता है। कान के जिस हिस्से में छेद किया जाता है वो हिस्सा अस्थमा को ठीक करने के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। इसी कारण से प्राचीन भारत में महिला व पुरूष दोनों ही अपने कानों को छिदवाते थे। जबकि आज मुख्यतः भारतीय महिलाएं ही परंपरा के चलते कानों में बाली पहनती हैं। वहीं कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां के पुरूष भी आज भी कानों में बाली पहनते हैं। 

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भारत में सदियों से रीति रिवाजों को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया जाता है। हम कुछ रीति रिवाजों की वजह जानते हैं, जबकि कुछ की नहीं। कुछ लोग रीति रिवाजों को अंधविश्वास मानते हैं। लेकिन सच यह है कि आज कई लोग रीति रिवाजों के पीछे के वैज्ञानिक कारणों को नहीं जानते हैं। 

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शिशु के जन्म के कुछ समय बाद कान छिदवाना उसके लिए जोखिम भरा सकता है। इस कारण कई माता-पिता बच्चे के कान छिदवाने के सही उम्र को जानना चाहते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार बच्चे के कान छिदवाने की कोई सही उम्र नहीं होती है। यदि बच्चे के कान स्वच्छता और सही तरीके से छेदे जाएं तो यह प्रक्रिया किसी भी तरह से जोखिम भरी नहीं होती है। लेकिन बच्चे के थोड़ा बड़ा होने पर ही कान छेदना उचित माना जाता है। शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कमजोर होती है, इसलिए उसको संक्रमण होने की संभावनाएं भी अधिक होती है। 

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भारत में अपने-अपने रीति रिवाजों के आधार पर बच्चे के कानों को छेदा जाता है। कुछ समुदाय में पहले या तीसरे साल में बच्चों के कान छिदवाए जाते हैं, जबकि कुछ समुदाय और क्षेत्रों में मुंडन संस्कार तक का इंतजार किया जाता है। वहीं कई लोग बच्चे के नामकरण (जन्म के 12वें व 13वें दिन) में भी उसके कान छिदवाते हैं। 

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विशेषज्ञ जन्म के ठीक बाद शिशु के कान छिदवाने को गलत बताते हैं। सामान्यतः बच्चे के दो साल का होने पर उसके कान छिदवाने चाहिए। कई कारकों के चलते दो साल को कान छिदवाने की सही उम्र मानी जा सकती है। इस समय आपके बच्चे को एलर्जी होने की कम संभावनाएं होती हैं। साथ ही वह इसके बाद की देखभाल में बरते जाने वाली सावधानियों को भी सही तरह से समझ पाता है। दो साल का होने तक बच्चे के कान की त्वचा मुलायम तो रहती है परंतु वह पहले की तरह नाजुक नहीं होती है। 

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अध्ययन से पता चला है कि एक से दस साल के बीच कान छिदवाने से बच्चे को केलोइड्स (keloids) होने की संभावनाएं कम होती है। केलोइड्स में स्कार ऊतक (Scar tissue/ ऊतकों पर खरोंच जैसे निशान) अधिक बनने हैं।

आप बच्चे के कान छिदवाते समय इस बात का ध्यान दें कि इस कार्य को किसी प्रशिक्षित व्यक्ति से ही कराएं।

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कान छिदवाने के अपने कई फायदे होते हैं। इन फायदों को नीचे विस्तार से बताया जा रहा है।

  • आंखों की रोशनी तेज होती है – कान का निचले हिस्से में कई प्रेशर प्वाइंट होते हैं। एक्यूपंक्चर के अनुसार कान के निचले हिस्से के बीच के भाग से आंखों को ठीक किया जा सकता है। इस प्वाइंट पर हल्के दबाव से प्रेशर डालने पर आंखों की रोशनी बढ़ती है। (और पढ़ें - आंखों की रोशनी बढ़ाने के घरेलू उपाय)
     
  • स्वस्थ कान के लिए जरूरी – कान के जिस निचले हिस्से पर टॉप्स या बाली पहनी जाती है, उस हिस्से पर दो मुख्य एक्यूपंक्चर प्वाइंट होते हैं। एक्यूपंक्चर विशेषज्ञों के अनुसार जिन लोगों के कान के घंटियों के जैसे आवाज सुनाई देती है उनकी समस्या के लक्षण को इस जगह से कम किया जा सकता है। चिकित्सीय जगत कान में घंटियों की आवाज सुनाई देने को टिनिटस (tinnitus) कहा जाता है। (और पढ़ें - बच्चे को चलना कैसे सिखाएं)
     
  • मस्तिष्क के लिए महत्वपूर्ण – कान छिदवाने से मस्तिष्क के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव होता है। इसी कारण से बच्चों के कान छोटी उम्र में छिदवाए जाते हैं। कान के निचले हिस्से पर स्थित प्वाइंट मस्तिष्क के बाएं और दाएं हिस्से को एक दूसरे से जोड़ते हैं। कान में छेद करके मस्तिष्क के इन्हीं हिस्सों को सक्रिय किया जाता है। इतना ही नहीं इससे याद रखने की क्षमता को भी बढ़ाया जाता है। (और पढ़ें - कमजोर याददाश्त का इलाज)  
     
  • स्वस्थ पाचन तंत्र – माना जाता है कि कानों के निचले हिस्से पर दबाव डालने से भूख को बढ़ाया जा सकता है। जबकि कानों को छिदवाने से पाचन तंत्र को ठीक किया जा सकता है। (और पढ़ें - बच्चों की इम्यूनिटी कैसे बढ़ाएं)

