बहुत सारी महिलाओं को अपने जीवन में कभी न कभी बच्चेदानी में गांठ होती है। ऐसा भी हो सकता है, उन्हें बच्चेदानी में गांठ हुई हो पर इस बात का उन्हें कभी पता नहीं चला। ऐसा इसलिए है क्योंकि बच्चेदानी में गांठ से अक्सर किसी प्रकार का दर्द या कोई लक्षण नहीं दिखाई देते हैं।

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तो फिर यदि आपको बच्चेदानी में गांठ हो जाती है और कोई साइड इफेक्ट्स भी नहीं होते हैं, तो आपको यह कैसे पता चलेगा कि आपको गांठ हुई है या नहीं? और आपको इसके लिए चिंतित होना चाहिए या नहीं? इस लेख में आपके इन्हीं सवालों का जवाब देने की कोशिश की गयी है।

चूंकि जैसे-जैसे महिलाओं की उम्र बढ़ती है, उनको बच्चेदानी में गांठ होने की आशंका अधिक होती जाती है, खासतौर से 30 वें और 40 वें दशक से रजोनिवृत्ति तक यह आशंका अधिक रहती है। अधिकांश महिलाओं में या तो हल्के या कोई लक्षण नहीं दिखते हैं। लेकिन गांठ दर्द, खून बहने और अन्य समस्याओं का कारण बन सकती है।

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आपकी डॉक्टर स्त्री रोग संबंधी परीक्षण के दौरान या इमेजिंग परीक्षण का उपयोग करके बच्चेदानी में गांठ का पता लगा सकती हैं। इसका उपचार सर्जरी से या फिर ऐसी दवाओं से किया जा सकता है, जो इसके विकास को धीमा करती है या रोक देती है।

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यदि आपको कोई लक्षण नहीं दिखते हैं, तो हो सकता है आपको उपचार की भी आवश्यकता न हो। बच्चेदानी में गांठ वाली कई महिलाएं स्वाभाविक रूप से गर्भवती हो सकती हैं। जो महिलाएं ऐसा नहीं कर सकती हैं, उनको बांझपन का उपचार करवाने से मदद मिल सकती है।

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इस लेख में बच्चेदानी में गांठ का मतलब तथा बच्चेदानी में गांठ के लक्षण, कारण और इलाज के बारे में विस्तार से बताया गया है।

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  2. बच्चेदानी में गांठ के लक्षण - Bachedani me ganth ke lakshan in hindi
  3. बच्चेदानी में गांठ के कारण - Uterus (Bachedani) me ganth ka karan in hindi
  4. बच्चेदानी में गांठ का इलाज - Uterus (Bachedani) me ganth ka ilaj in hindi
  5. सारांश

बच्चेदानी में गांठे, महिला प्रजनन प्रणाली में सबसे अधिक होने वाले ट्यूमर होते हैं। ये गांठे छोटे ट्यूमर हैं जो गर्भाशय में स्मूथ मांसपेशीयों की कोशिकाओं और कोशिकाओं को जोड़ने वाले रेशेदार ऊतक से बनी होती हैं।

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ऐसा माना जाता है कि प्रजनन के योग्य आयु की महिलाओं में से 20 से 50 प्रतिशत में बच्चेदानी में गांठ हो सकती है, हालांकि सभी का पता नहीं लगाया जा सकता है। केवल एक-तिहाई बच्चेदानी की गांठ ही ऐसी होती हैं जिनका शारीरिक जाँच के दौरान पता लगाया जा सकता है।

बच्चेदानी की गांठ कैंसर वाला ट्यूमर नहीं होता है, बल्कि यह एक बिना कैंसर वाला ट्यूमर है जो किसी महिला की बच्चेदानी में या इसके आसपास विकसित होता है। बच्चेदानी की गांठ का गर्भाशय के कैंसर के जोखिम को बढ़ाने से कोई संबंध नहीं हैं और ये कभी कैंसर में नहीं बदलती है।

बच्चेदानी की गांठों का आकार अलग-अलग हो सकता है, ये गांठे आकर में इतनी छोटी हो सकती है कि मानव आंखों से न देखी जा सके और इतनी बड़ी भी हो सकती है कि वे महिला के गर्भाशय को विकृत कर सकती और फैला सकती है।

