'नाड़ी' शब्द का अर्थ है, 'मार्ग' या 'शक्ति का प्रवाह' और 'शोधन' का अर्थ होता है, 'शुद्ध करना'। नाड़ी शोधन का अर्थ हुआ, वह अभ्यास जिससे नाड़ियों का शुद्धिकरण हो। नाड़ी शोधनम प्रभावी प्राणायाम है जो मस्तिष्क, शरीर और भावनाओं को सही रखता है। मेडिटेशन अभ्यास शुरू करने से पहले आप इस प्राणायाम का अभ्यास मस्तिष्क को शांत करने के लिए कर सकते हैं। नाड़ी शोधनम प्राणायाम से चिंतातनाव या अनिंद्रा की समस्या से राहत मिलती है।

इस लेख में नाड़ी शोधन प्राणायाम के फायदे और उसे करने के तरीके के बारे में बताया गया है। लेख केे अंत में प्राणायाम से संबंधित एक वीडियो भी शेयर किया गया है।

(और पढ़ें - मानसिक रोग)

  1. नाड़ी शोधन प्राणायाम के फायदे - Nadi shodhana pranayama ke fayde in Hindi
  2. नाड़ी शोधन प्राणायाम करने का तरीका - Nadi shodhana pranayama karne ke tarike in HIndi
  3. नाड़ी शोधन प्राणायाम का वीडियो - Nadi shodhana pranayama video
  4. नाड़ी शोधन प्राणायाम करने में क्या सावधानी बरती जाए - Nadi shodhana pranayama me kya savdhani barte in Hindi

नाड़ी शोधन प्राणायाम के फायदे इस प्रकार हैं -

  1. नाड़ी शोधन से पूरे शरीर को ऑक्सीजन सही मात्रा में पहुंचता है।
  2. इस प्राणायम से विषाक्त तत्व बाहर निकलते हैं और रक्त शुद्ध होता है।
  3. मस्तिष्क के कार्य करने की क्षमता बढ़ती है।
  4. इससे शांति, विचारों में स्पष्टता और एकाग्रता की प्राप्ति भी होती है। जिन्हें मानसिक रूप से समस्याएं होती है उन्हें इस प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए।
  5. यह शरीर में उर्जा को बढ़ाता है और तनाव व चिंता में कमी लाता है।
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नाड़ी शोधन प्राणायाम करने का तरीका हम यहाँ विस्तार से बता रहे हैं, इसे ध्यानपूर्वक पढ़ें – 

  1. दाहिने हाथ की उंगलियों को मुंह के सामने लाएं। तर्जनी और बीच की उंगली को धीरे से माथे के बीचों बीच रखें। दोनों उंगलियों पर दबाव न डालें, आराम से उंगलियों को रखें।
  2. अंगूठा दाहिने नासिकाछिद्र के उपर और अनामिका बाएं नासिकाछिद्र के उपर रहे। ये दोनों (अंगूठा व अनामिका) बारी-बारी से नासिकाओं को दबाकर उनके श्वास-प्रवाह को नियंत्रित करते हैं। पहले एक नासिकाछिद्र को दबाकर दूसरे से सांस लें और उसके बाद दूसरे नासिकाछिद्र से भी यही प्रक्रिया दोहरायें।
  3. कनिष्ठा उंगली को आराम से अंदर की तरफ मोड़ लें।
  4. लंबे समय तक अभ्यास करने के लिए कोहनी को बाएं हाथ का सहारा दें। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि सहारा देते समय आपकी छाती मुड़नी नही चाहिए।
  5. इस अभ्यास को 30 मिनट तक करें।

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सूर्योदय जब होता है तो एक नासिकाछिद्र अधिक चलती है और जब सूर्यास्त होता है तो दूसरी नासिकाछिद्र का प्रभाव अधिक होता है। इसलिए इस समय श्वास प्रवाह में परिवर्तन करना उचित नही माना जाता। किसी भी तरह सांस लेने और छोड़ने में अधिक जोर न लगाएं। मुंह से कभी सांस न लें। अभ्यास पूरी सावधानी से और ट्रेनर के मार्ग-दर्शन में ही होना चाहिए। अगर आपको किसी भी तरह की समस्या होती है तो इस प्राणायाम का समय घटा दें या फिर उस दिन अभ्यास न करें। नाड़ी शोधन करते समय कभी जल्दबाजी न करें। 

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