फिट रहने के लिए वेट ट्रेनिंग, फ्लैक्सिबिलिटी और ऐरोबिक एक्सरसाइजों के साथ-साथ सर्किट ट्रेनिंग और क्रॉसफिट जैसे कई विशिष्ट तरीके होते हैं। इनमें से ज्यादातर वर्कआउट में एक ही मांसपेशियों का बार-बार कॉन्ट्रैक्शन और एक्सटेंशन होता है जिससे वो धीरे-धीरे टोन होती हैं, मसल्स बनती हैं या फैट घटता है।
आइसोमेट्रिक एक्सरसाइज, हालांकि, इसके विपरीत सिद्धांत पर काम करती है। इसमें कोई मूवमेंट नहीं होती है। आइसोमेट्रिक होल्ड को स्टेटिक स्ट्रेंथ ट्रेनिंग भी कहते हैं। फिटनेस विशेषज्ञ और अध्ययन इस बात पर बंटे हुए हैं कि क्या आइसोमेट्रिक एक्सरसाइज शरीर को ताकत देने में मदद करती है।
हालांकि, इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता है ये शरीर की मौजूदा स्ट्रेंथ को बनाए रखने के लिए बहुत अच्छी है और इससे इंजरी रिहैबिलिटेशन के दौरान दोबारा स्ट्रेंथ पाने में मदद मिलती है।
आइसोमेट्रिक एक्सरसाइज में कई मांसपेशियां और मसल ग्रुप शामिल होते हैं। इन एक्सरसाइजों में एक समय तक इन मांसपेशियों को कॉन्ट्रैक्ट करते रहना होता है। इससे शरीर में विभिन्न मांसपेशियों के विकास में मदद करता है। ये एक्सरसाइज ज्यादा मुश्किल मूवमेंट करते समय एथलेटिक परफॉर्मेंस में भी सुधार करता है।
लंबे समय तक दर्द, अकड़न, वर्कआउट इंजरी और रनिंग इंजरी एक्सरसाइज करने वालों को लगती रहती हैं और ये एथलीटों की रूटीन का एक हिस्सा है। चोट लगने के बाद पूरी तरह से फिट होने में स्ट्रेंथ वापिस पाने के साथ प्रभावित हिस्से में मोशन को पूरी तरह से ठीक करना शामिल होता है।
दुनियाभर के फिजिकल थेरेपिस्ट इंजरी यानि चोट लगने के बाद वापिस फिजिकल एक्टिविटी करने के लिए रिकवर होने में अपने रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम में आइसोमेट्रिक एक्सरसाइज को शामिल करते हैं।