किसी महिला की बच्चेदानी में एक या कई गांठे हो सकती हैं। कुछ मामलों में तो, अधिक गांठों के कारण बच्चेदानी इतनी फैल सकती है कि यह महिला की पसलियों तक पहुंच जाती है।

कई महिलाएं इस बात से पूरी तरह अनजान होती हैं कि उनकी बच्चेदानी में कोई गांठ है क्योंकि उनको इसका कोई लक्षण नहीं दिखता है। बच्चेदानी की गांठ मासिक धर्म में अत्यधिक रक्तस्राव, पेल्विक दर्द और बार-बार पेशाब आने का कारण बन सकती है।

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यद्यपि इन ट्यूमर या गांठों को फाइब्रॉएड कहा जाता है, किंतु यह शब्द भ्रामक है क्योंकि इन गांठों में मांसपेशियों के ऊतक होते हैं, न कि रेशेदार ऊतक। फाइब्रॉइड के लिए मेडिकल भाषा में “लिओम्योमा” शब्द उपयोग किया जाता है। यह एक प्रकार का मायोमा या मेसेन्चिमल ट्यूमर है।

बच्चेदानी की गांठ के मुख्य रूप से निम्नलिखित चार प्रकार होते हैं -

  • इंट्राम्युरल - बच्चेदानी की गांठ का सबसे आम प्रकार, जो बच्चेदानी की मांसपेशियों की परत में विकसित होती है।
  • सबसेरोसल - ये गांठे जो बच्चेदानी की परत के बाहर पेल्विस (श्रोणि) में विकसित होती हैं और आकार में बहुत बड़ी बन सकती हैं।
  • सबम्यूकोसल - बच्चेदानी की आंतरिक परत के नीचे मांसपेशियों की परत में विकसित होने वाली गांठों को सबम्यूकोसल कहा जाता है और गर्भ की गुहा में बढ़ती है।
  • पेडन्कुलेटेड - कुछ मामलों में, तो सबसेरोसल या सबम्यूकोसल गांठे ऊतक के पतले डंठल के सहारे बच्चेदानी से जुड़ी होती है। इन्हें पेडन्कुलेटेड गांठों के रूप में जाना जाता है।

अधिकांश बच्चेदानी की गांठे, भले ही आकार में बड़ी भी हो तो भी कोई लक्षण नहीं पैदा करती हैं, जिससे यह पता चल सके कि कोई गांठ बनी हुई है। कुछ महिलाओं को यह बात इसलिए पता चल जाती है क्योंकि उनके डॉक्टर नियमित जाँच या अल्ट्रासाउंड के दौरान उनका पता लगाते हैं। हालांकि, आप का मामला अलग हो सकता है।

आपको होने वाले शारीरिक लक्षण आपकी बच्चेदानी में मौजूद ट्यूमर की संख्या और साथ ही उनके स्थान और आकार पर निर्भर करते हैं। उदाहरण के लिए, सबम्यूकोसल गांठे मासिक धर्म में अधिक रक्तस्राव और गर्भ ठहरने में परेशानी पैदा कर सकती है।

यदि आपका ट्यूमर बहुत छोटा है या आप रजोनिवृत्ति से गुज़र रही हैं, तो आपको कोई लक्षण नहीं भी पैदा हो सकता है। ये गांठे रजोनिवृत्ति के दौरान और उसके बाद घट सकती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि रजोनिवृत्ति से गुजर रही महिलाओं में एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन के स्तर में गिरावट आ रही होती है और ये वो हार्मोन है जो इन गांठों की वृद्धि को उत्तेजित करते हैं।

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यदि आपको कोई लक्षण दिखते भी हैं, तो उनमें निम्नलिखित लक्षण शामिल हो सकते हैं -

