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फीमेल इजैक्युलेशन को स्क्वर्टिंग भी कहा जाता है, ये तब होता है जब यौन उत्तेजना के दौरान महिला के मूत्रमार्ग से एक तरह का लिक्विड बाहर निकलता है. स्क्वर्टिंग उस स्थिति में होता है, जब कोई महिला यौन रूप से उत्तेजित होती है, लेकिन ये जरूरी नहीं कि वो ऑर्गेज्म से ही जुड़ा हो. सामान्य शब्दों में महिला के किसी भी रूप में उत्तेजित होने पर मूत्रमार्ग से निकलने वाले तरह पदार्थ की प्रक्रिया को फीमेल इजैक्युलेशन कहा जाता है.

हालांकि, वैज्ञानिकों में फीमेल इजैक्युलेशन को लेकर मतभेद है और यह कैसे काम करता है और इसका क्या उद्देश्य है, इस पर सीमित शोध मौजूद हैं. बेशक, फीमेल इजैक्युलेशन पूरी तरह से सामान्य है, लेकिन शोधकर्ता इस मुद्दे पर एकजुट नहीं है और कितनी महिलाओं को इसका अनुभव होता है, ये भी स्पष्ट शोध मौजूद नहीं है.

आज इस लेख में हम जानेंगे कि स्क्वर्टिंग यानि फीमेल इजैक्युलेशन क्या है. साथ ही स्क्वर्टिंग ऑर्गेज्म क्यों होता है, ये व्हाइट डिस्चार्ज से कितना अलग है और इससे जुड़े मिथक क्या हैं. साथ ही जानेंगे, सेक्स, प्रेग्नेंसी और मासिक धर्म से इसका क्या ताल्लुक है. आइए जानें, फीमेल इजैक्युलेशन से जुड़ी सभी बातें -

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  1. क्या है स्क्वर्टिंग ऑर्गेज्म?
  2. कहां से आता है स्क्वर्टिंग फ्लूइड?
  3. क्या स्क्वर्टिंग होना आम बात है?
  4. स्क्वर्टिंग का पता कैसे लगाएं?
  5. स्क्वर्टिंग ऑर्गेज्म, इजैक्युलेशन और यौन असंयम के बीच अंतर
  6. क्या स्क्वर्टिंग ऑर्गज्म के कोई स्वास्थ्य लाभ हैं?
  7. स्क्वर्टिंग ऑर्गेज्म से जुड़े मिथक और भ्रम
  8. सारांश
फीमेल इजैक्युलेशन व इससे जुड़े मिथक और भ्रम के डॉक्टर

स्क्वर्टिंग ऑर्गेज्म का मतलब ऑर्गेज्म के दौरान योनि से निकलने वाले तरल पदार्थ से है. हालांकि, सभी महिलाओं को सेक्स या ऑर्गेज्म के दौरान स्क्वर्ट नहीं होता और न ही स्क्वर्टिंग होने का कारण हमेशा सेक्स या ऑर्गेज्म होता है. स्केन ग्रंथि से निकलने वाले स्राव को स्क्वर्टिंग से जोड़कर देखा जाता है. स्केन की ग्रंथियों को कभी-कभी महिला प्रोस्टेट कहा जाता है, क्योंकि वे पुरुष प्रोस्टेट के समान कार्य करती हैं.

एक शोध के अनुसार, फीमेल इजैक्युलेशन में वीर्य के समान कुछ घटक होते हैं. इसमें प्रोस्टेट विशिष्ट एंटीजन (पीएसए) और प्रोस्टेटिक एसिड फॉस्फेट शामिल हैं. इसमें थोड़ी मात्रा में क्रिएटिनिन और यूरिया, मूत्र के प्राथमिक घटक भी होते हैं.

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फीमेल इजैक्युलेशन के दौरान दो तरह के फ्लूइड निकलते हैं - स्क्वर्टिंग फ्लूइड जो रंगहीन व गंधहीन होता है और अधिक मात्रा में होता है. वहीं, इजैक्युलेशन फ्लूइड पुरुषों के स्पर्म जैसा दिखता है. यह आमतौर पर मोटा, चिपचिपा और दूधिया रंग का होता है.

स्क्वर्टिंग के दौरान निकलने वाले फ्लूइड पर हुई रिसर्च के मुताबिक, इसमें आमतौर पर पीएसए और फ्रुक्टोज होता है, जो स्केन ग्रंथियों या महिला प्रोस्टेट से आते हैं. स्केन ग्रंथियां जी-स्पॉट के पास योनि की अंदर की दीवार के सामने होती हैं. शोधकर्ताओं का मानना है कि उत्तेजना के कारण ये ग्रंथियां पीएसए और फ्रुक्टोज का उत्पादन करती हैं, जो फिर मूत्रमार्ग में चली जाती हैं. स्क्वर्टिंग जरूरी नहीं कि यूरिन के दौरान हो या यूरिन की तरह हो. यह मूत्र की तरह गंध भी नहीं करता है.

