यहां किलेशन थेरेपी के कुछ स्वीकृत और अस्वीकृत उपयोग के बारे में बताया जा रहा है:
शरीर से भारी धातुओं को निकालना : भारी धातु विषाक्तता के इलाज के लिए किलेशन थेरेपी का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है- यानी, कोमल ऊतकों में सीसा, आर्सेनिक, मर्क्यूरी, आयरन, कॉपर और मैंगनीज जैसे भारी धातुओं के संचय के कारण होने वाली विषाक्तता।
जिंक, आयरन, तांबा और मैंगनीज सहित कुछ भारी धातुएं शरीर के कार्यों के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन वे केवल थोड़ी मात्रा में आवश्यक हैं। अधिक शरीर में भारी धातुओं की अधिकता हो जाए तो ये विभिन्न लक्षणों को जन्म देती हैं जो धातु के अनुसार भिन्न होती हैं। उदाहरण के लिए, मैंगनीज विषाक्तता तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचा सकती है और निमोनिया का कारण भी बन सकती है, जबकि सीसा के ओवरएक्सपोजर के कारण उच्च रक्तचाप, रक्त में उच्च प्रोटीन स्तर, गतिभंग (अटैक्सिया गतिविधि विकार) और प्रजनन अंगों को नुकसान हो सकता है।
भारी धातु विषाक्तता व्यावसायिक संपर्क के कारण हो सकता है जैसे- पेंट या ग्लास निर्माण के दौरान आर्सेनिक के संपर्क में आना और थर्मामीटर निर्माण संयंत्रों में पारा के संपर्क में आना, कीटनाशकों को सांस के जरिए शरीर के अंदर लेना, जड़ी-बूटियों या कवकनाशी या खाद्य पदार्थों या पानी का भारी धातुओं के उच्च स्तर के साथ दूषित होना।
डायलिसिस के मरीजों के शरीर में अक्सर अतिरिक्त एल्यूमीनियम की मात्रा जमा हो जाती है और थैलेसीमिया वाले लोगों में आयरन का स्तर अधिक होता है। विल्सन रोग एक वंशानुगत बीमारी है जो जिसके कारण शरीर में कुछ क्षेत्रों में तांबे जमा होने लगता है मुख्य रूप से लिवर, आंख और मस्तिष्क में।
किलेशन थेरेपी के अस्वीकृत उपयोग
किलेशन थेरेपी के अस्वीकृत उपयोग निम्नलिखित हैं:
हृदय रोग उपचार : रक्त वाहिकाओं में बने प्लाक को तोड़ने और कोरोनरी धमनी बाइपास ग्राफ्ट थेरेपी को रोकने में किलेशन थेरेपी को प्रभावी माना जाता है। अधिकतर मामलों में, CaNa2EDTA प्लाक में मौजूद कैल्शियम को किलेट करने या कुछ हार्मोन्स के रिलीज को बढ़ावा देने में मदद करता है जो कैल्शियम को हटाने को बढ़ावा देते हैं और शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करते हैं। EDTA को एक एंटीऑक्सिडेंट और एंटी-इन्फ्लेमेटरी एजेंट भी माना जाता है और इसलिए रक्त वाहिका की सूजन को कम करने में प्रभावी है।
कई अध्ययनों से संकेत मिलता है कि CaNa2EDTA कोरोनरी धमनी की बीमारी के खिलाफ प्रभावी हो सकता है। हालांकि, 1 हजार से अधिक लोगों पर TACT (ट्रायल टू असेस किलेशन थेरेपी) नाम से बड़े पैमाने पर एक अध्ययन किया गया जिसमें यह पाया गया कि किलेशन थेरेपी केवल हृदय की स्थिति में मध्यम प्रभाव दिखाती है और वह भी केवल डायबिटीज के लोगों में। TACT2 नामक एक और विशाल अध्ययन अब मधुमेह रोगियों के हृदय स्वास्थ्य पर किलेशन थेरेपी के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए किया जा रहा है।
ऑटिज्म : अमेरिका स्थित एनजीओ, नैशनल कैपिटल पॉइज़न सेंटर के अनुसार, ऑटिज़्म के लिए किलेशन थेरेपी का उपयोग इस धारणा से आता है कि मर्क्यूरी एक्सपोज़र से ऑटिज़्म होता है। मान्यता यह है कि टीकों में मौजूद थाइमेरोसल नामक मर्क्यूरी कंपाउंड आत्मकेंद्रित होता है। कई बार मां के गर्भ में भी भ्रूण मर्क्यूरी के संपर्क में आ सकता है अगर गर्भवती महिला कुछ दवाइयां खाए या कोई ऐसा भोजन खाए जिसमें मर्क्यूरी मौजूद हो जैसे कुछ प्रकार की मछली या किसी तरह से मर्क्यूरी को सांस के जरिए शरीर के अंदर ले। वास्तव में, ऑटिज्म और मर्क्यूरी विषाक्तता के बहुत सारे लक्षण ओवरलैप होते हैं। उदाहरण के लिए, बौद्धिक विकास में देरी।