यदि आपको पेल्विक दर्द की शिकायत है जो दूर नहीं हो रही है, अत्यधिक रक्तस्राव, लंबे समय तक चलने वाले या दर्दनाक मासिक धर्म, मासिक धर्म अवधि के बीच में स्पॉटिंग या रक्तस्राव, आपके मूत्राशय को खाली करने में कठिनाई इत्यादि में से कोई भी परेशानी हो तो तुरंत अपनी डॉक्टर से मिलें क्योंकि ऐसा बच्चेदानी में गांठ की वजह से भी हो सकता है।

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बच्चेदानी की गांठों का कोई सटीक कारण तो ज्ञात नहीं है, लेकिन ये माना जाता है कि वे एस्ट्रोजेन नामक हार्मोन से जुड़े हुए हैं। एस्ट्रोजेन अंडाशय (महिला प्रजनन अंग) द्वारा उत्पादित महिला प्रजनन हार्मोन होता है।

बच्चेदानी में गांठे आमतौर पर एक महिला के प्रजनन योग्य वर्षों (16 से 50 वर्ष की आयु) के दौरान विकसित होती हैं क्योंकि इस समय एस्ट्रोजन का स्तर उनके शरीर में उच्चतम होता है। जब एस्ट्रोजेन का स्तर कम होता है, तो ये घटने लगती हैं जैसा कि रजोनिवृत्ति (जब एक महिला की मासिक धर्म अवधि बंद हो जाती है) के बाद होता है।

बच्चेदानी की गांठों की समस्या एक आनुवंशिक परेशानी है और प्रभावित महिलाओं में अक्सर इसका पारिवारिक इतिहास पाया जाता है। अफ्रीकी मूल की महिलाओं में अन्य नस्ल की महिलाओं की तुलना में बच्चेदानी की गांठे विकसित होने की संभावना दो से तीन गुना अधिक होती हैं।

शोधकर्ताओं के अनुसार कई कारण है जो बच्चेदानी में गांठे बनने के कारण हो सकते हैं, लेकिन इनमें से कोई भी कारण इन ट्यूमर के निश्चित कारणों के रूप में नहीं देखा जाता है। बच्चेदानी में गांठे बनने के ऐसे ही कुछ कारण निम्नलिखित हैं -

  • ये आनुवांशिक हो सकती है।
  • महिला हार्मोन एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन, गांठे बढ़ने का कारण बनते हैं।
  • गर्भावस्था के दौरान ये गांठे तेजी से बढ़ती हैं, जब हार्मोन का स्तर उच्च होता है और जब एंटी-हार्मोन दवा का उपयोग किया जाता है तो ये सिकुड़ने लगते हैं। जब महिला रजोनिवृत्ति तक पहुंच जाती है तो उसके बाद भी ये गांठे बढ़ना बंद हो जाती हैं या सिकुड़ जाती हैं।

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उपरोक्त कारणों के अलावा कुछ अन्य कारण भी है जो बच्चेदानी में गांठ बनने की आशंका को बढ़ाने में योगदान कर सकते हैं -

वर्तमान में अधिकांश डॉक्टरों को यह एहसास होने लगा है कि बच्चेदानी में बनने वाली गांठों को हमेशा ही किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होती है या अधिकतर केवल सीमित उपचार की जरुरत होती है।

बच्चेदानी में गांठ वाली किसी महिला में अगर इसके कोई लक्षण नहीं पैदा हो रहे हैं तो ऐसे मामलों में सबसे अच्छी थेरपी यह होती है कि इनकी वृद्धि की सतर्क निगरानी रखते हुए इंतजार किया जाए।

गांठ के आकार या लक्षणों के आधार पर आपके डॉक्टर पीरिऑडिक पेल्विक जाँच और अल्ट्रासाउंड करवाने को कह सकते हैं। कुछ महिलाओं में तो कभी भी कोई लक्षण नहीं दिखते हैं और न ही गांठों से जुड़ी कोई समस्या होती है, इस तरह के मामले में किसी इलाज की आवश्यकता नहीं है।

बच्चेदानी में गांठ का इलाज करने के लिए कई विकल्प हैं जिनमें सर्जरी के कई विकल्प उपलब्ध है जैसे कि - हिस्टेरेक्टॉमी, मायोमेक्टोमी, क्रायोसर्जरी, एमआरआई की मदद से हाई इंटेंसिटी फोकस्ड अल्ट्रासाउंड (एमआरजीएफयूएस) और यूट्राइन आर्टरी एम्बोलाइज़ेशन (यूएई) इत्यादि।

