मातृत्व के इस नए सफर में आपका स्वागत है। अब तक आपने अपने शिशु की पहली बार रोने की आवाज सुन ली होगी, उसके साथ स्किन-टू-स्किन कॉन्टैक्ट भी कर लिया होगा और शिशु के जन्म के पहले घंटे में आपको अपने अंदर कई सारी भावनाएं एक साथ महसूस हो रही होंगी। हमें पता है कि अब आपका पूरा ध्यान और फोकस अपने नवजात शिशु पर रहेगा लेकिन ये भी जरूर याद रखें कि प्रसव के बाद नई मां का ध्यान रखना भी उतना ही जरूरी है जितना कि शिशु का।
प्रसव यानी डिलिवरी के बाद नई मां का ध्यान रखना उतना ही जरूरी है जितना प्रसव से पहले प्रेगनेंसी के दौरान। शिशु के जन्म के बाद तो नई मां का ध्यान रखना और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है क्योंकि मातृत्व के नई सफर में कदम रखने का मतलब है कि महिला के शरीर में शारीरिक और भावनात्मक रूप से कई तरह के बदलाव होते हैं जिसका सीधा असर महिला की सेहत पर पड़ता है। प्रसव के बाद (पोस्टनेटल) नई मां की देखभाल की शुरुआत डिलिवरी के ठीक बाद अस्पताल से ही शुरू हो जानी चाहिए और देखभाल की यह प्रक्रिया करीब 6 से 8 हफ्ते तक जारी रहनी चाहिए।
नई मां होने के नाते इस दौरान आपको अपनी ताकत का पुनर्निमाण करना होगा और साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि आपका पार्टनर या जीवनसाथी नवजात शिशु का ख्याल कैसे रखना है, इसे भी अच्छी तरह से सीख लें। आपने अपने नवजात शिशु को कैसे जन्म दिया है- सिजेरियन डिलिवरी के जरिए या फिर नॉर्मल वजाइनल डिलिवरी के जरिए- इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। प्रसव के बाद वाले इस समय में आपको 2 महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर फोकस करने की जरूरत है:
प्रसव के बाद के समय में नई मां करें आराम:
नए पैरंट होने का मतलब है कि आपको अपने शिशु की शारीरिक घड़ी के हिसाब से खुद को अडजस्ट करना पड़ता है। अगर शिशु रो रहा हो तो उसे चुप कराना पड़ता है, उसका पेट भरने के लिए दूध पिलाना होता है, हर 2 से 3 घंटे में शिशु का डायपर बदलना पड़ता है। जन्म के पहले पहले महीने में आमतौर पर ज्यादातर शिशु 16 से 18 घंटे तक सोते हैं लेकिन इस दौरान शिशु 8 से 10 बार दूध पीने के लिए जागते भी हैं। ऐसे में इस दौरान अपनी नींद पूरी करने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि जब आपका शिशु सो रहा हो आप भी सोकर अपनी नींद पूरी कर लें। हालांकि यह पर्याप्त नहीं होगा क्योंकि वयस्कों को सामान्य तरीके से कार्य करने के लिए रोजाना रात में 7 से 8 घंटे की नींद की जरूरत होती है।
साथ में आपको शिशु की देखभाल से जुड़े कई अतिरिक्त काम भी होते हैं- शिशु का ध्यान रखना, उसे दूध पिलाना, डकार दिलवाना, शिशु की सफाई करना, डायपर बदलना आदि। ऐसे में प्रसव के बाद हर वक्त थकान महसूस करना भी बेहद सामान्य सी बात है। याद रखें कि इस दौरान आपके शरीर ने काफी कुछ झेला है- आपको प्रसव की तकलीफ से भी उबरना है। इतना ही नहीं प्रसव के बाद होने वाले हार्मोनल असंतुलन की वजह से आपको उदासीनता और मूड स्विंग भी हो सकता है।
प्रसव के बाद नई मां को पोषण की जरूरत:
शिशु के जन्म के तुरंत बाद आपको अपना वजन घटाने की चिंता करने की जरूरत नहीं क्योंकि इस दौरान आपका मुख्य लक्ष्य यह होना चाहिए कि आप खुद को स्वस्थ कैसे बनाए रखेंगी। आमतौर पर तो यही होता है कि प्रसव प्रक्रिया के दौरान प्राकृतिक रूप से महिला का वजन कुछ कम हो जाता है। लेकिन अगर ऐसा नहीं होता तो आप डिलिवरी के 8 सप्ताह बाद स्वस्थ तरीके से पोस्टपार्टम वेट लॉस प्रोग्राम शुरू कर सकती हैं। इस दौरान, आपको अपना पूरा फोकस पोषण प्राप्त करने में करना चाहिए ताकि आपके शरीर की ऊर्जा का लेवल बना रहे क्योंकि आपको अपने नवजात शिशु की देखभाल जो करनी है।
और आखिर में इन बातों का रखें ध्यान
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़े की मानें तो प्रसव के बाद शुरुआती एक महीने में बहुत सी मांओं और नवजात शिशु की मौत हो जाती है जिसमें से करीब 50 प्रतिशत मामले प्रसव के 24 घंटे के अंदर होते हैं। लिहाजा प्रसव के बाद के शुरुआती 24 घंटे बेहद अहम माने जाते हैं। इस दौरान सबसे ज्यादा केयर और ध्यान की जरूरत होती है ताकि नई मां और शिशु दोनों की सेहत अच्छी बनी रहे।
