अचार बनाना खाद्य पदार्थों को सुरक्षित रखने का एक तरीका है। अचार रेफ्रिजरेशन के आविष्कार से पहले भविष्य के लिए विभिन्न खाद्य पदार्थों को संरक्षित करने का एकमात्र तरीका था। आमतौर पर इसकी शुरूआत उन खाद्य पदार्थों को संरक्षित करने के लिए हुई थी जो मौसमी थे, मुश्किल से उपलब्ध होते थे या जिनकी खेती सीमित थी।

भारत में अचार बनाने की प्रक्रिया लगभग 4,000 से 5000 साल पहले शुरू हुई थी। गर्मियों के मौसम में गर्मी और पानी की कमी के कारण खाद्य पदार्थों का उत्पादन कम होता था इसलिए सर्दियों के मौसम के दौरान उत्पादित अधिक खाद्य पदार्थों को संरक्षित करने की आवश्यकता होती थी। इस समस्या को दूर करने के लिए अचार बनाने की प्रक्रिया का आविष्कार हुआ था।

ओरिएंटल शैली में लंबे समय तक अचार का उपयोग करने के लिए मसालों के साथ नमक, तेल और सूखे मिर्च पाउडर जैसी सामग्री का उपयोग किया जाता है। इन सामग्रियों को निर्धारित अनुपात के अनुसार अचार में डाला जाता है।


भारत में अचार बनाने के लिए कच्चे फल जैसे आम, कच्ची इमली, नींबू आदि का परंपरागत रूप से उपयोग किया जाता है। इनके अलावा विभिन्न प्रकार की कच्ची सब्जियों जैसे खीरा, करेला, गाजर, फूलगोभी, अदरक, लहसुन, प्याज, कटहल आदि का भी अचार बनाया जाता है। ज्यादातर अचार बनाने के लिए एक सब्जी या फल का प्रयोग किया जाता है। लेकिन कभी-कभी दो या दो से अधिक सब्जी या कच्चे फल को मिलाकर अचार बनाया जाता है। आमतौर पर सब्जियों और कच्चे फल से बने अचारों को अत्यंत सावधानी से तैयार किया जाता है ताकि वे खराब न हों और लंबे समय तक सुरक्षित रहें। भारत में मांसाहारी अचार भी लोकप्रिय हैं। ये अचार चिकन, मछली, झींगे और मटन से बनाए जाते हैं। 

  1. अचार के फायदे एंटीऑक्सीडेंट के लिए - Achar khane ke fayde for antioxidants in hindi
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  3. अचार के लाभ दे विटामिन - Pickles nutritional benefits in hindi
  4. आंवला अचार के लाभ बढ़ाए पाचन - Pickles improve digestion in hindi
  5. अचार का उपयोग डायबिटीज में - Pickle cure for diabetes in hindi
  6. अचार खाने के लाभ लिवर के लिए - Pickles effect on liver in hindi
  7. अचार से फायदा अलसर में - Pickles help ulcers in hindi
  8. अचार के नुकसान - Achar ke nuksan in hindi

अचार एंटीऑक्सीडेंट का अच्छा स्रोत हो सकता है क्योंकि अचार बनाने के लिए बिना पके कच्चे फलों और सब्जियों का उपयोग किया जाता है। इन कच्चे फलों और सब्जियों में एंटीऑक्सीडेंट सुरक्षित रहते हैं। एंटीऑक्सीडेंट वे सूक्ष्म पोषक तत्व हैं जो फ्री रेडिकल्स के हमलों से हमारे शरीर की रक्षा करते हैं। फ्री रेडिकल्स अस्थिर रसायन हैं जो कोशिकाओं के चयापचय के दौरान उत्पन्न होते हैं। फ्री रेडिकल्स हमारी कोशिकाओं के साथ प्रतिक्रिया करते हैं और हमारे डीएनए को नुकसान पहुंचाते हैं। हम उच्च एंटीऑक्सिडेंट युक्त भोजन का सेवन करके फ्री रेडिकल्स के हमलों से खुद को बचा सकते हैं। (और पढ़ें – एंटीऑक्सीडेंट युक्त भारतीय आहार)