कान छिदवाने के अन्य लाभ

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कुछ समय पहले तक अधिकतर बच्चों के कान सुनार की दुकान में छिदवाएं जाते थे या गली में घुमने वाले स्थानीय कुछ विक्रेता इस काम को करते थे। लेकिन आपको अपने बच्चे के कान को किसी प्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा ही छिदवाना चाहिए। सही जगह पर बच्चों के कान को छिदवाने के लिए आप अपने मित्रों से सलाह ले सकते हैं। बच्चों के कान छेदने का तरीका बड़ों की तरह ही होता है। कान छेदने के तरीके को नीचे विस्तार से बताया गया है।

  1. सबसे पहले डॉक्टर या कान छेदने वाले एक्सपर्ट बच्चे के कान की त्वचा को अल्कोहल या रोगाणुओं से मुक्त करने वाले प्रोडक्ट से साफ करते हैं। इस दौरान डॉक्टर या एक्सपर्ट को अपने हाथों में विशेष प्रकार के दस्ताने (Surgical gloves)  पहनने चाहिए। (और पढ़ें - बच्चों में भूख ना लगने के कारण)
     
  2. सुई या कान छेदने के विशेष तरह के उपकरण (Piercing gun) से कान का छेदा जाता है। माता-पिता की इच्छा या एक्सपर्ट की सलाह के अनुसार आप किसी भी तरीके को अपनन सकते हैं। इन दोनों ही तरीकों से कान को छेदते समय दर्द होता ही है। (और पढ़ें - उम्र के अनुसार लंबाई और वजन का चार्ट)
     
  3. कान को छेदने के बाद इसमें सोने की बालियों को पहनाया जाता है। इससे कान में किया गया छेद बंद नहीं होता है। सोने की बालियों को पहनाना या नहीं पहनाना आपकी इच्छा पर निर्भर करता है। लेकिन इससे संक्रमण होने का खतरा कम होता है। इससे कान छिदवाने के बाद आने वाली सूजन और लालिमा नहीं बढ़ती है। यह बालियां 14 कैरेट सोने से ही बनी होनी चाहिए। इसके विकल्प में आप बच्चे को स्टील की बालियां भी पहना सकते हैं। लेकिन स्टील की बालियां में निक्कल (Nickel: एक प्रकार की धातु) नहीं होना चाहिए। साथ ही स्टील पर सोने की परत वाली बालियां भी एक बेहतर विकल्प हो सकती हैं। (और पढ़ें - डायपर रैश के उपचार)
     
  4. कान को छिदवाने के बाद, छेद वाली जगह को संक्रमण मुक्त रखने के लिए डॉक्टर या एक्सपर्ट आपको दवा दे सकते हैं। इस दवा को सप्ताह में दो बार लगाने की सलाह दी जाती है।

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कान को छिदवाने के बाद उसमें संक्रमण न हो इसके लिए कान की विशेष देखभाल की जाती है। कान छिदवाने के बाद की देखभाल का निम्न तरह से बताया गया है।

  • बच्चे के कान या बाली को छूने से पहले हाथों को साफ करना बेहद जरूरी होता है।
     
  • बच्चे के नहाने के बाद कान के छेद वाली जगह और बाली को रूई की मदद से साफ करना चाहिए। साथ ही बच्चे के कान में साबुन लग जाए तो उसको बाजार में मिलने वाले सोलूशन (Solution: विशेष तरह का घोल) से साफ करें। (और पढ़ें - शिशु का वजन कैसे बढ़ाएं)
     
  • कान के छेद वाली जगह पर सप्ताह में दो बार एंटीसेप्टिक लोशन का प्रयोग करें।
     
  • बच्चे के सोने से पहले और सोने के बाद में उसकी बाली के पिछले लॉक को देखें कि वह ठीक से लगा है या नहीं। (और पढ़ें - बच्चे की मालिश कैसे करें)
     
  • बच्चे के कान की बालियां त्वचा के साथ न चिपक जाएं इसलिए उसको रोजाना एक या दो बार हल्के हाथों से आगे-पीछे करते हुए हिलाएं। जब तक घाव पूरा न भर जाए तब बालियों को बाहर न निकालें। (और पढ़ें - नवजात शिशु के कफ का इलाज)
     
  • कान छिदवाने के बाद बच्चे के कान में पस बनने लगे, उसको सूजन या बुखार हो, तो उसको तुरंत डॉक्टर के पास लेकर जाएं।  

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कान को छिदवाने के बाद बच्चो को निम्न तरह के जोखिम हो सकते हैं।

  • संक्रमण –
    कान छिदवाने के बाद बच्चे को संक्रमण हो सकता है। इस दौरान कान छिदवाने के उपकरण का साफ न होने, बालियों के टाइट होने व गंदा होने की वजह से इन्फेक्शन होने का जोखिम अधिक होता है। (और पढ़ें - पोलियो का टीका कब लगवाना चाहिए)
     
  • एलर्जी होना –
    किसी विशेष तरह के धातु की बालियों के इस्तेमाल करने से बच्चे के कान में एलर्जी होने की संभावनाएं अधिक होती है। निक्कल से बनी बालियों के कारण संक्रमण होना आम बात है। (और पढ़ें - एलर्जी होने पर क्या करें)
     
  • बाली का छेद बंद होना –
    कई बार छोटी या टाइट बालियों के कारण बच्चे में कान में करवाया गया छेद बंद हो सकता है। साथ ही टाइट बालियों को बाहर निकालते समय बच्चे को परेशानी भी हो सकती है। (और पढ़ें - शिशु की गैस का इलाज)
     
  • बाली का छेद फटने की संभावना –
    बच्चे को ढीली या लटकने वाली बाली पहनाने से बच्चा खेलते हुए खुद ही अपनी बालियों को खींचकर निकाल सकता है। ऐसे में बच्चे के कान में किया गया छेद फटने की संभावना अधिक होती है।

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