अधिक तनाव का वास्ता अक्सर आपके "वात" में असंतुलन से होता है। वात आपका "वायु तत्व" होता है। वात मन और शरीर में सभी संचलन को नियंत्रित करता है। यह रक्त प्रवाह, शरीर में सभी गंदगी के उन्मूलन, श्वास और मन में विचारों की आवाजाही नियंत्रित करता है। चूंकि पित्त और कफ वात के बिना नहीं चल सकते, वात को शरीर के तीन आयुर्वेदिक सिद्धांतों में प्रमुख माना जाता है।
जब वात का स्तर ऊँचा होता है तब आमतौर से मन की दशा राजसिक हो जाती है और आपके विचार आस्थाई हो जाते हैं। वात असंतुलन के विशिष्ट लक्षण अधीरता, चिंता, अनिद्रा, और कब्ज हैं, जो सभी आमतौर से तनाव से जुड़े होते हैं।
अधिक वात की स्थिति में योग और श्वास अभ्यास ज़्यादा तीव्र या दमदार नहीं होना चाहिए (जैसे कि कपालभाती)। इस तरह के व्यायाम के बाद वात और ज़्यादा असंतुलित हो सकता है। चाहें आप कोई भी आसन का अभ्यास करें, अभ्यास के अंत में मन और शरीर को शांत करने वाले आसन करना आवश्यक है। अत्यधिक वात को कम करने के लिए आप इन आसनो को कर सकते हैं: मालासन जैसे बैठने वाले मुद्रा, ताड़ासन जैसे खड़े होने वाले मुद्रा जिनमे आपके दोनो पैर ज़मीन पर जमें हों, या की सर्वांगासन और सिरसासन जैसे आसन जिनमे आपका शरीर औंधी स्थिति में होता है।
योग के अलावा आयुर्वेद में भी अधिक वात को काबू करने के सुझाव हैं। जिन लोगों का वात अधिक है, उन्हे नींद और भोजन के एक नियमित समय पर करना चाहिए और जब भी संभव हो, गर्म, पौष्टिक, सात्विक भोजन करना चाहिए। मीठा, खट्टा, या नमकीन भोजन वात को कम करने में फायदेमंद माना जाता है। कैफीन (चाय व कॉफी), निकोटीन (सिगरेट), और अन्य उत्तेजक वात को बढ़ा सकते हैं।
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