प्रसव के बाद पोस्टपार्टम पीरियड को 3 फेज में बांटा जाता है- प्रसव के बाद शुरुआती 6 से 12 घंटे के समय को अक्यूट फेज कहते हैं। 2 से 6 हफ्ते का समय दूसरा फेज होता है और आखिरी फेज 6 महीने तक का हो सकता है और इस दौरान नई मां का शरीर फिर से पहले की तरह सामान्य होने लगता है। इस दौरान इस बात का ध्यान रखें कि कहीं आपको प्रसव के बाद किसी तरह की कोई जटिलता जैसे- यूट्राइन प्रोलैप्स या अमनियोटिक फ्लूइड इम्बोलिज्म की दिक्कत तो नहीं हो रही।
आप नई मां हैं इसलिए अपने खाने पीने का पूरा ध्यान रखें। स्वस्थ और संतुलित भोजन करें और अपने पार्टनर के साथ-साथ अपने डॉक्टर से भी बात करें कि आपको कैसा महसूस हो रहा है। करीब 80 प्रतिशत नई मांओं पर बेबी ब्लूज का असर होता है और इसके लिए शर्मिंदगी महसूस करने की जरूरत नहीं। बेबी ब्लूज की समस्या खुद ठीक हो जाती है लेकिन पोस्टपार्टम डिप्रेशन पर ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि ये एक गंभीर समस्या है। याद रखें कि ये दोनों ही दिक्कते हार्मोनल असंतुलन की वजह से होती हैं और अपने डॉक्टर, जीवनसाथी, दोस्तों और परिवार के सदस्यों की मदद के जरिए आप इससे जल्दी बाहर आ सकती हैं।
बच्चे को ब्रेस्टफीड करवाना आसान नहीं होता। आप चाहें तो इसमें किसी बुजुर्ग रिश्तेदार की मदद ले सकती हैं। अगर आप तुरंत सफल न हों तो परेशान होने की जरूरत नहीं। प्रसव के बाद के कुछ लक्षण अस्थायी होते हैं जैसे स्किन औऱ बालों में बदलाव। आप चाहें तो इसके लिए कुछ घरेलू नुस्खे अपना सकती हैं। प्रेगनेंसी के वजन को कम करने को लेकर तनाव न लें। शिशु से जुड़ा कितना कुछ है करने को। उस पर फोकस करें और हमेशा खुश और स्वस्थ बनी रहें।
प्रसव के बाद आराम करने का महत्व
रिसर्च में यह बात साबित हो चुकी है कि हमारा शरीर और मस्तिष्क सही तरीके से काम कर सके इसके लिए नींद अति आवश्यक है। प्रसव के तुरंत बाद आपकी नींद पूरी होना इन 2 वजहों से भी जरूरी है।
पहला- आपका शरीर प्रसव के दौरान काफी कुछ झेल चुका है। प्रेगनेंसी के बाद पीरियड्स आना, प्रसव के दौरान योनी में लगे टांके, दर्द और हार्मोनल असंतुलन- इन सबकी वजह से नई मां को हमेशा थकान और चिड़चिड़ापन महसूस होता रहता है। प्रसव के कुछ दिनों बाद आपकी मांसपेशियों में सूजन आ सकती है और कमजोरी महसूस हो सकती है और आपके गर्भाशय को वापस अंदर जाने और सामान्य होने में करीब 6 सप्ताह का समय लग सकता है।
दूसरा- नई मां को नई जिम्मेदारियां भी उठानी पड़ती हैं जैसे- शिशु को ब्रेस्टफीडिंग करवाना, शिशु के गर्भनाल गांठ का ध्यान रखना, शिशु की साफ-सफाई करना, उसे सुलाना, रोने पर चुप कराना आदि और इन सारी चीजों की वजह से नई मां को हद से ज्यादा थकान महसूस होती रहती है।
ऐसे में इन टिप्स की मदद से आप आराम कर सकती हैं और प्रसव के बाद के समय (पोस्टनेटल पीरियड) में आराम करके रिकवर हो सकती हैं:
- अपने नवजात शिशु को दूध पिलाने और अपना ध्यान रखने के अलावा आपको बाकी के कुछ काम अपने जीवनसाथी, भरोसेमंद नर्स, रिश्तेदार या दोस्तों को भी करने के लिए देने चाहिए। याद रखें कि अगर आप अपनी सेहत का ध्यान नहीं रखेंगी तो इसका सीधा असर आपके बच्चे पर पड़ेगा।
- जब शिशु सोए तो आप भी सो जाइए भले ही यह नींद कुछ देर के लिए ही क्यों न हो। ये समय और घंटे जुड़ते जाएंगे और आपकी नींद पूरी हो जाएगी।
- अपने शिशु को अपने नजदीक ही रखें लेकिन उसके साथ अपना बिस्तर शेयर न करें। शिशु के पालने को अपने पास ही रखें ताकि आपको बार-बार उठकर शिशु के पास जाने की जरूरत न पड़े और थकान कुछ कम हो, फिर चाहे दिन का समय हो या रात का।
- आपके दोस्त और परिवार के सदस्य भले ही आपसे और नवजात शिशु से मिलने के लिए आते रहें लेकिन उनके आने की वजह से अपने रूटीन में बदलाव न करें। अगर यह शिशु के सोने या दूध पीने का समय हो तो रूटीन के हिसाब से वैसा ही करें।
- रोजाना कम से कम एक बार घर से बाहर जरूर निकलें ताकि आपको ताजा हवा और सूरज की रोशनी मिल सके। अगर आपकी डॉक्टर आपको सलाह देती हैं तो आपको पोस्टपार्टम एक्सरसाइज भी कर सकती हैं।