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प्रोबायोटिक बैक्टीरिया वे अनुकूल बैक्टीरिया हैं जो हमारे पाचन तंत्र में मौजूद होते हैं। ये बैक्टीरिया वास्तव में भोजन को पचाने में हमारी मदद करते हैं। कभी-कभी एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग के कारण ये बैक्टीरिया मर जाते हैं। इनकी संख्या कम होने से हमारे पाचन में समस्या होने लगती है। सिरका रहित अचार के सेवन से इन अनुकूल जीवाणुओं की संख्या बढ़ जाती है। इनकी संख्या बढ़ने से हमारा पाचन और हमारा स्वास्थ्य अच्छा रखता है।

ताजा अचार या चटनी पत्तेदार सब्जियों या जड़ी बूटियों जैसे धनियां पत्ते, करी पत्ते, पालक, अजमोद आदि से बनाए जाते हैं। ये ताजा अचार जो पत्तेदार सब्जियों और जड़ी-बूटियों से बना होता है, वो बच्चों के खाने में दिलचस्पी और स्वाद को बढाते हैं। ताज़े बने अचार में ना केवल अच्छा स्वाद होता है बल्कि यह विटामिन सी, विटामिन ए, विटामिन k, फोलेट (folate) और खनिजों जैसे लोहा, कैल्शियम, और पोटेशियम भी प्रदान करते हैं। ये विटामिन और खनिज हमें रोगों से बचाने, प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने, हड्डी को मजबूत बनाने, दृष्टि को सुरक्षित रखने, एनीमिया का इलाज करने और अन्य प्रकार के कार्यों में हमारी मदद करते हैं। (और पढ़ें – हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए जूस रेसिपी)

भारत में आंवला एक पसंदीदा फल है जिसका उपयोग अचार बनाने में भी किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार आंवला कई प्रकार के स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। इसका अचार हर भारतीय घर में बड़े प्यार से बनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि आंवला अचार पाचन में भी सुधार करता है। (और पढ़ें – पाचन क्रिया सुधारने के आयुर्वेदिक उपाय)

अध्ययनों से पता चला है कि सिरका युक्त अचार का सेवन मधुमेह रोगियों में हीमोग्लोबिन के स्तर में सुधार करता है जो मधुमेह को नियंत्रित करने में भी मदद करता है। यह सिरका में मौजूद एसिटिक एसिड के कारण होता है। हालांकि अधिक नमक युक्त अचार के सेवन से बचना चाहिए क्योंकि नमक का अधिक सेवन रक्तचाप को बढ़ा सकता है। (और पढ़ें – मधुमेह रोगियों के लिए नाश्ता)

आंवला में बेहतर पाचन लाभ के अलावा हिपैटोप्रोटेक्टिव (hepatoprotective - हिपैटोप्रोटेक्टिव लिवर को नुकसान को रोकने की क्षमता है) गुण भी होते हैं। अध्ययनों से पता चला है कि जब प्रयोगशाला में आंवला के अर्क का उपयोग लिवर की क्षति के उपचार के लिए जानवरों पर किया गया तो उससे क्षति काफी कम हो गई। (और पढ़ें – लिवर को साफ और स्वस्थ रखने के लिए 10 सर्वोत्तम आहार)

अलसर आंतरिक घाव होते हैं जो झिल्ली (mucus membranes) की विफलता और ऊतकों पर एसिड के प्रभाव के कारन होते हैं। गैस्ट्रिक अल्सर विशेष रूप से श्लेम झिल्ली और उर्ध्वगत (hyperacidity) के कारण होता है। नियमित रूप से आंवला या के अचार का सेवन करने से अल्सर को कम करने में भी मदद मिलती है। (और पढ़ें – पेट के गैस से राहत पाने के लिए कुछ जूस रेसिपी)

