गर्भवती होना महिलाओं के लिए एक अद्भुत अनुभव होता है और इस समय मां और बच्चे का खास ख्याल रखना बेहद ज़रूरी होता है। मां की प्राथमिक देखभाल तो परिवारवालों और स्वयं महिला पर निर्भर करती है लेकिन बच्चे का स्वास्थ जानने के लिए कुछ जांचें करानी ज़रूरी होती हैं। हालांकि डॉक्टर के क्लिनिक में बिताया जाने वाला समय चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
गर्भावस्था के दौरान महिला में काफी शारीरिक परिवर्तन होते हैं जिनकी निगरानी करना बच्चे और मां के स्वास्थ्य के लिए अत्यावश्यक होता है। गर्भवती महिला को नियमित चिकित्सा सलाह की आवश्यकता होती है ताकि उसकी गर्भावस्था सुचारू रूप से चलती रहे और किसी भी समस्या का पता लगने पर जितना जल्दी हो इलाज किया जा सके।
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"एन्टीनेटल (Antenatal)" या "प्रीनेटल (Prenatal)" का अर्थ है "जन्म से पहले" अर्थात बच्चे के जन्म से पहले जो परीक्षण गर्भवती महिला को कराने होते हैं उन्हें प्रसव पूर्व जांच या प्रसव पूर्व परीक्षण कहते हैं। और इनका मुख्य उद्देश्य आपका और आपके बच्चे का स्वास्थ्य जानना होता है। अगर इस दौरान किसी भी प्रकार के जन्म दोष से पीड़ित होने का जोखिम होता है तो इनके द्वारा उसका पता लगाया जा सकता है। जन्म के पूर्व की चिकित्सकीय जांचों के दौरान, डॉक्टर आपका शारीरिक परीक्षण करेंगे साथ ही कुछ नियमित परीक्षण करवाने का सुझाव भी दे सकते हैं।
प्रेगनेंसी में सबसे अधिक स्क्रीनिंग टेस्ट 15 से 20 सप्ताह के दौरान करवाने की सलाह दी जाती है और यह सुनिश्चित किया जाता है कि बच्चे को स्पाइना बाइफ़िडा (इससे पीड़ित बच्चों की रीढ़ की हड्डी में छेद होता है जिसकी वजह से शरीर का निचला हिस्सा ख़राब हो सकता है), डाउन सिंड्रोम (यह क्रोमसोम की असामान्यता है। क्रोमसोम में जीन्स होते हैं जिनके द्वारा माता पिता के गुण बच्चों में स्थानांतरित होते हैं। असामान्यता तब उत्पन्न होती है जब क्रोमसोम संख्या में बहुत अधिक हो जाते हैं) या अन्य किसी प्रकार की असामान्यता तो नहीं है। डाउन सिंड्रोम के कारण सीखने की क्षमता में कमी और हृदय दोष जैसी समस्याएं हो सकती हैं। यह अधिक उम्र में मां बनने वाली महिलाओं में अधिक प्रमुख है। लेकिन दुर्भाग्यवश सभी प्रभावित गर्भावस्था स्क्रीनिंग टेस्ट से ज्ञात नहीं की जा सकतीं।