हालांकि, मर्क्यूरी एक्सपोजर और ऑटिज्म के बीच किसी भी लिंक को साबित करने के लिए मजबूत सबूत मौजूद नहीं है। ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार वाले 256 बच्चों में की गई केस-कंट्रोल स्टडी ने सुझाव दिया कि प्रीनेटल या जन्म के तुरंत बाद थिमेरोसल का एक्सपोजर के कारण ऑटिज्म नहीं होता। इटली में किए गए एक अन्य अध्ययन ने संकेत दिया कि ऑटिस्टिक मरीजों में मर्क्यूरी के स्तर में कोई अंतर नहीं है। कुछ अध्ययनों में मर्क्यूरी के बजाय ऑटिज्म रोगियों में उच्च स्तर का सीसा पाया गया है। इसके अतिरिक्त, एक सिद्धांत बताता है कि ऑटिज्म खून में मर्क्यूरी के बजाय इंट्रासेल्युलर मर्क्यूरी के उच्च स्तर के कारण होता है। लेकिन यह परिकल्पना अभी तक सिद्ध नहीं हुई है।
अल्जाइमर्स : अल्जाइमर्स एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है जिसका कोई ज्ञात कारण और उपचार मौजूद नहीं है। सुझावों की मानें तो, अल्जाइमर रोगियों के मस्तिष्क में पाए जाने वाले एमिलॉयड प्लाक जो जमा किए हुए बीटा-एमिलॉयड पेप्टाइड्स होते हैं, वह इस बीमारी का संभावित कारण हो सकते हैं। हालांकि, कुछ लोगों का यही भी कहना है कि केवल एमिलॉयड पेप्टाइड संचय अल्जाइमर का कारण नहीं हो सकता। इसके बजाय, मस्तिष्क में जिंक, आयरन और तांबा जैसे भारी धातुओं का असामान्य स्तर बीटा-एमिलॉयड प्रोटीन का एक असामान्य रूप बनाता है जो मस्तिष्क में एकत्रित हो जाता है। इसके अलावा, भारी धातु ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस को भी बढ़ाते हैं जिससे बीमारी बढ़ती है। मस्तिष्क में एल्यूमीनियम की उच्च सांद्रता भी अल्जाइमर के साथ जुड़ी हुई है। इसलिए, अल्जाइमर के प्रबंधन में बहुत सारे किलेटिंग एजेंट्स को लाभकारी माना जाता है। हालांकि, अल्जाइमर्स के इलाज में किलेशन थेरेपी के चिकित्सीय फायदों को दिखाने के लिए बहुत सारे सबूत मौजूद नहीं हैं। इसके विपरीत, कई अध्ययनों से संकेत मिलता है कि एल्यूमीनियम एक्सपोज और अल्जाइमर्स के बीच कोई संबंध नहीं है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि वर्तमान में उपयोग किए जाने वाले अधिकांश किलेटर्स ब्लड ब्रेन बैरियर से होकर गुजरने के लिहाज से बहुत बड़े हैं। ब्लड ब्रेन बैरियर मस्तिष्क में रक्त वाहिकाओं के एंडोथेलियल झिल्ली को संदर्भित करने के लिए उपयोग किया जाने वाला शब्द है जो खून और मस्तिष्क के बीच मॉलिक्यूल्स की गतिविधि को नियंत्रित करता है।
पार्किंसन्स रोग : पार्किंसंस एक न्यूरोडीजेनेरेटिव डिसऑर्डर है जिसके कारण संतुलन और समन्वय की कमी, स्मृति में गड़बड़ी और झटके लगना शामिल है। यह बीमारी तंत्रिका क्षति (या मृत्यु) और मस्तिष्क में डोपामाइन (एक न्यूरोट्रांसमीटर) की मात्रा में कमी के कारण होती है। वैसे तो न्यूरॉन की मृत्यु का सही कारण ज्ञात नहीं है, मस्तिष्क में लोहे के संचय को एक संभावित कारण के तौर पर जाना जाता है। वर्तमान में पार्किंसंस रोग के लिए किलेशन थेरेपी के फायदे (यदि कोई है) का अध्ययन करने के लिए अनुसंधान चल रहा है। हालांकि अब तक मौजूद सबूत अनिर्णायक है।