यह फ्लूइड तब बाहर आता है, जब उत्तेजना होने या उत्तेजना के दौरान महिला का मूत्रमार्ग खुलता है. बता दें, स्क्वर्टिंग फ्लूइड ऑर्गेज्‍म और सेक्स के दौरान योनि को चिकना और उत्तेजित करने वाले तरल पदार्थ से अलग होता है. एक शोध के अनुसार, स्क्वर्टिंग फ्लूइड की मात्रा लगभग 0.3 मिलीलीटर (एमएल) से लेकर 150 एमएल तक हो सकती है.

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हां, स्क्वर्टिंग पूरी तरह से सामान्य है. इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर सेक्सुअल मेडिसिन के अनुसार, अलग-अलग अनुमान बताते हैं कि 10 से 50 प्रतिशत महिलाएं सेक्स के दौरान स्क्वर्टिंग करती हैं. वहीं, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि सभी महिलाओं को स्क्वर्टिंग का अनुभव होता है, लेकिन कई महिलाओं को इस पर ध्यान नहीं जाता है. हो सकता है कि उन्हें इसकी जानकारी न हो, क्योंकि फ्लूइड कई बार मूत्राशय के साथ आ सकता है.

स्क्वर्टिंग पर हुए कुछ अध्ययनों और सर्वे में अलग-अलग नतीजे सामने आए हैं. एक रिसर्च में जहां सिर्फ 54 प्रतिशत महिलाओं ने कम से कम एक बार फीमेल इजैक्युलेशन महसूस किया, वहीं 14 प्रतिशत ने कहा कि उन्होंने यौन रूप से उत्तेजित होने पर और अधिकतर ऑर्गेज्‍म के साथ स्क्वर्टिंग को महसूस किया. इस आधार पर शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि सभी महिलाएं स्क्वर्टिंग करती हैं, लेकिन इसे हमेशा बाहर नहीं निकालती, इसके बजाय, स्क्वर्टिंग फ्लूइड कभी-कभी मूत्राशय में लौट आता है, जो फिर पेशाब के दौरान इसे पास कर देता है.

वहीं, स्क्वर्टिंग पर सबसे हालिया क्रॉस-सेक्शनल रिसर्च में 2012 से 2016 में 18 से 39 साल की महिलाओं को शामिल किया गया. इनमें 69.23 प्रतिशत ने सेक्स के दौरान स्क्वर्टिंग का अनुभव किया.

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कुछ सेक्स एक्सपर्ट स्क्वर्टिंग का पता लगाने और स्क्वर्टिंग ऑर्गज्म पाने के लिए जी-स्पॉट को उत्तेजित करने की सलाह देते हैं. ऐसा इसीलिए, क्योंकि जी-स्पॉट पर दबाव पड़ने से पेशाब करने की जरूरत महसूस हो सकती है.

इसके लिए विशेष रूप से जी-स्पॉट को उत्तेजित करने के लिए डिजाइन किए गए सेक्स टॉयज का इस्तेमाल कर सकते हैं या लुब्रिकेंट का भी उपयोग कर सकते हैं. स्क्वर्टिंग ऑर्गज्म की कोशिश करने से पहले ब्लैडर खाली करना चाहिए.

कुछ महिलाओं के लिए जी-स्पॉट पर बहुत अधिक दबाव डालना असहज महसूस कर सकता है. ऐसे में जो अच्छा लगे वही करें. यदि आप बहुत अधिक तनाव में हैं, तो स्क्वर्ट करना कठिन हो सकता है.

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स्क्वर्टिंग ऑर्गेज्म, इजैक्युलेशन और यौन असंयम इन तीनों स्थितियों में सेक्स के दौरान मूत्राशय से तरल पदार्थ आना शामिल है. स्क्वर्टिंग में संभोग के दौरान मूत्रमार्ग से तरल पदार्थ निकलता है. इजैक्युलेशन में मूत्र और स्केन ग्रंथियों से दोनों तरह का तरल पदार्थ रिलीज होता है. यौन असंयम में सेक्स के दौरान मूत्राशय पर नियंत्रण न होना और यूरिन का बाहर निकलना शामिल है.

ऑर्गज्‍म के दौरान योनि से व्हाइट फ्लूइड का बहुत ही कम मात्रा में स्राव शामिल हो सकता है, जो आमतौर पर बाहर नहीं निकलता है और ये बेहद चिकना और मोटा होता है. दूसरी ओर, मूत्रमार्ग से स्क्वर्टिंग फ्लूइड अधिक मात्रा में बाहर निकलता है. ऑर्गेज्म के दौरान व्हाइट फ्लूइड और स्क्वर्टिंग फ्लूइड दोनों एक साथ आना संभव है.

