आयुर्वेद का हमारे जीवन में खास महत्व है. शारीरिक समस्याओं को दूर करने के लिए आयुर्वेद में कई तरह की थेरेपी दी जाती है. उन्हीं थेरेपी में से एक है ‘धन्याम्ला धारा थेरेपी’. यह थेरेपी मुख्य रूप से वात दोष को दूर करने में असरदार होती है.
दरअसल, वात शरीर में गति से जुड़ी हर प्रक्रिया का कारण होता है. इसका मुख्य स्थान पेट और आंत में होता है. वात में जोड़ने वाले गुण होते हैं, जो अन्य दोषों के साथ मिलकर उनके गुणों को धारण कर लेता है. वात के कारण ही पाचक अग्नि बढ़ती है और सभी इन्द्रियों में सक्रियता बनी रहती है.
वात दोष के कारण गैस, पीठ दर्द, गठिया, साइटिका, लकवा और नसों में दर्द जैसे स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. वात दोष रोगों की उत्पत्ति मुख्य रूप से बड़ी आंत में होती है. आयुर्वेद में वात दोष को दूर करने के लिए धन्याम्ला धारा थेरेपी को सबसे असरदार माना गया है.
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आज हम इस लेख में धन्याम्ला धारा का अर्थ, प्रक्रिया, लाभ, सावधानियां व कीमत के बारे में जानेंगे-