जैसे-जैसे गर्भावस्था का समय आगे बढ़ता जाता है, गर्भवती महिला को बेहद सामान्य और नियमित कार्यों को करने के बाद भी सांस लेने में कठिनाई महसूस होने लगती है, खासकर सीढ़ियां चढ़ने के बाद। साल 2015 में हुए एक अध्ययन की मानें तो करीब 60 से 70 प्रतिशत महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान सांस की तकलीफ का अनुभव होता है। उन्हें सांस लेने में मुश्किल महसूस होने लगती है या फिर थोड़ा सा भी मेहनत वाला काम करने पर सांस फूलने लगती है। 

डॉक्टरों की मानें तो गर्भवती महिला का बढ़ता हुआ गर्भाशय, खुद को फेफड़ों की तरफ ऊपर की ओर धकेलने लगता है और इस वजह से ही गर्भवती महिला को सांस लेने में कठिनाई महसूस होती है। इसके अलावा प्रेगनेंसी के दौरान लगातार हो रहे हार्मोनल बदलावों के साथ शरीर सामंजस्य बैठाने की कोशिश में लगा रहता है और इस कारण भी सांस फूलने की समस्या हो सकती है। हालांकि कई बार प्रेगनेंसी में सांस फूलना, निमोनिया या ब्लड क्लॉट जैसी गंभीर बीमारी का संकेत भी हो सकता है।  

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इस आर्टिकल में हम आपको गर्भावस्था के दौरान सांस की तकलीफ और सांस फूलने की समस्या के संभावित कारणों के बारे में बताने के साथ ही सांस फूलने की समस्या हो तो क्या करना चाहिए और किन परिस्थितियों में डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए के बारे में जानकारी दे रहे हैं।

  1. गर्भावस्था में सांस फूलने का कारण - Garbhavastha me sans fulne ka karan
  2. प्रेगनेंसी में सांस फूलने की समस्या दूर करने का उपाय - Pregnancy me sans fulna rokne ke upay
  3. प्रेगनेंसी में सांस फूलने पर कब करें डॉक्टर से संपर्क? - Garbhavastha me sans fulne par kab kare doctor se sampark?
जानिए प्रेगनेंसी में सांस फूलने के लक्षण , कारण और उपचार के डॉक्टर

वैसे तो सांस की तकलीफ या सांस फूलना, गर्भावस्था के सामान्य लक्षणों में से एक है, बावजूद इसके डॉक्टरों के लिए प्रेगनेंसी में सांस फूलने के किसी एक कारण की पहचान करना मुश्किल हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान सांस की तकलीफ कई कारकों की वजह से उत्पन्न हो सकती है जिसमें गर्भाशय के बढ़ते आकार से लेकर हृदय की मांग में होने वाले बदलाव जैसी स्थितियां शामिल हैं। कुछ महिलाओं को गर्भावस्था की पहली तिमाही में ही अपनी सांस लेने की स्थिति में बदलाव नजर आ सकता जबकि बाकी महिलाओं को दूसरी तिमाही और तीसरी तिमाही के दौरान अंतर दिखाई देता है।

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महिलाओं के स्वास्थ के लिए लाभकारी , एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे हार्मोंस को कंट्रोल करने , यूट्रस के स्वास्थ को को ठीक रखने , शरीर के विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाल कर सूजन को कम करने में लाभकारी माई उपचार आयुर्वेद द्वारा निर्मित अशोकारिष्ठ का सेवन जरूर करें । 

पहली तिमाही में सांस फूलना - First trimester me sans fulna

डायाफ्राम, ऊतकों से बना एक बैंड जो हृदय और फेफड़ों को पेट से अलग करता है, उसमें गर्भावस्था की पहले तिमाही के दौरान ही 4 सेंटीमीटर तक वृद्धि हो जाती है। डायाफ्राम की गति फेफड़ों को हवा से भरने में मदद करती है। हालांकि कुछ महिलाओं को प्रेगनेंसी की पहली तिमाही में सांस लेने की प्रक्रिया में कोई परिवर्तन महसूस नहीं होता क्योंकि उन्हें पता ही नहीं होता कि वे कितनी गहराई से सांस ले सकती हैं। वहीं दूसरों को यह अंतर दिख सकता है कि वे पूर्ण रूप से गहरी सांस नहीं ले पा रहीं।