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इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि स्क्वर्टिंग ऑर्गज्म से कोई स्वास्थ्य लाभ होता है. हालांकि, शोध में पाया गया है कि सेक्स कई मायनों में लाभदायक है. संभोग के दौरान, शरीर दर्द निवारक हार्मोन जारी करता है, जो पीठ, पैर के दर्द और सिरदर्द को दूर करने में मदद कर सकता है. ऑर्गज्म के तुरंत बाद, शरीर हार्मोन जारी करता है, जो बेहतर नींद को बढ़ावा देता है. इन हार्मोनों में प्रोलैक्टिन और ऑक्सीटोसिन शामिल हैं. इसके अलावा, इसके कुछ और लाभ हैं, जैसे- 

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स्क्वर्टिंग आर्गेज्म के संबंध में कई बातें कही जाती हैं, जिनका कोई आधार नहीं है. आइए, इन मिथकों के बारे में जानते हैं-

स्क्वर्टिंग नकली है

नहीं, स्क्वर्टिंग वास्तव में होता है. शोधकर्ताओं ने इसके सबूत इकट्ठे किए हैं. हालांकि, स्क्वर्टिंग और स्क्वर्टिंग ऑर्गज्म के सटीक कारणों को निर्धारित करने के लिए अभी और शोध की आवश्यकता है. स्क्वर्टिंग के बारे में अस्पष्टता इसीलिए है, क्योंकि स्केन की ग्रंथियां हर व्यक्ति में भिन्न होती हैं.

एक शोध में पाया गया कि उत्तेजना के दौरान स्क्वर्टिंग फ्लूइड मूत्राशय में जमा हो जाता है और इजैक्युलेशन के दौरान मूत्रमार्ग से निकल जाता है. रिसर्च के नतीजों में पाया गया था कि सभी महिलाओं ने एक खाली ब्लैडर से खुद को उत्तेजित करने शुरुआत की, जो उत्तेजना के दौरान भरने लगा. इजैक्युलेशन के बाद के स्कैन से पता चला कि प्रतिभागियों के मूत्राशय फिर से खाली थे.

हर कोई एक तरीके से स्क्वर्ट कर सकता है

स्क्वर्टिंग का अनुभव, एक महिला से दूसरी महिला में काफी भिन्न होता है. कुछ तरीके दूसरों की तुलना में अधिक स्क्वर्ट करवा सकते हैं, लेकिन इसका कोई भी एक तय तरीका नहीं है, जो स्क्वर्ट में मदद कर सके. ऐसा इसलिए है, क्योंकि कुछ में स्केन ग्रंथियों की कमी होती है, कई बार ऐसा वजाइना के आकार में परिवर्तन के कारण होता है.

स्क्वर्टिंग ऑर्गेज्म हमेशा उच्च होता है

ये जरूरी नहीं कि स्क्वर्टिंग ऑर्गज्म हमेशा उच्च हो, कभी-कभी ये बहुत कम भी हो सकता है या बिल्कुल भी नहीं हो, ये भी संभव हैं. ये हमेशा हर बार हो ये भी जरूरी नहीं.

स्क्वर्टिंग सिर्फ संभोग के दौरान होती है

ये सही नहीं है. कुछ महिलाओं को संभोग से पहले या बाद में स्क्वर्टिंग हो सकती है.

यह मासिक धर्म चक्र से है संबंध

यह स्पष्ट नहीं है कि स्क्वर्टिंग और मासिक धर्म के बीच कोई संबंध है या नहीं. कुछ महिलाओं का कहना है कि ओवुलेशन के बाद और मासिक धर्म से पहले उनके स्क्वर्टिंग की संभावना अधिक होती है, जबकि अन्य को कोई संबंध नहीं दिखता. इसके लिए अभी अधिक शोध की आवश्यकता है.

इसका गर्भावस्था से है संबंध

कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि गर्भावस्था में स्क्वर्टिंग की भूमिका अहम होती है. वे ऐसा इसलिए सोचते हैं, क्योंकि फ्लूइड में पीएसए और फ्रुक्टोज होते हैं, जो शुक्राणु को एक असुरक्षित अंडे की ओर ट्रैवल करने में मदद करते हैं. हालांकि, अन्य शोधकर्ता इसे सही नहीं मानते. उनका तर्क है कि स्क्वर्टिंग फ्लूइड में आमतौर पर यूरिन होता है, जो शुक्राणुओं को मार सकता है. वे यह भी कहते हैं कि फ्लूइड के लिए मूत्रमार्ग से योनि तक यात्रा करना आसान नहीं होता है, जहां इसे गर्भावस्था में भूमिका निभाने की आवश्यकता होती है.

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फीमेल इजैक्युलेशन या स्क्वर्टिंग पूरी तरह से सामान्य है, जो कि स्केन ग्रंथि से निकलता है. कभी-कभी ये यूरिन के साथ, तो कभी बिना यूरिन के बाहर निकलता है. स्क्वर्टिंग फ्लूइड जो रंगहीन और गंधहीन होता है, जो 0.3 से लेकर 150 एमएल तक निकल सकता है. लगभग 50% महिलाओं को ही स्क्वर्टिंग का अनुभव होता है. लेकिन जिन महिलाओं को स्क्वर्टिंग महसूस नहीं होता, इसका मतलब ये नहीं कि उनका यौन जीवन पूर्ण नहीं है या वे अस्वस्थ हैं या उन्हें कोई सेक्सुअल प्रॉब्लम है. सेक्स के दौरान स्क्वर्टिंग करने वाली महिलाओं का अनुभव अलग-अलग हो सकता है.

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