हर महिला की दिली इच्छा यही होती है कि उसकी प्रेगनेंसी पूरी तरह से स्वस्थ और खुशियों से भरी हो और इस दौरान उसे किसी भी तरह की जटिलता का सामना न करना पड़े। वैसी महिलाएं जो प्रसव से पहले अपना पूरा ध्यान रखती हैं, प्रेगनेंसी के दौरान अपनी डाइट में भरपूर पोषक तत्वों का सेवन करती हैं और गर्भावस्था के दौरान भी एक्सर्साइज का उचित रूटीन फॉलो करती हैं उनमें से ज्यादातर महिलाओं की स्वस्थ प्रेगनेंसी की यह इच्छा पूरी भी हो जाती है। हालांकि कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं जिन्हें गर्भावस्था के दौरान कई तरह की समस्याओं और जटिलाओं का सामना करना पड़ता है। जैसे- मिसकैरेज, गर्भ में बच्चे का मरना (स्टिलबर्थ), ऑब्स्टेट्रिक कोलैस्टेसिस, प्री-एक्लेमप्सिया और ईक्लैम्प्सिया, वेरिकोज वेन्स, जेस्टेशनल डायबिटीज, गर्भावस्था के दौरान डिप्रेशन और प्रेगनेंसी के दौरान होने वाला इंफेक्शन आदि।
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सर्वाइकल इन्सफिशिएंसी यानी कमजोर ग्रीवा या ग्रीवा के कार्य क्षमता में कमी भी ऐसी ही एक जटिलता है जिसकी वजह से समय से पहले लेबर पेन शुरू होने और समय पूर्व बच्चे के जन्म का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। समय से पहले जन्म लेने वाले प्रीमैच्योर बच्चों को कई तरह की बीमारियों का खतरा जीवनभर बना रहता है और साथ ही दूसरे बच्चों की तुलना में उनका विकास भी धीमी गति से होता है। लिहाजा समय से पहले बच्चे के जन्म के खतरे को जितना कम किया जा सके उतना ही अच्छा है और इसके लिए जरूरी है कि आप अपने सर्विक्स यानी ग्रीवा की कमजोरी या अक्षमता पर ध्यान दें।
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जिन लोगों को नहीं पता उनकी जानकारी के लिए बता दें कि सर्विक्स या ग्रीवा, गर्भाशय का निचला हिस्सा होता है जो योनि (वजाइना) से जुड़ा होता है। जाहिर सी बात है कि जब महिला का शरीर डिलिवरी के लिए तैयार होता है तो शरीर का यह हिस्सा जिसे ग्रीवा कहते हैं वह प्राकृतिक रूप से फैलने या खुलने लगता है। सामान्य परिस्थियों में फैलाव या विस्तार की यह प्रक्रिया डिलिवरी की ड्यू डेट से कुछ दिन या कुछ हफ्ते पहले होती है। लेकिन जब किसी महिला को ग्रीवा में कमजोरी या अक्षमता की समस्या हो तो ग्रीवा के फैलाव और गर्भाशय में सिकुड़न की प्रक्रिया काफी पहले ही शुरू होने लगती है। कभी-कभी तो गर्भावस्था की दूसरी तिमाही के खत्म होने या तीसरी तिमाही की शुरुआत में ही।
ग्रीवा की कमजोरी या अक्षमता पर आपका कोई नियंत्रण नहीं है। आनुवांशिक बीमारियां जो शरीर में कोलाजन के उत्पादन को प्रभावित करती हैं उनके और कमजोर ग्रीवा (सर्विक्स) के बीच लिंक पाया गया है। इसके अलावा जिन महिलाओं को गर्भाशय की अनियमितता से जुड़ी कोई समस्या होती है उन्हें भी गर्भावस्था की दूसरी तिमाही खत्म होते-होते जैसे ही बच्चे का वजन आधा किलो से अधिक होता है, उन्हें ग्रीवा की अक्षमता की समस्या हो सकती है। इतना ही नहीं, जिन महिलाओं के गर्भ में एक से ज्यादा बच्चे पल रहे हों उन्हें भी कमजोर ग्रीवा की समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
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अपना कार्य करने में अक्षम या कमजोर गर्भाशय ग्रीवा की समस्या को गर्भावस्था के 20वें हफ्ते के आसपास डायग्नोज किया जा सकता है, लेकिन सिर्फ तभी जब आपको इस तरह की जटिलता से जुड़े जोखिम कारकों की जानकारी हो या फिर अगर किसी महिला में ग्रीवा की कमजोरी की समस्या पहले भी कई बार हो चुकी हो। ग्रीवा कमजोरी की समस्या को डायग्नोज करने के बाद आपकी ऑब्स्ट्रेटिशन या डॉक्टर, इस जटिलता को दूर करने के लिए जो इलाज बताती हैं वह है सर्वाइकल सरक्लाज यानी कमजोर ग्रीवा में टांके लगाना। हालांकि अगर महिला के गर्भ में जुड़वां बच्चे हों तो यह ट्रीटमेंट नहीं किया जाता। लोकल एनीस्थिया की मदद से की जाने वाली यह एक छोटी सी प्रक्रिया है जिसमें सर्विक्स को टांके लगाकर सिल दिया जाता है ताकि गर्भावस्था के बाकी बचे हुए दिनों में किसी तरह की कोई समस्या न हो।
यह एक छोटी सी लेकिन महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसकी मदद से न सिर्फ समय से पहले लेबर और बच्चे के जन्म का खतरा कम होता है बल्कि इस प्रक्रिया की मदद से यह बात भी सुनिश्चित हो जाती है कि आपके गर्भावस्था के बाकी के दिन सुरक्षित रहेंगे। ग्रीवा की कमजोरी, अक्षमता और इससे निपटने के लिए ग्रीवा में टांके लगाए जाने की प्रक्रिया के बारे में हम आपको इस आर्टिकल में बता रहे हैं।