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डायफ्राम में होने वाले बदलाव के अलावा प्रोजेस्टेरॉन हार्मोन में वृद्धि के कारण भी गर्भवती महिलाएं अक्सर तेजी से सांस लेती हैं। प्रोजेस्टेरॉन, गर्भावस्था के दौरान भ्रूण के विकास में तो मदद करता ही है, यह एक श्वसन उत्तेजक भी है, जिसका अर्थ है कि यह किसी व्यक्ति की सांस को तेज कर सकता है। वैसे तो यह जरूरी नहीं कि तेजी से सांस लेने की वजह से आपकी सांस फूलने लगे लेकिन कुछ महिलाओं को अपने श्वसन पैटर्न में बदलाव दिखता है।

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दूसरी तिमाही में सांस फूलना - Second trimester me sans fulna

बढ़ता गर्भाशय दूसरी तिमाही में सांस की तकलीफ का कारण बनता है लेकिन कई बार हृदय के काम करने के तरीके में बदलाव की वजह से भी गर्भवती महिला की सांस फूल सकती है। दरअसल, गर्भावस्था के दौरान महिला के शरीर में खून की मात्रा बढ़ जाती है। हृदय को और ज्यादा खून को पंप करने की जरूरत होती है ताकि वह उसे शरीर और प्लेसेंटा तक पहुंचा सके। हृदय के काम करने के तरीके में बढ़ने वाला यह बोझ गर्भवती महिला को सांस फूलने की तकलीफ दे सकता है।

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तीसरी तिमाही में सांस फूलना - Third trimester me sans fulna

प्रेगनेंसी की तीसरी या आखिरी तिमाही में गर्भ में पल रहा बढ़ता बच्चा आपके डायफ्राम की तरफ गर्भाशय को धकलने लगता है जिस कारण डायफ्राम अपनी पूर्व स्थिति से ऊपर चला जाता है और गर्भवती महिला के फेफड़े भी कुछ संकुचित हो जाते हैं। इसका मतलब है कि गर्भवती महिला प्रत्येक सांस के साथ अधिक से अधिक हवा लेने में असमर्थ हो जाती है। एक तरफ जहां बढ़ते गर्भाशय से जुड़ी शारीरिक बाधा के कारण आपके फेफड़ों की क्षमता घटने लगती है तो वहीं, मस्तिष्क में मौजूद श्वसन केंद्र को प्रोजेस्टेरॉन हार्मोन उत्तेजित करने लगता है जिससे आप धीरे-धीरे धीमी सांस लेने लगती हैं।

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अमेरिका के नैशनल वीमेन्स हेल्थ रिसोर्स सेंटर की मानें तो गर्भावस्था के 31वें हफ्ते से 34वें हफ्ते के बीच गर्भवती महिला को इस तरह की सांस फूलने या सांस लेने में मुश्किल की समस्या का सामना करना पड़ता है।

प्रेगनेंसी में सांस फूलने के मेडिकल कारण - Pregnancy me sans fulne ke medical karan

वैसे तो गर्भावस्था के दौरान सांस फूलने की समस्या कॉमन है, बावजूद इसके बेहतर यही होगा कि सांस से जुड़ी कोई भी समस्या महसूस होने पर आप अपनी डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें। वैसे तो प्रेगनेंसी के दौरान शरीर में होने वाले बदलाव की वजह से सांस फूलने की समस्या होती है लेकिन इसके अलावा कई मेडिकल कारणों से भी सांस फूलने की समस्या हो सकती हैं, जैसे:

  • अस्थमा - अगर गर्भवती महिला को पहले से अस्थमा की समस्या हो तो गर्भावस्था के दौरान अस्थमा के ये लक्षण बदतर हो सकते हैं। इसलिए अस्थमा से पीड़ित महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान सुरक्षित उपचार के बारे में डॉक्टर से बात करनी चाहिए, जैसे कि इन्हेलर या दवाइओं का इस्तेमाल। (और पढ़ें- अस्थमा अटैक में करें प्राथमिक उपचार)
  • पेरिपार्टम कार्डियोमायोपथी - यह हार्ट फेलियर का एक प्रकार है जो गर्भावस्था के दौरान या डिलिवरी के तुरंत बाद हो सकता है। इसके लक्षणों में टखने की सूजन, लो ब्लड प्रेशर, थकान और घबराहट महसूस होना शामिल है। कई महिलाएं शुरुआत में इन लक्षणों को गर्भावस्था के लक्षण मान लेती हैं लेकिन यह स्थिति महिला के स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है, इसलिए सही इलाज करवाएं।
  • पल्मोनरी एम्बोलिज्म - पल्मोनरी एम्बोलिज्म की समस्या तब होती है जब कोई खून का थक्का (ब्लड क्लॉट) फेफड़ों की किसी धमनी में जाकर फंस जाता है। एम्बोलिज्म नाटकीय रूप से सांस लेने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है और खांसी, सीने में दर्द और सांस फूलने की तकलीफ का कारण बन सकता है।
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सांस लेने में तकलीफ या सांस फूलने की समस्या कई बार आपके लिए असहज हो सकती है, लेकिन ऐसे कई तरीके हैं जिनसे आप अधिक आराम से सांस ले सकती हैं:

  • प्रेगनेंसी में सही मुद्रा (पॉस्चर) का रखें ध्यान : सुनिश्चित करें कि आप अपने कंधों को बिलकुल सीधा रखकर सीधी खड़े हों और आपका सिर ऊपर की तरफ उठा हुआ हो। अपनी छाती को उठाने के लिए कल्पना करें कि एक सीधी रेखा आपके स्टर्नम (गर्दन से पेट तक की हड्डी) को आकाश से जोड़ रही है।
  • प्रेगनेंसी में करें एक्सरसाइज : ऐरोबिक एक्सरसाइज आपकी सांस को बेहतर बनाती है और आपकी पल्स को भी कम करती है। लेकिन इसे शुरू करने से पहले अपनी डॉक्टर की स्वीकृति लेना न भूलें। यदि आपने पहले से ही अभ्यास शुरू नहीं किया है, तो अब प्रसव पूर्व योग शुरू करने का एक अच्छा समय है। श्वास योग साधना और अतिरिक्त स्ट्रेचिंग आपके पॉस्चर को बेहतर बना सकता है और आपको सांस लेने के लिए अधिक रूम भी दे सकता है। आप जो भी व्यायाम चुनती हैं उसे बहुत ज्यादा न करें, आपका शरीर क्या कह रह है, उसकी बात भी सुनें।
  • आराम करें : रिलैक्स करें, आराम से रहें। जिस गर्भवती महिला की सांस न फूल रही हो उनके लिए भी आराम करना बेहद जरूरी है। शैलो या छिछली सांस के बारे में आप जितना अधिक चिंतित होंगी आपकी सांस उतनी ही अधिक फूलने लगेगी। जब आपको लगे कि आराम करने की आवश्यकता है तो आराम करना भी महत्वपूर्ण है।
  • तकियों का इस्तेमाल करें : सोते वक्त पीठ के ऊपरी हिस्से को सपोर्ट देने के लिए तकिए का इस्तेमाल करें। ऐसा करने से गुरुत्वाकर्षण गर्भाशय को नीचे खींचेगा जिससे फेफड़ों को अधिक स्थान मिल पाएगा और आप आराम से सांस ले पाएंगी। इस स्थिति में बाईं ओर थोड़ा झुकने पर भी गर्भाशय को महाधमनी (शरीर में ऑक्सीजन युक्त खून को स्थानांतरित करने वाली प्रमुख धमनी) से दूर रखने में मदद मिल सकती है।

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वैसे तो बहुत सी महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान सांस फूलने या सांस में तकलीफ की समस्या महसूस होती है लेकिन कुछ लक्षण ऐसे भी हैं जिसमें तुरंत इलाज की जरूरत होती है। गर्भवती महिलाओं को निम्नलिखित लक्षण दिखने पर तुरंत इलाज के लिए जाना चाहिए:

  • नीले होंठ, हाथ और पैर की उंगलियों का नीला पड़ना
  • दिल की धड़कन का तेज होना या उच्च हृदय गति
  • सांस लेते वक्त दर्द महसूस होना
  • सांस फूलने की गंभीर समस्या
  • सांस लेते वक्त घरघराहट की आवाज आना

इसके अलावा अगर आपको प्रेगनेंसी के दौरान निमोनिया या अस्थमा की समस्या तो तब भी सांस फूलने पर समस्या को सामान्य समझने की बजाए डॉक्टर से संपर्क करें।

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