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लगभग सभी प्रकार के अचार में उच्च मात्रा में नमक होता है। नमक अचार का एक अनिवार्य घटक है। यह न केवल स्वाद को बढ़ाता है बल्कि यह अचार को सुरक्षित रखने में भी मदद करता है और माइक्रोबियल विरोधी के रूप में काम करता है जैसे अवांछित बैक्टीरिया, खमीर और कवक को दूर रखता है। लेकिन अचार के माध्यम से  नमक की अधिक खपत स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याओं का कारण बन सकती है। अतिरिक्त नमक का सेवन उच्च रक्तचाप की समस्या को पैदा कर सकता है जिसके कारण स्ट्रोक और दिल के दौरे जैसी समस्या हो सकती है। (और पढ़ें – स्ट्रोक के लक्षण)

 

 

उच्च रक्तचाप के खतने के अलावा भारतीय अचारों में अधिक मात्रा में तेल  होता है जिससे हमारे शरीर में वसा और कोलेस्ट्रॉल के विकास का खतरा बढ़ जाता है। अतः अचारों का नियमित सेवन कम करें। 


होममेड अचार गुणवत्ता में बेहतर होते हैं क्योंकि उन्हें सुरक्षित रखने के लिए नमक का उपयोग किया जाता है जबकि बाजार में बिकने वाले अचार को सुरक्षित रखने के लिए रसायनिक पदार्थ जैसे सोडियम बेंजोएट का उपयोग किया जाता है जो हमारे लिए बहुत हानिकारक है। सोडियम बेंजोएट कैसर जैसी समस्या पैदा करता है। यह कोशिकाओं से ऑक्सीजन को हटा कर कैंसर के प्रति प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करता है। दक्षिणी भारत में किए गए एक अध्ययन में देखा गया है कि सब्जी युक्त अचार के सेवन से गैस्ट्रिक कैंसर के विकास का खतरा बढ़ जाता है। अध्ययनों से यह भी पता चला कि अचार का सेवन एनोफेगल कैंसर के विकास की संभावनाओं को दोगुना करता है। हालांकि अध्ययन ने निर्णायक परिणाम नहीं दिए लेकिन जोखिम के कारणों को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।

अचार का अधिक सेवन पाचन की समस्या पैदा कर करता है। एरिजोना विश्वविद्यालय द्वारा डायरिया से बचने के लिए भोजन में अचार का सेवन करने से मना किया गया है। अतिसार के अलावा बहुत अधिक अचारों का सेवन करने के बाद पेट की असुविधा या दर्द या पेट में गैस के कारण पेट फूलने का अनुभव हो सकता है (और पढ़ें –  डायरिया का घरेलू इलाज)


अचार खाने से ब्लोटिंग और पानी प्रतिधारण की समस्या हो सकती है। अचार में अधिक मात्रा में सोडियम होता है। हमारा शरीर में सोडियम को संतुलत रखने के रक्त प्लाज्मा और तरल पदार्थ सोडियम को अवसोसित करने का कम करते हैं। जब उनमें भी सोडियम की मात्रा अधिक हो जाती है तो शरीर में सोडियम को संतुलत रखने के लिए शरीर में पानी की मात्रा बढ़ जाती है। नतीजतन आप विशेष रूप से अपने एक्सट्रेमिटीज़ में सूजन का अनुभव करते हैं जिससे कुछ परेशानी हो सकती है।यदि आप गंभीर सूजन का अनुभव करते हैं तो अपनी परेशानी को कम करने के लिए मूत्रवर्धक के संभावित लाभों के बारे में जानने के लिए चिकित्सा से परामर्श करें।


अधिक मात्रा में अचार का सेवन गुर्दे की समस्या पैदा कर सकता है। गुर्दा फिल्टर के रूप में कार्य करता है जिससे यह शरीर के पोषक तत्वों को रक्त तक पहुंचाता है और गंदगी को  मूत्र के माध्यम से बाहर निकालता है। आपके द्वारा नमक का अधिक सेवन करने से गुर्दे को सामान्य रक्त मात्रा और दबाव को बनाए रखने के लिए आपके शरीर से अतिरिक्त नमक निकालने का काम करना पड़ता है।  यदि आप गुर्दे की समस्या से पीड़ित हैं तो अचार का सेवन करने से पहले अपने डॉक्टर से बात करें। 

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