वैसे तो जन्म के बाद नवजात शिशु में सबसे ज्यादा बदलाव चौथे और छठे महीने में नजर आता है लेकिन इसके बीच में यानी 5वें महीने में भी शिशु शारीरिक और संज्ञानात्मक रूप से काफी सारे बदलावों से गुजरता है। शुरुआती 3-4 महीनों में जहां बच्चे की पूरी कोशिश यह रहती है कि वह हर समय अपनी मां का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर पाए वहीं, 5वां महीना आते-आते बच्चे के अंदर आत्मविश्वास बढ़ने लगता है।
इस महीने में बच्चे को किसी तरह का कोई टीका नहीं लगना क्योंकि बच्चे को वैक्सीन अब छठे महीने में लगनी है। पांचवें महीने में आपका नवजात शिशु अपने आसपास मौजूद चीजों को लेकर ज्यादा सतर्क होने लगता है, अपने सामानों को कुछ-कुछ पहचानने लगता है, एक दिशा से दूसरी दिशा में लोगों को और सामानों को फॉलो करने लगता है, अपने ही शब्दों को बार-बार रिपीट करने लगता है, खुद से उठकर बैठने की कोशिश करने लगता है और कई बार तो अपना नाम पुकारे जाने पर रिऐक्ट भी करता है। आसान शब्दों में कहें तो बच्चा खुद को अपने नाम से पहचानने लगता है।
हर बच्चे के विकास की दर और उसकी कंडिशनिंग यानी ट्रेनिंग अलग-अलग तरह की होती है। बावजूद इसके विकास से जुड़े इनमें से कुछ पैटर्न पैरंट्स के लिए इस बात का संकेत हो सकते हैं कि बच्चे का विकास सही गति से हो रहा है या नहीं। इतना ही नहीं, 5 महीने के बच्चे चीजों को समझना भी शुरू कर देते हैं जैसे- नामों को पहचानना, रंगों को पहचानना, किसी सामान या चीज को पूरे कंट्रोल के साथ पकड़ना और खुद से ही उलटना और लुढ़कना आदि।
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पांचवें महीने के मुख्य मील के पत्थर की बात करें तो इस दौरान आपका शिशु खुद से बैठना सीख जाता है और ज्यादातर देर तक अपनी जगह पर बैठा रह सकता है। इसके अलावा शिशु रातभर आराम से सो पाता है और इस दौरान बच्चे को बीच रात में उठकर दूध पिलाने की भी जरूरत नहीं होती। इससे पैरंट्स को भी थोड़ी राहत मिलती है। शिशु का संज्ञानात्मक विकास इन बातों पर निर्भर करता है कि बच्चा अपने खेलने के रूटीन और सोने के रूटीन को पहचानने लगता है और यहां तक की उन गानों को भी जो आप शिशु के लिए नियमित रूप से गाती हैं।
लिहाजा जन्म के बाद शिशु का पांचवां महीना खोज से जुड़ा समय है न सिर्फ शिशु के लिए बल्कि उसके माता-पिता के लिए भी।