इसके अलावा दवाओं से भी इलाज किया जा सकता है कुछ मुख्य दवाएं जो आपके डॉक्टर द्वारा दी जाती हैं - मिफेप्रिस्टोन (आरयू- 486), डानाज़ोल (डेनोक्राइन), रालोक्सिफेन (इविस्ता), जीएनआरएच एनालॉग (लूप्रॉन और अन्य) और ओरल गर्भ निरोधकों की कम खुराक वाले फार्मूले इत्यादि।

आपके डॉक्टर आपकी उम्र, गांठों के आकार और आपके संपूर्ण स्वास्थ्य के आधार पर एक उपचार योजना विकसित करते हैं। आपके इलाज के लिए आपकी डॉक्टर अलग-अलग उपचार का संयोजन प्रयोग कर सकती हैं।

कुछ प्राकृतिक उपचार भी बच्चेदानी की गांठों पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं, जिनमें शामिल हैं -

  • एक्यूपंक्चर थेरेपी
  • योग
  • मसाज थेरपी
  • Gui Zhi Fu Ling Tang (जीएफएलटी), एक पारंपरिक चीनी दवा का फॉर्मूला
  • ऐंठन के लिए गर्म सेक का उपयोग करना (अगर आप अत्यधिक रक्तस्राव का अनुभव करती है तो गर्म सेक न करें)

आहार में परिवर्तन करने से भी मदद मिल सकती हैं। जैसे कि मीट और उच्च कैलोरी वाले खाद्य पदार्थों को कम खाएं। इसकी बजाय, अधिक फ्लैवोनोइड वाले भोजन, हरी सब्जियां, ग्रीन टी और ठंडे पानी में पायी जाने वाली मछली जैसे टूना या साल्मन का चयन करें।

एक अध्ययन में पाया गया कि ताजा फल और क्रुसिफेरस सब्जियां जैसे ऑरुगुला, ब्रोकोली, पत्ता गोभी, फूलगोभी, कोलार्ड ग्रीन और टरनिप ग्रीन खाने से आपकी परेशानी कम हो सकती हैं। क्रूसिफेरस सब्जियां बीटा कैरोटीन, विटामिन बी 9, विटामिन सी, विटामिन ई तथा विटामिन K और अन्य खनिजों में समृद्ध होती हैं। उनमें फाइबर भी भरपूर होता है।

नियमित व्यायाम भी बच्चेदानी की गांठों की आशंका को कम कर सकता है। यदि आपका वजन अधिक हैं तो वजन कम करें और अपने तनाव के स्तर को कम करें, इससे भी आपको लाभ पहुंचा सकता है।

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बच्चेदानी में गांठ (Uterine Fibroids) महिलाओं में एक सामान्य समस्या है, जो गर्भाशय की मांसपेशियों में गैर-कैंसरयुक्त वृद्धि के रूप में होती है। भारी मासिक धर्म, पेट में दर्द, बार-बार पेशाब आना, कमर दर्द, और बांझपन इसके आम लक्षण हैं। कई बार यह बिना लक्षण के भी पाई जाती है। इसका मुख्य कारण हार्मोनल असंतुलन (एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का अधिक स्तर), आनुवंशिक प्रवृत्ति, मोटापा और जीवनशैली में बदलाव माने जाते हैं।

इलाज: छोटे आकार की गांठें दवाओं और जीवनशैली सुधार से ठीक हो सकती हैं। बड़े आकार की गांठों के लिए सर्जरी, जैसे मायोमेक्टॉमी (गांठ हटाना) या हिस्टेरेक्टॉमी (गर्भाशय निकालना), की आवश्यकता हो सकती है। नई तकनीकों जैसे यूटरिन आर्टरी एम्बोलाइजेशन से भी गांठ को सिकोड़ने में मदद मिलती है। सही निदान और इलाज के लिए नियमित डॉक्टर से परामर्श आवश्यक है।

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