मनोचिकित्सा के कई प्रकार और दृष्टिकोण होते हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं -
1. व्यवहार चिकित्सा (Behavioural Therapy)
व्यवहार चिकित्सा व्यक्ति को ये समझने में मदद करती है कि उसके व्यवहार में बदलाव किस तरह से उसके अहसास या भावनाओं में बदलाव लाता है। यह थेरेपी व्यक्ति को सकारात्मक और सामाजिक रूप से जोड़ने वाली गतिविधियों में शामिल करने पर ध्यान देती है।
इस दृष्टिकोण के अनुसार थेरेपिस्ट पहले यह पता लगाता है कि क्लाइंट क्या कर रहा है और उसी आधार पर सकारात्मक अनुभवों के होने की संभावना को बढ़ाता है। व्यवहार चिकित्सा उन लोगों के लिए उपयोगी होती है जिनको भावनात्मक परेशानी उनके व्यवहार के कारण होती है।
2. संज्ञानात्मक चिकित्सा (Cognitive therapy)
संज्ञानात्मक चिकित्सा के अनुसार हम कैसा महसूस करते हैं यह हमारी सोच पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, लोग ऐसे किसी भी विश्वास के चलते अवसाद से ग्रस्त हो सकते हैं जिसका कोई आधार ही न हो, जैसे कि “मैं किसी काम का नहीं हूँ” या “मेरी वजह से सब गलत हो जाता है” इत्यादि। इस तरह के आधारहीन विश्वास बदलने से व्यक्ति का घटनाओं को देखने का नज़रिया बदलता है और इससे उसकी मानसिक स्थिति सही होती है।
संज्ञानात्मक चिकित्सा हमारी वर्तमान सोच और बातचीत के ढंग को देखती है। थेरेपिस्ट किसी घटना को देखने के अलग नज़रिये के प्रति प्रेरित करते हुए अपने क्लाइंट के फालतू विचारों को दूर करने की कोशिश करता है। संज्ञानात्मक चिकित्सा "पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर" (PTSD) जैसी बिमारियों को ठीक कर सकती है। संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा में विचारों और व्यवहार दोनों को बदलने के लिए संज्ञानात्मक चिकित्सा और व्यवहार चिकित्सा दोनों का मिश्रण किया जाता है।
(और पढ़ें - डिप्रेशन कम करने के उपाय)
3. अंतर्वैयक्तिक चिकित्सा (Interpersonal therapy)
यह दृष्टिकोण अंतर्वैयक्तिक संबंधों पर ध्यान देता है। उदाहरण के लिए, अवसाद का कारण लोगों के आपस के संबंध भी हो सकते हैं। बातचीत के ढंग में सुधार करने की कला सिखा कर अवसाद को नियंत्रित किया जा सकता है। सबसे पहले थेरेपिस्ट संबंधित भावनाओं और ये कहां से उत्त्पन हो रही हैं इसका पता लगाने में क्लाइंट की मदद करते हैं। इसके बाद वे क्लाइंट को अपनी भावनाओं को सही तरीके से ज़ाहिर करना सिखाते हैं।
उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति यदि नजरअंदाज किये जाने से गुस्से में आ जाता है तो इससे उसके प्रिय लोगों में नकारात्मक संकेत जाते हैं। चिंता और पीड़ा को शांति से सहन करना सीखने से सामने वाले द्वारा सकारात्मक प्रतिक्रिया देने के संयोग बढ़ जाते हैं। इस थेरेपी से क्लाइंट अंतर्वैयक्तिक परेशानियों के प्रति अपने दृष्टिकोण को सुधारना और समझना सिख जाता है और उनका अच्छी तरह से प्रबंधन कर सकता है।
(और पढ़ें - चिंता रोग के लक्षण)
4. परिवार चिकित्सा (Family therapy)
एक परिवार थेरेपिस्ट लक्षणों को आपके परिवार के संदर्भ में देखता है। कई परिस्थितियों में पूरे परिवार की मनोचिकित्सा की जरुरत होती है, जैसे अगर क्लाइंट को अपने शादीशुदा जीवन में परेशानी के कारण अवसाद की समस्या हो। मानसिक या व्यावहारिक परेशानी के पारिवारिक कारण का पता लगाने से परिवार के लोगों में नकारात्मक आदतों और उनके रवैये को बदलने में मदद मिलती है।
परिवार चिकित्सा परिवार के अंदर संपर्क को सुधारने का काम करती है। इस थेरेपी में शामिल होने वाले परिवार के सदस्य यह सीखते हैं कि किस प्रकार सही तरीके से सुनें और सवाल करें तथा खुले मन से कैसे सवाल का जवाब दें। परिवार चिकित्सा में सामान्य रूप से परिवार के सदस्यों और क्लाइंट के बीच, समूह में, अपने साथी के साथ या एक-एक करके चर्चा और समस्या हल करने के सत्र होते हैं।
(और पढ़ें - डिमेंशिया का उपचार)
5. समूह चिकित्सा (Group Therapy)
समूह चिकित्सा में सामान्य रूप से 6-12 क्लाइंट्स और एक थेरेपिस्ट होता है। समूह में उन लोगों को शामिल किया जाता है जिनकी परेशानियां एक जैसी होती हैं। वे लोग थेरेपिस्ट और समूह में एक-दूसरे के सुझाव और दूसरे अपनी परेशानी को कैसे हल करते हैं, यह देखकर सीखते हैं।
एक जैसी परेशानी के लिए किसी दूसरे व्यक्ति से सुझाव लेने से एक नया दृष्टिकोण सामने आता है, जो बदलाव में मदद कर सकता है। समूह में शामिल होने से लोगों का अकेलापन दूर होता है और उन्हें यह भी लगता है कि यह उनकी अकेले की परेशानी नहीं है। इस तरह का सहारा मिलने से काफी मदद मिलती है और समूह में शामिल होने वाले कई लोगों को यह अनुभव लाभदायक लगता है।
6. साइकोडाइनॅमिक थेरेपी (Psychodynamic therapy)
साइकोडाइनॅमिक थेरेपी या अंतर्दृष्टि उन्मुख चिकित्सा, आपके मन की गहराई में स्थापित व्यवहार से जुड़े कारणों पर ध्यान देती है। उदहारण के लिए, किसी व्यक्ति के व्यवहार के कारण उसके बचपन से जुड़े हो सकते हैं जो आज भी उसके व्यवहार को प्रभावित कर रहे हों। मुख्य उद्देश्य यही है कि व्यक्ति अपने व्यवहार के प्रति जागरूक हो और यह जान सके कि किस तरह हमारे बचपन की घटनायें हमारे आज के व्यवहार को प्रभावित कर रही हैं।
(और पढ़ें - एडीएचडी के लिए मनोचिकित्सा)